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Thursday, 25 April, 2024
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यूपी की कई सीटों पर विपक्ष में ‘आपसी तालमेल’, कांग्रेस भी इसका हिस्सा बनी

कई सीटों पर सपा-बसपा के साथ कांग्रेस का 'गठबंधन' न होने के बावजूद आपसी अंडरस्टैंडिंग नजर आ रही है.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ तैयार हुए सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन में कांग्रेस नहीं है लेकिन कुछ सीटों पर ऐसी अंडरस्टैंडिंग दिख रही जिसकी सियासी गलियारों में चर्चा है. दरअसल कई सीटों पर तो मुकाबला त्रिकोणीय है लेकिन अब कुछ पर अंडरस्टैंडिंग होती नजर आ रही है. गठबंधन न होने बावजूद कांग्रेस कुछ सीटों पर सपा-बसपा को फायदा पहुंचाती दिख रही है.

खासतौर पर ये अंडरस्टैंडिंग सपा व कांग्रेस के बीच अधिक दिख रही है. इन दोनों दलों से जुड़े सूत्रों की मानें तो कुछ खास नेताओं को संसद तक पहुंचाने के लिए रूपरेखा तैयार कर ली गई है. सियासत में इसे आपसी समझ या आपसी समझौता भी कह सकते हैं.

रामपुर सीट पर कांग्रेस बनी जयाप्रदा की मुश्किल

इस आपसी समझ का सबसे बेहतर उदाहरण है रामपुर सीट. यहां मुकाबला बीजेपी की जयाप्रदा व सपा के आजम खान के बीच है. दोनों एक दूसरे के कट्टर विरोधी हैं. रामपुर सीट मुस्लिम बहुल्य सीट है. पहले कांग्रेस से यहां नूर बानो को टिकट मिलने की उम्मीद थी लेकिन इससे मुस्लिम वोट बंट सकता था. अब कांग्रेस ने संजय कपूर को यहां से उतारा है जो बीजेपी के वोटों में सेंधमारी कर सकते हैं. ऐसे में जयाप्रदा की राह मुश्किल हो सकती है.

अमरोहा में राशिद अल्वी ने लड़ने से किया इंकार

अमरोहा लोकसभा सीट पर भी कुछ ऐसा होता दिख रहा है. बसपा ने जेडीएस से आए दानिश अली को टिकट दिया. उस वक्त कांग्रेस ने राशिद अल्वी को टिकट देने की घोषणा कर दी थी. जेडीएस के प्रवक्ता रहे दानिश की कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन कराने में अहम भूमिका रही थी. उनके कांग्रेस के नेताओं से भी अच्छे संबंध हैं. ऐसे में राशिद अल्वी ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया गया. इसके बदले सचिन चौधरी को टिकट मिल गया. सचिन बीजेपी के जाट वोटों में सेंधमारी कर सकते हैं. बीजेपी के सांसद और उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर की राह अब मुश्किल होती दिख रही है.

बरेली में ‘गंगवार बनाम गंगवार’ में फंसी भाजपा

बरेली लोकसभा सीट पर बीजेपी के संतोष गंगवार के मुकाबले में सपा ने भगवत शरण गंगवार को टिकट दिया है. कुर्मी बहुल्य सीट पर सपा ने कुर्मी बिरादरी के भगवत शरण पर दांव लगा कर सीट का रोमांच बढ़ा दिया है. बरेली के मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार भी कुर्मी बिरादरी के बड़े नेता है.भगवत शरण के मुकाबले में उतरने के बाद अब इस सीट का समीकरण बदल गया है.

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वहीं कांग्रेस से पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन मैदान में हैं. मुलायम सिंह यादव ने भी 2009 में भगवत शरण गंगवार को बरेली सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. भगवत खुद तो नहीं जीत पाए लेकिन उनके उतरने से कांग्रेस को फायदा हुआ था और प्रवीण सिंह ऐरन ने ये सीट निकाल ली थी.

कानपुर और उन्नाव में कांग्रेस को मदद

कानपुर लोकसभा सीट पर मुकाबला बीजेपी उम्मीदवार सत्यदेव पचौरी व कांग्रेस उम्मीदवार श्रीप्रकाश जायसवाल के बीच है. गठबंधन में ये सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई. कई नेता टिकट की जुगाड़ में थे लेकिन अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के मित्र मनोहरलाल के बेटे राम कुमार को टिकट दे दिया है. इससे कानपुर में कई सपा कार्यकर्ता भी हैरान हैं. ऐसा ही कुछ उन्नाव में हुआ है.

वहां बीजेपी के साक्षी महाराज के मुकाबले कांग्रेस से अन्नू टंडन मैदान में हैं. वहीं सपा ने पूजा पाल को टिकट दे दिया है. पूजा पाल बसपा के टिकट पर इलाहाबाद (प्रयागराज) में चुनाव लड़ती रही हैं.वह पूर्व विधायक भी रह चुकी हैं लेकिन उन्नाव का चुनावी मैदान उनके लिए नया होगा. ऐसे में मुख्य मुकाबला साक्षी महाराज व अन्नू टंडन के बीच होने की उम्मीद है.

कुशीनगर में भी सपा ने दी कांग्रेस को उम्मीद

कुशीनगर में आरपीएन सिंह कांग्रेस से फिर से मैदान में हैं. उनके मुक़ाबले बीजेपी ने मौजूदा सांसद राजेश पांडे का टिकट काट कर विजय दूबे को दिया है. वहीं सपा में चर्चा थी कि पूर्व सांसद बालेश्वर यादव को यहां से टिकट दिया जा सकता है. वहां उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. समाजवादी पार्टी ने नथुनी कुशवाहा को टिकट दे दिया जिससे कई कार्यकर्ता भी हैरान रह गए.

लखनऊ यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर कविराज की मानें तो अक्सर विपक्षी दल सत्ताधारी दल को चुनौती देने लिए तमाम तरह की रणनीति बनाते हैं. हो सकता है ये भी उनकी रणनीति का हिस्सा हो. राजनीति में पर्दे के पीछे रहकर भी कई तरह की रणनीतियां तैयार की जाती हैं. पहले के चुनाव में भी ऐसा होता रहा है.

कई और सीटों पर भी अंडरस्टैंडिंग की उम्मीद

सपा व कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो वाराणसी, गोरखपुर व लखनऊ सीट पर विपक्ष के उम्मीदवारों में आपसी समझ दिख सकती है. इसका कारण बीजेपी को न लाभ होने देना है. सपा-बसपा अमेठी व रायबरेली में उम्मीदवार न होने की घोषणा कर चुके हैं तो वहीं कांग्रेस भी सपा-बसपा के लिए सात सीटें छोड़ने का पहले ही ऐलान कर चुकी है लेकिन ये ‘आघोषित’ तालमेल यूपी में इन दिनों चर्चा का विषय बना है.

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