नगांव (असम): भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) असम में एक जटिल और पेचीदा बोझ के साथ लोकसभा का चुनाव लड़ रही है. विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक को पारित कराने के पार्टी के प्रयास ने असम के मूल निवासियों को ऐसे समय नाराज़ कर दिया, जब वह पूर्वोत्तर के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य में 2014 के चुनावों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है.
लोकसभा की 14 सीटों वाले राज्य असम में, जिनमें से सात भाजपा के पास हैं, पार्टी की संभावनाएं काफी कुछ इस बात पर निर्भर करती हैं कि यह वोटरों को मनाने और अपनी उपलब्धियों को गिनाने में कितना कामयाब रहती है. यह इस बात पर भी निर्भर करेंगी कि भाजपा राज्य और केंद्र दोनों जगह सत्तारूढ़ होने के कारण बनी दोहरी एंटी-इनकंबेंसी के माहौल से कैसे निबटती है.
असल सवाल ये है कि क्या भाजपा बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के गैरमुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने के प्रावधान वाले विवादास्पद विधेयक पर मूल निवासियों की नाराज़गी के बावजूद इस क्षेत्र पर अपनी मज़बूत पकड़ बनाए रख पाती है कि नहीं.
ऐसा लगता है कि ब्रांड मोदी, भाजपा की कल्याणकारी पहलकदमियां और एक विकल्प के रूप में कांग्रेस के नहीं उभरने जैसे कारकों के आधार पर भाजपा ने शायद पार्टी का गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में नागरिकता विधेयक संबंधी असंतोष पर संभवत: एक हद तक काबू पा लिया है. नगांव में, जहां कि भाजपा लोकसभा चुनाव में 1999 से कभी नहीं हारी है, यह बात साफ झलकती है.
असम में 11 अप्रैल से तीन चरणों में चुनाव होंगे.
विधेयक पर ‘नाराज़’ पर भाजपा ने खूब काम किया
नगांव के मतदाताओं के लिए विरोधाभास की स्थिति है. एक ओर तो वे नागरिकता विधेयक लाए जाने को लेकर वे भाजपा से ‘नाराज़’ हैं, क्योंकि इससे उन्हें अपना अधिकार छीन कर ‘बाहरी’ लोगों को दिए जाने का खतरा लगता है. वहीं, वे भाजपा द्वारा विकास के बहुत काम किए जाने की बात भी करते हैं कि जिसके आधार पर बाकी बातों को माफ किया जा सकता है.
राहा गांव के पणिधर बोरा कहते हैं, ‘नागरिकता विधेयक ने हमें नाराज़ किया और अब भी कर रहा है, पर भाजपा ने हमलोगों के लिए खूब काम किया है. सड़क निर्माण से लेकर गांवों में गैस कनेक्शन तक – बहुत कुछ हुआ है, वो काम जो कि दशकों में सत्ता रहते हुए कांग्रेस नहीं कर पाई थी.’
‘साथ ही, मेरा मानना है कि भाजपा यदि नए सिरे से विधेयक लाती है, तो भी असम उसे विधेयक पारित कराने नहीं देगा. क्योंकि जो भी हो, भाजपा है तो एक पार्टी मात्र ही. इसलिए उसे दोबारा चुनने से हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा. मोदी को कम से कम एक और बार प्रधानमंत्री होना चाहिए.’
असम के स्थानीय निवासी विधेयक, जो राज्यसभा में पारित नहीं कराए जा सकने के कारण आखिरकार रद्द हो गया, के बिल्कुल खिलाफ रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि किसी भी अवैध शरणार्थी को नागरिकता दिया जाना उनके अधिकारों पर चोट और स्थानीय सीमित संसाधनों पर बोझ के समान होगा. पर, विधेयक लाने वाली भाजपा को समर्थन देने के पीछे मतदाता गरीबों के कल्याण के लिए मोदी सरकार के किए कार्यों की दुहाई देते हैं.
उत्तर पेटबोहा गांव की बीना बोरा कहती हैं, ‘विधेयक अब दोबारा आने की संभावना नहीं है. पर भाजपा के अच्छे काम मौजूद हैं. उन्होंने हमें गैस कनेक्शन, घर और सड़क दिए, साथ ही पेंशन का भुगतान सुनिश्चित कराया. मेरी सास कांग्रेस के राज में पेंशन का इंतजार करते हुए नब्बे की उम्र पार कर चल बसीं, पर अब हमें आसानी से पेंशन मिल जा रहा है.’
उनकी सहेली जुनुमा दास कहती हैं, ‘उन्होंने (भाजपा ने) रोजगार भी दिए हैं. अपने गांव में लोगों को काम करते देखना अच्छा लगता है.’
ब्रांड मोदी
प्रधानमंत्री मोदी भले ही स्थानीय भाषा नहीं बोलते हों पर लगता है वे मतदाताओं से जुड़ने में कामयाब रहे हैं. कई लोगों ने कहा कि वे मोदी, उनके काम और पाकिस्तान को ‘मुंहतोड़ जवाब’ देने की उनकी क्षमता के कारण भाजपा का समर्थन करते हैं.
राहा गांव के ही पोलुराम दास कहते हैं, ‘मोदी का अच्छा प्रदर्शन रहेगा. उन्होंने काफी काम किए हैं. कांग्रेस ने 70 वर्षों में कुछ नहीं किया, और उनके राज में बिचौलिए भी होते थे जिन्होंने हालत और खराब कर रखी थी. भाजपा ने गरीबों और वंचितों के लिए बहुत कुछ किया है.’
दास का मानना है कि प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान का जिस तरह मुकाबला किया है, वैसा कांग्रेस नहीं कर पाई थी. वह कहते हैं, ‘हमें अपने देश की रक्षा करनी है. पुलवामा में हमारे सैनिक शहीद हुए थे. यदि कांग्रेस सत्ता में होती तो पाकिस्तान को जवाब नहीं देती. मोदी सरकार ने उनके घर में घुसकर उन्हें मारा, उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया.’
दास ने आगे कहा, ‘उन्हें (मोदी को) दोबारा देश का नेतृत्व करना चाहिए. यदि एक और कार्यकाल दिया जाए तो वो बहुत कुछ ठीक कर देंगे.’
नगांव शहर के दीपक साहा भी ‘सबके लिए किए गए मोदी के कार्यों’, और ‘पाकिस्तान जैसे दुश्मनों को सख़्त और ज़रूरी जवाब’ दिए जाने की बात करते है. साहा के अनुसार नागरिकता विधेयक एक गलती थी जिसे पार्टी अब नहीं दोहराएगी.
यहां तक कि कुछ मतदाताओं के लिए चार बार के सांसद केंद्रीय मंत्री राजेन गोहेन का टिकट कटने से भी परेशानी नहीं है. लगता है कि मौजूदा सांसदों की जगह नए चेहरों को उतार कर भी भाजपा ने काफी हद तक एंटी-इनकंबेंसी के प्रभाव को कम कर लिया है.
पोलुराम दास ने कहा, ‘उम्मीदवार की बात नहीं है. बात पार्टी की और मोदी की है. साथ ही, नए चेहरे का मतलब ये है कि पुराने का बोझ उतर गया.’ दास की बात पर उनके साथ कैरम खेल रहे लोग भी सहमति में सिर हिलाते हैं.
राजेन गोहेन की जगह नगांव से विधायक रूपक शर्मा को चुनाव में उतारा गया है.
‘कांग्रेस ने क्या किया?’
असम कभी भाजपा का गढ़ नहीं रहा है. वास्तव में, पार्टी पहली बार 2016 में राज्य में सत्ता में आई है. पर उसके बाद से उसने राज्य में अपनी पकड़ मज़बूत कर ली है, और बहुत से मतदाता कांग्रेस को एक कम आकर्षक विकल्प के रूप में देखते हैं.
वास्तव में, बहुत से लोग भाजपा को लेकर तो उतना उत्साह नहीं दिखाते हैं, पर उसे कांग्रेस के मुकाबले एक बेहतर विकल्प मानते हैं.
हातिपारा गांव के कमल डेका कहते हैं, ‘देखिए, मुझे नहीं पता भाजपा और मोदी ने असल में कितना काम किया है. पर कम-से-कम मोदी सही बातें करते हैं. कांग्रेस और राहुल गांधी ने मात्र वंशवाद को ही कायम रखने का काम किया है. हम कैसे उन्हें वोट दे सकते हैं, खासकर जब ये कोई स्थानीय चुनाव नहीं है और बात प्रधानमंत्री चुनने की है.’
सुमन सैकिया ने कहा, ‘ज़ाहिर है, हम नागरिकता विधेयक को लेकर गुस्से में हैं. वे बांग्लादेशियों को लाना चाहते हैं, जिसका कि हमने हमेशा विरोध किया है. पर हमारे सामने विकल्प क्या है? केंद्र में सिर्फ भाजपा ही स्थायित्व दे सकती है.’
इसलिए देखा जाए तो, अन्य बातों के अलावा कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर खुद को विश्वसनीय विकल्प के रूप में पेश नहीं कर पाना, भाजपा के पक्ष में जाता दिख रहा है.
अल्पसंख्यकों के वोट
पर, भाजपा के लिए हर सीट पर मतदाताओं के गणित की अहम भूमिका होगी – खासकर अल्पसंख्यकों के वोट के संदर्भ में. ये उन सीटों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां अल्पसंख्यक वोटों के दो मुख्य दावेदारों में से एक ही – कांग्रेस या बदरुद्दीन अजमल का ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट – मैदान में है. सिर्फ तीन सीटों पर ही दोनों के उम्मीदवार खड़े हुए हैं – धुबरी, करीमगंज और बारपेटा.
नगांव लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं में 30 प्रतिशत मुसलमान हैं.
दिघाल्दारी गांव के मोहम्मद शाहज़ान कहते हैं, ‘हम राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. गांधी परिवार ने इस देश के लिए काफी कुछ किया है. उन्होंने हमें सब कुछ दिया है. भाजपा तो बस ऊपर-ऊपर काम कर रही है और उनके (कांग्रेस के) सारे कार्यों का श्रेय ले रही है.’
उन्होंने कहा, ‘हम नागरिकता विधेयक के खिलाफ हैं और इसका विरोध करते रहेंगे. यह देश के लिए बहुत ही बुरा है.’
राज्य में भाजपा की संभावनाएं, उनके द्वारा किए गए कार्यों के अलावा, इन बातों पर निर्भर करेंगी— नागरिकता विधेयक के कारण हुआ ध्रुवीकरण, जातीय बनाम धार्मिक विभाजन का होने वाला असर तथा कैसे विभिन्न दल इसका फायदा उठाते हैं.
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