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Friday, 1 November, 2024
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बीजेपी ने आखिर आपस में क्यों बदली मेनका-वरुण की सीट?

मेनका और वरुण के करीबी सूत्रों का कहना है कि दोनों सीटों के मौजूदा सियासी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने इन सीटों को एक-दूसरे से बदला.

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लखनऊ: लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने मंगलवार को अपने प्रत्याशियों की 10वीं सूची जारी की. इसमें उत्तर प्रदेश के 29 प्रत्याशियों के नाम हैं. खास बात ये है भाजपा ने इस चुनाव में मां-बेटे (वरुण और मेनका गांधी) के संसदीय क्षेत्रों को आपस में बदल दिया है. मेनका गांधी इस बार जहां सुल्तानपुर तो वहीं वरुण गांधी पीलीभीत से चुनाव लड़ेंगी.

पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो ये फैसला अंतिम समय पर ही लिया गया है. हालांकि वरुण के पीलीभीत से लड़ने के कयास पिछले कई महीने से लगाए जा रहे थे. वहीं मेनका को सुल्तानपुर से टिकट दिया जाएगा इसका अंदाजा भाजपा के भी कई नेताओं को नहीं था. मेनका गांधी पहले हरियाणा की करनाल सीट से लड़ना चाहती थीं. उन्होंने आलाकमान से इच्छा भी जताई थी, लेकिन यूपी की सीटों की अहमियत को ध्यान में रखते हुए उन्हें सुल्तानपुर से ही चुनाव लड़ाने का फैसला लिया गया.


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चुनाव के शोर में अभी तक खामोश रहे वरुण

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पर नेता चुनावी रंग में नजर आ रहे हैं लेकिन इस बीच वरुण गांधी की खामोशी को लेकर सियासी गलियारों में तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे थे. पिछले कुछ महीनों में छात्रों से संवाद के दौरान व विभिन्न अखबारों में छपने वाले उनके लेखों में भी उनका स्टैंड पार्टी के स्टैंड से अलग दिख रहा था. किसानों की कर्जमाफी के पक्ष में वह अक्सर बयान देते थे.

दूसरी ओर कांग्रेस में प्रियंका गांधी के पूर्वी यूपी इंचार्ज बनने के बाद कांग्रेस के समर्थक सोशल मीडिया पर वरुण को भी पार्टी में शामिल करने की मांग करने लगे. यहां तक कांग्रेस के कई नेता भी नाम न छापने की शर्त पर इस बात को हवा दे रहे थे. कहा जा रहा था कि प्रियंका वरुण को कांग्रेस में ले आएंगी. हालांकि वरुण की ओर से ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया, लेकिन सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज थीं.

एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में राहुल गांधी से भी इस बारे में सवाल भी किया गया जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसी कोई जानकारी उन्हें तो नहीं. पिछले कुछ दिनों से वरुण अपने लोकसभा क्षेत्र सुल्तानपुर भी नहीं आए. इससे कयासों को बल मिलने लगा था. हालांकि पिछले दिनों उन्होंने पीएम मोदी के समर्थन में अपने ट्विटर प्रोफाइल का नाम बदलकर चौकीदार वरुण गांधी कर लिया, जिससे तमाम कयासों पर रोक लग गई. ये तय हो गया कि अब वरुण बीजेपी में ही रहेंगे लेकिन सीट की गुत्थी तब भी नहीं सुलझी थी.

सूत्रों की मानें तो यूपी में महागठबंधन और कांग्रेस के चैलेंज को देखते हुए बीजेपी ने दोनों को यहीं से चुनाव लड़ाने का फैसला लिया. वरुण 2009 में पीलीभीत से ही पहली बार सांसद बने थे. उन्होंने 2 लाख 81 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2014 में उन्हें सुल्तानपुर से टिकट दिया गया. यहां वह 1 लाख 78 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीते.

वरुण इस क्षेत्र में काफी एक्टिव भी रहे लेकिन चुनाव नजदीक आते-आते उनके सुल्तानपुर के बजाए पीलीभीत से लड़ने की चर्चाएं तेज होने लगीं जिस पर मंगलवार को आई बीजेपी की सूची से मुहर भी लग गई.


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पीलीभीत में वरुण का मुकाबला सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार हेमराज वर्मा से है. वहीं कांग्रेस ने इस सीट पर उम्मीदवार उतारने के बजाए गठबंधन में अपना दल को देने का फैसला किया है. ऐसे में वरुण का सीधा मुकाबला सपा-बसपा उम्मीदवार से ही है.

वहीं मेनका गांधी के लिए भी सुल्तानपुर क्षेत्र कोई नया नहीं. वह एक बार अमेठी से चुनाव भी लड़ चुकी हैं. अमेठी- सुल्तानपुर संजय गांधी की भी कर्मभूमि मानी जाती रही है. ऐसे में भाजपा ने मेनका को यहां उतारकर एक मजबूत दांव खेला है. कांग्रेस की ओर से अमेठी के राजा व राज्यसभा सांसद संजय सिंह यहां से उम्मीदवार हैं. गठबंधन के उम्मीदवार की घोषणा बाकि है. यहां होने वाले त्रिकोणीय मुकाबले में मेनका का राजनीतिक अनुभव उनके काम आ सकता है. मेनका व वरुण के करीबी सूत्रों का भी कहना है कि दोनों सीटों के मौजूदा सियासी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए ही बीजेपी ने दोनों की सीट को आपस में बदला है. दोनों नेता भी इस फैसले से खुश हैं.

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