भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई के महासचिव सुधाकर रेड्डी के बाद प्रगतिशील गीतकार जावेद अख्तर दूसरी शख्सियत हैं जिन्होंने राष्ट्रीय जनता दल से कहा कि वह बेगूसराय के अपने उम्मीदवार तनवीर हसन को सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया के पक्ष में चुनाव मैदान से हटा ले. सुधाकर रेड्डी की बात को राजद ने कोई तरजीह नहीं दी. लेकिन जब यही बात जावेद अख्तर ने कही तो राष्ट्रीय जनता दल ने तीव्र प्रतिक्रिया दी.
दरअसल जावेद अख्तर ने सुधाकर रेड्डी की तरह सरल शब्दों का चयन करने के बजाय चुभते हुए तेवर का इस्तेमाल किया. उनके बयान में तनवीर के समर्थक वोटरों, विशेष रूप से मुस्लिमों के लिए हिकारत का भाव भी था. मानो वे अपने फैसले करने में सक्षम ही न हों.
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बेगूसराय में कन्हैया कुमार के चुनवी सभा में जावेद ने कहा था कि ‘जो कन्हैया को वोट नहीं देगा उनके लिए मेरी एक राय है कि वो सीधे बीजेपी को वोट दे दे. अगर आपने कन्हैया को वोट नहीं दिया तो बीजेपी जीत जाएगी. तो फिर आप ऐसा करिये सलाम व अलैकुम कह कर उनके (भाजपा) पास जाइए और कहिए, हुजूर! बीजेपी के लिए वोट लेकर आया हूं. कम से कम बीजेपी वाले आपका अहसान तो मानेंगे. आप अगर वहां वोट दे देंगे तो बीजेपी की मदद तो हो जायेगी लेकिन उन पर आपका एहसान नहीं होगा.’
जावेद अख्तर के इस कथन को उस राजद और उसके समर्थकों की विचारधारा पर प्रहार माना गया जो भाजपा के साम्प्रदायिक व विभाजनकारी राजनीति के घोर विरोधी रहे हैं. लालू यादव ने न सिर्फ आडवाणी का रथ रोककर उन्हें गिरफ्तार किया था, बल्कि 2015 में नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार में मोदी लहर को रोक दिया था और बीजेपी को तीसरे नंबर पर धकेल दिया था.
इसलिए राजद के राष्ट्रीय महासचिव शिवानंद तिवारी ने जावेद अख्तर के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि ‘जावेद साहब ने हमारे उम्मीदवार (तनवीर हसन) और राजद समर्थकों के लिए हिकारत के भाव से बात की और उनको वोट देने वालों से कहा कि इनके बदले सीधे बीजेपी को ही वोट दे दें. उनको अपनी मशहूरियत का इस्तेमाल इतने हल्के ढंग से नहीं करना चाहिए.’
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सुधाकर रेड्डी और जावेद अख्तर के बयानों के कुछ स्पष्ट निहितार्थ हैं. पहला- ये दोनों लोग अपने बयान से संदेश देना चाहते हैं कि बेगूसराय में राजद का उम्मीदवार चुनावी लड़ाई से बाहर है. दूसरा- सीपीआई और उसके उम्मीदवार कन्हैया कुमार सेकुलरिज्म के नये चैंपियन हैं न कि राजद व तेजस्वी यादव. और तीसरा पर सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि राजद के उम्मीदवार को वोट देने वाले भाजपा को जिताने के लिए वोट करेंगे.
ये तीनों संदेश राष्ट्रीय जनता दल को स्वाभाविक तौर पर आहत करने वाले हैं. क्योंकि राजद बिहार की सबसे बड़े जनाधार की पार्टी है. उसे विश्वास है कि बेगूसराय में उसका उम्मीदवार जीतेगा, न कि कन्हैया. दूसरी तरफ राजद यह भी मानता है कि बिहार में भाजपा के साम्प्रदायिक एजेंडे का सबसे मुखर विरोध भी वही करता है. लिहाजा जावेद अख्तर ने ऐसा बयान देकर उसकी हैसियत को नीचा दिखाने कोशिश की है.
दूसरी तरफ बेगूसराय को मीडियाई शोर ने चर्चित सीट बना डाला है. इसकी वजह कन्हैया कुमार का वहां से लड़ना है. बेगूसराय की ज़मीनी हकीकत को नहीं जानने वाले यह मान कर चल रहे हैं कि यहां का चुनाव कन्हैया कुमार बनाम अन्य है. कुछ मीडिया कन्हैया के खिलाफ भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह को असल कटेंडर मान कर रिपोर्टिंग कर रहे हैं. ऐसे में ज़मीनी सच्चाई कहीं पीछे छूट गयी लगती है. इससे तेजस्वी यादव को खास परेशानी है.
तेजस्वी का तर्क है कि 2014 के चुनाव में राजद के उम्मीदवार तनवीर हसन को 3 लाख 60 हज़ार से ज़्यादा वोट मिले थे, जबकि सीपीआई उम्मीदवार को डेढ़ लाख से ऊपर वोट मिले थे. तेजस्वी यह भी कहते हैं कि बेगूसराय की कुल सात विधानसभा सीटों में से पांच पर गठबंधन का कब्ज़ा है. तेजस्वी ने ये भी कहा है कि सीपीआई एक ज़िले और एक जाति की पार्टी है. तेजस्वी के इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए शिवानंद तिवारी सीपीआई से कहते हैं कि उसे अपने उम्मीदवार और मीडिया ‘दुलरुआ’ कन्हैया को बैठा देना चाहिए.
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कहना मुश्किल है कि कन्हैया या तनवीर हसन में से कौन बैठेगा या कोई भी नहीं बैठेगा. लेकिन सेकुलर खेमे में बेगूसराय को लेकर जिस तरह का वाक् युद्ध चल रहा है, उससे मामला दिलचस्प हो गया है.
बेगूसराय का चुनाव चौथे चरण में 29 अप्रैल को है. मीडिया कवरेज की वजह से पूरे देश की नज़रें इस लोकसभा क्षेत्र पर है. चुनावी शोर खत्म होने से पहले जावेद अख्तर और राजद के बीच बयानों का विवाद भी अब थम जाने को है क्योंकि 27 अप्रैल चुनाव प्रचार का अंतिम दिन है.
(लेखक नौकरशाही डॉट कॉम के संपादक हैं.)