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Wednesday, 18 December, 2024
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हरियाणा में उभर रही नई जोड़ी- एक के पास है ‘चप्पल’ दूसरी के पास ‘झाड़ू’

भारत में चुनाव चिह्न की अलग पॉलिटिक्स चलती है. अगर हास्यास्पद चुनाव चिह्न मिल जाए तो मजाक बन सकता है. सोशल मीडिया के जमाने में तुरंत मीम्स बन जाएंगे.

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नई दिल्ली: हरियाणा की दुष्यंत चौटाला की नई नवेली जन नायक जनता पार्टी (जेजेपी) को 15 मार्च को ‘चप्पल’ का चुनाव चिन्ह मिला है. चुनाव चिन्ह मिलने की जानकारी दुष्यंत ने ट्विटर पर चप्पल की फोटो के साथ एक कविता शेयर करते हुए दी-

सबसे जरूरी, सबके काम की चप्पल

अयोध्या में थी जैसे श्रीराम की चप्पल

ताऊ देवीलाल के कदमों वाली

गरीब मजदूर कमेरे किसान की चप्पल

इसके बाद इस चुनाव चिह्न को लेकर हो गई चर्चा

इसके जवाब में एक यूजर ने लिखा- चप्पल नहीं खड़ाऊ है, निशान बिलकुल जिताऊ है. वहीं, जेजेपी की पेरेंट पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के समर्थक सोशल मीडिया पर कहने लगे हैं कि जो ये डिजर्व करते हैं, वो मिल गया.

इस कविता के तुरंत बाद इसे ताऊ देवीलाल की विरासत से जोड़कर देखा जा रहा है और सोशल मीडिया पर दुष्यंत चौटाला को बड़े-बुजुर्गों को कभी ना भूलने की सलाहें भी दी जा रही हैं. चौधरी देवीलाल किसानों के नेता थे और दुष्यंत चौटाला के समर्थक चप्पल को किसानों से जोड़कर ही बताने का प्रयास कर रहे हैं. लोग ये भी पूछ रहे हैं कि क्या अब किसी भाजपा, कांग्रेस या इनेलो के नेता द्वारा जेजेपी ज्वॉइन करने पर ये कहा जाएगा कि फलां नेता ने पहनी ‘चप्पल’?

आप के साथ हो रही गठबंधन की अटकलों पर आगाह करते हुए एक व्यक्ति ने लिखा कि ध्यान रहे झाड़ू मत मारना, वरना अपनी ही सीटें साफ भी हो सकती हैं. कुछ लोग इसे लेकर अति उत्साही भी हैं और कह रहे हैं कि ‘चप्पल’ ही 2019 में विकास और सकारात्मक भविष्य की ओर ले जाएगी. समर्थक चुनाव चिह्न को किसी ऐतिहासिक घटना की तरह पेश कर रहे हैं वहीं विपक्षी इसे किसी दुर्घटना की तरह देख रहे हैं. जबकि ये चुनाव चिन्ह अस्थाई है और लोकसभा चुनाव 2019 के लिए ही निर्गत हुआ है. गौरतलब है कि कुछ साल पहले तेलंगाना की एक पार्टी ने ‘चप्पल’ चुनाव चिन्ह लेने से इनकार कर दिया था.

भारतीय जनता में चुनाव चिह्न की अलग है पॉलिटिक्स

भारत में चुनाव चिह्न की अलग पॉलिटिक्स चलती है. अगर हास्यास्पद चुनाव चिह्न मिल जाए तो मजाक बन सकता है. सोशल मीडिया के जमाने में तुरंत मीम्स बन जाएंगे. टूथपेस्ट, लालटेन, टाई, टॉर्च, हाथी, घोड़ा, हरी मिर्च इत्यादि निशान मिलने के बाद अखबारों में नेताओं की फितरत पर तंज कसते हुए कार्टून छपते रहते हैं कि गिरगिट का चुनाव चिन्ह कब बनेगा? लेकिन सवाल ये है कि अगर ये चुनाव चिन्ह बन गया तो इसे कौन सी पार्टी अपना पार्टी सिंबल बनाएगी?

हालांकि, किसी-किसी पार्टी के लिए अजीबो गरीब चुनाव चिह्न वरदान भी साबित हो जाते हैं. 2013 में दिल्ली के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को झाड़ू का चिन्ह मिला था. आम आदमी पार्टी ने इसका पूरा इस्तेमाल अपनी इमेज चमकाने के लिए किया. झाड़ू भारतीय राजनीति में फैली गंदगी को साफ करने के प्रतीकात्मक लिहाज से आम आदमी पार्टी के लिए अच्छा चुनाव चिन्ह साबित हुआ. उसके बाद हुए 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी भारी बहुमत से जीती.

भारतीय जनता पार्टी के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने अपना चुनाव चिह्न कमल 1857 की क्रांति से लिया था. क्रांति के दौरान सूचना फैलाने के लिए रोटी और कमल के इस्तेमाल किया गया था. गौतलब है कि भाजपा की पैरेंट पार्टी श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जनसंघ का चुनाव चिह्न ‘दीपक’ हुआ करता था. भाजपा ने अपने चिह्न कमल को लेकर हमेशा गर्व व्यक्त किया है. 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद हुए पहले अधिवेशन में स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने दमदार भाषण देते हुए कहा था- ‘अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा’. ये भाषण आज तक याद किया जाता है.

वहीं कांग्रेस के ‘हाथ’ चुनाव चिह्न के पीछे रोचक किस्सा जुड़ा है.1952 के चुनावों के समय इंडियन नेशनल कांग्रेस का ‘हल के साथ दो बैल’ चुनाव चिन्ह मिला था. बाद में 1969 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस तोड़कर नई कांग्रेस बना ली और नया चुनाव चिह्न ‘गाय और बछड़ा’ ले लिया. फिर इस चुनाव चिन्ह को इंदिरा और संजय से जोड़कर देखा जाने लगा. इमरजेंसी के बाद पहले विपक्षी पार्टियों में, फिर जनता में इसका मजाक बन गया.

1978 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस पार्टी का पुनर्गठन कर कांग्रेस (आई) पार्टी बना ली. इंदिरा चुनावी कैंपेनिंग के लिए नरसिम्हा राव के साथ आंध्र प्रदेश में थीं. कांग्रेसी नेता बूटा सिंह ने उन्हें फोन कर बताया कि निर्वाचन विभाग ने उन्हें हाथी, साइकिल और हाथ में से एक चुनाव चिन्ह चुनने के लिए कहा है और अगली सुबह तक की डेडलाइन दी है. इंदिरा ने आर के राजारथनम से पूछा कि कौनसा चुनाव चिन्ह सही रहेगा तो राजारथनम ने हाथ सुझाया.

आगे चलकर ‘हाथी’ बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) का और ‘साइकिल’ समाजवादी पार्टी (सपा) का चुनाव चिन्ह बना. गौरतलब है कि हाथी चुनाव चिह्न से जोड़कर मायावती द्वारा बनवाई हाथी की मूर्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है. चुनाव में हाथी की इन मूर्तियों को ढंक भी दिया जाता है. वहीं हर चुनाव में साइकिल प्रतीक को लेकर सपा नेता अखिलेश यादव को साइकिल रैली भी करनी पड़ती है.

विदेशों की बात करें तो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की डेमोक्रेट पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘गधा’ है. अगर चप्पल और झाड़ू को लेकर भारतीय जनता इस कदर अति उत्साह में तुकबंदी कर देती है तो बराक ओबामा की पार्टी के लिए किस तरह की कविताएं रची जातीं, ये सोचने लायक है. इस लोकसभा चुनाव में ये देखना होगा कि चुनाव चिह्नों को लेकर क्या क्या नारे लगाये जाते हैं.

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