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2 साल बाद गुजरात में गरबा को लेकर गजब का उत्साह, पर आयोजक, भागीदार 18% GST से नाराज

राज्य में भाजपा सरकार ने टिकटों पर जीएसटी को सही ठहराते हुए कहा था कि ऐसा 2017 से चला आ रहा है. जहां कुछ आयोजक टैक्स को दर्शकों से वसूल रहे हैं वहीं कुछ अन्य इसे बचाने के लिए तरीके खोजने में लगे हैं.

पारंपरिक पोशाक में सजे कलाकारों ने अहमदाबाद में गरबा नृत्य के दौरान | एएनआई

मुंबई: इस साल गुजरात में नवरात्रि के दौरान गरबा पसंद करने वाले लोगों को टिकट के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी. दरअसल, कोविड-19 के दो साल बाद राज्य में बड़े पैमाने पर नवरात्रि समारोह का आयोजन किया जा रहा है. 500 रुपये से ज्यादा की कीमत वाले गरबा टिकटों पर 18 प्रतिशत वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) लगाने पर एक विवाद छिड़ गया है.

केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग द्वारा 28 जून 2017 की अधिसूचना के तहत 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया गया था. द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, गरबा आयोजक अगले आने वाले कुछ सालों में ऐसा नहीं कर पाए थे. फिर महामारी आ गई और 2020 और 2021 में बड़े पैमाने पर समारोहों पर रोक लगा दी गई थी.

कथित तौर पर विवाद तब सामने आया जब राज्य के एक प्रमुख गरबा आयोजक ने पिछले महीने अपनी वेबसाइट पर एंट्री टिकटों पर लागू जीएसटी दरों का उल्लेख किया.

आयोजक अब अपने सबसे कम खर्चीले टिकटों की कीमत 499 रुपये रखकर जीएसटी नियम के इर्द-गिर्द काम करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन यह एक जाल है – भागीदारों का कहना है कि ये टिकट सिर्फ दिखाने के लिए हैं. लोगों को भाग लेने के लिए और अधिक भुगतान करने के लिए तैयार रहना होगा.

भागीदार और पूर्व आयोजक धवल केडिया ने दिप्रिंट को बताया, ‘आमतौर पर टिकट कभी भी 500 रुपये से कम नहीं रही है. जो लोग इसमें पार्टिसिपेट करते हैं उनके लिए सीजनल पास बनते हैं. दूसरा पास सिर्फ दर्शकों के लिए होता है.’ वह आगे कहते हैं, ‘लगभग 99 फीसदी लोग सीजनल पास का विकल्प चुनते हैं. पिछले दो सालों से कोई गरबा कार्यक्रम नहीं हुआ था और इसलिए इस साल लोगों में खासा क्रेज है.’ केडिया अब गरबा क्लासेज लेते हैं.

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सीजनल पास एक ऐसा टिकट है जो लोगों को त्यौहार के पूरे नौ दिनों तक कार्यक्रम में आने के लिए वैलिड होता है. ये कार्यक्रम इस बार सोमवार से शुरू होंगे और 5 अक्टूबर तक चलेंगे.


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सूरत में ‘जी9 इवेंट’ के नाम से बड़े गरबा इवेंट आयोजित करने वाले मिथुल लाठिया ने अलग-अलग कैटेगरी के तहत अपने टिकटों की कीमत 500 रुपये, 1200 रुपये और 2,000 रुपये रखी है.

लाथिया के कार्यक्रमों में आमतौर पर 20,000 लोग शिरकत करते हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं सरकार के खिलाफ नहीं जाना चाहता. मुझे जीएसटी का भुगतान करना है, इसलिए मुझे अपने टिकटों पर टैक्स लगाना पड़ा.’

गुजरात में गरबा समारोह आमतौर पर भव्य होते हैं. ये सिर्फ सामाजिक कार्यक्रम नहीं हैं. बल्कि राजनेता इन्हें मतदाता तक अपनी पहुंच बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं.

जीएसटी विवाद गुजरात में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सामने आया है. इसने विपक्षी दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को सरकार को आलोचना करने का एक बड़ा मौका दे दिया है. आप पार्टी जो 2017 में राज्य विधानसभा चुनावों में पहली बार राज्य में उभरी थी, लेकिन अपना खाता खोलने में विफल रही. दोनों ही दल पिछले महीने से इसे वापस लेने मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

कांग्रेस के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने 4 अगस्त को एक ट्वीट में इसे ‘गरबा समाप्त कर’ कहा था.

वहीं ‘आप’ की गुजरात इकाई के अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने भी टैक्स का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को एक पत्र लिखा.

इटालिया ने मीडिया को बताया, ‘लोग गरबा से जुड़े हुए हैं क्योंकि यह हमारी आस्था का मामला है. लोगों की आस्था पर टैक्स लगाना भाजपा की निम्न स्तर की मानसिकता को दर्शाता है. देवताओं की पूजा करने पर कभी कोई टैक्स नहीं लगा. हम भाजपा के इस कृत्य की निंदा करते हैं और इस कर को तत्काल वापस लेने की मांग करते हैं.

राज्य भाजपा ने अपनी ओर से यह कहते हुए पलटवार किया कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर यह जीएसटी 2017 से लागू है.

टिकट की बढ़ती कीमतें

कॉमर्शियल गरबा कार्यक्रम गुजरात के अधिकांश प्रमुख शहरों में बड़े पैमाने पर आयोजित किए जाते हैं. दिप्रिंट से बात करने वाले आयोजकों के अनुसार, एंट्री टिकट की कीमत आम तौर पर 500 रुपये से ज्यादा से शुरू होती है. पास की की कई कैटेगरी हैं, जैसे कि वीआईपी पास और वीवीआईपी पास. सबकी कीमत अलग-अलग होती है.

सूरत में गरबा क्लासेस चलाने वाले नेहल गुडलक ने कहा कि 18 प्रतिशत जीएसटी लगाने से सीजनल टिकट की कीमतें 4,000 रुपये से ज्यादा हो गई हैं.

उन्होंने कहा, ‘2019 में (टिकट) की कीमतें जो लगभग 3,500 रुपये थीं, आसानी से 4,000 रुपये से ऊपर पहुंच गई हैं. हमारे सामने काफी सारे मसले हैं. हम टिकट की कीमतों को कम रखने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन यह मुश्किल है.’

गरबा के आयोजक लाठिया ने बताया कि जीएसटी ने उनके खर्चों को बढ़ा दिया है. इसके चलते उन्हें अपनी टिकट की कीमत बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा.

लाथिया ने कहा ,‘उदाहरण के लिए टिकट की कीमत जीएसटी के साथ 1200 रुपये की है. अगर जीएसटी हटा दें तो यह 1,000 रुपये की पड़ेगी. यह एक नुकसान है.’ उनके मुताबिक, इस आयोजन के लिए उनका खर्च जीएसटी के बिना 6.5 करोड़ रुपये है. उन्होंने कहा, ‘मुझे सरकार को जीएसटी का भुगतान करना है. मेरे पास टिकटों की कीमतें बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.’

इस बीच छोटे आयोजक कर बचाने के तरीके खोजने की कोशिश कर रहे हैं.

मोहन नायर सूरत में डिसेबल वेलफेयर ट्रस्ट ऑफ इंडिया नामक एक गैर-लाभकारी संस्था चलाते हैं. वह केडीएम ज़ंकार नवरात्रि नामक एक संगठन के सहयोग से एक गरबा कार्यक्रम आयोजित करते हैं.

इवेंट के लिए टिकट की कीमतें दैनिक पास के लिए शुरुआती कीमत 499 रुपये रखी गई है और कैटेगरी के हिसाब से ये ऊपर जाती हैं. सीजनल पास की कीमत 3,200 रुपये तक है.

नायर ने दिप्रिंट को बताया, ‘यहां काफी प्रतिस्पर्धा है और हम अपनी टिकट की कीमत उसी के अनुसार मैनेज करते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘हमने टिकटों में जीएसटी को शामिल कर लिया है. हम अपने वेंडरों को ऊंची कीमत भी चुकाते हैं, तो यह कमोबेश चुकता हो जाता है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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