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‘ये बर्बादी है’- चीन से ऑनलाइन MBBS करने वाले छात्र 2 साल की इंटर्नशिप के लिए मजबूर, कोई पैसा नहीं

कोविड प्रतिबंधों के कारण विदेश से ऑनलाइन डिग्री पूरी करने वाले मेडिकल छात्रों का दावा है कि भारत में 1 के बजाय 2 साल की इंटर्नशिप अनिवार्य करने का नया नियम उनके करिअर और आर्थिक हालत को प्रभावित कर रहा है.

दिप्रिंट टीम का चित्रण.

नई दिल्ली: मेडिकल छात्र जो अपने एमबीबीएस डिग्री के लिए चीन गए, वे कोविड महामारी के कारण अपनी शिक्षा में आई रुकावट और भारत में उनके लिए कड़े नियमों के कारण मौका नहीं पा रहे हैं.

जिन विदेशी मेडिकल स्नातकों (एफएमजी) को महामारी संबंधी प्रतिबंधों के कारण अपना चौथा और पांचवा साल ऑनलाइन पूरा करना पड़ा था, वे वर्तमान में देश के चिकित्सा शिक्षा नियामक, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) द्वारा पिछले साल जारी किए गए एक नियम से मुश्किल का सामना कर रहे हैं, जो उन्हें एमबीबीएस के बाद एक वर्ष के बजाय दो वर्ष की इंटर्नशिप पूरी करना अनिवार्य करता है.

छात्रों का कहना है कि इंटर्नशिप के इस अतिरिक्त वर्ष ने उन्हें नुकसान में डाल दिया है, क्योंकि जब तक वे इसे खत्म करेंगे, वे उन लोगों से जूनियर होंगे जिन्होंने उनके बाद एमबीबीएस शुरू किया था. इसके अलावा, छात्रों को पैसा नहीं मिलता है, जिससे उन पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है.

कुछ छात्रों ने नियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और समाधान का इंतजार कर रहे हैं. जबकि एनएमसी ने कहा है कि नियम आवश्यक है क्योंकि ऐसे छात्र अपने अंतिम वर्षों में क्लीनिकल ​​प्रैक्टिस से चूक गए, छात्र इसे ‘समय की बर्बादी’ कहते हैं.

उनका तर्क है कि इंटर्नशिप से पहले, उन्हें पहले फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन (एफएमजीई) को पास करना होगा, जो नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन (एनबीई) द्वारा अस्थायी मेडिकल रजिस्ट्रेशन के लिए आयोजित होने वाल एक स्क्रीनिंग टेस्ट है. इसकी तैयारी में भी अधिकांश छात्रों को लगभग एक वर्ष का समय लगता है, और कभी-कभी इससे भी अधिक समय लगता है.

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उनका दावा है कि इसके बाद इंटर्नशिप का अतिरिक्त वर्ष उन्हें वित्तीय और करिअर के लिहाज से पीछे धकेल रहा है.

2015 FMG बैच के नवीन कुमार ने चीन में पढ़ाई की है, जो वर्तमान में वाराणसी के एक अस्पताल में इंटर्नशिप कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि एफएमजीई को पास करने में उन्हें एक साल लग गया था और अब दो साल की इंटर्नशिप करने का उन्हें ‘कोई मतलब’ नहीं समझ में आ रहा है.

उन्होंने कहा, ‘चीन जैसे देशों से एमबीबीएस पूरा करने वालों को स्क्रीनिंग परीक्षा के लिए एक साल देना पड़ता है और अब हमें इंटर्नशिप में दो साल और बिताने होंगे. जो कुछ सीखने की जरूरत है वह एक साल में भी सीखा जा सकता है.’

कुमार के अनुसार, उनका बैच महामारी के साथ-साथ भारत सरकार की नीतियों से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है. उन्होंने कहा कि 2018 और 2019 में दाखिला लेने वाले जूनियर बैचों को चीन वापस आने की अनुमति दी गई थी – जिसने पिछले जून में भारतीयों के लिए दो साल का वीजा प्रतिबंध हटा दिया था – ताकि अंतिम वर्ष में उन्हें इस तरह के गंभीर स्थिति का सामना नहीं करना पड़े.

‘हमारा जीवन संकट में है’

2015 बैच की एफएमजी, कीर्ति रावत, जो अब दिल्ली के एक अस्पताल में इंटर्नशिप कर रही हैं, ने कहा कि चीन में अध्ययन करने से उनके जीवन के कई साल खप गए, जिसकी उन्होंने उम्मीद नहीं की थी.

FMGE क्लियर करने में उन्हें दो साल लग गए और उनकी इंटर्नशिप 2024 में ही खत्म होगी.

रावत ने कहा, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि सिर्फ एमबीबीएस में करीब 10 साल लगेंगे.’ ‘यह हम सभी के लिए बेहद मुश्किल हो रहा है और हमारे जीवन को संकट में डाल रहा है.’

2015 बैच के छात्रों के लिए, जो 2020 में अपना अंतिम वर्ष पूरा कर चुके होंगे, उन्हें एफएमजीई को मंजूरी देने के बाद 2 साल की इंटर्नशिप अनिवार्य करने वाले एनएमसी के आदेश के बारे में कोई संदेह नहीं है.

हालांकि, 2016 बैच के, जो 2021 में अपना अंतिम वर्ष पूरा कर चुके होंगे, उनका दावा है कि एनएमसी ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि नियम उन पर लागू होता है या नहीं.

पिछले दिसंबर में, एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और एनएमसी को इस मुद्दे के समाधान के साथ आने के लिए कहा था, लेकिन छात्रों का कहना है कि उनके पास अभी भी स्पष्टता नहीं है और वे अपनी इंटर्नशिप जारी रखे हुए हैं.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका की चल रही सुनवाई में एनएमसी ने 25 जनवरी को इस मामले पर जवाब देने के लिए और समय मांगा है. इसके बाद कोर्ट ने आयोग को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 6 सप्ताह का समय दिया है.

2016 बैच की डॉक्टर शालिनी सिंह, जो अब लखनऊ के एक अस्पताल में इंटर्नशिप कर रही हैं, ने कहा कि उनके पास चुकता करने के लिए स्टडी लोन है और स्टाइपेंड की कमी उनको खुद को संभाले रखना मुश्किल बना दिया है. फिलहाल वह पैसों के लिए अपने परिवार पर निर्भर हैं.

‘आदर्श रूप से इंटर्नशिप के एक साल बाद, डॉक्टर प्रैक्टिस के लिए योग्य होते हैं. उन्होंने पूछा, हमसे बेवजह दो साल क्यों कराया जा रहा है? ‘महामारी के दौरान, हर कोई ऑनलाइन अध्ययन कर रहा था, यहां तक ​​कि भारत में मेडिकल छात्र भी दवाओं के प्रैक्टिकल पहलुओं को ऑनलाइन सीख रहे थे. तो यह भेदभाव सिर्फ हमारे साथ ही क्यों हो रहा है?’


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