नई दिल्ली: इस बार देश की महिलाओं की आवाज़ वोट के रूप में बढ़-चढ़ कर बोली हैं. भीषण गर्मी के बीच लंबे चले मतदान में महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. मतदान के दौरान लंबी-लंबी कतारों में खड़ी महिलाओं की तस्वीरें भी खूब सामने आईं. उनको बाहर लाने की सबसे बड़ी वजह शायद वो सरकारी योजनाएं भी रहीं जिसने उनके जीवन पर गहरा असर डाला. मसलन उज्जवला योजना, शौचालयों का निर्माण और ग्रामीण आवास योजना जैसी परियोजनाएं जिसका सीधा असर उनके जीवन पर पड़ा.
इस बार रिकॉर्ड 66.7 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया और करीब-करीब 13 ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज़्यादा रही है. महिला वोटरों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है.
1962 में 47 प्रतिशत महिला मतदान करने निकली थीं, 2014 तक ये बढ़ कर 66 प्रतिशत हो गया था इसी दौरान पुरुष जो मतदान के लिए निकले उनकी संख्या 5 प्रतिशत ही बढ़ी.
दक्षिण भारत के केरल, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी और लक्षद्वीप में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक दर्ज किया. पूर्वोत्तर राज्यों में भी महिलाओं की भागीदारी मतदान में पुरुषों से ज्यादा थी- मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम. बिहार और उत्तराखंड में भी पुरुषों के मुकाबले महिला वोटर अपने मताधिकार के प्रति सजग रहीं.
चुनाव आयोग के अनुसार बिहार में 59.92 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया जबकि पुरुषों का आंकड़ा 55.26 प्रतिशत था.
यानि चुनाव प्रक्रिया में महिलाओं की रूचि बढ़ी है. वे देश के भविष्य में अपनी भागीदारी भी देख रहीं हैं, समझती है और अपनी आवाज़ बुलंद भी करना चाहती हैं. लेकिन इसी के साथ एक बात ये भी सही है कि संसद में चुन के आने के लिए खड़ी महिलाओं की संख्या बहुत कम है और उसमें से भी बहुत कम है जो संसद तक पहुंच जाती है.
2014 में 543 सदस्यों वाली संसद में 61 महिलाएं चुन के आईं जो संसद का 11 फीसदी मात्र ही है लेकिन यह भी एक रिकॉर्ड ही रहा. लेकिन इसबार संसद पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या में बढ़ी है. इस बार विभिन्न पार्टियों की 76 महिलाएं सदन में पहुंची है. जिसमें भारतीय जनता पार्टी की स्मृति ईरानी, पंकजा मुंडे, पूनम महाजन, प्रज्ञा ठाकुर, हरसिमरत कौर, सोनिया गांधी, मेनका गांधी, मिनाक्षी लेखी, कनिमोड़ी, प्रिया दत्त सहित कई महिलाएं पहुंच रही हैं.
इस बार त्रिणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने महिलाओं की भागीदारी की अहमियत को समझते हुए 41 फीसदी महिलाओं को सीट बटवारें में हिस्सेदारी की घोषणा की थी, बीजू जनता दल के नेता, नवीन पटनायक ने 33 फीसदी टिकटें महिलाओं को देने का वादा किया. 2019 लोक सभा चुनावों में 724 महिला उम्मीदवार खड़ी हुई और इनमें से 11 प्रतिशत महिलाएओं की आपराधिक पृष्ठभूमि थी.
भले महिलाएं ज्यादा संख्या में वोट दे रही हैं, पर आज भी उनकी उम्मीदवारी ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. फिर राजनीति के अखाड़े में दमखम और धनबल के साथ लड़ना आसान भी नहीं. इसलिए चाहे 2019 में 2014 से ज्यादा महिलाएं जीत कर आए फिर भी सवाल ये है कि क्या उनकी आवाज़ संसद में सुनी जाएगी. और क्या संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग पर मोदी सरकार ध्यान देगी- आखिर उनकी जीत का बड़ा श्रेय महिलाओं को जाता है. दूसरी बात जिसपर सबकी नज़र रहेगी वो ये कि क्या निर्मला सीतारमण, सुषमा स्वाराज, मेनका गांधी की तरह इस बार भी मोदी महिला सांसदों को कैबिनेट की कुर्सी देंगे और प्रमुख मंत्रालयों में महिला बॉस होंगी?