पटना: 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बेगुसराय सीट से चुनाव लड़ रहे सीपीआई यानी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के प्रत्याशी कन्हैया कुमार का मधेपुरा से सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को समर्थन देना, वामपंथी दल को शर्मशार कर दिया है. वहीं सोमवार को सीपीआई ने इस पूरे घटनाक्रम को ‘गलतफहमी’ करार दिया है.
सोमवार को सीपीआई के बिहार सेक्रेटरी सत्यनारायण सिंह ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘हम पप्पू यादव का कभी समर्थन नहीं कर सकते हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘पप्पू यादव के कुछ समर्थकों ने जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को भाषण देने के लिए बुलाया था. कन्हैया कुमार भी समर्थकों की बात रखते हुए भाषण देने पहुंचे जिसे पप्पू यादव के समर्थकों द्वारा वायरल कर दिया गया. कन्हैया ने अपना स्टैंड पार्टी को क्लियर कर दिया है.’
हालांकि, सीपीआई नेताओं ने दबी जुबान में यह बात कबूली है कि कुछ दिनों पहले कन्हैया कुमार द्वारा दिए गए बयान ने पार्टी को शर्मसार कर दिया है. एक अन्य सीपीआई नेता ने यह बताते हुए कि पार्टी मामले पर आरोप-प्रत्यारोप के खेल में शामिल हो गई है. उन्होंने कहा, ‘इस घटना ने कन्हैया और पार्टी, दोनों की छवि को नुकसान पहुंचाया है. हम आपराधिक रिकार्ड वाले व्यक्ति का समर्थन नहीं करते हैं.’
‘और यह केवल आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त उम्मीदवार के समर्थन की बात नहीं है. इतिहास गवाह है कि लेफ्ट ने पप्पू यादव और पूर्व सांसद शहाबुद्दीन जैसे बिहार के बाहुबली नेताओं से मोर्चा लिया है. व्यापक तौर पर यह माना जाता है कि बिहार में लेफ्ट का उदय इन बाहुबली नेताओं के कारण कमजोर पड़ गया जिन्होंने प्रमुख वामपंथी नेताओं को 90 के दशक में हो रही हिंसा में निशाना बनाया था.’
90 के दशक का ‘भूत’
पप्पू यादव से वाम का टकराव 90 के दशक से शुरू हुआ, जब सीपीआई (एम) के एक चमत्कारिक नेताओं में से एक अजित सरकार ने स्थानीय जमींदारों से सामना किया. सरकार उस समय पूर्णिया से विधायक थे, जिन्होंने उस क्षेत्र में भूमि छिनने के खिलाफ मुहिम चलाई थी.
एक समय पूर्णिया और उसके आसपास जिलों में आतंक का पर्याय बने निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव को सरकार के खिलाफ वहां के जमींदारों का समर्थन प्राप्त था. इन दोनों की दुश्मनी का यह आलम था कि जब 1996 में पुर्णिया लोकसभा सीट से लेफ्ट के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे राजद ने पप्पू यादव को मैदान में उतारा था तब सरकार ने कांग्रेस के कैंडीडेट के लिए प्रचार किया था.
1998 में सरकार को पुर्णिया में अज्ञात हमलावर ने गोली मार दी. पप्पू यादव इस हत्या के मुख्य आरोपी थे और निचली अदालत ने उन्हें सजा सुनाई थी. हालांकि उन्हें 2013 में सबूतों के अभाव में पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था. उनके बरी किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई अभी भी लंबित है.
एक सीपीआई के नेता ने सवाल किया, ‘कैसे सीपीआई किसी ऐसे इंसान का समर्थन कर सकती है जिसके ऊपर राज्य में लेफ्ट के सबसे चमत्कारिक नेता की हत्या का आरोप लगा हो.’ हत्या के मामले ने पप्पू यादव का राजनीतिक जीवन लगभग समाप्त कर दिया था, लेकिन राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने उन्हें 2014 लोकसभा चुनाव में मधेपुरा सीट से टिकट देकर एक बार फिर से पुनर्जीवित किया.
इन दिनों हालांकि पप्पू यादव जनतांत्रिक अधिकार पार्टी (जाप) का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन महागठबंधन का हिस्सा बनने की उनकी कोशिशों पर लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने पानी फेर दिया. जिसके बाद से पप्पू यादव ने यह साफ कर दिया है कि वह मधेपुरा से चुनाव लड़ेंगे.
वामदलों की नाराजगी की केवल यही वजह नहीं
90 के दशक से ही रही हिंसा की राजनीति सीपीआई को परेशान करती है तो वहां का दूसरा वामपंथी संगठन सीपाई (एमएल) ने भी इसका खामियाजा उठाया. जो कि अब इसमें सुधार की कोशिश में है. विपक्षी दलों द्वारा बने महागठबंधन में सीपीआई (एमएल) एक मात्र वामपंथी संगठन बचा है. आगामी लोकसभा चुनाव के लिए आरजेडी ने उसे आरा सीट दिया है. लेकिन एक और चुनाव क्षेत्र है जहां वो गठबंधन की मजबूरी को दरकिनार किया है, जहां उसकी जीत का बहुत ही प्रतिकात्मक मतलब होगा.
सीपीआई (एमएल) सिवान मेंं अपना प्रत्याशी उतारा है जो राजद की हिना शहाब को चुनौती देंगी. हिना मोहम्मद माफिया से राजनेता बने शहाबुद्दीन की पत्नी हैं. शहाबुद्दीन तिहाड़ जेल में है, जिसे मर्डर और अपहरण के आधा दर्जन मामलों में दोषी ठहराया गया है.
90 के दशक में शहाबुद्दीन की भी लड़ाई सीपीआई (एमएल) से भूमि को ही लेकर थी, जिसे पार्टी के कई कार्यकर्ताओं मौत का जिम्मेदार माना जाता था. उनमें जेएनयू के दो बार के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष चंद्रशेखर (अपने दोस्तों के बीच चंदू नाम से मशहूर) भी शामिल थे. जिनकी 31 मार्च 1997 को सिवान में एक जनसभा को संबोधित करने के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.
हालांकि शहाबुद्दीन पर चंद्रशेखर की हत्या के सीधे आरोप कभी नहीं लगे, लेकिन सिवान में यह संदेह जताया जाता है कि ये हत्या उसी के इशारों पर हुई थी.
सीपीआई (एमएल) के नेता ने कहा, ‘दो दशकों तक शहाबुद्दीन के खिलाफ संघर्ष करने के बाद सिवान लोकसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ने या फिर शहाबुद्दीन की पत्नी का समर्थन करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है. यह तो हमारे कार्यकर्ताओं के साथ धोखा होगा जो शहाबुद्दीन और उसके गुंडों के फैलाये आतंक के खात्मे में लगे हुए हैं.
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