गैर भाजपाई दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वाराणसी में घेरने का अच्छा मौका छोड़ दिया. ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि सीमा पर तैनात सैनिकों को खराब खाना मिलने और राशन में भ्रष्टाचार की शिकायत पर बीएसएफ से बर्खास्त हुए जवान तेज बहादुर यादव पहले से ही नरेंद्र मोदी को चुनौती देने का ऐलान कर चुके थे.
एक तरह से विपक्ष के पास यह बहुत अच्छा मौका था कि वह अपने किसी बड़े नेता को नरेंद्र मोदी के सामने उतारने से बचते हुए भी तेज बहादुर यादव को समर्थन देकर उन्हें इस तरह से घेर सकता था कि भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी को देश में बाकी जगहों पर जवाब देना मुश्किल पड़ जाता.
इससे पहले भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी. लेकिन विपक्षी खेमे से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिलने के कारण आखिरकार उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ले ली और कह दिया कि उस सीट पर जो भी नरेंद्र मोदी को चुनौती देगा, वे उसका समर्थन कर देंगे. उन्होंने कहा कि वे विपक्षी वोटों का बंटवारा नहीं चाहते. चंद्रशेखर अगर मैदान में होते तो बीजेपी की दलित राजनीति सवालों के दायरे में होती.
एक बड़ी मुश्किल से बच गए मोदी
विपक्ष ने तेज बहादुर यादव की उम्मीदवारी की अनदेखी करके नरेंद्र मोदी को बड़ी मुश्किल से बचा लिया है क्योंकि प्रधानमंत्री देश भर में सेना के नाम पर वोट मांगने में कोई संकोच नहीं कर रहे हैं. ऐसे में बीएसएफ का एक पूर्व जवान जब उनके सामने संयुक्त प्रत्याशी के रूप में खड़ा होता तो ये सवाल जरूर उठता कि जिन सैनिकों के नाम पर वो देश भर में वोट मांग रहे हैं, उन्हीं का एक साथी उनके खिलाफ क्यों खड़ा है. साथ ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी बीजेपी घिरती.
बेशक, यह नहीं कहा जा सकता कि गैर भाजपाई दलों के संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर बर्खास्त बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव नरेंद्र मोदी को कोई बड़ी चुनौती दे ही देते, लेकिन मुद्दों पर जरूर नरेंद्र मोदी और भाजपा घिर जाते और इसका पूरा फायदा इन दलों को बाकी देश में हो सकता था.
सेना और सैनिकों के मुद्दे पर घिर सकते थे मोदी
सपा-बसपा ने इस बात की भी अनदेखी की कि तेज बहादुर के साथ में अनेक पूर्व सैनिक और जवान भी उनका प्रचार करने वाराणसी पहुंच चुके हैं और खुद तेज बहादुर यादव भी अब एक परिपक्व नेता की तरह भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी के सेना और सैनिकों के प्रति आदर की पोल खोल रहे हैं.
तेज बहादुर यादव के साथ एक यह भी खूबी हो सकती थी कि वो एक सैनिक के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें किसी जाति के दायरे में नहीं देखा जा रहा है. एक तरह से वो सभी तबकों के वोट खींच सकते हैं, और इस मायने में वो नरेंद्र मोदी को टक्कर दे सकते हैं.
क्या अब भी बची है संभावना
यह ठीक है कि कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन अपने-अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर चुके हैं, लेकिन अब भी ये दल चाहें तो स्थिति संभाल सकते हैं और भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं. अब भी ये दल एकमत होकर तेज बहादुर को अपना उम्मीदवार घोषित कर दें तो नरेंद्र मोदी और भाजपा उसी मुद्दे पर सबसे ज्यादा घिर जाएंगे जिस मुद्दे पर वो वोट मांग रहे हैं.
कांग्रेस और गठबंधन ने दिए कमजोर उम्मीदवार
वाराणसी में समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी गठबंधन ने राज्यसभा के पूर्व उप-सभापति श्यामलाल यादव की पतोहू शालिनी यादव को, और कांग्रेस ने 2014 में प्रत्याशी रहे अजय राय को टिकट देकर एक तरह से साबित कर दिया है कि वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देने की उनकी खास इच्छा नहीं है.
इसके पहले लग रहा था कि सपा-बसपा गठबंधन किसी तगड़े उम्मीदवार को टिकट दे सकता है, लेकिन जब उसने ऐसा कुछ करने के बजाय पूर्व महापौर प्रत्याशी शालिनी यादव को टिकट दिया तो साफ हो गया कि गठबंधन वाराणसी में नहीं उलझना चाहता.
प्रियंका भी नहीं जुटा पाई मोदी को चुनौती देने की हिम्मत
इसके बाद कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी के भी चुनाव लड़ने की हवा बनाई गई. खुद प्रियंका ने यह कहकर सुर्खियां बटोरीं कि अगर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी कहेंगे तो वे वाराणसी से चुनाव लड़ेंगी.
हालांकि कई लोग तब भी यह मान रहे थे कि अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत प्रियंका गांधी वाराणसी जैसी किसी सीट से कतई नहीं करेंगी जहां उनके जीतने की पूरी-पूरी संभावना न हो. इसके बावजूद, प्रियंका का खुद यह कहना मायने रखता था और तब लगने लगा था कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी को सीधे चुनौती देकर, न केवल उनकी राह मुश्किल करना चाहती है, बल्कि इस बहाने उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित भी करना चाहती है.
क्या रहा था 2014 का परिणाम
हालांकि, जब कांग्रेस के टिकट की घोषणा हुई तो कोई नया नाम सामने नहीं आया और कांग्रेस ने उन्हीं अजय राय को टिकट दिया जिन्हें 2014 में नरेंद्र मोदी के 5, 81,022 वोटों के सामने केवल 75,614 वोट मिले थे और वे तीसरे स्थान पर रहे थे. आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे लेकिन वे भी नरेंद्र मोदी से 3,71,784 वोटों से पीछे थे.
कांग्रेस के अजय राय से थोड़े ही पीछे बहुजन समाज पार्टी के विजय प्रकाश जायसवाल थे जिन्हें 60,579 वोट मिले थे. 45,291 वोट तो समाजवादी पार्टी के कैलाश चौरसिया तक को मिल गए थे.
जाहिर है, इस बार बसपा गठबंधन होने के कारण समाजवादी पार्टी को वोट तो कुछ ज्यादा मिल सकते हैं और वो दूसरे नंबर पर भी रह सकती हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी से उनका अंतर बहुत ज्यादा रहने वाला है. कांग्रेस के अजय राय तो केवल नाम के लिए ही लड़ रहे हैं.
(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं.)