scorecardresearch
Friday, 20 December, 2024
होम2019 लोकसभा चुनावड्रग्स की चपेट में हरियाणा का बचपन, पर 'उड़ता सिरसा' चुनावी मुद्दा नहीं

ड्रग्स की चपेट में हरियाणा का बचपन, पर ‘उड़ता सिरसा’ चुनावी मुद्दा नहीं

‘नशे का कारोबार हरियाणा में 2002 से 2005 के बीच शुरू हुआ. इसका पूरा श्रेय चौटाला सरकार को जाता है. उस वक्त ट्रक भरकर हेरोइन लाई जा रही थी. प्रशासन और सरकार ने आंखें बंद कर रखीं थीं और अभी भी बंद है.

Text Size:

सिरसा: हरियाणा के सिरसा लोकसभा सीट पर चुनाव काफी अलग होने वाला है. यहां पर भाजपा से सुनीता दुग्गल, इनेलो से मौजूदा सांसद चरणजीत सिंह रोड़ी, जेजेपी से निर्मल सिंह और कांग्रेस से अशोक तंवर चुनावी दंगल में हैं.  सिरसा सिविल अस्पताल के पास दिप्रिंट की टीम से बात करते हुए रविंदर बताते हैं- चुनाव का क्या जी, वो तो कोई भी जीत जाता है. क्या फर्क पड़ता है, कौन जीतता है. इतना कहकर रविंदर हंसने लगते हैं और हंसते ही रह जाते हैं. कुछ देर बाद उनके आस-पास के लोग भी हंसने लगते हैं. कोई ना चुप होता है, ना ही कुछ और बताता है. तभी एक छोटा सा लड़का आकर कान में कहता है- मैडम, यहां लोग ड्रग्स लेकर किसी और दुनिया में चुनाव लड़ रहे हैं. इन चुनावों से इनकी जिंदगी में असर नहीं पड़ रहा. इनका चुनाव बस एक है- आज कौन सा ड्रग लेना है.

सिरसा में दिप्रिंट की टीम को भयानक और खतरनाक अनुभव हुए. पंजाब में गर्त में समाते युवा पर तो कई रिपोर्ट पढ़ी उसे अमली जामा पहनाया फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ ने,  फिल्म देखकर पंजाब की ड्रग्स समस्या के घृणित रूप को भी देखा था. सिरसा विगत सालों में सिर्फ एक वजह से न्यूज में रहा है- स्वघोषित बाबा राम रहीम के स्टारडम और उनकी गिरफ्तारी से. ड्रग्स की समस्या यहां अंडरकरेंट की तरह है. मौजूद हर जगह है, पर इस पर कोई बात नहीं की जाती. बात क्यों नहीं की जाती, इसकी वजह लोकतांत्रिक प्रक्रिया से परे किसी मध्ययुगीन ठगों के साम्राज्य से निकल के आती है.

सिरसा|तस्वीर- ज्योति यादव

रंगे हुए बाल, कानों में बाली और गर्दन पर टैटू वाले वोटर्स

कविंदर शुरू में झिझके लेकिन धीरे-धीरे अपने नशे की लत को परत दर परत खोलते गए. सिरसा के सिविल अस्पताल के एक कमरे में हो रही बातचीत के बीच वो दो बार उठकर आंसू पोंछने गए. फिर आकर वहीं से शुरू कर देते. कविंदर 21 साल के हैं. पिछले दो-तीन साल से ड्रग्स ले रहे हैं. बातचीत के दौरान जब उन्हें मुझपर भरोसा हो जाता है तो वो एक महत्वपूर्ण बात बताते हैं.

‘मेरे पास पैसे नहीं होते थे. कभी चोरी की तो कभी उधार लिया. इतनी तलब लगती है कि रुका ही नहीं जाता. इसी तलब के चक्कर में मैंने अपनी गर्लफ्रेंड को भी जबरदस्ती हेरोइन इंजेक्ट कर दिया. दो-तीन बार इंजेक्ट करने के बाद उसे भी लत लग गई. फिर वो मेरे लिए और अपने लिए चोरी करके लाने लगी.’


यह भी पढ़ें: हरियाणा: 5 साल में मिला पैसा पूरा खर्च नहीं हुआ, किस आधार पर वोट मांगेंगे सांसद?


आखिर में जब मैंने पूछा कि आप किसे वोट करेंगे? कविंदर कहते हैं कि पता नहीं. कविंदर से लेकर मनप्रीत, अमनदीप, गौरव, अंकित, नवीन और ना जाने कितने ही पहली बार वोट करने वाले नौजवान नशे के कुचक्र में फंसे हुए हैं. 12 मई को वोट पड़ने तक कई नए लड़के ड्रग का शिकार हो चुके होंगे. इस इलाके के लोगों को ड्रग का मुद्दा सिर्फ सामाजिक पतन का मुद्दा ना होकर एक सियासी साजिश नजर आती है.

ड्रग का राक्षस दिन-प्रतिदिन यहां के युवकों को निगलता जा रहा है. सिविल अस्पताल आए दिल्ली से पत्रकार से लोग आस लगाए बैठे हैं कि वो हुक्मरानों तक बात पहुंचाए और ड्रग माफिया को पकड़वाए.

अमनदीप, 18 साल

ड्रग स्टोरी
अमनदीप|तस्वीर- ज्योति यादव

अमनदीप सिरसा से बीस किलोमीटर दूर रानिया शहर से हैं. 2017 में उनके एक दोस्त ने उन्हें दवाब डालकर एक दूसरे लड़के से हेरोइन इंजेक्ट करवा दिया. पहली बार जब ड्रग लिया तो डर के मारे अमनदीप को बुखार हो गया. अमन ने 6ठी क्लास में ही स्कूल छोड़ दिया था. पिताजी हलवाई का काम करते हैं. बड़ा भाई चाइनीज़ फास्ट फूड की दुकान चलाता है. अमन ने अब चोरी करनी शुरू कर दी है. वो कोई भी चीज उठाता है और बेचकर हेरोइन खरीदता है.

हेरोइन के कुचक्र में फंसने से अमन को यह गंदा काम लगता था. पिछले छह-सात महीने पहले ही उनके परिवार वालों को इसके बारे में पता चला है. जब डांटना शुरू किया तो वो कसमें खाकर यकीन दिलाने लगा. फिर दो-दो दिन घर से गायब रहता. जब अमन ने इमोशनल ब्लैकमेलिंग शुरू की तो घरवाले उसे डॉक्टर के पास लेकर आए. अमन सुबह उठते ही आठ बजे नशे की सूई शरीर में घोप लेता है, शाम होते होते नशा उतरने लगता है तो वह फिर छटपटाता है. और शाम होते होते पांच बजे फिर वही सूई शरीर में लेता है. यह नशा सिर्फ अमन, कविंदर या मनप्रीत तक सिमित नहीं है पंजाब में हर गली मुहल्ले में बच्चा बच्चा इसकी लत में फंसा हुआ है. पंजाब का युवा बर्बाद हो रहा है.इस नशे की लत ने लोगों के घर बार तक बिकवा दिए हैं.

अमन बताते हैं कि उनके मोहल्ले के 12-13 साल के लड़के भी अब ‘चिट्टा’ (एक तरह का नशा) के आदि हो चुके हैं.  उनके मोहल्ले में ही दो-तीन लोग बेच रहे हैं. उनकी पड़ोस की गली के सारे ही लड़के नशे की गिरफ्त में हैं.
अमन इससे बाहर निकलना चाहते हैं. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं इन बेचने वालों को पकड़वा सकती हूं? वो पकड़वाने में मेरी पूरी मदद करेंगे.

जिस दिन मैंने अस्पताल का दौरा किया उस दिन सिरसा शहर के ही एक व्यक्ति अपने बेटे को खुद हेरोइन इंजेक्ट करके लाए. उन्होंने बताया कि या तो दवाई देनी पड़ती है या ड्रग. घर में दवाई नहीं थी तो ड्रग ही देकर अस्पताल लाना पड़ा.

मां बाप अपने बच्चे की नशे की लत से परेशान हैं. बच्चा अब नशे से परेशान हो रहा है, छोड़ना चाहता है लेकिन नशा उसके खून पर इस तरह हावी हो चुका है कि बाप अपने बच्चे के दर्द और चित्कार को सुन नहीं पाता और अस्पताल लाने से पहले खुद अपने हाथों से नशे की सूई देता है.

‘क्या करें मैम खुद की औलाद को मरते हुए नहीं देख सकते ना. हमारा पूरा घर बर्बाद हो गया है.’उनके बेटे को पिछले तीन साल से ड्रग की लत लगी हुई है. बेटा ड्रग छोड़ना चाहता है इसलिए अस्पताल भी खुद की इच्छाशक्ति मजबूत करके आया है.

नशे के कारोबारियों को है सामाजिक, सरकारी और राजनीतिक संरक्षण

जब पंजाब के गांव गांव में नशे का कारोबार इतना अधिक है तो इसका धंधा करने वाले क्यों नहीं पकड़े जाते? इन सवालों के साथ जब मैं यहां के लोगों के बीच पहुंची तो- बड़ागुढ़ा गांव के एक व्यक्ति नाम ना छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘ड्रग पेडलर को सामाजिक रुतबे वाले व्यक्ति का टाइटल  दिया जाने लगा है. सामाजिक और सरकारी संस्थान किसी ड्रग पेडलर को सामान्य व्यक्ति की तुलना में ज्यादा तरजीह देते हैं. उदाहरण के तौर पर, किसी पुलिस स्टेशन में ड्रग पेडलर को तो कुर्सी पर बैठाया जाता है लेकिन सामान्य व्यक्ति को खड़ा रखा जाता है. इस तरह ड्रग सपलायर का प्रभाव बढ़ने लगता है. धीरे-धीरे ये बाकी लोगों को अपने से जोड़ने लगता है. इज्जत मिलनी शुरू हो जाती है. उसके बाद ये सफेद कुर्ते-पजामे में आते हैं. फिर गाड़ी लेते हैं. नेताओं के संपर्क में आते हैं. राजनीतिक संरक्षण मिलने के बाद इन्हें पुलिस का भी संरक्षण मिलने लगता है. आप इन नेताओं के साथ चल रहे काफिले की जांच करवाओ तो पता चल जाएगा सिरसा मे ड्रग कहां से आ रहा है?’

बड़ा गुढ़ा के ग्रामीण | तस्वीर- ज्योति यादव

इसी गांव के पूर्व सरपंच सुखदेव सिंह का मानना है कि सिरसा में ड्रग राजनीतिक मंशा से फैलाए गए हैं. ये सिरसा के युवकों को बेरोजगार रखने की साजिश है. इस गांव के कुछ लोगों ने भाजपा के कार्यकाल पर इसका दोष मंढते हुए कहा, ये फर्जी मुद्दे बनाकर हर जरूरी मुद्दे से लोगों को भटका देते हैं.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा में साल 2010 से लेकर 2015 तक 448 मौतें हो चुकी हैं. जो कि इस दौरान पंजाब में ड्रग से हुई मौतों (413) से ज्यादा है. लेकिन इसके बावजूद यह चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहा है.

वहीं, पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनावों में नशा बड़ा मुद्दा बन गया था. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर की सरकार ने दावा किया था कि चार हफ्ते में नशा खत्म कर देंगे. लेकिन इस दावे के बावजूद नशे के कारण हो रही मौतों में कोई कमी नहीं आई है. मौतों का ये बढ़ता ग्राफ हरियाणा के सिरसा जिले में भी बढ़ रहा है. इन मामलों को देखते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार भी लगाई लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात..वहीं का वहीं..फिर चुनाव है फिर सरकार आएगी, फिर वादे किए जाएंगे लेकिन फिर किसानी और फसल से लहलहाता पंजाब नशे में धुत किसी खेत में पड़ा होगा.

स्थानीय पत्रकार नवदीप बताते हैं, ‘सिरसा के 70 फीसदी ड्रग के मामले रजिस्टर ही नहीं हो पा रहे हैं. जितना अखबार कवर कर रहे हैं मामला उससे बहुत बड़ा है.’

सरकारी अस्पताल का रिकॉर्ड

साल 2018 में सिरसा के सिविल अस्पताल के डी-एडिक्शन सेंटर में 18551 मरीजों की ओपीडी हुई थी और 649 मरीज़ एडमिट हुए थे. फिलहाल यहां 28 बेड हैं जिनमें 40 से ज्यादा मरीजों को दाखिल किया गया है. युवक अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से यहां फर्श पर लेटकर भी इलाज कराने को तैयार हैं. बस किसी तरह उन्हें नशे से मुक्ति मिल जाए.

सिरसा का सिविस अस्पताल| तस्वीर- ज्योति यादव

कुलदीप, 23 साल

कुलदीप 23 साल के हैं. पिछले डेढ़ साल से इस नशे की गिरफ्त में हैं. पिताजी टिफिन सर्विस देने का काम करते हैं. ढ़ाई साल पहले लव मैरिज हुई थी. दस महीने का बच्चा भी है. कुलदीप का कहना है, ‘जब बीवी पेट से थी तो टेस्ट करवाया था. टेस्ट में पाया कि बच्चे को अरसौली है. ऑपरेशन करवाना पड़ेगा. इस टेंशन के चलते नशा करना शुरू किया. लेकिन बाद में बच्चा नॉर्मल हो गया.’

तब तक कुलदीप नशे के जाल में फंस चुके थे. कुलदीप सुबह चाय पीने से पहले हेरोइन इंजेक्ट करते हैं, फिर शाम को  एक डोज लगाते हैं. दिन में एक-दो बजे उठते हैं. कई बार तीन-तीन महीने कर रोटी तक नहीं खाते. बीस दिन से सिविल अस्पताल में एडमिट हैं. कुलदीप ने बताया कि कुछ दिन पहले ही उनके पड़ोस का एक लड़का भी ड्रग ओवरडोज से मर गया.


यह भी पढ़ें: हरियाणा में दलित वोट लगभग यूपी जैसे, पर आज तक बसपा का सिर्फ 1 सांसद रहा है!


कुलदीप ने शुरुआत 200-300 रुपये के नशे से की थी मगर अब दिन में 7000 हजार रुपए का नशा करते हैं. इस नशे से पहले कुलदीप बीड़ी जरूर पीते थे लेकिन हेरोइन जैसी चीजों से दूर रहते थे. अब अपने बच्चे के लिए ठीक होना चाहते हैं. ‘जब नौ-दस साल के लड़कों को हेरोइन लेते हुए देखता हूं तो अपने बच्चे की फिक्र होने लगती है. खुद को बचाना चाहता हूं.’

कुलदीप| तस्वीर- ज्योति यादव
कुलदीप| तस्वीर- ज्योति यादव

कुलदीप ने ये भी बयाया कि उन्होंने एक बार तीन महिलाओं को झाडियों में छुपकर एक-दूसरे को इंजेक्ट करते हुए देखा था. उसके अलावा उन्होंने किसी महिला या लड़की को इस तरह नशा करते हुए नहीं देखा.

जसप्रीत सिंह, 22 साल

साल के जसप्रीत सिंह पंजाब के बठिंडा से हैं. पिछले साढ़े तीन साल में वो हेरोइन से लेकर स्मैक तक के सारे नशे कर चुके हैं. इलाज के लिए सिरसा के सिविल अस्पताल आए हुए हैं. जसप्रीत ने बताया, ‘अभी मार्केट में म्याउं-म्याउं और आइस नाम का नशा आ चुका है. आइस की दो बूंदें ही आपको तीन दिन के लिए सेट कर देती हैं. आप तीन दिन तक ये ही नहीं जान पाओगे कि हो कहां. म्याउं-म्याउं 8000 प्रति ग्राम मिल रहा है. ‘चिट्टा’ तो अब पुरानी बात हो गई है.’

जसप्रीत के घर में देसी दारू बनाई जाती है. दसवीं क्लास से ही वो दारू का सेवन करने लगे थे. 12वीं के बाद पढ़ाई नहीं की. जसप्रीत ने ये भी बताया कि इस हेरोइन का असर बढ़ाने के लिए बिच्छू, किरली (गिरगिट) और केंकडों को मारकर उनके डंक और पूंछ का इस्तेमाल किया जाने लगा है जिससे हेरोइन का कम इस्तेमाल भी ज्यादा नशा करने लगा है. कुछ लड़कों ने तो मेंढ़कों को दौड़ा-दौड़ाकर उनके शरीर से गिरने वाले पसीने को सूंघकर नशा करना शुरू कर दिया है. हेयर जेल भी इसमें काम आ रही है.

जसप्रीत (परिवर्तित नाम) नशे को छोड़ना चाहते हैं, वह खुद इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे हैं. | तस्वीर- ज्योति यादव

जसप्रीत ने 11वीं क्लास में ही खांसी के लिए मिलने वाली दवाई फैंसी ड्रग के तौर पर लेना शुरू कर दिया था. अब एक ग्राम से लेकर तीन ग्राम हेरोइन रोजाना ले रहे हैं. लेकिन जिस दिन मैं उनसे मिली उस दिन जसप्रीत को हेरोइन छोड़े हुए पूरा एक महीना और पांच दिन हो गए थे. जिसे उन्होंने तीन बार बताया. ये भी कहा कि अब वो कभी नशा नहीं करेंगे.

महिलाएं भी तस्करी में शामिल

मामला गंभीर तब हो जाता है जब ड्रग्स की तस्करी में जब महिलाएं भी शामिल हो जाती हैं. स्थानीय अखबार लगातार लिख रहे हैं कि घूंघट की आड़ में नशे की तस्करी में लड़कियों और महिलाओं का गिरोह शामिल हो गया है. साल 2016 से लेकर 2018 तक 29 महिलाओं के खिलाफ केस दर्ज हो चुके हैं. एक स्थानीय अखबार की खबर के मुताबिक फतेहाबाद के पुलिस कर्मचारी के बेटे की स्मैक ओवरडोज से मौत हो गई थीं. नशे के कुचक्र से निजात दिलाने वाली पुलिस भी इस नशे की गिरफ्त में आ चुकी है. पुलिसकर्मियों द्वारा नशे की तस्करी में शामिल होने की खबरें अखबारों का छोटा हिस्सा बनकर रह जाती हैं.

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 2017-2018 के बीच ड्रग के 99 केस दर्ज हुए. वहीं 2018-2019 में अब तक 177 केस दर्ज हो चुके हैं.

पुलिस ने 2 किलोग्राम हेरोइन जब्त की तो 9 किलो के आस-पास ओपियम और 7 ग्राम स्मैक. जिस हिसाब से इस शहर में हेरोइन और स्मैक का इस्तेमाल हो रहा है उस हिसाब ये केस समुंद्र में एक बूंद की तरह दिखाई देते हैं.

बड़ागुढ़ा गांव के मोती सिंह बताते हैं कि उन्होंने एक बार शिकायत की थी लेकिन पुलिस ने कोई संज्ञान नहीं लिया. वो इंतजार करते रहे. बाद में डीसी को फोन करके बताया लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस गांव में स्मैक नाम से एक ग्रुप बना हुआ है. मोती सिंह जैसे लोगों को अपने बच्चों का नशे की इस दलदल में फंसने का खतरा है. लेकिन पुलिस के पास ड्रग पेडलर के नाम-पता लिखवाने के बावजूद कुछ नहीं होना निराशाजनक है.

रिहेब सेंटर ना होने पर बार-बार हो रहे हैं रिलेप्सिंग के केस

सरकारी अस्पताल का रिकॉर्ड बताता है कि नशे की लत से सबसे ज्यादा प्रभावित वर्ग 16-24 की बीच की उम्र का युवा है. इस उम्र के केसों में सबसे बड़ी दिक्कत रिहेब सेंटर्स के नहीं होने से आ रही है. मरीज एक बार ये लत छोड़कर उसी माहौल में चला जाता है जिससे वो आया था. इससे रिलैप्सिंग के केस होते रहते हैं. फिलहाल सरकार के पास रिलैप्सिंग के केसों को रोकने का कोई प्लान नहीं है. ना ही सांसदी के उम्मीदवार इस बारे में कोई चर्चा नहीं कर रहे हैं.

अस्पताल में इलाज कराता युवा, नशे की तलब पर तंबाकू का सेवन कर रहा है/ तस्वीर- ज्योति यादव
सिरसा में एक ही सरकारी डी-एडिक्शन सेंटर होने पर यहां के लोगों को राजस्थान के हनुमानगढ़ और गंगानगर जाना पड़ रहा है. कोई हिसार और रोहतक आने को मजबूर है. प्राइवेट के मंहगे इलाज के चलते बहुत से मरीज बिना मेडिकल ट्रीटमेंट के ही अपनी मौत का इंतजार कर रहे हैं और हर दिन नशा ले रहे हैं.

सोशल एक्टिविस्ट ने लगाया भाजपा पर आरोप

एडवोकेट और सोशल एक्टिविस्ट जीपीएस किंगरा ने कभी ‘लोक लहर’ नाम से इसके खिलाफ एक अभियान छेड़ा था. उनके मुताबिक, ‘ये सही मायने में तो 2002 से 2005 के बीच शुरू हुआ. इसका पूरा श्रेय चौटाला सरकार को जाता है. उस वक्त ट्रक भरकर हेरोइन इस इलाके में आ रही थीं लेकिन उन्हें रोका नहीं गया. चौटाला सरकार के दौरान घर-घर अड्डे खुल गए थे. अपने विरोधियों पर एनडीपीसी के केस लगवा दिए. उसके बाद दस साल कांग्रेस सरकार में ये कुछ हद तक कम हुआ लेकिन अब भाजपा सरकार में फिर बढ़ गया है.’ इस बात की तस्दीक डबवाली क्षेत्र के ग्रामीणों ने भी की. सहारणी गांव के प्रदीप बताते हैं,’ ये शुरु तो 2000 के आस-पास हो गया था. लेकिन बीच में इसपर अंकुश लग गया था. पिछलेे तीन चार सालों से जिस तरह यह फैला है. वो भयावह है. किसी-किसी गांव का तो बच्चा-बच्चा इसकी चपेट में है.’

गौरव, 13 साल

गौरव सिरसा के सिविल अस्पताल में अपने भाई के साथ आया है. जैसे हर बच्चा मासूम होता है उतना ही मासूम. मेरे बगल में डी-एडिक्शन सेंटर में डॉक्टर के पास बैठा था तो मालूम था कि ड्रग एडिक्शन का मामला है, वरना किसी बस स्टैंड पर ये ही बच्चा मिलता तो मुझे पता भी नहीं चलता कि ये ड्रग के कुचक्र में फंस गया है.

गौरव सिरसा के ही रहने वाला है और सरकारी स्कूल में पढ़ता है. मां घरों में हेल्पर का काम करती हैं. पिताजी नहीं हैं. एक बड़ा भाई है. गौरव को हेरोइन की लत चार महीने पहले लगी. गौरव को कबूतर बहुत पसंद हैं. गौरव के मोहल्ले के ही एक लड़के ने कबूतर पाल रखे हैं. इस कबूतर प्रेम ने दोनों के बीच दोस्ती करवाई. धीरे-धीरे दोस्ती गहरी होती गई. गौरव का दोस्त ड्रग्स लेता था. एक दिन उसने गौरव से भी ट्राई करने के लिए कहा. पहली बार ना नुकुर की. लेकिन दूसरी-तीसरी बार में गौरव मान गया. चौदह साल के गौरव ने पहले ड्रग के तौर पर हेरोइन लिया. गौरव का दोस्त सोलह-सत्रह साल का है. दोनों के पास ही पैसों की कमी है. ऐसे में दोनों ने दो सौ तीन सौ रुपए की हेरोइन खरीदने से शुरुआत की. उन्होंने इसे स्नीफिंग यानि एल्यूमिनियम की फॉइल पर फैलाकर लाइटर से जलाकर सूंघना शुरू किया. कम मात्रा में होने की वजह से स्नीफिंग से ज्यादा नशा नहीं हुआ. इसलिए दोनों ने इंजेक्ट करना शुरु कर दिया.

सिविल अस्पताल में लगातार परिवार वाले बच्चों के साथ पहुंच रहे हैं.| तस्वीर- ज्योति यादव

गौरव रोज रात को हेरोइन लेकर सो जाता. एक दिन अपने और अपनी मां के साथ धोखा करने की भावना ने उन्हें घेर लिया. गौरव ने अपनी मां को कहा, ‘मम्मा मैं हेरोइन लेने लगा हूं. मुझे लत लग गई है. मुझे डॉक्टर के पास ले चलो.’ जब उनकी मां को यह पता चला तो उन्हें धक्का लगा. गौरव ने जब पहली बार ड्रग लिया था तो उन्हें कड़वा लगा था और चक्कर आए. लेकिन अब ये उसकी लत बन गई है.


यह भी पढ़ें: 2013 में जिस बात से चली मोदी की आंधी, उसे अपना रहे अब राहुल गांधी


गौरव जैसी कहानी हरियाणा के सिरसा के 330 जिलों गांवों की है. सरकारी अस्पताल के डॉक्टर बताते हैं कि 9 साल का बच्चा भी इसकी गिरफ्त में है. डॉक्टर पंकज कहते हैं कि चार महीने पहले शुरू हुआ नशा छुड़वाया जा सकता है.

इससे अगली कड़ी में आप पढ़ेंगे कि किस तरह नशे की तस्करी किसी मार्केटिंग कंपनी की तरह फैल गई है.

लेकिन अब सवाल उठता है कि जब हरियाणा और पंजाब में नशे का कारोबार देश के नौनिहालों को अपनी चपेट में ले रहा है तब हमारी सरकार और प्रशासन क्या कदम उठा रही है..ये तो महज़ सिरसा का लेखा जोखा है..धान का कटोरा क्या सिर्फ सियासी दांव पेंच का मुद्दा रहेगा या फिर राजनीतिक पार्टियां इससे इतर देश के नौनिहालों को सुनेंगी और उनकी सुध लेंगी.

(पहचान छुपाने के लिए सभी नाम परिवर्तित कर दिए गए हैं.)

share & View comments