गीता प्रेस की तुलना गोडसे और सावरकर से नहीं की जा सकती. 100 साल पुराने सांस्कृतिक पावरहाउस गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने पर हो-हल्ला ठीक नहीं. यह इस नासमझी को उजागर करता है कि कैसे हिंदू धर्म को प्रकाशक ने सभी के योग्य बनाया था, ठीक उसी तरह जैसे राजा रवि वर्मा ने अपनी प्रतिमा के साथ किया था.
होम50 शब्दों में मतगीता प्रेस की तुलना गोडसे, सावरकर से नहीं की जा सकती, गांधी शांति पुरस्कार पर हो-हल्ला करना गलत है
