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दिग्विजय सिंह जैसे सलाहकार के बावजूद कमलनाथ सरकार पर भारी न पड़ जाए ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के 114 विधायक में से 35 से ज्यादा विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक बताए जा रहे हैं. भाजपा ने इसी किले में सेंध लगाने की कोशिश की थी.

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कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, मध्यप्रदेश की सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह । फोटो:दिप्रिंट

नई दिल्ली: मध्यप्रदेश में सत्ता मिलने के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं का असंतोष चरम पर पहुंच गया है. बीते सप्ताह से सरकार गिरने बनने की उठापटक के बीच संगठन में भी अंदर ही अंदर कश्मकश चल रही है. भोपाल से शुरू हुई खींच-तान दिल्ली तक पहुंच चुकी है. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और प्रदेश के बड़े कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया इसके केंद्र में हैं.

वहीं दूसरे सिरे पर खड़े कमलनाथ मुख्यमंत्री के साथ प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भी संतुलन साधने और सरकार बचाने की पूरी कोशिशों में जुटे हैं. एमपी में चल रही उठापटक से असंतुष्ट कांग्रेसी सारा ठिकरा दिग्विजय सिंह के सिर फोड़ रहे हैं. भाजपा सिंधिया खेमे का असंतोष का फायदा उठाने की कोशिश में जुट गई है. विधायकों के गायब होने के समय खुद को सरकार बचाने वाला हीरो करार देने वाले दिग्विजय सिंह कुछ लोगों की नजर में विलेन बने नजर आ रहे हैं.

राज्यसभा चुनावों की घोषणा के बाद कांग्रेस के कुछ विधायकों के लापता होने की खबर फैली इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा नेता नरोत्तम मिश्रा सक्रिय नजर आए. कमलनाथ सरकार गिरने और बचने की चर्चा के बीच सबसे पहले दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाया कि भाजपा कांग्रेस के विधायकों को खरीदने में जुटी है. हॉर्स ट्रेडिंग का खुलासा करने में दिग्विजय सिंह अपनी पीठ थपथपाते रहे. वहीं उनके समर्थकों ने विधायकों की खरीद फरोख्त से जुड़े कुछ वीडियो भी सार्वजनिक कर दिए.


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सिंधिया इस पूरे घटनाक्रम पर मौन साधे रहे. जब दिग्विजय पूरा श्रेय ले चुके थे फिर सिंधिया ने कांग्रेस के समर्थन में एक बयान जारी किया. इस बीच सरकार के सुरक्षित होने के दावे किए जाने लगे. गायब हुए विधायक घर लौट आए. लेकिन होली के दिन से स्थिति फिर पलटी भोपाल में चर्चा चली मंत्री और विधायक गायब हैं और उनके फोन बंद आ रहे हैं.

मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से विशेष बातचीत में कहा,’प्रदेश अध्यक्ष न बनाए जाने के बाद से ही सिंधिया और उनके खेमे में नाराजगी देखी जा रही है. मंत्रिमंडल के गठन में भी उनके समर्थकों को ठीक पोर्टफोलियो नहीं दिया गया जिसे लेकर भी वह खासे नाराज हैं.

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वह आगे कहते हैं, ‘वहीं समय-समय पर उनकी बातों को भी अनदेखा किया जाता रहा है जिसने उनकी नाराज़गी को बढ़ा दिया है. इन्हीं सभी वजहों से वो नाथ से तो नाराज हैं ही साथ ही दिग्विजय की बढ़ती सक्रियता भी उन्हें खटक रही है. लेकिन वह इसके बाद भी वह अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं. राज्यसभा में कौन जाएगा इसका फैसला हाईकमान करेंगे.’

मौन रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया

विधायकों के दिल्ली, गुड़गाव और बेंगलुरु आने जाने के अलावा दिल्ली और भोपाल में हुई बैठक से ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके गुट के विधायक पूरी तरह से नदारद रहे हैं. राज्य में जैसे-जैसे सियासी घटनाक्रम चढ़ता गया वैसे- वैसे सिंधिया इससे दूर होते गए. पूरे मामले पर उन्होनें दूर रहकर ही नजर बनाई रखी.

दिल्ली हिंसा समेत अपने राज्यों के दौरे पर तो उन्होंने ट्विटर के जरिए अपनी बात रखी. लेकिन मध्यप्रदेश में मचे सियासी घमासान पर तो उन्होंने चुप्पी ही साध रखी है यहां तक की सोशल मीडिया पर भी एक शब्द नहीं लिख रहे हैं. राज्य में कांग्रेस सरकार अब गई तब गई की स्थिति में थी तब सिंधिया अपने क्षेत्रों के कार्यक्रम में व्यस्त दिखाई दिए. जहां वे लगातार लोगों से मुलाकात करते रहे.

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सिंधिया की साख का सवाल

मध्य प्रदेश के विधानसभा के चुनावों से पहले प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद को लेकर सिंधिया और कमलनाथ के बीच में ही लड़ाई थी. लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी के पुराने वफादार और छिदवाड़ा से सांसद कमलनाथ पर भरोसा जताया. लेकिन हाईकमान ने सिंंधिया को संतुष्ट करने के लिए उन्हें चुनाव कैंपेन कमेटी के चेयरमैन बनाया था.

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की बड़ी जीत में सिंधिया ने अहम भूमिका निभाई थी. इसके बाद से वे खुद को राज्य के सीएम पद का दावेदार मान रहे थे. सत्ता आने के बाद यह भी चर्चा थी कि वह सीएम बनेंगे या राजस्थान की तर्ज पर ही कांग्रेस मध्य प्रदेश में उनको ​उपमुख्यमंत्री बना सकती है. लेकिन बाद में कांग्रेस हाईकमान ने उनको नजरंदाज करते हुए कमलनाथ को सीएम बना दिया. इसके बाद से ही उनके समर्थक खेमे में नाराजगी बनी हुई है.

लोकसभा चुनाव में सिंधिया अपने राजघराने की पारंपरिक सीट गुना-शिवपुरी से भी चुनाव हार गए हैं .उन्हें भाजपा के उम्मीदवार केपी यादव ने सिंधिया को सवा लाख वोटों से मात दे दी .इस हार के बाद से ही सिंधिया के वजूद पर बहुत बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है.

पारंपरिक सीट जाने के बाद से ही सिंधिया सड़क पर उतर आए हैं और वह गुना और शिवपुरी में नजर आने लगे हैं. हार के बाद वे कई सभाओं में कार्यकर्ताओं से कहते नजर आए कि वह ‘महाराज’ नहीं है. वह राजनीति इसलिए करते हैं कि वह जनसेवा करना चाहते हैं. उन्होंने इस बात को स्वीकार भी किया है कि जनता से कट गए थे. इसके बाद से केवल अपने क्षेत्र में ही सीमित हैं.

राज्य में समय- समय पर प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी देने की मांग उनके समर्थकों द्वारा की जाती रही है लेकिन अभी तक पार्टी हाईकमान ने इस मामले को अटका रखा है.

फिलहाल मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ हैं. वहीं दिग्विजय सिंह सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी देने के खिलाफ है. मध्यप्रदेश की राजनीतिक हलचल के बीच में सिंधिया के पास दो संभावनाएं साफ नजर आ रही है. पहली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की ओर दूसरी राज्यसभा की सीट. लेकिन इन दोनों का ही निर्णय हाईकमान को करना है.

किसानों की कर्जमाफी पर नाराजगी, धारा 370 हटाने का किया था समर्थन

वहीं सिंधिया ने जम्मू और कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने को लेकर केंद्र सरकार के कदम का स्वागत किया था. इसको लेकर भी राजनीतिक विवाद खड़ा हुआ था. इसके बाद सिंधिया के आए दिन ऐसे बयान सामने आए थे जिससे लग रहा था कि उनके और कांग्रेस पार्टी के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है. साथ ही सिंधिया अपनी ही पार्टी से मध्य प्रदेश के किसानों की कर्जमाफी को लेकर नाराज चल रहे हैं.

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इसके अलावा उन्होंने सरकार पर हमला बोलते हुए यह तक कह दिया था कि हमने 2 लाख रुपए तक के किसानों की कर्जमाफी का वादा किया था लेकिन उनका केवल 50 हजार रुपए ही कर्ज माफ हुआ है. इसके अलावा उन्होंने बाढ़ राहत राशि के लिए सर्वे और बिजली कटौती, अफसरों के आए दिन हो रहे तबादले को लेकर भी कमलनाथ सरकार को निशाने पर लिया था.

कुछ दिनों पहले सिंधिया अपने ‘ट्विटर का बायोडाटा’ बदलने को लेकर चर्चा में रहे हैं. उन्होंने अपने बायो में खुद को लोक सेवक और क्रिकेट प्रेमी बता रखा है. बायो से कांग्रेस पार्टी का नाम भी हटा दिया है.

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हाल ही में मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में एक सभा को संबोधित करते हुए भी सिंधिया ने कहा था, ‘आपकी मांग मैंने चुनाव के पहले भी सुनी थी, मैंने आपकी आवाज उठाई थी. यह विश्वास मैं आपको दिलाना चाहता हूं कि आपकी मांग जो हमारी सरकार की घोषणा पत्र में अंकित है, वह घोषणा पत्र हमारा ग्रंथ बनता है. अगर उस घोषणा पत्र का एक-एक अंक न पूरा हुआ तो आप खुद को सड़क पर अकेला मत समझना आपके साथ सड़क पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उतरेगा.’

सिंधिया के इस बयान के बाद राज्य में कई तरीके के मायने निकाले गए. इस बयान के दो दिन बाद सीएम कमलनाथ सामने आए. उनसे जब पूछा तो उन्होंने तल्ख अंदाज़ में बोला ‘तो उतर जाएं.’

35 से ज्यादा सिंधिया समर्थक विधायक

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के 114 विधायक में से 35 से ज्यादा विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक बताए जा रहे हैं. मप्र के चंबल संभाग को सिंधिया का गढ़ माना जाता है. भाजपा ने सबसे पहले इसी किले में सेंध लगाने की कोशिश की. इसका नतीजा है कि बगावती तेवर दिखाने वाले अधिकांश विधायक चंबल—ग्वालियर संभाग से ही है.


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इनमें भिंड से विधायक संजीव कुशवाह, दिमनी से विधायक गिरिराज दंडोतिया और गोहद से रणवीर जाटव और बिजावर से सपा विधायक राजेश शुक्ला, मुरैना से रघुराज कंसाना, सुमावली से ऐंदल सिंह कंसाना ये सभी चंबल-ग्वालियर संभाग वाले इलाके से आते हैं. वहीं बुरहानपुर सीट से निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा भी ऐसे हैं जो सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग उठा चुके हैं.

दिग्विजय सिंह की बढ़ी ​सक्रियता

दिग्विजय सिंह ने विधानसभा चुनाव से पहले ही प्रदेश में ‘नर्मदा परिक्रमा पदयात्रा’ शुरू कर दी थी. इस यात्रा में उन्होंने कार्यकर्ताओं को जोड़ना और उनसे मिलना शुरु कर दिया था. इसके बाद विधानसभा चुनावों में भी टिकट वितरण में उनका हस्तक्षेप देखा गया था.

जैसे ही मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी उसके बाद से ही पूर्व सीएम सिंह की सक्रियता और बढ़ गई है. कई बार वे सीएम के साथ कैबिनेट बैठक में भी नजर आए थे जिसे लेकर भी राज्य में हंगामा मचा था. हाल ही में एक मंत्री उमंग सिंगार ने भी पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह पर आरोप लगाया था कि वे पर्दे के पीछे से सरकार के कामों में दखलंदाजी करते हैं. इस मामले को लेकर भी विवाद उठा था.

सिंधिया ने उस समय भी सिंगार का समर्थन किया था. वहीं हालिया विधायकों के घटनाक्रम में भी पूर्व सीएम आगे आकर पार्टी का पक्ष रखते और भाजपा को कटघरे में खड़ा करते हुए देखे गए हैं.

राज्यसभा की तीसरी सीट की है जंग

ज्योतिरादित्य सिंधिया की राज्यसभा की राह आसान नहीं है. राज्य की तीन सीटों के लिए चुनाव होने हैं. इस सीट पर कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, भाजपा के प्रभात झा और सत्यनारायण जटिया के कार्यकाल खत्म हो रहे हैं. इन सीटों के लिए मतदान होना है. दो विधायकों के निधन के बाद सदन में विधानसभा में सदस्यों की संख्या 228 है.

राज्यसभा की एक सीट के लिए न्यूनतम 58 विधायकों की जरुरत है. कांग्रेस पार्टी की तरफ से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह पहले ही दावेदार हैं. सूत्रों के मुताबिक दूसरी सीट के लिए सिंधिया भी रेस में हैं. 107 विधायकों वाली भाजपा के पास एक सीट का जाना लगभग तय है. वहीं 114 सदस्यों वाली कांग्रेस पार्टी की एक सीट तय है लेकिन विधायकों ने ऐन मौके पर पाला बदला तो तीसरी सीट का मामला बिगड़ भी सकता है.

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