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हेमंत सोरेन ने झारखंड में भूख से मौत के मुद्दे पर लड़ा चुनाव, वे ही अब इसे नकार रहे हैं

खाद्य आपूर्ति मंत्रालय अपने पास रखने वाले अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि बीते पांच सालों में भूख से मौत का कोई मामला नहीं है.

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हेमंत सोरेन की फाइल फोटो । ट्विटर

रांची: झारखंड में भूख से लोगों की मौत लोकतंत्र के लिए शर्म की बात है- कांग्रेस के ऑफिशियल ट्वीटर हैंडल पर यह ट्वीट 20 नवंबर 2018 को किया गया.

दिल्ली में हुई भूख से मौत को साबित करने के लिए केंद्र सरकार तुरंत जांच का आदेश देती है. वहीं झारखंड में हुई कई मौतों पर वह उदासीन है. ऐसे मामलों में भी राजनीतिक पक्षपात, चौंकाने वाला है- यह ट्वीट हेमंत सोरेन ने 27 जुलाई 2018 को किया है.

अब हेमंत सोरेन ने कहा है कि बीते पांच सालों में भूख से मौत का कोई मामला नहीं है. जिस भूख से मौत के मामले को हेमंत सोरेन पूरे चुनाव में भुनाते रहे, अब उसे सिरे से खारिज कर दिया है. ध्यान रहे, फिलहाल खुद हेमंत के पास खाद्य-आपूर्ति मंत्रालय है.

बीते 6 मार्च को बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के करमा गांव के भूखल खासी (42) की मौत भूख से हो गई थी. स्थानीय अखबार प्रभात खबर में छपी रिपोर्ट को गिरिडीह के विधायक सुदिव्य कुमार ने ट्वीट कर सीएम को जानकारी दी. इसके बाद अपर मुख्य सचिव अरुण सिंह से लेकर डीसी, एसडीओ, बीडीओ सब मृतक के घर पहुंच गए.

इससे पहले लातेहार जिले के हेरहेंज प्रखंड के केडु गांव में 28 नवंबर से 14 फरवरी के भीतर सात बच्चों की मौत हो गई थी. बीमारी का पता नहीं चल पाया था. सिमडेगा में संतोषी की मौत के मामले को उठाने वाली तारामनी कहती हैं कि उनकी फैक्ट फाइंडिंग टीम केडु गांव गई थी. मामला पूरी तरह से कुपोषण का है. कुपोषण और भूख एक ही तरह की बात है.

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सरकार पत्र.

लेकिन वो साल दूसरा था, ये दूसरा है. अब हेमंत सोरेन का मानना है कि पिछले पांच सालों में झारखंड में एक भी मौत भूख से नहीं हुई है. झारखंड विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है. माले विधायक विनोद सिंह ने इससे संबंधित सवाल किए थे. खाद्य आपूर्ति विभाग की ओर से दिए गए जवाब में लिखा गया है कि राज्य में अक्टूबर 2015 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू है. इसके तहत 2,64,43,330 लोगों को इससे जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था. फिलहाल 2,63,39,264 लोगों को इसका लाभ मिल रहा है. यानी 99.60 प्रतिशत लोगों को फिलहाल अनाज मिल रहा है.

सामाजिक कार्यकर्ता और अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा, ‘सरकार रघुबर की हो या हेमंत की हो, हम लोग अच्छे काम का स्वागत करेंगे और जन विरोधी काम पर एतराज करेंगे. दुख की बात है की झारखंड की नई सरकार ने अभी तक भूख से मौतों को रोकने के लिए और कुपोषण कम करने के लिए कोई खास कदम नहीं उठाया.’

विधानसभा के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए विनोद सिंह ने कहा कि, ‘जिन मुद्दों से राज्य की जनता ने हेमंत जी को जनादेश दिया है उन मुद्दों पर राज्य की कार्यपालिका को जवाबदेह बनाएं. जल्दी करें, नहीं तो देर होगी. सदन में सरकार कुछ कहती है, बाहर मंत्री कुछ और कह रहे हैं. मुझे लग रहा है सरकार और कार्यपालिका के बीच में कंफ्यूजन है.’

एक बार फिर सुदिव्य कुमार कहते हैं, ‘हम लोग 19 लोगों की भूख से मौत को मानते रहे हैं. यह जो जवाब है वह अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया है. तकनीकी तौर पर सरकार को जवाब देना ही था, सो वही जवाब दे दिया गया. लेकिन वर्तमान सरकार को सभी 19 मामलों पर फिर से जांच बिठानी चाहिए. साथ ही कुपोषण से हुई मौत को भी भूख से हुई मौत मानना होगा. यह मेरा निजी विचार है, पार्टी या सरकार का नहीं.’

अब बारी विपक्ष की थी. चुटकी लेते हुए पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास कहते हैं, ‘सत्य को स्वीकार करना ही पड़ेगा. चुनाव के दौरान जनता को भूख से मौत कहकर बरगलाते रहे, अब उसी बात को स्वीकार कर रहे हैं. बल्कि इस सरकार में भूख से मौत का मामला सामने आया है.’ हालांकि, रघुवर दास ने हेमंत के इस स्वीकारोक्ति का समर्थन करने पर कुछ नहीं कहा.

वहीं रघुवर सरकार में खाद्य-आपूर्ति मंत्री रहे सरयू राय कहते हैं, ‘हेमंत या कोई सदन के भीतर रिकॉर्ड के आधार पर ही बात कर पाएंगे. सिमडेगा के संतोषी की मौत संदेहास्पद थी. बाकि में कोई दम नहीं था. सबकी जांच कराई गई थी. चुनाव में भाषण जीतने के लिए दिया जाता है. सरकार में जाने पर तथ्य के आधार पर बात करनी होती है.’


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उन्होंने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज पर भी सवाल खड़ा किया. उन्होंने कहा कि, ‘ये लोग आधार को नहीं मानते हैं. हेमंत के आने के बाद अब ये लोग इस मुद्दे को नहीं उठाएंगे. ये इंटेलेक्चुअल डिसऑनेस्टी है. ये सब ग्रांट लेने के लिए किया जाता है. हालांकि वह बढ़िया काम करते रहे हैं.’

ज्यां द्रेज झारखंड के भूख से मौत के मामले को देश-दुनिया में उठाते रहे हैं. पूरे मसले पर पूर्ववर्ती सरकार की खूब आलोचना भी करते रहे हैं. वर्तमान में विभिन्न मसलों पर वह हेमंत सोरेन से दो बार मिल भी चुके हैं.

हालांकि, उनका पक्ष जानने के लिए फोन, मैसेज और ईमेल किया गया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. जवाब मिलने पर उनका पक्ष रखेंगे.

राइट टू फूड कैंपेन सामाजिक संगठन से जुड़े सिराज दत्ता ने सरकार के इस स्पष्टीकरण को अंग्रेजी भाषा के ‘रेडिक्यूलस’ शब्द से नवाजा है. उन्होंने कहा, ‘इससे सरकार की मंशा पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं. यहां तक कि पूरे बजट स्पीच में भूखमरी, कुपोषण जैसे शब्द ही नहीं थे. उसके लिए जो करना है, उसकी बात तो छोड़ ही दीजिए. चुनाव के दौरान जेएमएम और कांग्रेस दोनों ने इसे जोर-शोर से उठाया था और यह लोगों के बीच मुद्दा भी बना.’

ये पहला मुद्दा नहीं है जब हेमंत सरकार ने रघुवर की हां में हां मिलाया है. स्थानीय नीति मामले में भी वह अपनी ही बातों से मुकर चुकी है. पूर्ववर्ती सरकार के फैसलों को ही मान रही है. स्कूलों के विलय को पहले गलत कहा, अब सही मान रही है.

(लेखक झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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