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बंगाल की दुर्गा पूजा में पालतू जानवरों के लिए खुले पंडाल, परिवार और आस्था में कैसे हो रहा बदलाव

पूजा क्लब के एक सदस्य ने कहा, 'अगर दुर्गा की पूजा लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक, गणेश के साथ की जा सकती है, तो गली के कुत्ते को उसके बच्चों के साथ शांति से रहने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती?'

महालया में कोलकाता पुलिस का डॉग स्क्वायड मुख्य अतिथि था, पहला दिन | कोलकाता पुलिस

नई दिल्ली: दिसंबर 2021 में यूनेस्को का अमूर्त विरासत टैग पाने के बाद, पहली बार कोलकाता के दुर्गा पूजा उत्सव में कम से कम दो पंडालों में एक और सामाजिक परिवर्तन देखने को मिलेगा. पालतू जानवरों के अनुकूल पंडाल बनाकर, आस्था और परिवार दोनों की परिभाषा का विस्तार करने की तैयारी की जा रही है.

पालतू जानवरों के लिए पंडाल खोलने से शायद ही किसी को ज्यादा हैरानी हो,  क्योंकि आधुनिक समय में पालतू जानवर भी परिवार का हिस्सा बन चुके हैं.

बेहला क्लब दुर्गा पूजा पंडाल को पेट-फ्रेंडली बनाया गया है. यहां लोग अपने कुत्तों या बिल्लियों के साथ देवी की एक झलक पाने के लिए आ सकते हैं. लेकिन  कोलकाता के श्यामबाजार क्षेत्र में बिधान सारणी एटलस क्लब ने एक कदम आगे जाते हुए आवारा और भारतीय नस्ल के कुत्तों को अपनी थीम बनाया है.

रविवार को कोलकाता पुलिस के डॉग स्क्वायड के चार कैनाइन सदस्य बिधान सारणी पूजा के उद्घाटन के अवसर पर मुख्य अतिथि थे.

विधान सारणी एटलस क्लब के उद्घाटन के अवसर पर पालतू कुत्ते | कोलकाता पुलिस

कलाकार सयाक राज के दिमाग में बिधान सारणी पूजा के लिए इस तरह का विचार मई में एक समाचार रिपोर्ट से आया था. दरअसल इस रिपोर्ट में, हुस्की नस्ल के एक कुत्ते के साथ मूर्ति के पैर छूने वाली एक वीडियो के वायरल होने के बाद बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने नोएडा के रहने वाले उस व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी और कहा था कि उसने कथित तौर पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की कोशिश की है. मंदिर परिसर में बना यह वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो गया था.

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राज कहते हैं, ‘केदारनाथ भगवान शिव का एक मंदिर है, जिन्हें पशुपतिनाथ या जानवरों के भगवान के रूप में भी जाना जाता है. फिर भी मंदिर में एक कुत्ते के आने पर ऐसा विवाद खड़ा हो गया.’

पंडाल खासतौर पर प्रतिपदा और तृतीया के बीच तीन दिनों के लिए पालतू जानवरों के लिए खोला गया है. प्रतिपदा यानी महालय के बाद का दिन, जो देबिपक्ष या नवरात्रि काल की शुरुआत का प्रतीक है और तृतीया यानी नवरात्री का तीसरा दिन. आयोजकों का कहना है कि बाकी दिनों के लिए उनके पास एक हेल्पलाइन नंबर होगा, जिस पर पालतू जानवर रखने वाले लोग उनसे संपर्क कर सकते हैं और उन्हें पंडाल लाने की अपनी इच्छा के बारे में बता सकते हैं. पालतू जानवरों के साथ वाले लोगों को स्पेशल एंट्री गेट से अंदर लाया जाएगा.

सोनिया चड्ढा के पास भी एक पालतु कुत्ता है. वह कहती हैं, ‘यह खुशखबरी है. अपने शिहत्जू पेपर के साथ हम कई बार गुरुद्वारे गए हैं, लेकिन कभी मंदिर नहीं गए. क्योंकि मुझे भरोसा नहीं था कि उसे अंदर जाने दिया जाएगा या नहीं. पंडाल उसके लिए एक नया अनुभव होगा और वह दर्शन भी कर पाएगा.’

पंडाल में आने की शौकीन चड्ढा ने बताया कि उन्होंने साढ़े छह साल पहले पेपर को अपने परिवार में शामिल किया था. उसके बाद से परिवार को पंडालों में जाते हुए या तो किसी को उसके साथ कार में इंतजार करना पड़ता था या फिर उसे अटेंडेंट के साथ घर पर छोड़ना पड़ता.

लेकिन सभी उनकी तरह अपने पालतू जानवरों को पंडालों में ले जाने के लिए तैयार नहीं हैं.

कोलकाता की पेट ऑनर सुवर्ण्य दत्ता कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि जानवरों को पंडालों में ले जाना एक अच्छा विचार है. मैं अपने केनिन किड्स के साथ ऐसा कभी नहीं करूंगा.’

दत्ता के पास तीन पालतु कुत्तें हैं- पोर्टिया, मार्टिनी और कॉफी. वह अपने ‘बच्चों’ को पंडाल में न ले जाने की दो वजह बताते हैं.

उन्होंने कहा, ‘कोलकाता पूजा पंडालों में भीड़, शोर और काफी अराजकता होती हैं’ वे आगे बताते हैं, ‘यह एक पालतू जानवर के लिए यह सही आउटिंग नहीं है. इसके अलावा  भारत में कई लोग ऐसे भी हैं जो अभी भी जानवरों के आसपास सहज नहीं रहते. अगर वे पंडाल में मेरे कुत्तों को देखकर डर जाएं या उत्तेजित हो जाएं और उन्हें दुतकारने लगें या फिर कुछ फेंकने लगें तो… मैं उन्हें इस तरह के माहौल में लाना नहीं चाहता हूं.’

उनकी समझ में एक पेट-फ्रेंडली सोसायटी को बढ़ावा देने का बेहतर तरीका यह होगा कि पूजा आयोजक पालतू जानवरों, विशेष रूप से भारतीय नस्लों और उनके गोद लेने की जरूरतों के बारे में जागरूकता पैदा करें.


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एक कुत्ते की दलील

पशु हमेशा से दुर्गा पूजा पंडालों का हिस्सा रहे हैं. लेकिन सिर्फ उनके मिट्टी के अवतार के रूप में.

देवीयों, दुर्गा और उनके परिवार के साथ उनके पशु-वाहन यानी सवारी-शेर, चूहा, मोर, उल्लू और बत्तख भी होते हैं. एक मरी हुई भैंस के रूप में असुर का बदला हुआ अहंकार, देवी के चरणों में पड़ा होता है. बिधान सारणी एटलस क्लब और बेहला क्लब, यह कोशिश कर रहे हैं कि पंडाल में आने वाले मेहमानों को अपने पालतु पशुओं को घर पर अकेले न छोड़ना पड़े.

निर्माणाधीन बेहाला क्लब दुर्गा पूजा में युवा पालतू माता-पिता | विशेष व्यवस्था

राज बताते हैं, इस साल बिधान सारणी एटलस क्लब पूजा की थीम ‘अनंत आश्रय’ या शाश्वत आश्रय है. राज ने ही इसकी योजना तैयार की है.

समिति के सदस्य सुरोजीत मित्रा कहते हैं, ‘हर साल, हम उत्सव की थीम के लिए कलाकारों से विचार मांगते हैं और जो हमें पसंद आता है उसे चुन लेते हैं. इस बार यह सबसे सटीक विचार लगा.’

बिधान सारणी पंडाल के लिए राज के आइडिया में देवी के सामने बैठे कुत्ते की स्थापना शामिल है. राज निगम के कर्मचारियों द्वारा उन्हें उठाकर ले जाने के बारे में बात करते हुए कहते हैं,  ‘एक वॉयसओवर कुत्ते की दलील को देवता के सामने नैरेट करता है – अगर दुर्गा की पूजा उनके चार बच्चों, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक और गणेश के साथ की जा सकती है, तो एक स्ट्रीट डॉग को अपने बच्चों के साथ शांति से रहने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती?’

राज घरेलू माहौल बनाना चाहते हैं, उसे ध्यान में रखते हुए मूर्ति को देवता के प्रचलित या पारंपरिक हथियारों से नहीं सजाया गया है.

पंडाल की दीवारों पर डूडल भी थीम को चित्रित करते नजर आते हैं.

राज कहते हैं, ‘देश में ज्यादातर लोग अभी भी पालतू जानवरों के लिए विदेशी नस्लों को पसंद करते हैं. हमारा विचार भारतीय नस्लों को अपनाने को बढ़ावा देना है.’

थीम और पंडालों में पालतू जानवरों के स्वागत के अलावा, आयोजक पशु कल्याण संगठनों के साथ बातचीत कर रहे हैं ताकि इमरजेंसी में कार्यक्रम स्थल पर पशु चिकित्सकों की उपस्थिति सुनिश्चित हो सके. राज कहते हैं कि अलग से भोजन की व्यवस्था और कूड़ेदान क्षेत्र भी बनाए गए हैं.

28 सितंबर को उद्घाटन होने वाले बेहला क्लब पंडाल में चार पैरों वाले इन मेहमानों के लिए सुविधाएं लगभग समान हैं.

सायंतन भट्टाचार्जी बताते हैं, ‘पालतू जानवरों के लिए पंडाल को खोलने का हमारा कारण यह सुनिश्चित करना था कि पूरा परिवार उत्सव का हिस्सा बन सकें, जिसमें उनका पालतू जानवर भी शामिल हो.’ वह आगे कहते हैं, ‘आमतौर पर पालतू जानवरों वाले परिवारों में, बाहर जाने पर कम से कम एक व्यक्ति को जानवरों के साथ वहीं रुकना पड़ता है. कई परिवार में तो लोग अलग-अलग समय पर छुट्टियों पर जाते हैं ताकि कोई न कोई हमेशा पालतू जानवर के साथ बना रहे. जब दुर्गा पूजा पंडाल आने की बात आती है तो ऐसा ही होता है. हम इसे बदलना चाहते थे.’

भट्टाचार्जी के अनुसार, चूंकि उनके वेन्यू में काफी खुली जगह हैं. यहां तक कि जानवरों के आस-पास सहज महसूस न करने वालों को भी कोई समस्या नहीं होनी होगी.

उन्होंने कहा, ‘हमारे पास पालतू जानवरों और उनके साथ वाले लोगों के लिए कोई स्पेशल एंट्री गेट नहीं होगा. लेकिन पंडाल में कई एक्जिट-एंट्री प्वाईंट हैं. किसी भी समय अगर कोई जानवरों के साथ सहज नहीं है या उससे घबरा रहा है तो वो एक अलग गेट से प्रवेश कर सकते हैं और जानवरों से दूरी बनाए रखते हुए मूर्ति के दर्शन कर सकते हैं’

समय का आईना

सदियों से कोलकाता के दुर्गा पूजा समारोहों समय का आईना रहे हैं.

अगर कोलकाता के सोवाबाजार इलाके में जमींदार राजा नबकृष्ण देब की पारिवारिक पूजा में रॉबर्ट क्लाइव की उपस्थिति ने 18वीं सदी के कुलीन बंगालियों द्वारा अंग्रेजों के साथ खुद को जोड़ने के प्रयासों की बात की, तो वहीं 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में, खादी-पहने मूर्तियों और मार्शल आर्ट का प्रदर्शन – बीरष्टमी – कुछ पंडालों में स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए उत्सव का इस्तेमाल करने के प्रयासों के प्रमाण थे.

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने 2011 में राज्य में सरकार बनाने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) से सत्ता हासिल की थी, पूजा के उद्घाटन पर भी इसका बदलाव दिखाई दिया- टीएमसी नेताओं, विशेष रूप से ममता बनर्जी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में माकपा के पूर्व दिग्गजों की जगह ले ली.

पिछले साल शहर के दो पंडालों ने विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 और 2020-21 किसानों के विरोध को थीम के रूप में चुना था.

न सिर्फ राजनीतिक पावरप्ले, बल्कि पिछले कुछ सालों में कोलकाता के दुर्गा पूजा समारोह – पंडालों, लाइटिंग और मूर्तियों के जरिए – ने उन मुद्दों को भी चित्रित किया है, जो आम जनता को प्रभावित करते हैं- मसलन ग्लोबल वार्मिंग, बाहुबली फिल्मों की फ्रेंचाइजी, बाढ़, प्राकृतिक आपदाएं और कोविड.

जब शहर के ‘दादा’ सौरव गांगुली को कोच ग्रेग चैपल के साथ मतभेदों के बाद 2005 में भारतीय क्रिकेट टीम से हटा दिया गया था, तब  2006 में एक पूजा समिति ने चैपल जैसे दिखने वाले दुष्ट महिषासुर बनाने का प्रयास किया था.

पालतू जानवरों के अनुकूल पंडाल इस परंपरा में एक नई कड़ी है.

हमेशा से ‘पेट पूजा’

नए पंडाल अब पालतू जानवरों के मालिकों को क्या करना और क्या नहीं करना इसके बारे में बता रहे हैं.

कोलकाता में पॉसम पॉज़ नामक पशु चिकित्सा क्लीनिक की चैन चलाने वाली रवनीत कौर कहती हैं, ‘ऐसे में पालतू जानवरों के लिए पानी और खाना साथ लाना चाहिए और कूड़े के मामले में स्कूपर भी लेना चाहिए.’ वह कहती हैं कि छोटे कुत्तों को गोदी में उठाकर आसानी से ले जाया जा सकता है. ‘ लेकिन हमें यह ध्यान रखने की जरूरत है कि कोलकाता के अधिकांश पंडालों में बहुत भीड़भाड़ होती है और अंदर जाने के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ता है. पंडाल के एंट्री गेट तक कारों को नहीं ले जाया जा सकता. इससे पालतू जानवरों को परेशानी हो सकती है.’

फिलहाल तो इस पहल को लेकर ‘पेट पूजा’  कहकर चुटकुले बनाए जा रहे हैं.

सोमिनी सेन दुआ अभी भी डांवाडोल वाली स्थिति में हैं कि क्या वह अपने जर्मन शेफर्ड रोमियो को पालतू जानवरों के अनुकूल पंडाल में ले जाएं या फिर नहीं.

सेन दुआ (उन्होंने अपना दोहरा उपनाम लिखे जाने का खासतौर पर अनुरोध किया था) कहती हैं, ‘कोलकाता पूजा हमेशा पेट पूजा रही है.’  उन्होंने आगे कहा, ‘बंगाली में पेट (पालतू) का मतलब पेट होता है और उत्सव हमारे लिए एक अवसर है. हालांकि, इस साल इस मुहावरे का एक नया अर्थ सामने आ रहा है.’

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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