एक दिन ऐसा हुआ कि मैंने ट्विटर पर अपना ब्लू टिक निशान छोड़ने का फैसला कर लिया. इसके लिए मैंने पिछले हफ्ते अपना यूजरनेम बदल लिया और ऐसा करने से मेरे नाम के सामने जो ब्लू टिक लगा हुआ था, वह हट गया. हालांकि जब मैं ये कॉलम लिख रहा हूं, तो इस बीच ट्विटर ने फिर से मेरे नाम में ब्लू टिक लगा दिया है.
ऐसा मैंने इसलिए किया क्योंकि खास लोगों को मिलने वाला ब्लू टिक संवाद के मामले में एक किस्म का नस्लभेद है या इसे आप डिजिटल वर्ण व्यवस्था भी कह सकते हैं.
जो लोग डिजिटल और सोशल मीडिया की दुनिया में दखल नहीं रखते हैं या इससे जान-बूझकर दूर रहते हैं, उन्हें बता दूं कि ट्विटर एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जो भारत में भी काफी लोकप्रिय है. आखिरी आंकड़ों के मुताबिक 77 लाख लोग इस पर हैं. सबसे बड़ी बात है कि जिन लोगों को प्रभावशाली माना जाता है, वे यहां बड़ी संख्या में हैं. उनमें प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक से लेकर बड़े अफसर, प्रोफेसर, सिनेमा स्टार, उद्योगपति आदि शामिल हैं. इसके अलावा यहां ढेर सारी आम जनता भी है.
ब्लू टिक दरअसल ट्विटर का एक सिस्टम है, जिसके जरिए वह प्रभावशाली लोगों को भीड़ से अलग खड़ा करता है. ट्विटर पहले इसके लिए आवेदन लेता था. लेकिन 2017 से ब्लू टिक यानी वेरिफिकेशन के लिए आवेदन नहीं लिए जा रहे हैं. ट्विटर अपनी किसी अघोषित पॉलिसी या मनमाने तरीके से कुछ लोगों को ब्लू टिक देता रहता है.
Very excited to kickoff #TwitterFlightSchoolLIVE in India with an engrossed and packed audience from @DentsuAegisIN pic.twitter.com/NDyJmmm1Mp
— Twitter Marketing IN (@TwitterMktgIN) November 21, 2019
जिन लोगों को ब्लू-टिक मिल जाता है, वे ट्विटर पर चल रहे संवाद में ऊपर मंच पर बिठाए जाते हैं. उनकी बात गौर से सुनी और देखी जाती है और बाकी की जनता उन्हें फॉलो, रि-ट्वीट और लाइक करती रहती है. मंच पर बैठे लोगों से उम्मीद की जाती है कि वह भेड़ियाधसान जनता को रास्ता दिखाएं और बताएं कि क्या महत्वपूर्ण है और क्या नहीं. ब्लू टिक मिलना खास लोगों के क्लब की सदस्यता मिलने की तरह है.
— Mohinder Pal Chalia (@mpchalia) November 25, 2019
अगर आपके पास ब्लू-टिक है और आप ब्लू-टिक दिला सकते हैं, तो डिजिटल समाज में आपकी बेहद ऊंची हैसियत मानी जाएगी. इस मामले में ब्लू टिक एक जायदाद की तरह है, जिसके होने या न होने से फर्क पड़ता है. मैंने लोगों को ये कहते सुना है कि ब्लू टिक दिलाने के लिए पांच लाख रुपए तक लिए जा रहे हैं.
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जाहिर है कि जिस ब्लू टिक के लिए इतनी मारा-मारी हो, उसके लिए ट्विटर के अधिकारियों के पीछे लोग पड़ेंगे ही. इस वजह से ट्विटर इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर मनीष माहेश्वरी ने ट्विटर पर अपने परिचय में ही लिख दिया है कि – वे ब्लू टिक देने का अधिकार नहीं रखते.
Not a single organisation / institution can claim to be #caste-neutral, this segregation is historical and this #casteist discrimination is still present #CasteistMedia #casteisttwitter
— R Raman Vishewar (@Vishewar) November 20, 2019
डिजिटल कम्युनिटी का हिस्सा होने के कारण मेरी भी कभी इच्छा थी कि मुझे भी ब्लू टिक मिले. मैंने इसकी कोशिश भी की. हालांकि मेरे कई साथियों को ये मिल भी गया लेकिन मेरे मामले में ट्विटर ने कहा कि उनकी इंटरनेशनल टीम मुझे ब्लू टिक दिए जाने यानी मेरा वेरिफिकेशन किए जाने के खिलाफ है.
लेकिन इसी बीच अक्टूबर महीने के आखिरी हफ्ते में ट्विटर ने बगैर किसी वाजिब वजह के मेरे ट्विटर हैंडल को रिस्ट्रिक्ट कर दिया, जिसकी वजह से मेरे वहां लिखने या रि-ट्वीट करने पर पाबंदी लग गई. इसके खिलाफ ट्विटर पर काफी हंगामा मच गया और इस एकाउंट को रिस्टोर करने के ट्रेंड भी चले. इसे ट्विटर की जातिवादी कार्रवाई के तौर पर भी देखा गया, क्योंकि मेरी जिस पोस्ट को ट्विटर ने आपत्तिजनक माना वह बहुजन एंजेंडा नाम की किताब के बारे में था.
इसी विवाद के बीच ट्विटर ने मेरे एकाउंट के रिस्ट्रिक्शन हटा लिए और मेरे जिस एकाउंट को वेरिफाई करने से पहले मना कर दिया गया था, उसे वेरिफाई करके ब्लू टिक लगा दिया गया. वेरिफिकेशन किए जाने की कोई वजह ट्विटर ने नहीं बताई.
मैं एक समय ब्लू टिक पाना चाहता था, लेकिन फिर मैंने उसे हटा दिया. मुझे नहीं मालूम कि भारत में किसी और ने ऐसा किया है या नहीं. ट्विटर ने कई लोगों से ब्लू टिक वापस लिए हैं. लेकिन मैं ऐसे किसी शख्स को नहीं जानता जिसने अपनी मर्जी से ब्लू टिक वापस कर दिया हो. इस फैसले के पीछे मेरा तर्क इस प्रकार है:
1. ब्लू टिक इंटरनेट इक्वैलिटी के खिलाफ है: इंटरनेट के शुरुआती दिनों में कई लोगों को भ्रम था, उन लोगों में मैं शामिल हूं, कि इसके आने से संवाद और आपसी चर्चा में लोकतंत्र आएगा क्योंकि अब तक समाचार पत्र, रेडियो, टीवी एकतरफा संवाद करते थे और सुनने या पढ़ने वालों की बात का कोई महत्व नहीं था. इंटरनेट ने संवाद की ताकत करोड़ों लोगों तक पहुंचा दी. उसी दौर में एन कूपर ने कोलंबिया जर्नलिज्म रिव्यू में लिखा था कि अब पत्रकारिता करने की ताकत हर किसी के हाथ में आ गई है. उन्होंने लिखा- ‘सवाल ये नहीं है कि कौन पत्रकार है. बल्कि ये पूछा जाना चाहिए कि पत्रकारिता कर कौन रहा है.’
RJD is against any kind of discrimination on the basis of caste, creed, faith and sex. We believe in equality and liberty. Twitter should #VerifyMuslimActivists and extend #BluetickforSCSTOBC activists and other deserving activists.
— Rashtriya Janata Dal (@RJDforIndia) November 12, 2019
इंटरनेट और फिर सोशल मीडिया के शुरुआती दौर में इस मीडियम को लेकर जो सकारात्मक संभावनाएं थीं, वे जल्द ही गायब हो गईं. संवाद का दायरा तो बढ़ा, लेकिन संवाद की बराबरी खत्म हो गई. ब्लू टिक उसी गड़बड़ी का एक लक्षण है. ये समानता के सिद्धांत के खिलाफ है, क्योंकि ये संवाद करने वालों को सत्ता संरचना के हिसाब से दो केटेगरी- वेरिफाइड और अनवेरिफाइड- में बांटता है.
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2. ट्विटर अपने यूजर्स को ऊंच और नीच बनाता है: ब्लू टिक का मकसद सोशल मीडिया में भेदभाव पैदा करना है क्योंकि ये बैज कुछ लोगों के पास है और ज्यादातर लोगों के पास नहीं है. ये लगभग वही स्थिति है, जिसका निर्माण वर्ण व्यवस्था के जरिए किया गया. या फिर जिस तरह से संस्कृत जानने या न जानने से ज्ञान के क्षेत्र में दो कैटेगरी बन गई थी, जहां कोई ऊपर होता था और बाकी नीचे होते थे. कहने को तो वेरिफिकेशन का उद्देश्य किसी एकाउंट को सत्यापित करना है कि वह किसी वास्तविक व्यक्ति का एकाउंट है. लेकिन इस हिसाब से तो जो भी व्यक्ति अपनी पहचान साबित करने में समर्थ है, उसे वेरिफाई किया जाना चाहिए. लेकिन ऐसा है नहीं. ट्विटर ने जिन्हें वेरिफाई नहीं किया है, उनके ट्वीट को रि-ट्वीट किए जाने की संभावना कम होती है. उन्हें तेजी से फॉलोवर नहीं मिलते. इस वजह से उनके लिए किसी हैश टैग को ट्रेंड करा पाना मुश्किल ही है क्योंकि किसी भी हैश टैग के ट्रेंड में आने के लिए जरूरी है कि एक निर्धारित समय में उसे ढेर सारे लोग ट्वीट या रि-ट्वीट करें.
Muslims,OBCs,SC & ST must raise voices against every inequality and discrimination being done by the fascists and their agents as without fighting we won't get what we deserve.@TwitterIndia @verified must #VerifyMuslimActivists and provide #BluetickforSCSTOBC @Twitter
— Meeran Haider (@meeranhaiderr) November 13, 2019
3. ब्लू टिक मनमाने तरीके से दिए जाते हैं: ट्विटर ने कभी नहीं बताया कि वह ब्लू टिक किस आधार पर देता है. चूंकि ये पूरी प्रकिया पर्दे के पीछे की जाती है, इसलिए उस पर पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं. ट्विटर की घोषित नीति है कि 2017 के बाद से वेरिफिकेशन को स्थगित कर दिया गया है. लेकिन वास्तविकता यही है कि ट्विटर लगातार एकाउंट को वेरिफाई कर रहा है. चूंकि वेरिफिकेशन अपारदर्शी तरीके से हो रहा है, और इसे भारतीय लोग ही कर रहे हैं, तो स्वाभाविक है कि इसमें जाति, धर्म, भाषा, भूगोल आदि के भेदभाव अपने तरीके से काम करते हैं. ट्विटर पर आरोप है कि वह दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के एकाउंट वेरिफाई करने में भेदभाव करता है.
4. ब्लू टिक लोगों को गिरोहों में बांट रहा है: चूंकि ट्विटर वेरिफाइड एकाउंट्स को ऊंचा दर्जा देता है, उनके ट्वीट लोगों की टाइम लाइन पर ऊपर आते हैं, इसलिए वेरिफाइड एकाउंट वालों में एक स्वाभाविक श्रेष्ठताबोध पैदा हो जाता है. वे ज्यादातर एक दूसरे को ही फॉलो और रिट्वीट करते हैं. ट्विटर यह सुविधा देता है कि वेरिफाइड एकाउंट वाले सिर्फ वेरिफाइड एकाउंट्स के नोटिफिकेशन देखें. यानी जिस सोशल मीडिया से उम्मीद थी कि वह सब को सब से जोड़ेगा, उसने लोगों का गिरोह बना दिया. लोगों को बांट दिया.
5. ब्लू टिक या संवाद में भेदभाव का लोकतंत्र के लिए मायने: कोई भी आधुनिक लोकतंत्र नागरिकों के अबाध आपसी संवाद से चलता है, जिसमें लोग आपस में लोक-महत्व के विषयों पर बातचीत करते हैं और राय बनाते हैं. इस समय जिस माध्यम पर सबसे ज्यादा लोग आपस में बात कर रहे हैं, उनमें सोशल मीडिया शामिल है. यहां चलने वाली बातचीत का चुनावों पर और सरकार गठन पर असर पड़ता है. इसी वजह से सभी दल अपना सोशल मीडिया सेल तक चलाते हैं. इसलिए सोशल मीडिया में संवाद में अगर पक्षपात और भेदभाव है, तो ये किसी कंपनी का मामला नहीं है. इसका असर लोकतंत्र पर होता है.
सोशल मीडिया और लोकतंत्र के संबंधों पर दुनिया भर में चल रही बहसों में अब भारत के लोगों को भी शामिल हो जाना चाहिए.
(लेखक भोपाल स्थित माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय विश्विद्यालय पत्रकारिता और संचार में सहायक प्रोफेसर हैं. वे इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका के पूर्व मैनेजिंग एडिटर भी रहे हैं. इन्होंने मीडिया और सोशियोलोजी पर कई किताबें भी लिखी हैं. लेखक के ये विचार निजी हैं. यह लेख उनका निजी विचार है.)
Bilkul sahi bate btayi sir