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Thursday, 21 November, 2024
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अमूल की धरती गुजरात का मुख्य चुनावी मुद्दा बना डेयरी फार्मिंग उद्योग

डेयरी किसान कम कीमतों और सरकारी द्वारा अवहेलना से नाखुश हैं, और इस चुनाव में कांग्रेस ने उनका गुस्सा सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ बदल दिया है.

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अहमदाबाद: गुजरात ने 50 साल पहले भारत में ‘सफेद क्रांति ’ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ लिमिटेड के डॉ. वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में, जो बाजार में अग्रणी अमूल ब्रांड के मालिक हैं ने भारत को ऑपरेशन फ्लड के माध्यम से दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक और दूध के उपभोक्ता में बदल दिया.

लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. भले ही अमूल भारत की सबसे बड़ी खाद्य कंपनी है, लेकिन देश के हर गली मोहल्ले में पांव जमाने के बाद अब वो अपने सैचुरेशन प्वांइट को छू चुकी है.

डेयरी फार्मिंग से जुड़े लोग कहते हैं कि उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. सूखे से लेकर सरकार द्वारा कम समर्थन मूल्य देने तक पर उन्हें जूझना पड़ रहा है. फरवरी में दूध के व्यापार से जुड़े लोगों ने सैकड़ों लीटर दूध सड़कों पर फेंक कर विरोध जताया था. उनके विरोध की वजह दूध का कम दाम मिलना और बाजार में पशुओं के चारे की अनुपलब्धता था.

इस लोकसभा चुनाव में ‘डेयरी’ महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है. यह न केवल किसानों के लिए है बल्कि उपभोक्ताओं के लिए भी है. चूंकि दूध रोजमर्रा के उपयोग में आने वाले समानों में से एक है. इसलिए उसके दाम में किसी तरह का उतार-चढ़ाव हर एक को प्रभावित करता है. और कांग्रेस इस मुद्दे को भाजपा शासित राज्यों में भुनाने के प्रयास में है.

किसानों के मुद्दे

देश में डेयरी सेक्टर का बाजार लगभग 6 लाख करोड़ का है और यह सलाना 10 परसेंट की रफ्तार से बढ़ रहा है. हालांकि, मार्केट में काफी उतार-चढ़ाव है. जहां संगठित लोगों के लिए केवल 20 प्रतिशत मार्केट शेयर है.

गुजरात के किसानों ने आरोप लगाया कि राज्य में नवंबर 2018 में सरकार द्वारा सूखा घोषित कर दिया गया है. इसके बाद भी वहां पशुओं को खिलाने के लिए चारा का कोई प्रबंध नहीं किया गया है.

मेहसाणा जिले के बेचारजी मोहल्ले की 45 वर्षीय राबड़ी माफाभाई हमीरबाई के लिए अपने परिवार और पशुओं को खिलाने के लिए कभी मशक्कत नहीं करना पड़ा. लेकिन जैसे-जैसे पारा बढ़ रहा है, उन्हें अपने पशुओं को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. यही नहीं डेयरी चलाने वाले बड़े शहर या फिर जीविकोपार्जन के लिए कोई अन्य पेशा ढ़ूढ़ने को मजबूर हैं.

वे दिप्रिंट से बातचीत में बताते हैं, ‘सरकार ने इस जिले में सूखे की घोषणा की थी और हमें आश्वासन दिया गया था कि हमें सब्सिडाइज्ड रेट पर पशु आहार उपलब्ध कराया जाएगा ताकि हम अपने मवेशियों को खिला सकें और अपने डेयरी कार्य को जारी रख सकें. लेकिन अबतक ऐसा कुछ नहीं हुआ है. जब हम इसके लिए पूछने जाते हैं तो वे हमें वापस अगले दिन आने के लिए कहते हैं. हमारे पास खुद को या मवेशियों को खिलाने के लिए अब पैसे नहीं बचे हैं.’

लेकिन यह अकेला उदाहरण नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह जिले मेहसाणा में, ऐसी कई कहानियां हैं जो सरकार की उदासीनता के बारे में बताती हैं. गुजरात में एक खानाबदोश समुदाय है मालढारियों की. जिनकी आजीविका का मुख्य स्रोत पशुपालन है, जो शहरों में रहने में असमर्थ हैं और पलायन कर रहे हैं.

डेयरी किसान वर्तमान स्थिति से नाखुश हैं. प्रोत्साहन के अभाव में कम मार्जिन और समय लेने वाले काम करना उन्हें कठोर रूप से प्रभावित करता रहा है.

पाटन जिले के 40 वर्षीय श्याम भाई यह बताते हुए कि मलधारियों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, कहते हैं, ‘पानी भी यहां 20-22 रुपया लिटर बिकता है. और इसी दाम पर हमें दूध भी मिल रहे हैं. वहीं कर्नाटक और राजस्थान में सरकार पर लिटर दूध पर सब्सिडी उपलब्ध कराती है. लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं है.’

‘बहुत सारे लोगों को अपना गांव छोड़ कर दूसरे शहरों में किसी अन्य रोजगार के लिए पलायन करना पड़ रहा है. ठाकुर, दलित, मलधारी, हर किसी को अपना गांव छोड़ना पड़ा है.’

44 साल के डेयरी किसान करन जोजाबाई मलधारी ने कहा, ‘सरकार ने हमें 2 रुपये किलो चारा देने की घोषणा की थी. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. हम और हमारे मवेशी भूख से तड़प रहे हैं. हमें एक जगह से दूसरी जगह पलायन करना पड़ रहा है. सरकार हमारे तरफ जरा सा भी ध्यान नहीं दे रही है. ’

चुनावी मुद्दा

इस लोकसभा चुनाव में यहां डेयरी प्रमुख मुद्दा बन गया है. जहां कांग्रेस ने सत्ता में आने पर इन मुद्दों का हल ढूढ़ने का वादा किया है. वहीं भाजपा इन मुद्दों को भुलाकर आगे नहीं बढ़ सकती है. क्योंकि उसे पता है कि राज्य की 26 लोकसभा सीटों में से 15 सीटे ग्रामीण बाहुल्य है. जोकि चुनाव पर निर्णायक असर डाल सकती हैं.

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में एक अलग किसान बजट का वादा किया है, और किसानों को अधिक आय प्राप्त करने में मदद करने के लिए दूध पर सब्सिडी देने जैसी बात की है. जो उसे लगता है कि जिसे गुजरात में भी पेश किया जाना चाहिए. पार्टी के राज्य प्रभारी, राजीव सातव, डेयरियों और दुग्ध सहकारी समितियों के सदस्यों के साथ बैठकें कर रहे हैं, और भाजपा सरकार को ‘गड़बड़ी’ के लिए दोषी ठहरा रहे हैं.

कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोषी ने कहा, ‘गुजरात में किसान सुखे से प्रभावित हैं और वे अपनी आजीविका के लिए डेयरी फार्मिंग और मवेशियों को रखने पर आमदा है. लेकिन उन्हें अपने पशुओं को खिलाने के लिए चारा नहीं है. क्योंकि चारे के लिए दी गई जमीन को भाजपा सरकार ने उद्योगपतियों को दे दी है. लगभग 1900 गांवों में लोगों की जमीन अबतक छिनी जा चुकी है.’

‘जिला दूध संघ भी ज्यादातर भाजपा द्वारा संचालित हैं, और वे सुनिश्चित करते हैं कि कीमतों में वृद्धि नहीं की जाए. राज्य सरकार गाय के नाम पर वोट मांग रही है, लेकिन गौशालाओं की मदद नहीं की जा रही है.’

इस बीच, भाजपा का दावा है कि राज्य सरकार ने पहले ही इस मुद्दे पर ध्यान देने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिसमें मवेशियों के चारे पर सब्सिडी प्रदान करना और सभी वैध किसानों को फसल बीमा राशि देना सुनिश्चित किया गया है. गुजरात भाजपा के प्रवक्ता भरत पंड्या ने कहा, ‘हम सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सब्सिडी प्रदान कर रहे हैं ताकि मवेशियों को चारा बहुत कम कीमत पर उपलब्ध हो. इसके अलावा हम पहले से ही उन सभी गरीब परिवारों को सब्सिडी और ऋण प्रदान कर रहे हैं जो मवेशी खरीदना चाहते हैं. हमारी सरकार लोगों की आवश्यकता से अवगत है और आवश्यक सभी कदम उठा रही है.’

अमूल का जवाब

इसी बीच अमूल ने किसानों के दूध की कीमत को न बढ़ाने के दावे का खंडन किया है.
अमूल का कहना है, ‘अमूल प्रबंधन के लिए जरूरत के आधार पर, साल में किसी भी समय दूध के दाम को संशोधित करना कोई मुद्दा नहीं है. इस वर्ष अब तक ऐसी कोई आवश्यकता उत्पन्न नहीं हुई है. हमें याद है कि 2014 में चुनाव के समय में मूल्य को संशोधन किया गया था.’

(इस खबर को अंगेर्जी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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