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झारखंड की रघुवर सरकार के पांच साल- कितनी पास, कितनी फेल

झारखंड में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. 6 नवंबर से पहले चरण के लिए नामांकन शुरू हो चुका है. आगामी 30 नवंबर को पहले चरण का मतदान होना है.

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बाएं से झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवरदास, हेमंत सोरेन, बाबूलाल मरांडी और सुदेश महतो | दिप्रिंट

रांची : झारखंड में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. 6 नवंबर से पहले चरण के लिए नामांकन शुरू हो चुका है. आगामी 30 नवंबर को पहले चरण का मतदान होना है. बीजेपी के एक सूत्र ने साफ कहा कि अंदर की हलचल ये है कि तीन सर्वे रिपोर्ट के आधार पर फिलहाल सरकार को बहुमत मिलता नहीं दिख रहा. कई वर्तमान विधायकों के टिकट काटे जाने की संभावना है. मौका देख सहयोगी पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) अपना पैर और फैलाने की पूरी तैयारी कर चुकी है.

वहीं विपक्ष जेएमएम, कांग्रेस, जेवीएम, वामदल अभी तक अपने गठबंधन की गांठे सुलझाने में ही व्यस्त हैं. मौके की नज़ाकत देख पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने एकला चलो की राह अपना ली है. मरांडी ने नेता प्रतिपक्ष और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को अपना नेता मानने से इंकार कर दिया है. उन्हें उम्मीद है कि 10 के आस-पास सीटें लाकर वह किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं.

ऐसे में आइए नजर दौड़ाते हैं सरकार के पांच साल के कामकाज पर. ध्यान रहे, राज्य बनने के बाद यह पहली सरकार है जिसने अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा किया है.

लंबी है विफलताओं की फेरहिस्त

मॉब लिंचिंग में मौतें

इस सरकार में मॉब लिंचिंग से जुड़ी 12 से अधिक घटनाएं हुई हैं. इसमें लगभग 20 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की बात की जाती है. मृतकों में सबसे अधिक 11 मुसलमान हैं. सबसे पहली घटना 18 मार्च 2016 को लातेहार ज़िले में हुई थी. आखिरी घटना 22 सिंतबर 2019 को खूंटी में. तबरेज़ अंसारी की हत्या का मामला सबसे अधिक चर्चा का विषय बना, जिसमें पुलिस के रवैये पर भी सवाल उठे थे. वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा मॉब लिंचिंग के आरोपियों को माला पहनाने पर बीजेपी सवालों के घेरे में आई थी.

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झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा सरकार की विफलताओं को सिरे से खारिज करते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार ने सभी क्षेत्रों में शानदार काम किया है जहां तक मॉब लिंचिंग की बात है, कुछेक घटनाएं हुई हैं, उसको बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है. कानून व्यवस्था की स्थिति पहले से काफी बेहतर है.

भूख के कारण 19 से अधिक मौतें

इसी सरकार के कार्यकाल में राज्य में 19 से ज्यादा लोगों की मौत खाना न मिलने की वजह से हुई. हजारीबाग जिले के इंद्रदेव माली की मौत दिसंबर 2016 में हुई. वहीं इसी तरह के मामले में आखिरी मौत लातेहार जिले के रामचरण मुंडा की हुई है. सिमडेगा जिले के संतोषी देवी जो भात-भात चिल्लाते हुए मर गई थी, का मामला देशभर में चर्चा का विषय बना था. 2018 की न्यूज क्लिक की रिपोर्ट जिसमें राइट टू फूड के आंकड़ों के अनुसार 10 महीने में 12 लोगों की भूख से मौत का जिक्र है.

भूख से मौत के सरकारी आंकड़ों का स्क्रीनशॉट जिसमें 19 मौतों का जिक्र है.

इस पर भोजन का अधिकार अभियान से जुड़े सिराज दत्ता बताते हैं कि भूख से हुई मौत की खबरें अखबारों में प्रकाशित होने के बाद हमने उसकी जांच-पड़ताल की जहां हमने पाया कि लोगों की भूख से मौत हुई है. हालांकि, सरकार ने एक भी मौत को भूख से हुई मौत नहीं माना.

वहीं झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने भूख से मौत को बिल्कुल ही खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि एक भी मौत भूख से नहीं हुई है. जो आंकड़ा दिया जा रहा है, उन मामलों में मौत का कारण अलग-अलग रहा है.

नगर विकास मंत्री सीपी सिंह ने कहा कि वो इन मुद्दों पर बात नहीं करेंगे. खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय से लगातार संपर्क करने के बाद भी वो बात करने के लिए तैयार नहीं हुए.

12 से अधिक किसानों की आत्महत्या

केंद्र और राज्य प्रायोजित 133 योजनाओं के बावजूद बीते तीन सालों में 12 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है. इसमें सबसे अधिक साल 2017 में सात किसानों ने, वहीं 2019 के जुलाई और अगस्त माह में ही तीन किसानों ने आत्महत्या की है. सरकार ने 2016 के बाद से किसानों की आत्महत्या का डाटा देना बंद कर दिया है इसलिए, किसान आत्महत्या की सही संख्या का अनुमान लगाना कठिन है.

पत्थलगड़ी आंदोलन पर पुलिसिया कार्रवाई

खूंटी में चले पत्थलगड़ी आंदोलन को बातचीत के जरिए हल करने के बजाय सरकार ने पुलिसिया कार्रवाई के जरिए खत्म करने की कोशिश की. दिप्रिंट हिंदी को मिली एफआईआर की 16 कॉपियों के अनुसार इस दौरान 250 से अधिक लोगों पर राजद्रोह का केस किया गया. पांच गांव के तो सभी ग्रामीणों पर मुकदमा है.

दर्ज मामलों में से एक एफआईआर का स्क्रीनशॉट.

शायद देश का यह पहला और एकमात्र ज़िला होगा, जहां इतने लोगों पर राजद्रोह का केस होगा. इलाके में बीजेपी सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा इस इलाके से मात्र 1400 वोटों से जीत पाए थे.

रघुवर दास पिछले तीन सालों से हर सभा में यह कहते आ रहे हैं कि अगर पूरे राज्य में 24 घंटे बिजली नहीं दिया तो वोट मांगने नहीं आऊंगा. राज्य बिजली बोर्ड के मुताबिक जरूरत 5000 मेगावाट की है, सप्लाई 3500 मेगावाट की जा रही है. हालत ये है कि गढ़वा जिले में बमुश्किल 8 घंटे बिजली रहती है.

राजधानी रांची में बिजली कटौती का आलम था कि क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी को ट्वीट करके नाराजगी जाहिर करनी पड़ी थी. बाद में उस ट्वीट को डिलीट कर दिया गया था.

इसके साथ ही राज्य के लगभग 48 फीसदी बच्चों का अब तक कुपोषित रहना. किसी नए बड़े उद्योग का न आना, फर्जी एनकाउंटर जैसे सवाल इस सरकार को चिढ़ा रहे हैं.

रघुवर सरकार की बड़ी सफलताएं

14 सालों से लटकी स्थानीय नीति की घोषणा

राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने साल 2002 में स्थानीयता की परिभाषा तय की थी. उसके मुताबिक राज्य के वे सभी आदमी जिनके पास खुद के या पूर्वजों के नाम की जमीन हो. जिसका जिक्र सर्वे ऑफ रिकॉर्ड में हो. जानकारी के मुताबिक सर्वे ऑफ रिकॉर्ड सन 1932 में हुआ था.

इस परिभाषा का विरोध हुआ. तब से अब तक स्थानीय नीति तय करने के लिए छह बार सर्वदलीय बैठक हुई. लेकिन नतीजा सिफर रहा. वर्तमान सरकार ने सात अप्रैल 2016 को मंत्रिमंडल की बैठक में इस पर मुहर लगा दी. इसके मुताबिक सन 1985 या इससे पहले रहने वाले सभी लोग स्थानीय माने जाएंगे.

स्पोर्ट्स एकेडमी

सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) की मदद से झारखंड सरकार इसे चला रही है. जहां राज्यभर के बच्चों का चयन ट्रायल के बाद किया जाता है. एकेडमी में खाने, रहने, पढ़ाई के अलावा 12 तरह के खेल का प्रशिक्षण दिया जाता है. दावे के मुताबिक पहले ट्रायल में लगभग दो लाख बच्चों में 147 का चयन किया गया. दूसरी बार लगभग 2.50 लाख बच्चों से 147 बच्चों का चयन किया गया है.

बिहार से जमीन के दस्तावेज लाना

27 जुलाई 2016 को बिहार से दस्तावेजों की पहली खेप आई. 12,017 में बिहार सरकार पिछले 15 सालों से जमीन से जुड़े दस्तावेज नहीं दे रही थी. इसमें 29 हजार गांव के 82 हजार नक्शे लाए जाने थे. इसका फायदा जमीन से जुड़े विवादों को हल करने में मिला. साथ ही कई जिलों में जमीन से जुड़े सर्वे का काम भी रफ्तार पकड़ा. सीएम के जनता दरबार में भी 70 प्रतिशत मामले जमीन से जुड़े होते थे.

इसके अलावा हाईकोर्ट और विधानसभा का अपना भवन बनना. गरीबों के लिए आवास निर्माण, पुलिस भर्ती, रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी की स्थापना, सड़क निर्माण में तेजी, माओवादी हिंसा में कमी जैसी चीजें हैं, जिस पर सरकार को फिलहाल शाबाशी दी जा सकती है.


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जानकारों की राय

भोजन का अधिकार संगठन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता बलराम ने कहा कि पेंशन मद में पैसा बढ़ाना, सरकारी दफ्तरों में कामकाज रफ्तार पकड़ना, इंफ्रास्ट्रक्चर इन चीजों में अच्छा काम हुआ है. वहीं मॉब लिंचिंग से अल्पसंख्यकों के मन में डर, भूख से मौत, शहर और गांवों में पीने का पानी, शहर में लॉ एंड ऑर्डर की खराब स्थिति, जंगलों के विस्तार, जमीन को खास औद्योगिक घरानों के लिए तैयार करना, इन मामलों में सरकार ने खराब काम किया है.

संघ के सह प्रांत प्रचारक संजय आजाद ने कहा, संघ को सरकार के कामकाज के बारे में क्यों बोलना चाहिए. अगर सही से काम किया होगा तो वापस आएगी. नहीं किया होगा तो जनता खारिज कर देगी.

लेखक अश्विनी पंकज कहते हैं कि झारखंडियत का विकास नहीं हो पाया. जब तक मूल मुद्दे पर विकास नहीं करेंगे, चुनाव के वक्त हाथ-पांव फूलेंगे ही.

वहीं वरिष्ठ पत्रकार और प्रभात खबर अखबार के झारखंड संपादक अनुज सिन्हा कहते हैं कि राज्य के सभी शहरों का जाम आज तक खत्म नहीं हो पाया, गांवों में स्वास्थ्य की सुविधाएं बहाल नहीं हो सकी. वह कहते हैं तीन मेडिकल कॉलेज जरूर खुले, लेकिन दूर-दराज के इलाकों में शिक्षा की स्थिति खराब ही है.

पांच चरणों में होने वाले चुनाव के नतीजे 23 दिसंबर को आने हैं. तब तक अनुमानों और बयानों की बारिश होती रहेगी.

(आनंद दत्ता स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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