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Friday, 26 April, 2024
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हरियाणा में युवाओं को दीमक की तरह खोखला करने वाले नशे के व्यापार को किसका है संरक्षण

मगरमच्छ, बड़ी मछली और छोटी मछली के जरिए ड्रग के इस नेक्सस को समझा जा सकता है. मगरमच्छ से मतलब नेता से है, बड़ी मछली पुलिस और छोटी मछली ड्रग पेडलर हैं.

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सिरसा: उड़ता पंजाब फिल्म का ‘चिट्टा वे’ ने उन लड़कों के लिए वो सब चीजें कूल बना दी हैं जिसके बारे में रोज इनके माता-पिता आगाह करते हैं. ड्रग एडिक्टस 16-24 की उम्र के युवा टैटू, कान में बाली, रंग किए हुए बालों से प्रभावित दिखते हैं. भले ही इनके शरीरों को नशे ने दीमक की तरह खोखला कर दिया हो लेकिन ये गाने यो यो हनी सिंह और मंकृत औलख के सुनते हैं. कुछ लड़कों ने इस बात को माना कि उनके गांवों में इन गानों से 16-17 साल के लड़के ड्रग की दुनिया में एडवेंचर करने के लिए राजी हो जाते हैं. अपनी लाइफस्टाइल यो यो हनी सिंह या किसी पंजाबी गायक की तरह बनाने की सोचते हैं.

सरबजीत, 28 साल

सरबजीत ने दो साल पहले ड्रग्स की लत पड़ी थी. उन्होंने हेरोइन से ड्रग लेने की शुरुआत 2014 में की थी. पहली बार लगाकर देखा था और छोड़ दिया लेकिन दूसरी बार जब 2017 में लिया तो वह छूट नहीं सका. बस कई दिनों से जुकाम था, ठीक नहीं हो रहा था..एक दोस्त ने कहा, ‘इतने दिन से दुखी हो, एक बार अफीम ट्राई करो. ठीक हो जाएगा.’ जिस दोस्त ने अफीम की बात कही थी वो सीधे हेरोइन लेकर आया. इसके बाद दस दिन तक लगातार लगाते रहे. एक बार ने उन्हें ऐसे फंसाया कि वो अब नशे में पूरी तरह से धंस चुके हैं. नोटबंदी के दौरान भी वो दिल्ली जाकर हेरोइन ले आए थे.

सरबजीत ने 2015 में लव मैरिज की थी और उनका साढ़े तीन साल का बच्चा है. सारा घर-बार नशे की भेंट चढ़ चुका है. अब तक बीस लाख खर्च कर चुके हैं. शरीर से बिलकुल कमजोर हो गए हैं. सरबजीत का कहना है कि जो नशा देश के किसी हिस्से में नहीं मिलेगा वो आपको सिरसा में मिल जाएगा. उन्होंने 13-14 साल के बच्चों को भी हजारों की हेरोइन लेते देखा है. उनका कहना है कि डॉक्टर पंकज उनका नशा छुड़वा देंगे तो वो अपनी जमीन पर ऐसा कुछ संस्थान खोलेंगे जो लोगों को जागरूक करेगा. वो सिरसा को नशे रूपी राक्षस से बचाना चाहते हैं.

सरबजीत के मुताबिक इसमें सबसे ज्यादा हाथ सिरसा पुलिस का है. पुलिस नशा बेचनेवालों से मिली हुई है.

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अस्पताल में भर्ती एक मरीज की मां| तस्वीर- ज्योति यादव

ड्रग की वजह से बिखर गया परिवार

मग्गर सिंह के बेटे विक्रमजीत की मौत 2012 में ड्रग की वजह से हो गई थी. मग्गर सिंह दिप्रिंट को बताते हैं, ‘2003 का साल था और चौटाला की सरकार थी. मेरा बेटा फोटोग्राफर था. शादी को कई साल हो गए थे. लेकिन बच्चा नहीं हो रहा था. उस वक्त इस इलाके में हेरोइन की एंट्री ही हुई थी. इस गांव के और आस-पास के गांव के कई लड़के इसकी चपेट में आए. मेरा बेटा भी उनमें से एक था. लगातार 9 साल तक ड्रग लेता रहा. एक दिन रात को रेल की पटरी पर गिर गया और बेहोश हो गया. अगली सुबह सिर्फ लाश मिली. उसके साथ के जितने भी 15 लड़के थे वो सारे ऐसी ही मौत मरे हैं. किसी ने जहर खाया है तो कोई ट्रेन से कटकर मर गया है. इस गांव में अब तक 5-6 जवान मौतें हो गई हैं इस नशे के चक्कर में.’

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मग्गर सिंह जिनके बेटे को नशे मे मौत के घाट उतार दिया| तस्वीर- ज्योति यादव

यह भी पढ़ें: ड्रग्स की चपेट में हरियाणा का बचपन, पर ‘उड़ता सिरसा’ चुनावी मुद्दा नहीं


पंजाब से सटे गांव हैं गंभीर हालत में

सबसे ज्यादा ड्रग की चपेट में आने वाला इलाका डबवाली है. इसके अलावा कालावाली रानिया ब्लॉक का तो घर घर इसकी चपेट में है. पुलिस के आंकड़ों की मानें तो 330 में से 90 गांव नशे की चपेट में हैं लेकिन सरकारी अस्पताल के आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं. यहां लगभग हर जिले के नशे की गिरफ्त में आ चुके युवा भर्ती हो चुके हैं. कुछ लोगों का आरोप है कि ये ड्रग इस कदर फैल चुका है कि अब इलाज करने वाली जगहों पर भी आसानी से पहुंचाया जा सकता है. प्राइवेट अस्पातलों के सामने चिट्टे (हेरोइन) की बिक्री हो रही है. वो मरीज को देखकर समझ जाते हैं कि ये बाहर क्या लेने आया है.

सिरसा के कुछ गांव| तस्वीर- ज्योति यादव

18551 आउटडोर मरीज, 649 इनडोर भर्ती

साल 2014 में ओपीडी मरीज 1405 थे. जो 2015 में 1919 हुए तो 2016 में 2438, 2017 में 5872 और 2018 में 18551. वहीं, आइपीडी मरीज  यानी नशे की हालत में अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या भी धीरे धीरे बढ़ती ही गई. 2014 में 99 थे, 2015 में 117, 2016 में 116, 2017 में 327 और 2018 में 649. 

सिविल अस्पताल के हेपेटाईटिस स्पेशलिस्ट डॉक्टर सतिंदर की मानें तो उन्हें हर रोज 6-8 घंटे में 100-200 के बीच आउटडोर मरीज देखने पड़ रहे हैं. फिलहाल सिरसा में हेपेटाईटिस सी के 1500 केस हैं. जिनमें से 1000 के करीब मरीजों का इलाज किया जा चुका है. 2017 में इनकी संख्या 50-60 के बीच थी. इतने कम समय में इस संख्या का बढ़ना चौंकाने वाला है. ये सरकारी अस्पताल का आंकड़ा है. प्राइवेट अस्पातल के आंकड़ें नहीं होने से इस बात का सहीसही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि शहर कितने लोग हेपेटाईटिस सी के शिकार हो चुके हैं. आम बोलचाल में इसे काला पीलिया कहते हैं. मेडिकल स्टाफ को भी ये बीमारी संसाधनों और मरीजों की बढ़ती संख्या के जल्दी काम करने के चलते हो रही है. सेनेटाइजेशन की कोई सुविधा ना होने पर मेडिकल स्टाफ भी इसकी चपेट में रहा है. कारण है-लोग कम ही उम्र में सेक्स कर रहे हैं और समूह में एक साथ बैठकर सूई लगाते हैं जिससे उनके शरीर पर बुरा असर पड़ रहा है

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सिविल अस्पताल| तस्वीर – ज्योति यादव

डॉक्टर्स का मानना है कि आर्थिक आधार से कमजोर घरों के बच्चे ज्यादा खतरनाक ड्रग्स ले रहे हैं. हेपेटाईटिस सी के मरीज एक ही गांव से 40 लोगों में मिला था क्योंकि सब एक ही सूईं से नशा इंजेक्ट कर रहे थे. रतिया और टोहना में हेपेटाईटिस सी के सबसे ज्यादा शिकार मिले. जबकि फतेहाबाद में इनकी संख्या 4000 पार कर चुकी है.

डाक्टर्स का ये भी मानना है कि ये खतरनाक रूप लेता जाएगा. डीएडिक्शन सेंटर्स कामयाब तभी हो पाएंगे जब ड्रग की चेन नहीं तोड़ी जाएगी.

मगरमच्छ, बड़ी मछली और छोटी मछली

साल 2018 में खट्टर सरकार ने यहां रन फॉर यूनिटी नाम से कैंपेन चलाया था. उसके अलावा शहर भर की दीवारें नशा मुक्ति केंद्रों के पोस्टर्स से अटी पड़ी हैं. पुलिस का कहना है कि वो समयसमय पर स्कूलों और कॉलेजों में जागरुकता अभियान चलाती है. साथ ही गांवों में जाकर सरपंचों के माध्यम से ग्रामीणों को इसकी गंभीरता से अवगत कराती है. लेकिन कई ग्रामीणों का इसपर कुछ अलग ही कहना है. बड़ागुढ़ा गांव के एक व्यक्ति ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया, ‘बड़ा गुढ़ा, कालावाली, रोड़ी और ओढ़ां पुलिस चौकियों की बोलियां लगती हैं. ड्रग पेडलर्स अपनी पसंद के एसएचओ की पोस्टिंग यहां कराते हैं. एसएचओ और ड्रग पेडलर्स दोनों की मोटी कमाई होती हैं. बहुत सारे एसएचओ यहां पोस्टिंग करवाने के लिए सांठगांठ करते हैं. मौजूदा एसपी अरूण से पहले एसपी हामिद अख्तर ने शुरुआत में तो लहर सी चला दी लेकिन बाद में इन पेडलर्स से समझौते करते गए. हामिद अख्तर ने इसके जरिए मेडल भी जीते और इसके जरिए ही करोड़ो कमाए भी.’

बूढ़ाभाणा गांव के लोग| तस्वीर- ज्योति यादव

ज्यादातर गांव वाले मगरमच्छ, बड़ी मछली और छोटी मछली के जरिए ड्रग के इस नेक्सस को समझा रहे थे. मगरमच्छ से उनका मतलब नेता से है, बड़ी मछली पुलिस और छोटी मछली ड्रग पेडलर हैं. छोटी मछली पकड़ी जाती है और बड़ी मछली मगरमच्छ आराम से रहते हैं.

सिविल अस्पताल चारों ओर से नशे की ब्लैक मार्केट से घिरा हुआ

सिरसा शहर में 9-10 साइकेट्रिस्ट हैं. एक डॉक्टर पंकज हैं जो सिविल अस्पताल में हैं और बाकी सारे प्राइवेट हैं. डॉक्टर पंकज का कहना है, ‘रिक्वर एडिक्ट्स को पुनर्स्थापित करने का फिलहाल कोई उपाय नहीं है और ना ही संसाधन हैं. सेल्फ हेल्प ग्रुप्स भी नहीं हैं.’

डॉक्टर पंकज के साथ डॉक्टर सतिंदर और डॉक्टर कुलदीप.

इस अस्पताल को चारों तरफ से स्लम कॉलोनियों ने घेरा हुआ है. वाल्मिकी चौक से लेकर जेजे कॉलोनी और थेड़ मोहल्ला में धड़ल्ले से हेरोइन से लेकर स्मैक बिक रही है. अस्पताल के आसपास ही कम से कम तीस से चालीस छोटीछोटी चाय और खैनी की दुकानें हैं. इन दुकानों पर गिनती के चार पैकेट लटके हुए हैं. चाय और खैनी बेचने से कोई कमाई नहीं हो रही है. खास कमाई ड्रग्स बेचकर हो रही है. ये दुकानें हुड्डा पार्क के पास बनी हुई हैं. हुड्डा पार्क के एक तरफ पॉश इलाका है तो दूसरी तरफ स्लम कॉलोनी. लोगों के घूमने फिरने के मकसद के बनाए गए इस पार्क का इस्तेमाल नौ साल के बच्चों को नरक में ढकलने में हो रहा है. रात के समय यहां बाइकों की कतार लग जाती है. हमें पुलिस यहां गश्त करती हुई नजर नहीं आई. ना ही इन चारों स्लम कॉलोनियों के आसपास पुलिस की एक गाड़ी पेट्रोलिंग करती दिखी.

सिविल अस्पताल के बाहर लगे चाय के ठेले| तस्वीर – ज्योति यादव

जेजे कॉलोनी में ड्रग मिलने का तरीका जानने के लिए मैंने एक ड्रग एडिक्ट की मदद ली. पान की दुकान लगाए बैठे एक व्यक्ति की बगल से जब हम गुजरे तो पीछेपीछे तीन युवक गए. इन्होंने तीनचार शीशियों से छोटेछोटे पाउट निकाले. इन पाउचों में जरा सी मात्रा में हेरोइन थी. जिसका दाम दो सौ रूपए था. फोन से वीडियो बनाए जाने का अंदाजा लगाकर युवकों ने बहसबाजी करना बंद कर दिया. मैं एडिक्ट को वापस उसकी जगह पर छोड़कर गांवों के लिए रवाना हो गई.

यहां हेरोइन से ही नशा लेने की शुरुआत हो रही है. तीन बार इंजेक्ट करने के बाद चौथी बार व्यक्ति एडिक्ट बन चुका होता है. किसी का घरदुकान बिक गया है तो किसी के 50 लाख नशे में जा चुके हैं. जिनके पास कमाई का कोई साधन नहीं है, वो चोरी करने लगे हैं. इलाके में सेक्सुअल क्राइम्स बढ़ रहे हैं. चोरी की घटनाएं बढ़ रही हैं. एक्सीडेंट बढ़ रहे हैं. अगर डीएडिक्शन सेंटर में हेरोइन का एक मरीज है तो अस्पताल के दूसरे वार्डों में ड्रग्स के 10 मरीज हैं. दमे की शिकायत, काला पीलिया और बाकी शारिरिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों की लाइनें लगी पड़ी हैं. दस तरह की बीमारियों के चलते सिरसा अस्पतालों और मेडिकल स्टोर का हब बन चुका है.

सामाजिक नजरिया

गांवदेहात में ड्रग के इस कुचक्र कोइज्जतने जोड़कर देखा जा रहा है. कई गांव के लोगों ने घरवालों की भूमिका पर सवाल उठाया. बुढाभाणा गांव के करण सिंह का कहना है, ‘अगर किसी घर का युवक ड्रग की लत में है तो उस परिवार को जानकारी देने पर आपसी लड़ाई का डर रहता है. इसलिए किसी युवक के इस कुचक्र में फंसने पर उसे सही समय पर बचाया नहीं जापाता. जब तक घरवाले इससे अवगत होते हैं तब तक बच्चा बुरी तरह फंस चुका होता है.’ गांव के लोगों का कहना है कि इस गांव में कई बार पंचायतें हो चुकी हैं. पुलिस को बुलाया जा चुका है. यहां 12-15 ड्रग पेडलर हैं. जो बाकी गांवों में चिट्टा सप्लाई कर रहे हैं. पुलिस थोडे दिन बाद उन्हें छोड़ देती है. गांव के लोगों ने नेताओं और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए.

बड़ागुढ़ा गांव| तस्वीर- ज्योति यादव

ड्रग एडिक्ट को मरीज नहीं, एक अनैतिक व्यक्ति के तौर पर देखा जाना

डॉक्टर पंकज का कहना है, ‘ड्रग्स के कुचक्र में फंसे लोगों को मरीजों के तौर पर देखने की बजाय इन्हें अनैतिक समझा जाता है. ऐसी परिस्थिति में कोई बच्चा नशे में फंसने पर अपने मातापिता को बताने से कतराता है. इसको लेकर अवेयरनेस नहीं होना भी इसके फैलने की वजह है. जब तक बातचीत नहीं होगी इसे अनैतिक माना जाता रहेगा, इसके कुचक्र में युवक आते रहेंगे.’

चलतेफिरते टाइमबम

सरकारी अस्पताल और प्राइवेट अस्पतालों में आने वाले ड्रग एडिक्टस में स्कूली बसों के ड्राइवर तक शामिल हैं. रोड एक्सीडेंट्स में एल्कोहॉल को डिटेक्ट करने का तरीका है लेकिन हेरोइन लिए हुए व्यक्ति की पहचान करना मुश्किल होता है. इसे ना सूंघ सकते हैं ना किसी फिजिकल एक्टिविटी से पहचान. एक ड्रग एडिक्ट सड़क पर वाहन चलाने से कैसे रोका जाए, इसका भी उपाय नहीं है.

सिविल अस्पताल| तस्वीर- ज्योति यादव

कुछ डॉक्टर्स ने NRCO के कानूनों पर सवाल उठाया. कइयों का मानना है, ‘ये कानून जब बने थे तो यहां हेरोइन या स्मैक का इस्तेमाल नहीं होता था. शराब को लेकर बनाए गए इन कानूनों में अब बदलाव करने होंगे.’

मार्केटिंग कंपनी की तरह चलती है चेन

हेरोइन की चेन को आप मार्केटिंग कंपनी की डिलीवरी चेन की तरह समझ सकते हैं कि कैसे ये गांव की नौ साल के बच्चे तक पहुंच रहा हैशहर में इसका कोई हेडक्वाटर है. उस हेडक्वाटर के कई छोटेछोटे सेंटर हैं. उन सेंटर्स के बाद ड्रग पेडलर और ड्रग पेडलर्स के बाद ड्रग एडिक्ट. पुलिस अधिकतर ड्रग एडिक्ट और ड्रग पेडलर से आगे बढ़ ही नहीं पाती है. जहां सौदो किलो का स्टॉक है वहां से आराम से ड्रग पेडलर तक सामान पहुंचाया जा रहा है. इस नशे में मुख्यत: भूक्की, अफीम, स्मैक, चिट्टा, चरस, आयोडैक्स, हेरोइन, दवाइयां शामिल हैं. मेडिकल ड्रग्स के शिकार भी उतने ही हैं जितने चिट्टे के.

जैसा अस्पताल के बाहर बैठे एक बुजुर्ग ने कहा, ‘जब तक ये चैन तोड़ी नहीं जाएगी..जब तक बड़ी मछलियां पकड़ी नहीं जाएगीं, मगरमच्छ को काबू में नहीं किया जाएगा, तब तक 9 साल के अमनदीप के पास ये ड्रग पहुंचता रहेगा.’

नशा पंजाब से होता हुआ हरियाणा में अपना गढ़ बना रहा है.

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