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गुरूवार, 24 अप्रैल, 2025
होममत-विमतईवीएम और बालाकोट के बाद अब कांग्रेस को भाजपा की जीत के लिए नया बहाना- फेसबुक मिल गया है

ईवीएम और बालाकोट के बाद अब कांग्रेस को भाजपा की जीत के लिए नया बहाना- फेसबुक मिल गया है

मोदी की जीत सिर्फ मोदी की वजह से होती है. उनकी चुनावी जीत को स्वीकार करने के लिए ज़रूरी नहीं कि आप उनकी ज़हरीली और अहंकारी राजनीति में यकीन करें.

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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार पर फेसबुक से उसकी कथित मिलीभगत को लेकर कांग्रेस के लगातार जारी हमले से अच्छी सुर्खियां भले ही बनती हों, लेकिन इससे ये बात भी जाहिर होती है कि इस दिशाहीन पार्टी ने कैसे एक बार फिर गलत निशाना चुना है.

समस्या को पहचानने में असमर्थता और भाजपा को दोषी ठहराने के लिए सतही बहाने ढूंढ़ने में समय खोटा करने की इस प्रवृत्ति के कारण ही कांग्रेस का बुरा हाल हो रखा है. कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की सोमवार की बैठक में हुआ नाटक भी इसी बात का सबूत है.

कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उदय और उनकी चुनावी जीतों के लिए गलत बहाने ढूंढ़ने की बुरी आदत लग गई है. इन बहानों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को हैक किए जाने से लेकर भाजपा की मोटी जेब, और बालाकोट हमले के खास समय से लेकर फर्जी प्रोपेगेंडा तंत्र जैसी तमाम बातें शामिल रही हैं. इसी कड़ी में अब कथित रूप से राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं द्वारा सोनिया गांधी को लिखे पत्र को ‘बेमौका’ करार देते हुए इशारा किया है कि इससे ‘भाजपा को मदद’ मिल सकती है. इस लंबी, और अक्सर अदूरदर्शी सूची में जुड़ने वला एक और नाम है फेसबुक.


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वॉल स्ट्रीट जर्नल में जब भाजपा नेताओं के नफरत फैलाने वाले संदेशों पर लगाम लगाने में फेसबुक की कथित पक्षपाती भूमिका पर रिपोर्ट प्रकाशित हुई तो कांग्रेस जैसे अचानक नींद से जग गई. पार्टी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म के भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा नियंत्रित होने का आरोप लगाया, जो राहुल गांधी के अनुसार उसका इस्तेमाल भारतीय मतदाताओं को ‘प्रभावित’ करने में करते हैं.

लेकिन सच्चाई ये है कि मोदी की जीत केवल मोदी की वजह से होती है. ज़रूरी नहीं कि आप मोदी की राजनीति, उनके आत्ममोह और अहंकार की प्रवृत्ति, हिंदुत्ववादी घृणा के बोलों या उनकी पार्टी के ज़हरीले बहुसंख्यकवादी एजेंडे में यकीन करें. हो सकता है कि ये बातें आपको विचलित भी करती हों लेकिन इस बात से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की लोकप्रियता एक तरह से अभूतपूर्व है. वह इसलिए जीतते हैं कि लोग उन्हें जिताना चाहते हैं, न कि ईवीएम या सोशल मीडिया प्लेटफार्म के उनके पक्ष में काम करने के कारण. भाजपा का प्रभाव चुनावी गणित और ज़मीनी रणनीति सही रखने के कारण काफी बढ़ जाता है.

अभी तक कोई भी उन्हें हराने का फार्मूला नहीं ढूंढ़ पाया है. उनकी जीत को लेकर गुमराह करने वाली वजहें जुटाने से कांग्रेस का भला नहीं होने वाला है.

बहाने ही बहाने

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि फेसबुक पर लगे आरोप, यदि सही पाए गए तो, बहुत भयावह हैं. सोशल मीडिया प्लेटफार्म से मुक्त अभिव्यक्ति का तटस्थ मंच होने की अपेक्षा की जाती है. निश्चय ही इन दिनों माहौल काफी विषाक्त है. इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि एक सभ्य समाज में और किसी भी मंच पर– सोशल मीडिया या कहीं और– नफरत के बोलों को सहन नहीं किया जाना चाहिए.

लेकिन समस्या ये है कि वॉल स्ट्रीट जर्नल के ताजा ‘रहस्योद्घाटन’ में कांग्रेस को अपनी चुनावी हार तथा नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी के उदय का एक और बहाना मिल जाएगा. पार्टी अपने अंदर नहीं झांकेगी, न ही इस बात को मानेगी कि उसके पतन का कारण उसका खुद का आंतरिक संकट है. अपनी राजनीति को नए सिरे से परिभाषित करने और जनता से जुड़ने और खुद को विश्वसनीय दिखाने में विफलता उसकी असल दुश्मन है, न कि ईवीएम और फेसबुक.

वोटर के राजनीतिक फैसले को मात्र सोशल मीडिया संदेशों से जोड़ देना उनकी बुद्धिमता का अपमान करने के समान है. संभव है भाजपा के ज़हर उगलने वाले नेताओं को खुली छूट देकर फेसबुक ने पार्टी का हित साधा हो लेकिन कांग्रेस एक बार फिर प्रधानमंत्री की जीत की वजहों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रही है, और इस कारण उन्हें हरा पाना उसकी संभावनाओं के दायरे से बाहर हो जाता है.

अभी तक के पैटर्न पर गौर करें. कांग्रेस ने ईवीएम में छेड़छाड़ का मुद्दा उठाना खुद भाजपा से ही सीखा था. उसके बाद जिस चुनाव में भी वह हारी और भाजपा जीती, कांग्रेस ने ईवीएम हैक किए जाने को अपनी हार के लिए जिम्मेदार बताया. हालांकि जब भी उसे चुनावी जीत मिली, उसने ईवीएम के संदर्भ में चुप्पी ओढ़ ली.

इसका अनिवार्यत: यही मतलब हुआ कि आत्मावलोकन और आत्मचिंतन, और उसके सहारे दिशा परिवर्तन की बजाय कांग्रेस ने खुद को समझाने का एक आसान बहाना ढूंढ़ लिया कि वह इसलिए नहीं हारी कि वह जीत के काबिल नहीं थी, बल्कि ऐसा उसके प्रतिद्वंद्वी की ‘धोखाधड़ी’ के कारण हुआ.

अभी हाल का, 2019 के लोकसभा चुनावों का ही उदाहरण लेते हैं. कांग्रेस इस बात पर यकीन करना चाहती थी– सार्वजनिक रूप से नहीं तो कम से कम अंदरखाने की चर्चा में– कि मोदी की भारी जीत हिंदुत्ववादी नफरत के संदेशों के साथ-साथ बालाकोट हवाई हमले की टाइमिंग के कारण हुई. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सीमा पार हमले नहीं होने पर कांग्रेस जीत जाती. बालाकोट हमले ने बस प्रोपेलर का काम किया था, वो मुख्य कारण नहीं था.

एक सामान्य दावा ये भी है कि मोदी की चिकनी-चुपड़ी बातों और भाजपा के झूठे प्रचार के कारण कांग्रेस को नुकसान हो रहा है. लेकिन अति राष्ट्रवाद, झूठ और हिंदुत्ववादी बयानों के सहारे आप कुछ दूर ही जा सकते हैं. ये मानना मूर्खता होगी कि सिर्फ इन तिकड़मों के सहारे मोदी-शाह एक के बाद एक चुनाव जीते जाते हैं, और त्रिपुरा के वामपंथी गढ़ जैसे अनपेक्षित इलाकों में भी अपना परचम फहराते हैं.


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सच का सामना

मोदी की चुनावी जीतों के लिए इस बात पर विचार करने की बजाय कि अच्छे या बुरे किन कारणों से वोटर उन्हें पसंद करते हैं, तमाम सुविधाजनक कारणों पर ज़ोर देकर कांग्रेस वापसी करने की अपनी संभावनाओं को लगातार चौपट कर रही है.

लेकिन सबसे अहम बात है कि कांग्रेस का ये मानने से इंकार करना कि नरेंद्र मोदी सचमुच में एक लोकप्रिय नेता हैं जिन्हें बड़े स्तर पर जनता का विश्वास प्राप्त है. उनकी जीतों का कारण है उनके द्वारा तैयार नशीला कॉकटेल जिसमें शामिल हैं – उनके खुद के भक्तों की फौज, उनकी कल्याणकारी योजनाएं, ग्रामीण समर्थक नीतियां, चुनावों के दौरान चतुराई भरी जमीनी रणनीति, भाजपा/आरएसएस के कार्यकर्ताओं के नेटवर्क का अधिकतम उपयोग और, बेशक, इन सबके ऊपर राष्ट्रवाद और धर्म का ज़बर्दस्त तड़का.

कांग्रेस मोदी पर, उनकी लोकप्रियता पर सवाल उठाते हुए और इसके लिए बाहरी कारकों को जिम्मेदार ठहराकर, जितना अधिक हमले करती है उतना ही मतदाता उसे गलत साबित करने लिए प्रेरित होते हैं, और उसी अनुपात में प्रधानमंत्री अधिक शक्तिशाली बनते जाते हैं.

कांग्रेस को अपनी गहरी जड़ता से बाहर आना होगा, खासकर ऐसे समय जब पार्टी बिखरती दिख रही है, और कड़वी सच्चाई का सामना करना होगा. वह अपनी गलत राजनीति के चलते नाकाम रही है और मोदी ने सही राजनीति करके सफलता पाई है. ईवीएम या फेसबुक पर ठीकरा फोड़ने से ये स्थिति बदल नहीं जाएगी.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(व्यक्त विचार निजी हैं.)

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