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Saturday, 21 December, 2024
होम2019 लोकसभा चुनावमोदी और नीतीश सहयोगी तो हैं पर उनके भाषणों से ऐसा नहीं लगता है

मोदी और नीतीश सहयोगी तो हैं पर उनके भाषणों से ऐसा नहीं लगता है

चुनावी पर्यवेक्षकों का कहना है कि मोदी और नीतीश शासन और अपने पार्टी सहयोगियों के प्रति समान दृष्टिकोण रखते हैं. लेकिन वे चुनाव अभियान के तरीके एक-दूसरे से काफी अलग रखते हैं.

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पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की केमिस्ट्री अजीबोगरीब किस्म की है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मतभेदों, भ्रष्टाचार पर नकेल कसने, नफरत करने वालों और कार्य में हस्तक्षेप को नापसंद करने में दोनों सहयोगी एक जैसे हैं.

जनता दल (यूनाइटेड) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘लेकिन कोई भी दो नेता चुनावी मुद्दों को उठाते हुए एक दूसरे से उतने भिन्न नहीं हो सकते, जितने की ये दो नेता हैं.

लोकसभा चुनावों के प्रचार अभियान में मोदी ने बिहार में अब तक तीन चुनावी सभाएं की हैं और नीतीश कुमार ने गया और भागलपुर की दो रैलियों में मंच साझा किया है. मोदी एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा और कट्टर हिंदुत्व के बीच में फंस गए हैं, जबकि इसके विपरीत नीतीश कुमार अपने 13 साल के कार्यकाल के दौरान किये गए कार्य के बारे में ज़्यादातर बोलते हैं. इस दौरान सभी दोनों में साफ भिन्नता देखी.

दो बैठकों की कथा

1989 में स्वतंत्र भारत के इतिहास में हुए सबसे खराब सांप्रदायिक दंगों में से एक भागलपुर रहा है. भागलपुर में सभा को संबोधित करते हुए मोदी ने अपनी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में ज़्यादा बात नहीं की. लेकिन, उनके भाषण का एक बड़ा हिस्सा बालाकोट हवाई हमलों के आसपास केंद्रित था.

उन्होंने उत्साही भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, ‘घर में घुस के मारा है’. पाकिस्तानी नेताओं और उनके ‘प्रायोजित’ आतंकवादियों के चेहरे पर ‘डर’ था. उन्होंने भीड़ से पूछा कि क्या सेना की विशेष शक्तियों को वापस लिया जाना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने कहा ‘मैंने जम्मू-कश्मीर में उन लोगों को गिरफ्तार किया है, जिन लोगों को पाकिस्तान द्वारा पैसा दिया जा रहा था. विपक्ष का कहना है कि वे चरमपंथियों से बातचीत करेंगे. क्या आप ऐसे व्यक्तियों पर भरोसा कर सकते हैं?

इसके विपरीत, नीतीश ने आतंकवाद का जिक्र सिर्फ एक लाइन में किया, ‘प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ ज़रूरी कदम उठाए हैं’. उनका अगले 15 मिनट का भाषण केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा किए गए विकास कार्यों और गरीबों के उत्थान के लिए उठाये कदमों के बारे में था.

नीतीश ने कहा, ‘मैं बिहार की मदद करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देना चाहूंगा. सड़कों को सुधारने के लिए केंद्र ने बिहार को 50,000 करोड़ रुपये दिए हैं. उन्होंने एक मेट्रो रेल परियोजना शुरू की है और बरौनी में उर्वरक कारखाने को फिर से शुरू करने के लिए भी कदम उठाए हैं.’ नीतीश ने ज़ोर देते हुए कहा कि अगर मतदाता बिहार को समृद्ध बनाना चाहते हैं, तो उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मोदी को दूसरा कार्यकाल दिया जाए.

गया की रैली में मोदी ने ’हिंदू आतंक’ शब्द इजाद करने के लिए कांग्रेस का मज़ाक उड़ाया और कहा कि हिंदू कभी भी आतंक में शामिल नहीं हो सकते. लेकिन नीतीश कुमार केवल विकास पर बात करते रहे. वह अपने हर भाषण में 13 साल के कामों को बताते हैं.

वे अपने प्रतिद्वंद्वियों को कैसे संबोधित करते हैं

जिस तरह से मोदी और नीतीश अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर हमला करते हैं. उसमें भी बहुत अंतर है. पीएम उन्हें महामिलावटी, भ्रष्ट और चरमपंथियों के प्रति सहानुभूति रखने वाला कहते हैं. हालांकि, नीतीश शायद ही विपक्ष का ज़िक्र करते हैं और वह ज्यादातर हल्के-फुल्के अंदाज़ में में तंज़ कसते हैं.

नीतीश कुमार ने एक सभा में कहा, ‘बिहार में अब हर घर में बिजली कनेक्शन है. बिहार में लालटेन (राजद का चुनावी चिन्ह) की उम्र खत्म हो चुकी है.

जद (यू) एमएलसी ने कहा, ‘नीतीश ने कभी भी विपक्ष के बारे में कोई निचले स्तर की टिप्पणी नहीं की. मोदी उन्हें अपमानित करने में विश्वास रखते हैं. यहां तक कि जब नीतीश मोदी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी थे, तो भी उन्होंने कभी व्यक्तिगत हमले नहीं किए.

भाजपा विधायक ज्ञानेंद्र कुमार सिंह ‘ज्ञानू’ ने कहा एक प्रकार से दोनों नेता एक-दूसरे के पूरक हैं. वे किसी मुद्दे पर अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन बालाकोट और विकास में कोई विरोधाभास नहीं है. लेकिन वास्तव में, वे एक दूसरे के पूरक हैं.

एक जटिल संबंध

यह नया पूरक मोदी और नीतीश के जटिल इतिहास से एकदम अलग है. 2005 में जद (यू)- बीजेपी गठबंधन सत्ता में आया उसके बाद 2013 में नीतीश ने पीएम उम्मीदवार के रूप में मोदी का विरोध करते हुए एनडीए छोड़ दिया, तब 2002 की सांप्रदायिक हिंसा में मोदी की भूमिका के कारण और नीतीश की चेतावनी के कारण बिहार में गुजरात के मुख्यमंत्री के प्रवेश पर एक अलिखित प्रतिबंध था. यहां तक कि भाजपा नेता भी बिहार में अपने सार्वजनिक भाषणों में मोदी के नाम लेने की हिम्मत नहीं करते थे.

2010 में जब मोदी भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेने के लिए पटना आए तो, भाजपा और जद (यू) के बीच का संबंध लगभग टूटने के कगार पर पहुंच गया. नीतीश को अपने सहयोगियों के लिए रात्रिभोज का आयोजन करना था, उसे रद्द कर दिया.

जद (यू) के एक नेता ने कहा, यह और भी विडंबना है कि वे एक-दूसरे के साथ खड़े नहीं हो सकते क्योंकि वे एक जैसे लगते हैं. जदयू नेता ने कहा कि ‘वे एक जैसे नेता हैं किसी पर भी भ्रष्टाचार के आरोप नहीं हैं, दोनों काम करना पसंद करते हैं, असंतोष से निपटने की बात आती हैं तो दोनों निर्मम हैं और न ही वंशवाद को बढ़ावा देते हैं, शायद यही कारण है कि नीतीश का लालू के साथ ‘महागठबंधन’ चल नहीं पाया.

जब जद (यू) और भाजपा ने 2017 में अपने गठबंधन को फिर से मज़बूत किया. तब यह माना गया कि नीतीश को दूसरी भूमिका निभानी होगी. लेकिन वह अपने फैसलों पर अड़े रहे वे तीन चीज़ों- भ्रष्टाचार, अपराध और सांप्रदायिकता से समझौता नहीं करेंगे.

जद (यू) के वरिष्ठ नेता ने कहा नीतीश कुमार पिछले साल राम नवमी के दौरान सांप्रदायिक संघर्ष से सही तरीके निपटने में कामयाब रहे और उन्होंने सांप्रदायिक दंगे भड़कने नहीं दिए. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जद (यू) 17 सीटों के बराबर संख्या पर लड़ रही है, जब यह उम्मीद थी कि पार्टी को केवल एक इकाई में सीटें मिलेंगी. नीतीश कुमार पहली बार बिहार के लोगों से नरेंद्र मोदी को वोट देने के लिए बात कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने भाजपा के लिए अपनी शर्तें तय की हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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