कल्पा: जब श्याम शरन नेगी ने अपना पहला वोट डाला था, उस वक्त भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्र एक साल थी. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी तब 7 वर्ष के और मां सोनिया गांधी 5 साल की थीं. इसके अलावा इस समय सत्ता पर काबिज भाजपा अपने अस्तित्व में आने से 29 बरस दूर थी. शरन सिंह के पहले वोट के साथ आजाद भारत ने भी अपना पहला वोट डाला था. जीवन के 100 बसंत देख चुके नेगी आज भी चुनावों को लेकर उत्साहित रहते हैं.
भारत में 1952 में हुए पहले चुनाव के 67 साल बाद देशवासी अब 17वीं लोकसभा के लिए वोट डाल रहे हैं. 102 साल के नेगी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि वे इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि ये उनका आखिरी चुनाव है. हिमाचल प्रदेश की चारों लोकसभा सीट पर 19 मई को सातवें चरण में वोट डाले जाएंगे.
कल्पा वैली में अपने आवास पर बैठे नेगी अपनी झुर्रियों वाली उंगली से वोटिंग दिन को गिन रहे हैं.
दिप्रिंट को वे बताते हैं, ‘मैं ये आखिरी बार वोट दूंगा. ‘ इसके बाद वे चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ कहते हैं, कि ये हमारी जिम्मेदारी है कि मतदान कर लोकतंत्र की भावना को और मजबूत किया जाए.
वे कहते हैं, ‘ आज तक मैंने अपना वोट बर्बाद नहीं किया है, और यह जीवन का आखिरी पड़ाव है. वोट डालने जरूर जाऊंगा.’ नेगी ने कहा, ‘मेरा वोट भारत को मजबूती देगा और नवयुवकों को प्रेरणा.’
अगर मेरी उम्र का कोई व्यक्ति वोट दे सकता है तो युवकों को वोट डालने से कोई नहीं रोक सकता.
‘बुढ़ापे में गुजर-बसर करना आसान नहीं है. खासकर ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में जहां सर्दियों में तापमान -14 डिग्री से लेकर -15 डिग्री सेल्शियस तक रहता है. ‘
वे आगे कहते हैं, ‘समय के साथ मेरा स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है.’
‘ एक बूढ़ा आदमी जिसके अब पांव नहीं काम कर रहे हैं, वो जाकर वोट डाल सकता है तो युवा लोग क्यों नहीं दे सकते. मैं इस बात को लेकर निश्चिंत हूं कि ये बिना किसी सकरात्मक प्रभाव के पूरा नहीं हो सकता.’
पहला वोट
नेगी कहते हैं, ‘मुझे पूरा याद है.’
1947 में देश के आजाद होने के बाद भारत में पहला चुनाव फरवरी 1952 में हुआ था. लेकिन उस समय चुनाव आयोग को लगा था कि किन्नौर जिले के कल्पा फाल में नवंबर से मार्च तक होने वाली भारी बर्फबारी के कारण वहां चुनाव नहीं कराए जा सकते. इसलिए वहां चुनाव कुछ महीने पहले कराया गया. तारीख थी 25 अक्टूबर 1951.
उस समय नेगी कल्पा जिले से लगभग 10 किलोमीटर दूर मुरांग गांव में पोलिंग ड्यूटी के लिए बतौर शिक्षक पोस्टेड थे.
वे दिप्रिंट से अपनी यादें साझा करते हुए बताते हैं, ‘ उस दिन मेरे पास दो काम थे. मेरी पोल ड्यूटी मुरांग पोलिंग बूथ पर लगी थी और मुझे कल्पा पोलिंग बूथ जाकर वोट डालना था. मैं उसके एक रात पहले जल्दी घर आ गया था. उस दिन जल्दी उठा और सुबह 6 बजे पोलिंग बूथ चला गया.’
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‘तब तक पोलिंग पार्टी नहीं आई थी और मैं वहीं बैठ कर उनका इंतजार करने लगा. जब पोलिंग पार्टी आई तब उन्होंने उनसे वोट डालने की गुजारिश की ताकि वो मुरंग में जाकर अपनी चुनावी ड्यूटी निभा सकें.’
‘उन्होंने किसी तरह मतदान शुरू होने के आधा घंटे पहले मुझे 6:30 बजे वोट डालने की अनुमति दे दी. जिससे मैं आजाद भारत का पहला वोटर बन गया. है कि नहीं. ?’
चर्चा में कब आए
1 जुलाई 1917 को पैदा हुए नेगी, चुनाव आयोग द्वारा वोटिंग के एंबेसडर बनाए गए हैं. 2007 में जाकर उन्हें भारत के पहले मतदाता के तौर पर पहचान मिली, जब चुनाव आयोग भारत के पहले लोकतांत्रिक चुनाव में वोट डालने वाले मतदाताओं की पहचान कर रहा था.
जब आयोग ने रिकॉर्ड खंगाले तब नेगी का नाम सामने आया. उन्होंने 1952 के आम चुनावों में वोट डाला था और तब से लेकर आजतक उन्होंने कोई भी चुनाव नहीं छोड़ा है. चाहे वो लोकसभा हो विधानसभा हो या फिर पंचायत का चुनाव.
जब से उन्हें वोट देने के लिए ब्रांड एंबेसडर के तौर पर पहचान मिली है, तब से उन्होंने अपनी इस जिम्मेदारी को बड़ी उत्साह से निभाया है. 2010 में उनहें निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव अधिकारी नवीन चावला द्वारा सम्मानित किया जा चुका है.
2014 लोकसभा चुनाव शुरू होने से पहले नेगी को गूगल ने अपनी सीरिज ‘प्लेज टू वोट (वोट के लिए संकल्प)’ के लिए बतौर आईकन चुने गए थे. नेगी को लेकर बनी शार्ट फिल्म वायरल हो गई. जिसके बाद उन्होंने बाकी एंबेसडरों द्वारा बनाए गए कीर्तिमानों को पीछे छोड़ दिया, जिसमें सुपरस्टार अमिताभ बच्चन शामिल हैं.
मोदी को समय दें
पिछले 6 दशकों में अनगिनत चुनाव हुए हैं. इस समय नेगी जहां बैठें हैं तब से लेकर आजतक क्या उन्हें लगता है कि उन्होंने लोकतंत्र को मजबूत होते देखे है?
नेगी इस सवाल का जवाब देने से पहले थोड़ी देर रुकते हैं, फिर कहते हैं, ‘ कुछ तो फर्क जरूर पड़ा है, लेकिन जैसा होना था वैसा नहीं.’
भारत में भले विकास हुए हैं लेकिन देश में लगातार भूखमरी और गरीबी के कारण वे व्यथित हैं. जिसके लिए वो कांग्रेस पर दोष मढ़ते हैं. उन्हें लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अगर थोड़ा समय दिया जाए तो वे बदलाव ला सकते हैं.
वे कहते हैं, ‘कांग्रेस ने वर्षों तक देश पर राज किया है, और उसे भ्रष्टाचार, किसानों की समस्या, गरीबी और भूखमरी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. अगर कांग्रेस ने अपना काम ठीक से किया होता तो लोग उसे क्यों ठुकराते और भाजपा या अन्य किसी दल को क्यों मौका देते?’
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वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के विवाद को भी खारिज करते हैं, जिस पर विपक्ष अक्सर गड़बड़ी के आरोप लगाता है.
वे कहते हैं ‘ईवीएम अच्छा है, बटन दबाने से पहले आप उम्मीदवार की तस्वीर देख सकते हैं. एक बीप से आवाज आती है जो पुष्टि करता है कि वोट दब गया है. वह कहते हैं, बाकी सिस्टम और बैलट पेपर में समस्याएं थीं.’
न्यूट्रल रहना होगा
नेगी की लोकप्रियता ने कल्पा को पर्यटन स्थल बना दिया है. जहां लोग हिमाचल प्रदेश के इस दूर-दराज इलाके में इनसे मिलने और साथ में फोटो खींचवाने आते हैं.
उनके पोते दीपक नेगी बताते हैं, ‘ चुनाव के समय बहुत सारे पत्रकार, सरकारी अधिकारी और चुनाव से जुड़े लोग यहां आते हैं. मेरे दादा जी बहुत खुश होते हैं और अपने मन की बात रखने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते हैं.’ वे आगे कहते हैं, ‘मेरे दादा जी मोदी के तगड़े समर्थक हैं और उनके ‘मन की बात’ कार्यक्रम को सुनते हैं.’
हालांकि नेगी भले मोदी को पसंद करते हो लेकिन वो पक्षतापूर्ण राजनीति में अपना नाम घसीटने में विश्वास नहीं रखते. पिछले महीने एक भाजपा समर्थक ने नेगी को अपने नाम के आगे ‘चौकीदार’ लगा दिया. ये उसने मोदी के हालिया चुनावी अभियान को देखते हुए किया था. जिसका इस्तेमाल उसने सोशल मीडिया पर कर दिया जिससे नेगी नाखुश हो गए और वे इस मामले को लेकर किन्नौर के डिप्टी कमीश्नर गोपाल चंद के पास पहुंचे. जिसके बाद उस समर्थक ने पोस्ट डिलीट कर नेगी से माफी मांगी.
वे कहते हैं, कोई मेरे नाम का गलत इस्तेमाल कैसे कर सकता है, एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होने के नाते, मुझे तटस्थ रहना होगा. मैं चाहता हूं कि भारत एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र बने.
पहाड़ में छिपे ढलते सूरज को देखते हुए वे कहते हैं, ‘मुझे नहीं पता कि मैं अगले चुनाव तक जीवित रहूंगा या नहीं.’
अंत में वे भारत के मतदाताओं से गुजारिश करते हैं,’ गैर-जरूरी मुद्दे पर वोट न दें. लोकतंत्र बहुत कठिनाई सी मिलती है और ये उसे बचाने की जिम्मेदारी हमारी है.’
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