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‘कोई कंट्रोल नहीं, लोगों का कम होता विश्वास’; Byju’s से लेकर Lido तक, मिल रहीं तमाम शिकायतें

बायजूज के खिलाफ 3,833 शिकायतें हैं, जिनमें से 1,403 का समाधान किया जा चुका है. वहीँ सिंपलीलर्न के पास 390 शिकायतें हैं, लेकिन अभी तक इनमे से केवल 197 का ही समाधान किया गया है.

चित्रणः प्रज्ञा घोष, फाइल लोगो । दिप्रिंट

हरियाणा के रोहतक के रहने वाले 16 वर्षीय विपुल सिंहवैया को एडटेक सेक्टर के लुभावने वादों से मोहभंग होने में आठ महीने लग गए. इस समय के अंत में उसके पास दिखाने के लिए केवल एक खराब टैबलेट ही है, जिसके बारे में उसका दावा है कि उसने इसे बायजूज से खरीदा था. उधर, लगभग 1,400 किमी दूर मुंबई में एक अन्य अभिभावक को भी ऐसा ही लगता है कि लीडो लर्निंग उस पर ध्यान नहीं दे रहा है, और 35,000 रुपये लुटाने के बाद उन्हें पता चला कि यह कंपनी खुद को दिवालिया घोषित कर अपना कारोबार समेट चुकी है.

भारत की विशालकाय शैक्षिक प्रौद्योगिकी या एडटेक क्षेत्र- जिसके बारे में विश्लेषकों का अनुमान है कि साल 2025 तक इसके पास 37 मिलियन सशुल्क उपयोगकर्ता (यूजर्स) होंगे और तब तक इसकी कीमत 10.4 बिलियन डॉलर होगी- में शिकायतों की भरमार हो रही है.

एडटेक प्लेटफॉर्म ऑनलाइन पाठ्यक्रमों और अत्याधुनिक उपकरणों के साथ पारंपरिक रूप से कक्षा में सीखने के तरीके में क्रांति लाने का वादा करते हैं, लेकिन वोकस्य और Consumercomplaint.in जैसे प्लेटफॉर्म्स के पास अब इनके उपयोगकर्ता की शिकायतों का विवरण देने वाले विशिष्ट पेज हैं. दिसंबर 2022 में, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बायजूज द्वारा अभिभावकों को अपने पाठ्यक्रम खरीदने के लिए लुभाने हेतु ‘कदाचार में लिप्त’ होने के आरोपों पर इस प्लेटफार्म के संस्थापक बायजू रवींद्रन को समन भी जारी किया था .

बायजूज के खिलाफ 3833 शिकायतें दर्ज की गईं हैं, जिनमें से 1,403 का समाधान किया जा चुका है. सिंपलीलर्न के पास 390 शिकायतें हैं, लेकिन केवल 197 का ही समाधान किया गया है. और एडटेक-प्लेटफ़ॉर्म मैरो के बारे में की गई 242 शिकायतों में से केवल 75 का समाधान किया गया है. इसी तरह प्लैनेटस्पार्क को लेकर 168 लोगों ने आपत्ति जताई है, लेकिन इनमें से केवल 36 पर ही ध्यान दिया गया है. अब निष्क्रिय हो चुके लीडो लर्निंग के खिलाफ 121 से अधिक शिकायतें हैं. इनमें से अधिकांश शिकायतें ट्रायल पीरियड (परीक्षण अवधि) समाप्त होने के बाद अपने पैसा वापस पाने में विफल रहने वाले लोगों और पाठ्यक्रम सामग्री के लिए पूरा भुगतान करने के बावजूद इस तक पहुंच बना पाने में असमर्थ छात्रों के बारे में हैं. कुछ शिकायतें लीडो लर्निंग जैसे प्लेटफॉर्म के बारे में हैं, जो अपने पाठ्यक्रमों के लिए पूरी फीस लेने के बाद बंद हो गए.

इस उद्योग के विशेषज्ञों के अनुसार, शिकायतों का यह सिलसिला इस बात का संकेत है कि इस क्षेत्र के साथ क्या गलत हुआ है.

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अपनी मां के फोन पर बायजूज़ के सेशन देखता हुआ विपुल । सोनिया अग्रवाल । दिप्रिंट

भारत में एडटेक का उदय

कोविड-19 महामारी के दौरान, एडटेक प्लेटफॉर्म भारत की शिक्षा प्रणाली का मुख्य आधार बन गए थे. लेकिन 2022 तक, वायरस की वेव्स की तीव्रता कम होने लगी, स्कूल फिर से खुल गए, ऑफ़लाइन शिक्षा को प्राथमिकता मिली और साथ ही एडटेक कर्मचारियों की छंटनी भी होने लगी.

यहां तक कि भारत सरकार ने भी जनवरी 2022 में एक एडवाइजरी जारी की थी जिसमें नागरिकों को ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के लिए साइन अप करने से पहले सतर्कता बरतने और इन कंपनियों द्वारा दी जाने वाली ऑटो-डेबिट सुविधा पर क्लिक न करने के लिए कहा गया था.

शिक्षा राज्य मंत्री डॉ सुभाष सरकार ने उस समय कहा था, ‘बिना उचित जांच-पड़ताल के इन एडटेक कंपनियों द्वारा साझा की गई ‘सफलता की कहानियों’ पर भरोसा न करें, क्योंकि वे और अधिक ग्राहकों को इकट्ठा करने के लिए बिछाया गया एक जाल हो सकती हैं.’

ऑनलाइन क्लास करता हुआ एक स्टूडेंट | सोनिया अग्रवाल, दिप्रिंट

भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन, सेंट्रल स्क्वॉयर फाउंडेशन, में एडटेक वर्टिकल की निदेशक गौरी गुप्ता ने कहा, ‘हमने इतने बड़े पैमाने पर ”बबल बिल्ड-अप’ देखा, क्योंकि कुछ चुनिंदा कंपनियों के पीछे बड़ी मात्रा में पूंजी लगी हुई थी.’

एडटेक प्लेटफॉर्म अब इन रिश्तों को फिर से बनाने, अपने कंटेंट में सुधार करने और अपने लचर संचालन को दुरुस्त करने की कोशिश कर रहे हैं. पहले तो, उन्होंने उपभोक्ता हितों की रक्षा करने और संचालन को सुव्यवस्थित करने के लिए एक स्व-नियामक निकाय, इंडिया एडटेक कंसॉर्टियम (आईईसी) का गठन किया है.

एडटेक प्लेटफॉर्म अपग्रेड के संस्थापक मयंक कुमार ने कहा, ‘पिछले 10 महीनों में, आईईसी ने शिकायतों को दर्ज करने के लिए एक संरचना पेश की है, और हितधारकों को किसी भी विशेष उत्पाद या इसके विज्ञापनों से संतुष्ट नहीं होने पर अपनी शिकायत को दर्ज करने के लिए प्रोत्साहित किया है.’ उनका दावा है कि संघ सभी मुद्दों को हल करने के लिए काम कर रहा है और अपने संचालन के पहले वर्ष में ही इसने कई सारी चुनौतियों का समाधान किया है.

कुमार ने आगे कहा, आईईसी ने मजबूत चेकपॉइंट बनाए हैं और 95 प्रतिशत से अधिक ग्राहकों की शिकायतों का समाधान किया है. साथ ही, विज्ञापन और ब्रांड कम्यूनिकेशन को सुव्यवस्थित करने के लिए महत्वपूर्ण उद्योग हितधारकों के साथ सहयोग भी किया है. हम इसे प्रगति के संकेत के रूप में देखते हैं.’

लेकिन शिकायतें अभी भी आ रही हैं. हालांकि आईईसी सही दिशा में एक कदम है, लेकिन सरकार की ओर से और अधिक नियमन की मांग जोर पकड़ती जा रही है.


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न्याय की मांग करते परेशान हाल ग्राहक

पंजाब के एक किसान की पत्नी मनप्रीत कौर ने प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाली अपनी बेटी के लिए बायजूज का ऑनलाइन पैकेज खरीदने हेतु महीनों तक बचत की. लेकिन उसका दिल तब धक् से रह गया जब उसे पता चला कि इसकी कीमत 1 लाख रुपये होगी.

इसके बाद कौर ने सबसे किफायती पैकेज का चयन करते हुए, 5,000 रुपये का डाउनपेमेंट किया और शेष लागत को कवर करने के लिए ऋण हेतु आवेदन किया. हालांकि, उनका ऋण स्वीकृत नहीं हो सका और उन्हें सदस्यता रद्द करनी पड़ी. किसी नए पैकेज के लिए भुगतान करने में विफल रहने के कारण अंततः उन्होंने अपनी जमा राशि भी खो दी.

यह कहते हुए कि जमा की गई राशि उनकी बचत का हिस्सा थी, कौर ने कहा, ‘मैं चाहती हूं कि मेरी बेटी बड़े शहरों में अपने समकालीन बच्चों के बराबरी पर हो,’

महाराष्ट्र के चंदापुरा के गिरीश कन्नूरी का कहना है कि जब उन्होंने अपने भतीजे के लिए बायजूज के नीट (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) कोर्स के केवल ट्रायल सत्र के लिए ही साइन अप किया था, तो उनका सोचना था कि वे ज्यादा सावधानी बरत रहे हैं.

कन्नूरी, जिन्होंने ऑटो-डेबिट विकल्प का चयन किया था, ने कहा, ‘उन्होंने पहले मेरे भतीजे से संपर्क किया, जो 11वीं कक्षा में पढ़ने वाला एनईईटी का प्रतिभागी था. उन्होंने कहा कि हम सिर्फ ट्रायल के लिए नामांकन करवा सकते हैं और फिर 15 दिनों में तय करें कि क्या हम इसे जारी रखना चाहते हैं. 13 वें दिन, मैंने उन्हें इसे रद्द करने के लिए लिखा.’ लेकिन उनके इस अनुरोध वाले ईमेल और फोन कॉल किसी काली गुफा में चले गए. चार महीने बीत जाने पर भी कोई समाधान नहीं हुआ. और इस बीच उन्हें कथित तौर पर तीसरे पक्ष के लोन कलेक्टरों (ऋण की अदायगी करवाने वालों) के फोन भी आने लगे.

उन्होंने कहा, ‘मैंने बायजूज के सब्सक्रिप्शन से जुड़े बैंक खाते में पैसा रखना बंद कर दिया था. ऑटो-डैबिट की जाने वाली ईएमआई राशि लगभग 5,300 रुपये थी. तीसरे पक्ष का फाइनेंसर मुझे हर महीने फोन करता और मुझे ईएमआई का भुगतान करने या मेरा सिबिल स्कोर प्रभावित होने की बात कहता.’

अंत में, हताशा और निराशा के आवेग में आकर उन्होंने ट्विटर पर शिकायत की, जिसके बाद बायजूज ने उनका लोन अकाउंट बंद किया.

एनसीपीसीआर के समन के बाद, बायजूज ने सभी संभावित ग्राहकों के लिए एक सामर्थ्य परीक्षण (अफ्फोर्डेबिलिटी टेस्ट) शुरू किया है. अब, किसी भी परिवार द्वारा पाठ्यक्रम खरीदने के लिए उसकी प्रति माह 25,000 रुपये की न्यूनतम पारिवारिक आय आवश्यक है. जो लोग इसे साबित नहीं कर पाते हैं वे स्वतः बायजूज के ‘एजुकेशन फॉर ऑल कार्यक्रम’ के लिए अर्हता प्राप्त कर लेते हैं, जहां वे आवश्यक विषय सामग्री को मुफ्त में एक्सेस कर सकते हैं.

बायजूज के भारत के सीईओ मृणाल मोहित ने कहा, ‘महामारी के बाद की दुनिया के उद्भव के साथ हमें इस बात पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता थी कि एक संभावित रूप से जीवन भर के संबंध के शुरुआती चरणों में अपने ग्राहकों के साथ कैसे जुड़ते हैं.’ उन्होंने कौर, कन्नूर और दिप्रिंट से बात करने वाले अन्य लोगों द्वारा उठाई गई शिकायतों पर कोई बात नहीं की, बल्कि उन्होंने एक ‘पारदर्शी बिक्री तंत्र’ के प्रति कंपनी की प्रतिबद्धता और ‘संभावित/दुर्लभ गलत रूप से की गई बिक्री’ को रोकने वाले दृष्टिकोण का ही विस्तृत ब्यौरा प्रदान किया.

लेकिन जब तक इन सुरक्षा उपायों की शुरुआत हुई, शायद तब तक अहमदाबाद के जमालपुर की एक अकेली मां के लिए बहुत देर हो चुकी थी. अपना नाम न बताने की शर्त पर इस महिला ने बताया कि उन्होंने अपनी दो बेटियों के लिए बायजूज से पैकेज खरीदने के लिए अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे.’

उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कुछ भी करूंगी कि मेरी बच्चियों को मेरे जैसी जिंदगी जीने की ज़रूरत न पड़े. मेरी बड़ी बेटी का सपना एक दिन पायलट बनने का है. एक मां के रूप में, मुझे यह सुनिश्चित करना है कि मैं उनकी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करने के लिए हर संभव प्रयास करूं.’ हालांकि, यह 34 वर्षीय महिला अपने बंधक रखे गहनों की ईएमआई का भुगतान करने के लिए सिलाई और खाना पकाने जैसे छोटे-मोटे काम करती है, वहीँ उसे अक्सर अपना गुज़ारा करने के लिए अपने नियोक्ताओं से पैसा उधार लेने पड़ते हैं .

उधर, सिंपलीलर्न के संस्थापक कृष्ण कुमार इन ‘पहले से पैसा ले रखे उपभोक्ता मंचों’ को ‘सिर्फ शोर करने और राजस्व बनाने की कोशिश’ के रूप में अनदेखा करते हैं.

कुमार ने कहा, ‘एक एडटेक कंपनी के लिए लगने वाली लागत विज्ञापन जारी करने से लेकर ग्राहक सेवा अधिकारियों द्वारा संभावित ग्राहकों के लिए कोर्स की पेशकश करने तक से शुरू होती है. हम किसी ऐसे व्यक्ति के पैसे कैसे वापस कर सकते हैं जो किसी पाठ्यक्रम में दाखिला लेता है, पाठ्यक्रम सामग्री भी ले लेता है और फिर महीनों बाद दावा करता है कि वह इस सबसे असंतुष्ट है?’

इस क्षेत्र में काम करने वाले प्रैक्टिकली जैसे स्टार्टअप्स प्लेटफॉर्म इस एक्सेसिबिलिटी गैप के बारे में अधिक जागरूक हैं. एआई-लर्निंग-आधारित यह ऐप 250 रुपये प्रति माह के रूप में कम कीमत वाले पैकेज प्रदान करता है.

इस एप के एक वरिष्ठ कार्यकारी महादेव श्रीवत्स ने कहा, ‘हमने अपना ऐप लॉन्च करने से पहले पूरी तरह से बाजार का अनुसंधान किया. न केवल यह आर्थिक रूप से बहुत ही किफायती है, बल्कि हमने छात्रों के सीखने को और अधिक इंटरैक्टिव बनाने की कोशिश की है.’ उनकी यह रणनीति काम कर गई. साल 2018 में लॉन्च होने के 18 महीनों के भीतर, इसने 1.5 मिलियन डाउनलोड प्राप्त किये और अक्टूबर 2021 में यह गूगल प्ले स्टोर पर ‘टॉप 10 एजुकेशन ऐप्स इन इंडिया’ सूची का हिस्सा बना.

श्रीवत्स कहते हैं, ‘हमने स्कूलों के साथ भी सहयोग करना शुरू कर दिया है, जहां शिक्षक छात्रों को पढ़ाने के लिए इस ऐप का उपयोग कर सकते हैं, ताकि ऑनलाइन होने बावजूद सीखने-सिखाने का काम निर्बाध रूप से हो सके.’

जब फूटा एडटेक का बुलबुला

महामारी के वर्षों के दौरान एक आक्रामक एडटेक उद्योग ने स्कूलों के बंद होने के बाद बच्चों में सीखने को लेकर जो अंतर शुरू हुआ उसे भरने के लिए जबरदस्त होड़ लग गई. अभिभावक कर्ज और ईएमआई में फंसे हुए थे, लेकिन उन्होंने कहा कि उनके पास बहुत कम विकल्प थे क्योंकि कई स्कूलों में ऑनलाइन कक्षाएं अच्छे स्तर की नहीं थीं.

लगभग रातों-रात, ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता में उछाल आ गया.

भारत के बेचैन अभिभावकों के दम पर व्यवसाय फलफूल रहे थे. मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस सेक्टर की वेंचर फंडिंग साल 2019 में 500 मिलियन डॉलर से बढ़कर साल 2020 में 4.7 बिलियन डॉलर हो गई, जिसमें से 1.9 बिलियन डॉलर अकेले बायजूज के हिस्से आए. साल 2021 में, इसमें और 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई, और फंडिंग 6 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई. नए-नए स्टार्टअप सामने आने लगे, कुछ रिपोर्ट्स का अनुमान है कि साल 2021 में स्थापित हर 10 स्टार्टअप में से चार एडटेक सेक्टर में ही थे.

और फिर बुलबुला फट गया.

ख़बरों के मुताबिक, हाल में भारत कर्मचारियों की सबसे ज्यादा छंटनी एडटेक सेक्टर ने ही की है. उदाहरण के लिए, 16 स्टार्टअप, जिसमें बायजूज और अनएकेडमी जैसे यूनिकॉर्न भी शामिल हैं, ने जनवरी 2023 में 8,000 से अधिक कर्मचारियों को पिंक स्लिप पकड़ाई.

वित्तीय वर्ष 2022-23 में अनएकेडमी का घाटा लगभग दोगुना होकर 2,693.07 करोड़ रुपये हो गया. ठीक दो साल पहले, साल 2020 में, इसने सॉफ्टबैंक विजन फंड से 150 मिलियन डॉलर के निवेश के साथ यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल किया था. गौरव मुंजाल, हेमेश सिंह और रोमन सैनी द्वारा स्थापित इस एडटेक फर्म ने बाद में उसी वर्ष इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) को प्रायोजित किया था.

लीडो लर्निंग, जो सबसे हिट स्टार्टअप्स में से एक था, ने रोनी स्क्रूवाला के यूनिलेज़र वेंचर्स से 10 मिलियन डॉलर जुटाने के ठीक पांच महीने बाद दिवालिया होने के लिए वाद दायर कर दिया. अन्य प्लेटफार्म जैसे कि उदय, क्रेजो.फन, किन1 और सुपरलर्न ने भी ऑपरेशन बंद कर दिया है.

जल्द ही, ग्राहकों की शिकायतों की बाढ़ को भीतर से आने वाली आवाजों से भी मजबूती मिलने लगी.

और अधिक ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपनाई जाने वाली आक्रामक रणनीति बायजूज के सेल्स एक्जीक्यूटिव विवेक को तब तक लगातार सालती रही जब तक कि उसने इस्तीफा नहीं दे दिया. बायजूज के इस पूर्व कर्मचारी, जिसे बाद में एक कार निर्माण फर्म के बिक्री विभाग में काम मिला, ने कहा ‘आखिरकार, मैंने एक ऐसे पेट्रोल पंप कर्मचारी को सब्सक्रिप्शन बेचने के बाद अपनी नौकरी छोड़ दी, जिसके पास स्पष्ट रूप से इस तरह की आय नहीं थी कि वह उस कोर्स का खर्च उठा सके. एक गरीब आदमी से झूठे वादे करना मुझे कतई अच्छा नहीं लगा.’

यह बायजूज द्वारा संभावित ग्राहकों की वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए अपनी नई प्रणाली शुरू करने से पहले की बात है. हालांकि, दिप्रिंट के साथ 2021 के एक साक्षात्कार में, उसके सीओओ मृणाल मोहित ने इस पूर्व कर्मचारी के दावों का खंडन किया था. उन्होंने कहा, ‘चूंकि ये पूर्व कर्मचारियों की शिकायतें हैं, इसलिए इस बात की संभावना है कि उनकी सेल्स पिच सही नहीं थी, यही वजह है कि वे अब हमारे साथ नहीं हैं.’

दबाव इतना तीव्र था कि उस पूर्व बिक्री कर्मचारी को पता था कि वह अपने लक्ष्यों पर डिफाल्ट कर जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘हमारी सेल्स पिच में अक्सर छात्रों को टारगेट करना और उनसे वास्तव में कठिन प्रश्न पूछना शामिल होता है. यह इन बच्चों के माता-पिता को यह दिखाने का एक तरीका है कि उनके बच्चे को वास्तव में अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के लिए बायजूज की जरूरत है.’ इस पूर्व कर्मचारी ने यह भी आरोप लगाया कि सेल्स टीम के सदस्यों ने माता-पिता को इस ऐप के लिए पिच करने में मदद करने के लिए खुद को ही काउंसेलर (परामर्शदाता) के रूप में भी पेश किया.’

उधर, मोहित के अनुसार, सभी काउंसलर सेल्स टीम के सदस्य होते हैं, लेकिन उन्होंने इन दावों को खारिज कर दिया कि छात्रों के समक्ष अपने उत्पादों को आगे बढ़ाने के लिए कठिन प्रश्न पूछे गए थे. उन्होंने उसी बातचीत में कहा था, ‘माता-पिता इससे कहीं अधिक विकसित हैं; उन्हें बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है.’


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टॉक्सिक वर्क कल्चर, अपमानजनक प्रबंधक

एडटेक उद्योग की समस्याएं यहीं खत्म नहीं होती हैं. सभी प्लेटफार्मों पर कर्मचारियों ने दुर्व्यवहार करने वाले प्रबंधकों, विषाक्त कार्य संस्कृति और लंबे समय तक काम लिए जाने की शिकायत की है.

डाउनसाइज़िंग के आदर्श बन जाने के बाद स्टेक्यूरियस के साथ काम कर रहे एक 27 वर्षीय पूर्व शिक्षण कोच ने अपरिहार्य छंटनी भांपते हुए जुलाई 2022 में ही काम छोड़ दिया. सबसे पहले निकाले जाने वाले लोगों में गैर-तकनीकी पृष्ठभूमि के वे शिक्षक थे जिन्हें एक प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करने के बाद कोडिंग प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था.

छात्रों को कोडिंग सीखने वाले इन पूर्व कोच ने कहा, ‘शुरुआत में कंपनी का मकसद यह था कि हर कोई कोड कर सकता है. विडंबना यह है कि मेरी सेवाकाल के अंत तक, छात्रों को कोचिंग सिखाने वाले केवल इंजीनियर थे; बाकी को काम छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया था.’

संयोग से, बायजूज और खान अकादमी के पूर्व कर्मचारी आनंद श्रीनिवास द्वारा स्थापित स्टेक्यूरियस ने साल 2020 में सीड फंडिंग के रूप में $2 मिलियन जुटाए थे. दिप्रिंट ने मेल, कॉल और संदेशों के जरिए कंपनी के मार्केटिंग डायरेक्टर श्री नानावती से संपर्क किया है. उनका जवाब मिलने पर इस खबर को अपडेट कर दिया जायेगा.

इस बीच बिहार के 37 वर्षीय एकाउंटेंट अरुण कुमार ने एक सनसनीखेज आरोप लगाया कि नोएडा स्थित एडटेक फर्म एक्स्ट्रामार्क्स महामारी के दौरान छात्रों की नामांकन संख्या में वृद्धि दिखाने के लिए कंपनी के खातों के माध्यम से काले धन को सफेद कर रही थी.

कुमार, जो सभी मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहे हैं, ने कहा ‘मुझे लॉकडाउन के दौरान काम पर जाने के लिए मजबूर किया गया था. जब मैंने किसी भी अवैध कार्य में भाग लेने से इनकार कर दिया तो उन्होंने न केवल मुझे नौकरी से निकाल दिया, बल्कि उन्होंने मुझे धमकाया और मेरी पिटाई भी की.’ अब न केवल वह काम से बाहर है, बल्कि कंपनी द्वारा लगाए गए मानहानि के आरोपों का भी सामना कर रहे हैं.

एक दशक पुरानी एडटेक फर्म एक्स्ट्रामार्क्स, किंडरगार्टन से लेकर कक्षा 12 तक के छात्रों के लिए विभिन्न भाषाओं में ऑनलाइन सीखने की सामग्री प्रदान करती है. कंपनी ने साल 2022 में अपने कारोबार को दोगुना कर करीब 1,000 करोड़ रुपये करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा था. इस प्लेटफार्म के उपाध्यक्ष, अर्पित अग्रवाल ने इस बात की पुष्टि की कि एक्स्ट्रामार्क्स ने कुमार के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था, लेकिन इस मुद्दे के विचाराधीन होने का हवाला देते हुए उन्होंने इस पर कोई और टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

कंपनियां कोशिश तो कर रही हैं, लेकिन उपभोक्ता आश्वस्त नहीं हैं

इस सारी अशांति, बेचैनी और दुख-दर्द के बीच एडटेक फर्मों का कहना है कि उन्होंने देश में छात्रों के लिए नुकसान से ज्यादा भलाई का काम किया है. अपग्रैड के मयंक कुमार का कहना है कि महामारी के दो वर्षों में उद्योग ने ‘अपना माद्दा साबित किया है.’ सिम्पलीलर्न के संस्थापक कृष्ण कुमार का तर्क है कि ‘एडटेक सेक्टर ने लर्निंग इकोसिस्टम पर सकारात्मक प्रभाव डाला है. मुफ्त शिक्षा लेने वालों की संख्या भुगतान करके सीखने वालों की तुलना में 100 गुना अधिक है.’

साल 2009 में लॉन्च किया गया, इस प्लेटफार्म का कहना है कि यह आईआईटी और आइवी लीग संस्थानों (जैसे हार्वर्ड, येल और प्रिंसटन) जैसे विश्वसनीय संस्थानों के साथ मिलकर पाठ्यक्रम डिजाइन करने के लिए सहयोग करता है.

लेकिन उपभोक्ता कार्यकर्ता, अभिभावक और इस उद्योग पर नजर रखने वाले इस बात से आश्वस्त नहीं हैं कि बॉटम लाइन से संचालित एक क्षेत्र में लाभ की तलाश करते समय छात्रों के हित को ध्यान में रखा जाएगा. सलाह और चेतावनियों से परे अधिक कड़े नियमों के साथ सरकार के हस्तक्षेप की मांग बढ़ती ही जा रही है.

शिक्षा के हिमायती अनिरुद्ध मालपानी, जो बायजूज के खिलाफ मुकदमे लड़ रहे हैं और सभी के लिए सस्ती शिक्षा के समर्थक हैं, ने कहा, ‘सरकार में बैठे नेता शिक्षा को सर्व उपलब्ध, सुलभ और सस्ती बनाने में एडटेक कंपनियों की भूमिका को समझते हैं. मुसीबत यह है कि वीसी फंड्स द्वारा वित्त पोषित एडटेक स्टार्टअप्स द्वारा की जा रही मुनाफाखोरी ने उनकी आक्रामक एवं गलत तरीके से की गई बिक्री के कारण बहुत अधिक विषाक्तता पैदा कर दी है.’

उन्होंने नेटफ्लिक्स जैसी सदस्यता प्रणाली का सुझाव दिया, जो अंतिम उपयोगकर्ता को पहुंच में हिस्सेदारी के लिए सशक्त बनाता है. छात्र 500 रुपये मासिक सदस्यता शुल्क का भुगतान कर सकते हैं और इस चीज को चुन सकते हैं कि वे क्या सीखना चाहते हैं.

भारत में एडटेक क्षेत्र के उदय के साथ की समानताएं चीन के मामले में पाई जा सकती है. सिवाय इसके कि शी जिनपिंग की सरकार ने चीनी बच्चों के हितों की रक्षा के लिए स्थानीय प्लेटफॉर्म्स के पर कुतरने के लिए कदम बढ़ाया हुआ है.

साल 2021 की गर्मियों में, एडटेक क्षेत्र के अभूतपूर्व उदय के दौरान, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने एक नियम जारी किया, जिसमें इस बात को अनिवार्य कर दिया गया कि मौजूदा निजी ट्यूशन कंपनियां गैर-लाभकारी संगठनों के रूप में पंजीकृत हों. सीसीपी के अनुसार, निजी ऑनलाइन शिक्षा जगत शैक्षिक असमानता को बढ़ावा दे रहा था और छात्रों पर दबाव बढ़ा रहा था.

हालांकि, शिक्षा विशेषज्ञ और विश्लेषक इस बात से सहमत हैं कि इस तरह के कठोर नियम भारत में काम नहीं करेंगे और इसके बजाय उन्होंने और अधिक सरकारी विनियमन की मांग की है.

उदाहरण के लिए, एडटेक प्लेटफॉर्म यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों के साथ काम कर सकते हैं कि उनकी पाठ्य सामग्री को राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) द्वारा अनुमोदित किया गया है. अन्य सुझावों में एडटेक प्लेटफॉर्म के लिए ऐसे सब्सक्रिप्शन की पेशकश करना अनिवार्य करना शामिल है, जिसे छूट के साथ पेश किये जाने वाले महंगे बहु-वर्षीय सब्सक्रिप्शन के बजाय मासिक रूप से नवीनीकृत किया जा सकता हो.

मालपानी ने कहा, ‘यह अच्छे एडटेक व्यवसायों के लिए भी बहुत बेहतर है, क्योंकि यह ग्राहक सेवा विभाग को हमेशा क्रियाशील रखता है, और चूंकि छात्र किसी से बंधे नहीं होते है अतः वे प्रतिस्पर्धियों के प्लेटफार्म पर स्विच करने के लिए स्वतंत्र होते है.’

वेदांतु क्लास लेती हुई योगिता | सोनिया अग्रवाल, दिप्रिंट

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कई एडटेक प्लेटफॉर्म ने छात्रों को उनके सीखने के परिणामों को बेहतर बनाने में मदद की है. जब लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद थे तो हरियाणा के खिदवाली गांव की 17 वर्षीय छात्रा योगिता भोडवाल ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा की तैयारी के दौरान अपनी वेदांतु की सदस्यता पर बहुत अधिक भरोसा किया.

उसने कहा, ‘मैं अपने सभी शिक्षकों को जानती थी और मुझे वास्तव में कक्षाओं में मज़ा आया. मेरी सारी शंकाओं का तुरंत समाधान कर दिया गया.’ लेकिन उसकी मां को 35,000 रुपये की कोर्स फीस देने के लिए संघर्ष करना पड़ा.

सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन में एडटेक वर्टिकल के निदेशक गौरी गुप्ता ने सुझाव दिया कि स्टार्टअप ‘पोस्ट-बबल फेज का उपयोग उन उत्पादों में निवेश करने के लिए कर सकते हैं जो सभी आय स्तरों के छात्रों के लिए सीखने के समाधान के सम्बन्ध में सहायता करते हैं और सीखने-सिखाने का लोकतंत्रीकरण करते हैं.

उन्होंने कहा, ‘इस तरह, कुलीन निजी स्कूलों और कम संसाधन वाले सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को समान पाठ्य सामग्री तक पहुंच मिलती है.’

विगत की गई भूल में सुधार का काम तो पहले से ही चल रहा है, लेकिन सबसे पहले, एडटेक प्लेटफार्मों को उस भरोसे को फिर से बनाने की जरूरत है जिसे उन्होंने गंवा दिया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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