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परदे वाली ‘जल सखी’ और उनकी पूरी महिला टीम ने कैसे एक नदी को पुनर्जीवित कर गांव समृद्ध किया

एक जल योद्धा के रूप में शारदा देवी की यात्रा 2020 में शुरू हुई. राष्ट्रपति ने उन्हें जल संरक्षण के प्रयासों के लिए शनिवार को सम्मानित किया.

एक 'जल योद्धा' के रूप में शारदा देवी की यात्रा 2020 में शुरू हुई जब एनजीओ परमार्थ समाज सेवी संस्थान के सदस्यों ने उनके गांव का दौरा किया। | सुकृति वत्स | दिप्रिंट

नई दिल्ली: जब से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शारदा देवी को सम्मानित किया है तब से उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है. वह ग्रामीण भारत की उन 56 महिला चेंज-मेकर्स में से एक थीं, जिन्हें जल संरक्षण में उनके प्रयासों के लिए शनिवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में स्वच्छ सुजल शक्ति सम्मान 2023 से सम्मानित किया गया था.

37 वर्षीय देवी ने कहा, ‘मैं इस मुकाम तक पहुंचकर बहुत सराहना मिल रही है और मैं खुश हूं. जब मैंने अपने दो बच्चों को इसके बारे में बताया, तो उन्हें मुझ पर बहुत गर्व हुआ.’ फ़िरोज़ी रंग की एक चमकदार साड़ी पहने हुए उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनका घूंघट उनके सिर से एक बार भी न फिसला.

शारदा उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के एक छोटे, रूढ़िवादी गांव विजयपुरा में रहती हैं. वह अपनी शादी के बाद 1999 में वहीं रह रही हैं. उस समय वो 13 साल की थीं.

जिले के अन्य गांवों जैसे देवगढ़ ने प्राचीन हिंदू और जैन स्मारकों की उपस्थिति के कारण लोकप्रियता हासिल की थी और पर्यटन से राजस्व हासिल कर रहे थे. लेकिन विजयपुरा को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया गया था जहां पानी की भारी कमी थी. पानी के अभाव ने खेती को असंभव बना दिया था. ग्रामीणों के स्वास्थ्य को भी खतरा पैदा हो गया था.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘चूंकि हम खेती करके आजीविका नहीं कमा सकते थे, इसलिए हमें चिनाई के काम के लिए दूर-दराज के स्थानों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा था. तब भी मुझे खुलकर बाहर जाने की इजाजत नहीं थी, मेरे साथ हमेशा मेरे पति या ससुर रहते थे.’

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लेकिन देवी के अपने बच्चों को बेहतर जीवन देने के दृढ़ संकल्प के कारण 13 किमी लंबी नदी का पुनर्जीवन हुआ है. बरुआ नदी तब से गांव के लिए पानी का प्राथमिक स्रोत बन गई है. इसने खेती को फलने-फूलने दिया है.

जल शक्ति मंत्रालय द्वारा आयोजित, स्वच्छ सुजल शक्ति सम्मान के उद्देश्य से जमीनी स्तर पर महिलाओं के नेतृत्व का उत्सव मनाया गया था. समारोह अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, 8 मार्च के सप्ताह में आयोजित किया गया था.

इस दौरान तीन श्रेणियां थीं – जल जीवन मिशन, स्वच्छ भारत मिशन और ग्रामीण और राष्ट्रीय जल मिशन. अंत में शारदा को सम्मानित किया गया था.

इसमें 56 महिला प्रतिनिधियों, सरपंचों, स्वच्छाग्रहियों, जल वाहिनी, जल योद्धाओं को सम्मानित किया गया. राष्ट्रपति ने उनमें से 18 को सम्मानित किया, बाकी ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से पुरस्कार हासिल किया था.


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‘जल सखी’ के रूप में यात्रा

एक ‘जल योद्धा’ के रूप में उनकी यात्रा 2020 में शुरू हुई जब एनजीओ परमार्थ समाज सेवी संस्थान के सदस्यों ने उनके गांव का दौरा किया था. परमार्थ 1996 से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में जल संकट को कम करने के लिए काम कर रहे हैं.

उन्होंने शारदा को सलाह दी कि अगर वह अपने गांव में पानी की कमी के बारे में कुछ करना चाहती है तो उसे जल सहेली बनना चाहिए और अधिक महिलाओं को इस कारण से जुड़ने के लिए जुटाना चाहिए.

जो लोग हिस्सा बनते हैं उन्हें परमार्थ द्वारा तालाबों के संरक्षण, चेक डैम का एक नेटवर्क बनाने में मदद करने और कुओं को रिचार्ज करने के लिए वर्षा जल संचयन करने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है. उन्हें यह भी सीखाया जाता है कि अधिकारियों के साथ कैसे सहयोग किया जाए या जहां जरूरत हो वहां पानी के पंप लगाने के लिए उन पर दबाव डाला जाए.

शारदा ने कहा, ‘मैंने परमार्थ की सलाह के अनुसार एक पानी पंचायत की शुरूआत की और घर-घर जाकर महिलाओं को मेरे साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया.’

यह कोई आसान काम नहीं था, गाँव में महिलाओं को घर में भी पर्दे में रहना पड़ता था, और वह एक महिला टास्क फोर्स को संगठित करने की कोशिश कर रही थीं. देवी ने कहा, ‘मुझे मेरे परिवार और पड़ोसियों द्वारा लगातार बाहर घूमने के लिए ताना मारा जाता था.’ लेकिन वह लगभग 40 महिलाओं को समझाने में कामयाब रहीं कि ऐसी पंचायत उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाएगी.

शारदा को क्यों, कहां और क्या नहीं रोक पाया, वह भीषण राजमिस्त्री के काम से बचने और यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार थी कि उसके 15 साल के लड़के और 17 साल की लड़की को कभी भी पानी की कमी से नुकसान न उठाना पड़े.

वह जानती थीं कि एक बार उनकी कोशिश रंग लाई तो यह सभी के लिए एक आशीर्वाद होगा. यही उनके सभी तानों का जवाब होगा.

बरुआ नदी करेंगा नदी से निकलती है और जामिनी नदी में मिल जाती है. देवी के दख़ल न करने तक लगातार खनन गतिविधियों के कारण यह सूखने की कगार पर थी.

देवी ने 2021 में पहली ‘पानी पंचायत’ की थी. महिलाओं ने नदी के खनन के खिलाफ आंदोलन करने का फैसला किया.

उन्हें ग्राम पंचायत का समर्थन मिला. सरकारी समर्थन ने अवैध निजी खनिकों को खाड़ी में रखा क्योंकि महिलाओं ने नदी और खनन अवशेषों के आसपास के क्षेत्र को साफ कर दिया था. उन्होंने नदी पर चेक डैम बनाने के लिए चट्टानों और रेत का इस्तेमाल किया और नदी के किनारे पर पेड़ लगाए.

यह परियोजना 2020 में शुरू हुई थी और पिछले साल जून में नदी का ‘उद्घाटन’ किया गया था. शारदा के दृढ़ संकल्प और सभी जल सहेलियों के संयोग ने पूरे गांव को पुनर्जीवित कर दिया.

आज उसका जीवन

शारदा का पति अब उसे मना नहीं करते. देवी ने कहा, ‘उन्होंने देखा है कि जीवन कैसे बेहतर हो गया है.’ अब खेती करना मुमकिन हो गया है, लोगों को अब जीने के लिए गांव छोड़ने की जरूरत नहीं है.

देवी ने कहा, ‘परिवार के पुरुषों ने खेती की है और वे 12 क्विंटल गेहूं का उत्पादन करते हैं. मेरे पति मुझसे इतने प्रभावित थे कि अब वे मुझे विभिन्न बैठकों और प्रशिक्षण सत्रों में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.’ उन्होंने बताया कि गांव के सरपंच और अन्य किसान भी बहुत खुश हैं.

सिर्फ औपचारिक रूप से आठवीं कक्षा तक शिक्षित, देवी ने अपने गांव और उसके बाहर अनगिनत महिलाओं को प्रेरित किया है. अब वह जल संरक्षण पर सत्र में भाग लेने के लिए दिल्ली से झांसी तक हर जगह यात्रा करती हैं. उन्होंने कहा, ‘मुझसे अब पूछताछ नहीं की जाती है.’

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