प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने 2014 से 2019 आते-आते उनकी खुद की इमेज सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. 2014 से पहले गुजरात मॉडल ने इतनी उम्मीदें जगाई थीं कि आम जनता को नरेंद्र मोदी में हर समस्या का समाधान नज़र आने लगा था. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वॉट्सएप पर इनके पक्ष-विपक्ष में बहस करते ना जाने कितने रिश्ते टूटे.
खबरें आई कि शादी के एक दिन पहले, दो दिन पहले, शादी के दिन नरेंद्र मोदी पर बहस कर दूल्हा-दुल्हन ने शादी तोड़ ली. ‘बागबान’ फिल्म के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि बूढ़े बाप अपने जवान और इंकलाबी बेटों से मोदी के नाम पर चिढ़ गए. लेकिन 2019 में लोग वॉट्सऐप पर ही सही, अपने रिश्ते संजोने की बात कर रहे हैं. क्या आम जनता का मोदी से मोहभंग हो रहा है? या फिर मोदी का गुजरात मॉडल से मोहभंग हो रहा है जिसके दम पर वो सत्ता में आए?
2014 के बरअक्स 2019 में नरेंद्र मोदी के पास नई चुनौतियां हैं–
5 साल का हिसाब: 2014 में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस से 70 सालों का हिसाब मांगकर मैदान ही क्लियर कर लिया था. पर अब ये जुमला दुबारा नहीं दुहराया जा सकता. नोटबंदी, जीएसटी, बेरोज़गारी – सभी पर नरेंद्र मोदी की सरकार को खुद का रिपोर्ट कार्ड देना है. हालांकि मोदी सरकार इस बात का जवाब लगातार अखबारों में विज्ञापन के ज़रिए दे रही है. पर अभी एक आरटीआई के माध्यम से खुलासा हुआ है कि रिज़र्व बैंक ने नोटबंदी के दो घंटे पहले तक प्रधानमंत्री के फैसले से अपनी असहमति जताई थी.
राफेल का मामला: वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने द हिंदू में राफेल से जुड़े कई खुलासों से सरकार की इस डील पर बड़े सवाल उठाए हैं. द हिंदू में पब्लिश हुए राफेल के दस्तावेजों से पता चलता है कि रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी इस खरीद में पीएमओ की दखलअंदाज़ी नहीं चाहते थे, पर फिर भी पीएमओ का मामले में दखल रहा. आपको याद होगा कि एन राम ने ही राजीव गांधी के वक्त बोफोर्स दलाली का मामला उजागर किया था. जिसके दम पर वी पी सिंह ने राजीव गांधी की कांग्रेस को चुनाव में हराया था. राफेल के मामले को लेकर कोर्ट में एटॉरनी जनरल ने पहले कहा कि दस्तावेज चोरी हो गए, बाद में ये स्पष्टिकरण आया कि दस्तावेज़ चोरी नहीं हुए है पर चोरी से उसकी कॉपी मीडिया को दी गई. 2014 में मोदी ने जनता को कहा था कि बिना घोटालों के भी सरकार चल सकती है, पर अब उनकी सरकार खुद घोटालों के आरोप से जूझ रही है.
क्षेत्रीय पार्टियां: चंद्रबाबू नायडू की तेलगुदेशम पार्टी, उपेंद्र कुशवाहा की रालोजपा भाजपा का साथ छोड़ चुकी है. वहीं अनुप्रिया पटेल की अपना दल जैसी पार्टियों का भाजपा का दामन छोड़ने की धमकी की खबरें आती रहती हैं. वहीं लालू प्रसाद यादव, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, मायावती, अरविंद केजरीवाल जैसे नेता भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए पूरी तरह तैयार दिख रहे है.
पिछली बार मोदी की आंधी की लड़ाई कांग्रेस के सूखे पत्तों से थी. पर इस बार क्षेत्रीय दलों के रूप में नई शाखें उभर आई हैं. हाल फिलहाल में चंद्रबाबू नायडू और ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को लेकर जो तेवर अपनाए हैं वो भाजपा को कमर कसने के लिए मजबूर कर रहे हैं. शायद यही वजह है कि बिहार में चुनौती को देखते हुए पिछली बार 22 लोकसभा सीटें जीतने के बाद इस बार भाजपा मात्र 17 सीटों पर कैंडिडेट ही उतार रही है.
नये वोटर्स: 2014 में 81 करोड़ मतदाता थे जो कि अब बढ़कर 90 करोड़ हो गए हैं. 18-19 एज ग्रुप में डेढ़ करोड़ मतदाता हैं. पिछली बार नरेंद्र मोदी युवाओं की पहली पसंद थे. रोज़गार और उद्योगपरकता की बातों पर नरेंद्र मोदी ने एक करोड़ रोज़गार देने का वादा कर दिल जीत लिया था. पर पिछले पांच सालों में भारत में चर्चा जॉबलेस ग्रोथ की हो रही है. बेरोज़गारी बड़ी समस्या बन के उभरी है.
मोदी सरकार के ड्रीम, कौशल विकास मंत्रालय की अब कहीं चर्चा नहीं हो रही है. खुद पीएम नरेंद्र मोदी बेरोज़गारी पर बात करते हुए ऑटो चालकों में बढ़ोत्तरी का ज़िक्र करते हैं पर कौशल विकास मंत्रालय द्वारा हुए प्लेसमेंट की चर्चा तक नहीं करते. देखना ये होगा नये मतदाता किस तरीके से वोट करते हैं.
एनआरसी और आरक्षण बिल: नॉर्थ ईस्ट की राज्य विधानसभाओं में भाजपा ने पिछले पांच सालों में काफी बढ़त बनाई. कांग्रेस और स्थानीय दलों के इतर भाजपा को न जानने वाले इस इलाके में भाजपा का परचम लहराया. पर सिटीज़नशिप बिल को लेकर अब पासा पलटा हुआ दिख रहा है. वहीं एस-एसटी एक्ट में दलितो के साथ खड़ी दिखने के बावजूद पार्टी के दलित प्रेम पर शक पैदा होता है. उना में दलितों पर हिंसा या फिर बाकी राज्यों में हो रही दलित हिंसा पर पीएम नरेंद्र मोदी कोई ठोस कदम उठाते नहीं दिखे. इस बीच नाराज चल रहे सवर्णों की हिमायती दिखने के लिए आनन फानन में मोदी सरकार ने 10 प्रतिशत सवर्ण गरीबों को आरक्षण दे डाला.
फेक न्यूज़ का जलवा: भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने एक जगह अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए दंभ भरा था कि हम लोग तो सही या फेक किसी भी खबर को वायरल कर सकते हैं. सोशल मीडिया पर तमाम फेक न्यूज़ चलती हैं जो मोदी सरकार की हर योजना को दुनिया की सबसे अच्छी योजना बताने में कामयाब रहती हैं. चाहे वो योजना पुरानी सरकार की ही क्यों ना हो. लेकिन इसके उलट फेक न्यूज़ इस बार मोदी सरकार की खराब इमेज गढ़ने में भी सफल रही है. हालिया मामला पुलवामा अटैक और भारत के जवाबी एयरस्ट्राइक को लेकर पैदा हुआ है जहां कहा गया कि भारत के निशाने पर बस कुछ पेड़ ही आए. चाहे राष्ट्रवाद अपने चरम पर हो लेकिन लोगों के अंदर मोदी सरकार को लेकर शक पैदा होता दिख रहा है.
पंडित जवाहर लाल नेहरू: 2014 में सत्ता में आते ही श्री नरेंद्र मोदी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के बनाये योजना आयोग को भंग किया और नीति आयोग की स्थापना की जो अपनी कार्यशैली में योजना आयोग की ही तरह है. उसके बाद नरेंद्र मोदी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत की अर्थव्यवस्था से लेकर पाकिस्तान, कश्मीर, चीन हर तरह की समस्या का ज़िम्मेदार बताया.
हालांकि मोदी की पब्लिक इमेज को लेकर लोग यहां तक कहते हैं कि मोदी खुद नेहरू जैसा बनना चाहते हैं. बच्चों के साथ खेलती तस्वीरें, कपड़े पहनने का फैशन, इंटरनेशनल नेता होने की ख्वाहिश और लोगों के बीच लोकप्रियता को लेकर किये गये दांव-पेंच काफी हद तक इस बात को सही साबित करते हैं. लेकिन लोग ये भी कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी ये सब नेहरू की याद भारत से मिटाकर हासिल करना चाहते हैं. इसी वजह से मोदी पर काफी मीम भी बने कि राफेल फाइल भी नेहरू ले गये, नेहरू इनके हाथ रोक लेते हैं फाइलों पर साइन करने से, पेन चुरा लेते हैं इत्यादि. हद तो तब हो गई जब भाजपा के कार्यक्रम ‘मेरा बूथ, सबसे मज़बूत’ की तर्ज पर नेहरू को लेकर ‘मेरा भूत, सबसे मज़बूत’ के मीम बने.
हालांकि तमाम मुद्दों के बावजूद भी नरेंद्र मोदी अलग पहचान है और लोकसभा चुनाव को प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं. प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए उनके कद का कोई और नेता का विकल्प जनता के पास मौजूदा समय में दिखाई नहीं दे रहा है जो उनको अच्छी टक्कर दे सके. अब सबकी निगाहें महागठबंधन और गांधी परिवार पर है.