भारतीय क्रिकेट बोर्ड का पूर्व कप्तान एमएस धोनी को वार्षिक कांट्रैक्ट देने से इंकार करना और रिस्क लेने के लिए तारीफ की जानी चाहिए. विकेटकीपर-बल्लेबाज का सुंदर अतीत बीत चुका है. दुखद है, उनका अब उस तरह स्वागत नहीं किया जा रहा है, उन्होंने जो जगह बना रखी है उसे छोड़ना पड़ रहा है. वार्षिक अनुबंध नहीं मिलना एक साफ संकेत है. उन्हें इसे मानना चाहिए और अपना गलब्स टांग देना चाहिए.
जीएसटी, सीएए और अब एनआईए- केंद्र और राज्य के बीच कम होता विश्वास मोदी के संघवाद के मंत्र को पूरा नहीं होने देगा
विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों और केंद्र सरकार के बीच जीएसटी के बाद सीएए, एनपीआर, एनआरसी और एनआईए को लेकर गतिरोध बढ़ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोग और प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद का राजनीतिक मंत्र अधूरा ही रहेगा अगर राज्य-केंद्र के बीच विश्वास इसी तरह विश्वास कम होता चला जाता है. इस ट्रेंड को बदलने की अब जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर है.
गर्ग के राजकोषीय घाटे पर बयान ने डेटा विश्वसनीयता को कम किया, मोदी को पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए
पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने इस संदेह की पुष्टि की है कि मोदी सरकार भारत के राजकोषीय घाटे को कम कर के दिखा रही है. यह भारत के डेटा की विश्वसनीयता के लिए एक नया, गंभीर झटका है क्योंकि सुभाष चंद्र गर्ग वह व्यक्ति हैं जो सिस्टम का हिस्सा थे. 2020 के बजट में इस हेराफेरी को स्वीकार करना चाहिए और पारदर्शिता के लिए स्पष्ट रूप से प्रतिबद्ध होना चाहिए.