scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होम2019 लोकसभा चुनावभारतीय चुनाव दुनिया का सबसे खर्चीला चुनाव क्यों है

भारतीय चुनाव दुनिया का सबसे खर्चीला चुनाव क्यों है

इस बार के लोकसभा चुनावों पर 500 अरब खर्च होने का अनुमान है, जो 2014 की तुलना में 40 प्रतिशत अधिक है. बढ़ा हुआ व्यय सोशल मीडिया, यात्रा और विज्ञापन में लगने की संभावना है.

Text Size:

नई दिल्ली/मुंबई: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र शीघ्र ही संभवत: दुनिया का सबसे महंगा साबित होने वाला चुनाव आयोजित करेगा. छह सप्ताह तक चलने वाले भारत के चुनाव में उत्तर में हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं से लेकर दक्षिण में हिंद महासागर तक, और पश्चिमी में थार के रेगिस्तान से लेकर पूर्व में सुंदरवन के मैंग्रोव जंगलों तक के इलाके शामिल होंगे.

नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ (सीएमएस) के अनुसार इस बार 11 अप्रैल को शुरू होकर 19 मई को संपन्न मतदान की प्रक्रिया पर 500 अरब रुपये (7 अरब डॉलर) की अभूतपूर्व लागत आएगी. अमेरिकी राजनीति में धन के इस्तेमाल पर नज़र रखने वाली संस्था ओपेन सीक्रेट्स डॉट ऑर्ग के अनुसार 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपतीय और संसदीय (कांग्रेस के) चुनाव पर करीब 6.5 अरब डॉलर खर्च हुए थे. सीएमएस का खर्च का अनुमान भारत के 2014 के संसदीय चुनाव के 5 अरब डॉलर के मुकाबले 40 फीसदी अधिक है. और यह आंकड़ा प्रति वोटर लगभग 8 डॉलर का बैठता है. उल्लेखनीय है कि भारत की 60 फीसदी जनता रोजाना करीब 3 डॉलर की आमदनी पर गुजर-बसर करती है.


यह भी पढ़ेंः लोकसभा चुनाव: रमजान में मतदान पर उठे सवाल, 2019 में बदलेगी मुस्लिमों की स्थिति


सीएमएस के अध्यक्ष एन. भास्कर राव ने इस बारे में बताया, ‘बढ़े व्यय का अधिकांश हिस्सा सोशल मीडिया, यात्रा और विज्ञापन के मद में खर्च होगा. एक मार्केट रिसर्च कंपनी चला चुके राव पूर्व की सरकारों को सलाह दे चुके हैं. राव का कहना है कि सोशल मीडिया पर चुनावी खर्च में भारी उछाल देखी जा सकती है, और 2014 के 2.5 अरब रुपये के मुकाबले इस बार यह खर्च 50 अरब डॉलर के स्तर को छू लेगा. राव की संस्था का आकलन साक्षात्कारों, सरकारी आंकड़ों, सौंपे गए चुनावी कार्यों और अन्य अनुसंधानों पर आधारित है. उन्होंने उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं के हेलिकॉप्टरों, बसों और परिवहन के अन्य साधनों के इस्तेमाल पर भी खर्च काफी बढ़ने की संभावना जताई है.

भारतीय चुनावों पर नज़र रखने वाले अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शिक्षक साइमन शोशार्ड के अनुसार स्पष्ट डेटा की उपलब्धता मुश्किल है, पर चुनाव खर्च में आमतौर पर वृद्धि का रुझान रहा है, क्योंकि चुनाव क्षेत्र बड़े हो रहे हैं और भाग लेने वाले उम्मीदवारों की संख्या बढ़ रही है. शोशार्ड के अनुसार भारतीय नेताओं को लगता है कि चुनाव में नए और अटपटे, व्यापक और हंगामेदार तौर-तरीके अपनाने चाहिए. ‘घबराए उम्मीदवार न सिर्फ वोटरों पर, बल्कि राजनीतिक प्रचार में उपयोगी तरह-तरह की चीज़ें मुहैय्या कराने वालों पर भी पैसे लुटाते हैं.’

पेश हैं चुनाव में पैसे खर्च करने के कुछ साधन:

क्या बकरियां वोट दिलाने में मददगार हो सकती हैं?

कुल 543 सीटों के लिए 8,000 से ज़्यादा उम्मीदवारों में मुकाबला होने के कारण वोटों के लिए कड़ी प्रतिस्पर्द्धा रहती है. और गुप्त मतदान की व्यवस्था होने के कारण रिश्वत देने के बाद भी वोट मिलने की गारंटी नहीं रहती है. शोशार्ड के अनुसार उपहारों से भारत के मतदाताओं को इस बात का संकेत मिल सकता है कि उम्मीदवार प्रभावशाली है और उसके पास पर्याप्त संसाधन हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले के सहायक प्रोफेसर जेनिफर बसेल द्वारा किए गए एक सर्वे में भारत के केंद्रीय स्तर के 90 प्रतिशत से अधिक नेताओं ने कहा कि उनके जैसे नेता नकदी, शराब या व्यक्तिगत उपयोग के सामान उपहार में देने का दबाव महसूस करते हैं. देश के कुछ हिस्सों में मतदाताओं के बीच ब्लेंडर्स, टेलीविजन सेट और कभी-कभार बकरियां भी उपहार के रूप में वितरित की जाती हैं. चुनाव आयोग ने पिछले साल कर्नाटक में हुए चुनाव के दौरान 1.3 अरब रुपये से अधिक की बेनामी नकदी, सोना, शराब और ड्रग्स बरामद किए गए थे. चुनाव पर होने वाले अधिकांश खर्च को सार्वजनिक रूप से जाहिर नहीं किया जाता है. जहां उम्मीदवारों के चुनावी खर्च के लिए कानून द्वारा एक सीमा तय है, पार्टियां बेहिसाब खर्च कर सकती हैं. हालांकि देश के बड़े राजनीतिक दलों ने मार्च 2018 में समाप्त वर्ष में कुल मिलाकर मात्र 13 अरब रुपये की आय दिखाई है.

समर्थकों की रैली और चिकन करी

भारत के नेताओं को अच्छी चुनावी रैली बहुत सुहाती है. वे देश भर में घूमते हुए स्थानीय लोगों को बड़े-बड़े शामियानों में जुटाकर उन पर बयानबाज़ी की बौछार करते हैं. भीड़ जुटाने के लिए नेताओं को लोगों के बीच बिरयानी या चिकन करी से भरे भोजन के पैकेट बांटने पड़ सकते हैं, जो कि आम जनता के लिए बहुत महंगा खाना है. इसके अलावा पटाखों, कुर्सियों, ऑडियो सिस्टम, सुरक्षा व्यवस्था और लोगों को लाने-ले जाने के लिए गाड़ियों पर भी खर्च करने पड़ते हैं.

डमी उम्मीदवार

भारत के चुनाव आयोग ने बहुत पहले से डमी या नकली उम्मीदवारों के बारे में चेतावनी दे रखी है. डमी उम्मीदवार यानि आगे चल रहे उम्मीदवार के समान नाम वाले किसी व्यक्ति से नामांकन दाखिल करा वोटरों को भ्रमित करना और वोटों का विभाजन कराना. उत्तर प्रदेश जैसे बड़ी आबादी वाले राज्यों में, जहां नाम से किसी उम्मीदवार विशेष की जाति या समुदाय की पहचान होती है, यह चाल काम आ सकती है.

प्रसिद्ध व्यक्तियों को भी निशाना बनाया जाता है: 2014 में, हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, हेमा मालिनी के मुकाबले में दो अन्य हेमा मालिनी खड़ी थीं. लेकिन डमी उम्मीदवार खड़े करने में भी पैसे लगते हैं. इंडिया टुडे की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार उम्मीदवार का चुनाव खर्च 12 करोड़ रुपये से ऊपर जा सकता है. पार्टियां भी प्रति उम्मीदवार खर्च की सीमा से निबटने के लिए कई उम्मीदवार खड़े करती हैं, पर सर्वाधिक लोकप्रिय उम्मीदवार के लिए अधिकांश संसाधन लगाए जाते हैं.


यह भी पढ़ेंः देश में सात चरणों में होगा 2019 लोकसभा चुनाव, नतीजे 23 मई को


ब्रांड निर्माण: मेक इंडिया ग्रेट अगेन स्वैग

टीवी और अखबारों में विज्ञापन बुक करने वाली कंपनी ज़ेनिथ इंडिया के अनुसार इस बार के चुनाव में विज्ञापनों पर 26 अरब रुपये तक खर्च किए जाएंगे. यह आंकड़ा 2014 में दो मुख्य दलों के खर्चे के 12 अरब रुपये के चुनाव आयोग के आकलन के दोगुने से भी अधिक है. अकेले गत फरवरी महीने में, मात्र एक साइट फेसबुक पर राजनीतिक विज्ञापनों पर चार करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. कंपनी की एक रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है. इन सब के साथ नरेंद्र मोदी समर्थक ‘नमो अगेन’ स्लोगन वाली टीशर्ट भी बेच रहे हैं.

संन्यासी और हाथी

भारत के चुनाव व्यय का अधिकांश राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार पर खर्च के रूप में होता है. पर चुनाव आयोग को भी मतदान के आयोजन पर भारी खर्च करना पड़ता है- एक ऐसा चुनाव जहां समुद्र तल से 15,000 फीट ऊपर हिमालय पहाड़ पर भी मतदान केंद्र बनाना होता है, और पश्चिम भारत के जंगलों के भीतर अकेले रह रहे एक संन्यासी के लिए भी. भारत के बजट में इस वित्तीय वर्ष के वास्ते चुनाव आयोग के लिए 2.62 अरब रुपये का प्रावधान किया गया है, जो कि अब तक की सबसे बड़ी राशि है. इसमें से कुछ रकम अपेक्षाकृत दुर्गम इलाकों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पहुंचाने के लिए हाथियों पर और पूर्वोत्तर में विशालकाय ब्रह्मपुत्र नदी के आर-पार मतदानकर्मियों और वोटिंग सामग्री ढोने के लिए नौकाओं पर खर्च की जाएगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments