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Friday, 1 November, 2024
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उत्तर पूर्वी सीट से ‘आप’ उम्मीदवार दिलीप पांडे की कसम- जमुना पार को दिल्ली बना दूंगा

दिलीप से जब पूछा गया कि उन्हें किसी को वोट क्यों देना चाहिए? जवाब में उन्होंने कहा कि तरक्की के मामले में उतर पूर्वी दिल्ली को वो बाकी की दिल्ली जैसा बना देंगे.

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नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली की राजनीति बेहद दिलचस्प हो गई है. भले ही इस आधे राज्य के पास सिर्फ सात लोकसभा सीटें हों, लेकिन ये सीटें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के लिए नाक का सवाल बनी हुई हैं. इन सात सीटों की कीमत आप इस तरह से समझ सकते हैं कि एक तरफ जहां पीएम नरेंद्र मोदी की पार्टी भाजपा उहापोह में यहां अपने उम्मीदवारों का ऐलान तक नहीं कर पाई है, वहीं दूसरी तरफ अपने सातों उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी ‘आप’ अभी भी इस फिराक में है कि किसी तरह से यहां कांग्रेस संग उसका गठबंधन हो जाए. वहीं, कांग्रेस भी ये तय नहीं कर पा रही कि उसे अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए या ‘आप’ के साथ. ऐसे में दिप्रिंट ने उत्तर पूर्वी दिल्ली से ‘आप’ प्रत्याशी दिलीप पांडे से बात करके उन सवालों के जवाब जानने की कोशिश की जो दिल्ली की चुनावी हवा में तैर रहे हैं.

‘लोगों को बड़ा आदमी नहीं बल्कि अपना आदमी चाहिए’

दिलीप पांडे से जब पूछा गया कि उन्हें किसी को वोट क्यों देना चाहिए? तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि उत्तर पूर्वी दिल्ली का इलाका गोवा से बड़ा है. लेकिन जमुना पार कहे जाने वाले इस इलाके के लोग जब कनाट प्लेस और जामा मस्जिद जाते हैं तो कहते हैं कि वो दिल्ली जा रहे हैं. वो इलाके के पिछड़े होने की ओर इशारा करते हुए मनोज तिवारी पर हमला बोलते हैं. इसके बाद कहते हैं कि अब इलाके के लोगों को बड़ा नहीं बल्कि अपना आदमी चाहिए. वहीं, दिलीप कसम खाते हुए कहते हैं कि वो तरक्की के मामले में उतर पूर्वी दिल्ली को बाकी के दिल्ली बराबर ज़रूर खड़ा कर देंगे.


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‘मनोज तिवारी बड़े फिल्म स्टार पर उन्हें क्षेत्र के बारे में नहीं पता’

जब दिलीप से ये पूछा गया कि मनोज तिवारी की ताकत ये है कि वो एक सेलिब्रिटी हैं, ऐसे में दिलीप की ताकत क्या है? इसके जवाब में वह कहते हैं तिवारी सितारे तो हैं लेकिन उन्हें अपने इलाके के बारे में कुछ भी पता नहीं है. वो आगे कहते हैं, ‘हम मामूली लोग हैं. लोकसभा की लड़ाई देश की लड़ाई है. लोग तय करके बैठे हैं के बीजेपी के निकम्मे सांसदों को निकाल भागना है.’ वो कहते हैं कि जब जनता ने लड़ाई अपने हाथ में ले ली है तो जनता से बड़ा तो कोई नहीं है.

क्या कांग्रेस के साथ मिलने की आतुरता से नुकसान होगा?

कांग्रेस के गठबंधन के सवाल पर पांडे कहते हैं कि ये ‘आप’ की मजबूरी नहीं है. ‘आप’ का मानना है कि ये देश सुरक्षित हाथों में नहीं है. वह कहते हैं कि देश को सुरक्षित करने के लिए सबको एक साथ आना होगा. वो आगे कहते हैं कि केजरीवाल ने इस गठबंधन के लिए दो बार प्रयास किया लेकिन दोनों ही बार शीला दीक्षित ने इसे असफल कर दिया. वो आगे कहते हैं कि उनकी पार्टी को ये उम्मीद है कि जिन ख़तरनाक हाथों में ये देश है उससे इसे बचाने के लिए सब साथ आएंगे.

उन्होंने कहा, ‘मैं पूरे दिन लोगों से मिलता हूं. लोग मोदी-शाह की जोड़ी से परेशान हैं. इनकी संख्या काफी ज़्यादा है.’ पांडे का कहना है कि ये लोग दिल्ली में वोट करते वक्त स्पष्टता चाहते हैं. वोटों का बंटवारा होने पर भाजपा के निकम्मे और अहंकारी सांसद जीत जाएंगे. लोग गठबंधन की पहल की तारीफ कर रहे हैं. लेकिन कांग्रेस हर बार गठबंधन की बात नकार देती है. पांडे कहते हैं कि ख़ुद कांग्रेस के लोग इससे नाराज़ हैं कि उनकी पार्टी अपना ग़ुरूर नहीं छोड़ रही. कांग्रेस अभी भी पार्टी को बचाने लगी है.

गठबंधन होगा या नहीं?

गठबंधन के सवाल पर दिलीप कहते हैं कि उनकी पार्टी ने संजय सिंह को आगे किया है. पार्टी को इंतज़ार है कि कांग्रेस भी इसके लिए किसी को आगे करेगी. वो राहुल पर तंज कसते हुए कहते हैं कि ऐसी गंभीर बातें ट्विटर पर नहीं होनी चाहिए जैसा कि राहुल गांधी कर रहे हैं.

मोदी हैं सबसे बड़ा मुद्दा तो क्या विपक्ष पहले ही हार चुका है?

पीएम मोदी के सबसे बड़ा मुद्दा होने की बात पर दिलीप कहते हैं कि मोदी ने लोगों को धोखा दिया और लोगों को पता है कि केजरीवाल ने काम किया है. दिल्ली के लोगों को पता है कि अगर केजरीवाल जीते तो पूर्ण राज्य बनेगा और दिल्ली के बाकी सपने पूरे होंगे. ऐसे में वो इस बार पीएम नहीं बल्कि पूर्ण राज्य बनाने के लिए वोट करेंगे.

पार्टी के प्रचार से जुड़े पोस्टरों में लिखा है कि दिल्ली के 85% वोटरों को पहले नौकरी दी जाएगी. इससे जुड़े सावल पर जब दिलीप पांडे से पूछा गया कि क्या इससे बाहर से आए लोगों को डरने की ज़रूरत है तो उन्होंने कहा, ‘कोई भी आकर अपना वोटर आईडी कार्ड बनावाकर दिल्ली वाला बन सकता है.’ वो कहते हैं कि दिल्ली में तो 70% बाहर के लोग हैं. हम उनके बारे में भी बात कर रहे हैं. दिलीप कहते हैं कि पूर्ण राज्य की लड़ाई दिल्ली के ज़मीन पर मौजूद तमाम लोगों की है.


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क्या झारखंड जैसे पूर्ण राज्य के उदाहरण से दिल्ली को डरने की ज़रूरत है?

झारखंड जैसे पूर्ण राज्य के उदाहरण पर पांडे कहते हैं कि उसे प्रकृति ने अमीर बनाया लेकिन भ्रष्टाचार ने ग़रीब बना दिया. वो कहते हैं दिल्ली टैक्स कलेक्शन के मामले में देश में दूसरे नंबर पर है. वो बताते हैं कि दिल्ली की जनता केंद्र सरकार को लगभग सवा लाख़ करोड़ टैक्स देती है लेकिन बदले में दिल्ली सरकार को 325 करोड़ रुपए मिलते हैं.

वो समझाते हुए कहते हैं, ‘गोवा की आबादी 15 लाख़ है और वहां 3000 कोरड़ रुपए का टैक्स कलेक्शन होता है.’ वो कहते हैं कि इस राज्य को केंद्र सरकार 754 करोड़ रुपए देती है. फिर वो कहते हैं कि दिल्ली की आबादी दो करोड़ है और दिल्ली केंद्र को सवा सौ करोड़ का टैक्स देती है और बदले में मिलते हैं सिर्फ 325 करोड़ रुपए और पूछने जाओ तो कहते हैं कि आधा राज्य है.

पांडे आगे कहते हैं कि दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की मांग और इसका वादा सालों पुराना है. लेकिन इस वादे से कांग्रेस से भाजपा तक सब मुकर चुके हैं. टिका हुआ है तो बस एक आदमी, अरविंद केजरीवाल जिनका कहना है, ‘जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं.’

क्या केजरीवाल ने भ्रष्टाचार का मुद्दा पीछे छोड़ दिया?

केजरीवाल द्वारा भ्रष्टाचार के मुद्दे को पीछे छोड़े जाने के सवाल के जवाब में पांडे ने कहा कि आज भी देश केजरीवाल को भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने वाले सबसे बड़े चेहरे के तौर पर जानता है. राफेल के मामले में सिर्फ कांग्रेस नहीं लड़ रही बल्कि ‘आप’ के संजय सिंह भी लड़ रहे हैं जिनके ऊपर 5000 करोड़ रुपए का मानहानि का मुकदमा किया गया है. वो कहते हैं कि डर के मारे भाजपा ने एसीबी को हमारे हाथों से छीन लिया. वो कहते हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में उनकी सरकार ने केंद्र सरकार से बेहतर काम किया है.

भाजपा के ख़िलाफ़ क्यों नहीं हुआ जन लोकपाल जैसा आंदोलन?

जब पांडे से पूछा गया कि क्या भाजपा के ख़िलाफ़ जन लोकपाल जैसे आंदोलन की कमी रही और क्या इसी की वजह से आज विपक्ष वोट कटने से बचाने वाली राजनीति करने को मजबूर है? तो उन्होंने कहा, ‘जिस स्तर का अन्ना का आंदोलन था वो किसी एक व्यक्ति का आंदोलन नहीं हो सकता है.’ ये कांग्रेस की लंबे समय से की गई करनी के विरोध में हुआ था. इस सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन की कमी के बारे में वो कहते हैं कि ये लोकतंत्र है और कुर्सी पर कोई मां के पेट से पैदा होकर नहीं बैठता. वो मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहते हैं, ‘जब पाप का घड़ा भरेगा तो फूटेगा ज़रूर.’

आम आदमी पार्टी बाकी क्षेत्रियों पार्टियों से अब कैसे अलग है?

बाकियों से ख़ुद को अलग करते हुए पांडे कहते हैं कि ‘आप’ ने सरकार चलाने के जो मानदंड स्थापित किए हैं वो किसी दूसरी जगह नहीं मिलेंगे. उदाहरण देते हुए वो कहते हैं, ‘कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर पार्टी वंशवादी और परिवारवादी है.’ वो आगे कहते हैं कि ‘आप’ के संविधान में ये लिखा है कि एक ही परिवार का दो आदमी सांसद या विधायक नहीं हो सकता. वो इस पर गर्व जताते हैं कि उनकी पार्टी चुनावी बॉन्ड पर निर्भर नहीं है, उनका चंदा बिल्कुल पारदर्शी है. वो दावा करते हैं कि देश ही नहीं दुनिया में अपने बजट का 26% ख़र्च करने के मामले में ‘आप’ इकलौती पार्टी है और वो ऐसे कई दावे करते चले जाते हैं.

लेफ्ट की तरह ‘आप’ का भी नेतृत्व करने वाले सवर्ण हैं, मुसलमान और पिछड़े कहां है?

मुसलमानों और पिछड़ों के सवाल पर पांडे कहते हैं कि उनके कई उम्मीदवार इन तबकों से आते हैं. वहीं, इसके जवाब में वो कहते हैं कि किसी वर्ग विशेष का समर्थन पाने के लिए ‘आप’ को कोई दांव खेलने की ज़रूरत नहीं है. वो कहते हैं कि ‘आप’ ने जो काम किए वो सबके लिए फायदेमंद है और इससे हिंदू-मुसलमान सबका फायदा हो रहा है. वो दावा करते हैं कि ‘आप’ की सरकार सबसे कमज़ोर लोगों की है.


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क्या है दिलीप पांडे की पहचान?

जब दिलीप पांडे से ये सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि राजनीति से उनका दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था और वो एक आम आदमी हैं. वो कहते हैं कि जिस पृष्ठभूमि से वो आते हैं उसके साथ कोई सांसद का चुनाव लड़ने की सपने नहीं देख सकता है. वो कहते हैं, ‘मैं उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के जमनिया से हूं. वहीं से पला पढ़ा. एक ग़रीब किसान परिवार का बच्चा जितना कमा सकता था उतना कमाया.’

उन्होंने बताया कि देश आने से पहले वो हॉन्गकॉन्ग में थे और यहां आने से पहले भारत की स्थिति के बारे में सोचकर परेशान रहते थे. वो आगे बताते हैं कि अन्ना का आंदोलन उन्हें भारत खींच लाया और पिछले पांच साल से वो लोगों के बीच काम करने की कोशिश कर रहे हैं. दिप्रिंट के साथ बातचीत में दिलीप तमाम वादे और दावे करते हुए ख़ुद को आम आदमी बताते हैं और अपने संभावित विपक्षी बिहार के मनोज तिवारी को बड़ा आदमी बताते हैं. देखने वाली बात होगी कि 12 मई को जब दिल्ली की जनता वोट करने जाती है कि तो ये ‘आम आदमी’ होने वाली अपील पर वो कैसी प्रतिक्रिया देती है?

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