खराब आचरण के लिए राज्य सभा के आठ विपक्षी सांसदों का निलंबन संसदीय बहस के गिरते स्तर को रेखांकित करता है. दोनों पक्षों को दोषी ठहराया जाना चाहिए. विरोध करने वाले सांसदों की मांग अगर उचित थी फिर भी उन्हें संसद की मर्यादा का पालन करना चाहिए. असंतुष्ट आवाजों को समायोजित कर सरकार को सर्वसम्मति से निर्णय लेना चाहिए.
चर्चाओं के मध्य मत-विमत को लेकर बहस होना और फिर उस वहस पर हो हल्ला होना मेरे अनुसार कोई बड़ी बात नही है क्योंकि हर पक्ष के अनुसार उसका विचार अच्छा है ना तो सत्ता पक्ष और ना ही विपक्ष स्वयं के विचार पर विचार करना चाहते अब कारण चाहे राजनीति हो , नागरिकों की भलाई हो या अहम्। विचार विमर्श के मध्य हिंसा को छोड़कर जो भी हो वो सब स्वस्थ्य लोकतंत्र का हिस्सा है जब सत्ता पक्ष अपने विचार पर अडिग हो और मिली हुई शक्तियों का दुरूपयोग करें। इसलिए जरूरी है कि प्रत्येक सदन का अध्यक्ष कोई नोकरशाह होना चाहिए जो निष्पक्ष हो । उसकी नियुक्ति का प्रावधान होना चाहिए कि सेवा निलंबन के बाद वो किसी भी प्रकार का सरकारी लाभ प्राप्त नही कर सकता सिवाय सेवा निलंबन के साथ मिली सुविधाओं के । विचार युद्ध से ही चाणक्य का जन्म हुआ और अरस्तू, सुकरात, आदि जैसे विस्व की महान विभूतियों का। और संसद कोई मंदिर नही है यह देश के लिए कानून बनाने बाली एक ऑफिस है ।अगर वास्तव में मंदिर होता तो आज भारत में 28% गरीबी ना होती।