scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतसीएए-एनआरसी के खिलाफ़ यह केवल मुस्लिमों का नहीं, हर किसी का आक्रोश है

सीएए-एनआरसी के खिलाफ़ यह केवल मुस्लिमों का नहीं, हर किसी का आक्रोश है

छात्र अलग कारण से, तो मुस्लिम और असमी लोग अलग कारण से नागरिकता कानून (सीएए) का विरोध कर रहे हैं. लेकिन मोदी सरकार ने यह जो कानून बनाया है उसकी असंवैधानिकता के सवाल पर मतभेद भी हैं.

Text Size:

यहां इस बात की कोई क्षमाप्रार्थी सफाई नहीं दी जा रही है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में जो आंदोलन चल रहा है वह ‘काफी मुस्लिम-बहुल’ है. यह और बात है कि इन विरोध प्रदर्शनों और हिंसा को उकसाने में जो लोग शामिल हैं उन्हें उनके लिबास से आप पहचान सकते हैं. यह इस बात का गर्वीला इकरार है कि ये विरोध उतने ही सेकुलर हैं जितना कि भारत का संविधान सेकुलर है. क्योंकि, इतने दिनों तक बर्बरता, खौफ और सरकारी दमन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को एक भाषण में कहा कि ‘विविधता में एकता भारत की विशेषता है.’

प्रदर्शनकारी हिरासत में लिये जाने या पिटे जाने के बावजूद बड़ी तादाद में सड़कों पर निकलकर अपने जातीय अधिकारों में कटौती, ‘एनआरसी’, मुसलमानों के साथ भेदभाव, या सीएए, या अब तक हम जिस भारत को जानते-पहचानते थे उसे खत्म किए जाने का विरोध कर रहे हैं. और इस विरोध के पीछे हम सब एकजुट हैं.

यह ‘मुस्लिम विरोध’ क्यों नज़र आ रहा है?

क्योंकि मुस्लिम इससे प्रभावित हैं. अगर एनआरसी ‘घुसपैठियों’ की पहचान करने के लिए है, तो सीएए गैर-मुस्लिमों को आसानी से वापस आने की सुविधा देने के लिए है. सीएए और एनआरसी के बीच के इस समीकरण के बारे में खुद गृह मंत्री अमित शाह कई बार खुलासा कर चुके हैं. यह नया कानून मुस्लिमों के साथ खुला भेदभाव करता है इसलिए यह उम्मीद करना मूर्खता ही नहीं बल्कि अतार्किक ही होगा कि वे इस विरोध में आगे बढ़कर हिस्सा नहीं लेंगे.

लेकिन ऐसे भी लोग हैं, जो इस तथ्य को तोड़-मरोड़ कर यह धारणा फैला रहे हैं कि यह ‘विरोध केवल मुस्लिम’ कर रहे हैं.


यह भी पढ़ें : असहमत छात्रों को बतौर नागरिक देखने में भाजपा असफल, इससे मोदी की युवा एक्टिविस्ट छवि धूमिल हुई


सीएए विरोधी आंदोलन और कश्मीर में हो रहे विरोध में स्पष्ट समानता भी इस धारणा को मजबूत करती है कि यह आंदोलन केवल मुसलमानों का है. अब हालत यह है कि आज़ादी के नारे भारत के हर राज्य में गूंज रहे हैं. अब तक यही माना जाता था कि लाठीचार्ज, आंसू-गैस, प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी, धारा 144 आदि केवल कश्मीर की बातें हैं. लेकिन अब यह सब देश की राजधानी दिल्ली में भी हो रहा है.

मौलिक मानव अधिकारों के लिए लड़ना कोई इस्लामी या आतंकवादी गतिविधि नहीं है.

लोग पूछ रहे हैं कि लदीदा सखलून और आयशा रेन्ना इस विरोध के चेहरे क्यों बन गए हैं. कई लोगों ने इन दोनों के सोशल मीडिया एकाउंट से कथित ‘उग्रवादी’ पोस्ट खोज निकाले हैं और वे अपने तर्क को सही साबित करने की कोशिश कर रहे हैं. इन दोनों ने अपने फेसबुक पोस्ट पर बेशक ‘अल्लाहू अकबर या ‘इंशा अल्लाह’ लिखे हैं. तो ‘अल्लाहू अकबर या ‘इंशा अल्लाह’ कहने में गलत क्या है?

‘इंशा अल्लाह’ कहना और सेकुलर होना या मुस्लिम होना और भारतीय होना, दोनों ही कभी भी अलग-अलग बात नहीं थी.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया की एक छात्रा की रोती हुई तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसने सीएए के खिलाफ कुछ कहा था तो उससे अपना धर्म बताने और यह पुष्टि करने के लिए कहा गया था कि वह मुस्लिम नहीं है. सीएए के खिलाफ किसी मुस्लिम का बोलना ‘जाहिर-सी’ बात मानी जाती है लेकिन कोई हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी इसके खिलाफ बोले तो उसका ज्यादा वजन होगा.

फिर भी, मुस्लिम लोग इसके खिलाफ बोल रहे हैं और आंदोलन में भाग ले रहे है, क्योंकि आज की स्थिति में हमारे पास खोने को क्या है? और अगर आपको लगता है कि यह आंदोलन मुस्लिम रंग में बहुत रंग गया है, तो जाइए उनका साथ दीजिए.

हर कोई गुस्से में, हर जगह गुस्सा

इस आंदोलन में शामिल भीड़ में बेशक हिजाबी भी शामिल हैं, सफ़ेद टोपी और कुर्ता-पाजामा वाले भी. लेकिन उनके साथ चंद्रशेखर आज़ाद भी हैं, सीताराम येचूरी, हर्ष मंदर, योगेन्द्र यादव, नीलोत्पल बसु, बृंदा कारत, अजय माकन, संदीप दीक्षित भी. ये चंद जाने-पहचाने नाम हैं. इस आंदोलन में छात्र, वकील, डॉक्टर, हास्य कलाकार, आइआइटी वाले (भारत उनका बहुत सम्मान करता है), इतिहासकार और वे तमाम लोग शामिल हैं जो अब और खामोश नहीं बैठ सकते क्योंकि मोदी-शाह मिलकर भारत को भगवा रंग में रंग रहे हैं.

सीएए का विरोध करने के कई कारण हो सकते हैं. असम में कोई इसका शायद इसलिए विरोध कर रहा है क्योंकि वे अपनी स्थानीय पहचान बनाए रखना चाहते हैं, तो उत्तर प्रदेश में इसलिए विरोध कर रहा है कि सीएए और एनआरसी के कारण मुसलमानों को धीरे-धीरे नागरिकता से वंचित किया जा रहा है.

लेकिन सीएए असंवैधानिक है और भारत के लिए यह बेहद गैरज़रूरी है, इस पर कोई मतभेद नहीं है.


यह भी पढ़ें : क्या नागरिकता संशोधन कानून के प्रावधानों को लेकर जान-बूझकर भ्रम पैदा किया जा रहा है


जामा मस्जिद पर प्रदर्शन कर रही भीड़ ने वहां एक दलित युवा नेता का जिस गर्मजोशी से स्वागत किया वह साफ बताता है कि इस सरकार की कट्टरता का पर्दाफाश करने के लिए मुस्लिम लोग आज केवल ‘मुस्लिम लीडरशिप’ का मुंह ताकने को तैयार नहीं हैं. मुख्यतः मुसलमानों की उस भीड़ में चंद्रशेखर आज़ाद ने हाथ में भारत के संविधान की प्रति उठा रखी थी और उनकी भीम सेना बाबा साहब आंबेडकर के पोस्टर और तिरंगा लहरा रही थी. और जामा मस्जिद के इमाम सैय्यद अहमद बुखारी वहां से नदारद थे.

इसलिए, यह केवल मुस्लिम आक्रोश नहीं है, यह हर एक का और हर जगह का आक्रोश है.

(लेखिका एक राजनीतिक प्रेक्षक हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. तू बकवास करता है, जब इस्लामिक देश में ही मुस्लिम सुरक्षित नहीं है तो और कहां होगा।
    और अगर पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुस्लिम भी भारत में शामिल होना चाहती है तो फिर अलग देश क्यों है, भारत में ही शामिल क्यों नहीं हो जाते। वो तो अपनी मर्ज़ी से छोड़ कर गए थे भारत फिर वापस क्यों आएंगे।
    CAA aur NRC में कुछ भी असवैंधानिक भी है तू सिर्फ नफरत फैला रहा है।

Comments are closed.