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पुल, सड़कें और मेडिकल कॉलेज- इंफ्रास्ट्रक्चर पर मोदी का पूरा जोर असम में BJP के लिए मददगार हो सकता है

विकास, कनेक्टिविटी और बुनियादी सुविधाओं के मामले में काफी पीछे रहे असम के लिए भाजपा की तरफ से दिखाई गई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और कल्याणकारी योजनाओं की साझी झलक एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है.

नलबाड़ी में निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल | फोटो: रूही तिवारी/ दिप्रिंट

गुवाहाटी: असम में गुवाहाटी से करीब दो घंटे की दूरी पर स्थित नलबाड़ी जिले में बोरीगांव में एक संकरी और धूल भरी सड़क में निर्माण कार्य पूरे जोरशोर से चल रहा है. यहां एक लंबे-चौड़े इलाके में लगभग 400 करोड़ रुपये की लागत वाला 500 बेड का एक विशाल नलबाड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल बनाया जा रहा है.

यह अस्पताल और मेडिकल कॉलेज, जिसका निर्माण 2019 में शुरू हुआ, राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार की तरफ से शुरू की गई कई महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से एक है.

नलबाड़ी में निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज | फोटो: रूही तिवारी/ दिप्रिंट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा यदि केंद्र के साथ-साथ कई राज्यों में निर्णायक जनादेश के साथ सत्ता हासिल करने में सफल रहती है तो इसका एक कारण उसकी तरफ से हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद के इतर पेश की जाने वाली विकास की एक दोहरी पहल भी है- बड़ी बुनियादी योजनाओं के रूप में स्पष्ट तौर पर नज़र आने वाले विकास कार्य और बेहतर ढंग से तैयार कल्याणकारी योजनाओं का नेटवर्क.

असम, एक ऐसा राज्य है जहां 2016 में भाजपा ने सत्ता हासिल करके सबको चौंका दिया था, इस मॉडल का एक आदर्श उदाहरण है.

शनिवार से मतदान शुरू करने जा रहे इस राज्य में भाजपा सरकार का सबसे अहम योगदान कुछ प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाएं हैं- हजारों किलोमीटर सड़कों से लेकर बड़े पुल, मेडिकल कॉलेज, अस्पताल और अन्य कॉम्लेक्स तक.

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एक ऐसे राज्य, और यहां तक कि पूरे क्षेत्र में ही, जो दशकों से बाकी हिस्से से कटा हुआ और बुनियादी सुविधाओं से वंचित था, में भाजपा सरकार के नेतृत्व में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और कल्याणकारी योजनाओं की साझी झलक बहुत मायने रखती है और यह नज़र भी आ रही है.

यह तथ्य इस बात से भी साफ नज़र आता है कि कैसे इस चुनाव में यह मतदाताओं के लिए एक अहम मुद्दा बन गया और इसके बारे में जिक्र करते ही वे पिछली सरकारों द्वारा किए गए कार्य की प्रकृति और गति की तुलना करने लगते हैं.

इस बीच, भाजपा भी इसकी अहमियत को बहुत अच्छी तरह समझ चुकी है. और यही वजह है कि वह अपने प्रचार अभियान के दौरान इसे लोगों के दिमाग में बैठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही.

राज्य भाजपा के एक विश्वस्त सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘बड़ी सड़कें, पुल आदि जैसे बुनियादी ढांचे विकास का मूर्त स्वरूप हैं और रोजगार सृजन में मददगार हैं. इन्हें लोगों को दिखाना आसान है और चुनाव के दौरान इस उपलब्धि का श्रेय भी लिया जा सकता है. सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पिछले पांच साल से असम के विकास में जुटी है.’

सूत्र ने कहा, ‘मुख्यमंत्री ने असम में पहली बिजनेस समिट कराने पर जोर दिया. उस बैठक के बाद रिकॉर्ड समय में उद्योगों के लिए भूमि उपलब्ध कराई गई. गनीमत है कि स्पष्ट बहुमत की वजह से सरकार अपनी विकास और कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर पाई, जो सुशासन को दर्शाने के लिए सबसे जरूरी है.’


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बुनियादी ढांचे पर जोर

स्पष्ट इंफ्रास्ट्रक्चर किसी भी क्षेत्र के पूरी दशा-दिशा बदल सकता और उसे विकास के पायदान पर ऊपर पहुंचा सकता है, और वहां के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने वाला भी होता है.

पूर्वोत्तर के अधिकांश हिस्से की तरह असम भी राजनीतिक, सामाजिक और भौगोलिकी स्थितियों के कारण तमाम तरह के मुश्किलों का सामना करता रहा है, जिसने इसके विकास को बाधित किया.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने राज्य के शीर्ष भाजपा नेतृत्व के साथ मिलकर यह अंतर पाटने में तत्परता दिखाई और इसे चुनावी और राजनीतिक रूप से इस्तेमाल करने की क्षमता को समझा.

एक बात साफ तौर पर नज़र आती है कि कैसे प्रधानमंत्री ने चुनावों के ऐलान से ऐन पहले असम में तमाम बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन किया और फरवरी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण का एक बड़ा हिस्सा न केवल असम बल्कि चुनाव वाले अन्य राज्यों में भी सड़क निर्माण के लिए धन आवंटन पर केंद्रित रहा.

असम सरकार की तरफ से मिले आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद से 4,000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया गया है. राज्य के लोक निर्माण विभाग ने अप्रैल 2016 से मार्च 2020 के बीच लगभग 650 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया है. इन राजमार्गों में 21 से अधिक दो लेन वाली सड़कें शामिल हैं.

पुल अपने नाम के अनुरूप ही अलग-थलग पड़े रहे तमाम हिस्सों को जोड़ने में मददगार बने और इनका प्रतीकात्मक तौर पर गहरा असर रहा. मोदी की भाजपा ने इस पर ध्यान केंद्रित किया और सेतु संबंधी अहम परियोजनाएं घोषित कीं.

संभवत: सबसे बड़ा बोगीबिल पुल भारत का सबसे लंबा रेल-सह-सड़क पुल था, जिसका उद्घाटन पीएम मोदी ने दिसंबर 2018 में किया था.

यह पुल 1985 में केंद्र में राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार द्वारा हस्ताक्षरित असम समझौते का हिस्सा था और इसे 1997-98 में संयुक्त मोर्चा सरकार ने मंजूरी दी थी.

लेकिन अपनी परियोजनाएं तेजी से आगे बढ़ाने और खुद ही उनका उद्घाटन करने वाले होने के नाते मोदी ने यह सुनिश्चित किया कि उन्हें इसका श्रेय मिले. यह पुल इस लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है कि यह डिब्रूगढ़ में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट को अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र धेमाजी स्थित सिलापाथर को जोड़ता है.

इसके अलावा लोहित नदी के तट पर स्थित ढोला-सदिया पुल, जिसका उद्घाटन 2017 में मोदी ने ही किया था, ने नदी के दोनों छोर के बीच लोगों के आवागमन के समय को कम से कम आठ घंटा कम कर दिया है.

यही नहीं 2011 में जब इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ जब केंद्र और राज्य दोनों में कांग्रेस की सरकार काबिज थी, लेकिन वह मोदी सरकार ही थी जिसने इस परियोजना को गति दी और इसे अपनी उपलब्धियों की सूची में जोड़ने में सफल रही.

इसके अलावा, असम सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 841 लकड़ी के पुलों को आरसीसी (सीमेंट कंक्रीट वाले पक्के पुल) में बदलने की मंजूरी दी गई थी जिनमें से 475 लगभग पूरे हो चुके हैं. करीब 1,200 नए आरसीसी पुल भी मंजूर किए गए हैं, जिनमें से लगभग 380 अब तक बन चुके हैं.

गुवाहाटी में बना नया सराईघाट ब्रिज | फोटो: रूही तिवारी/ दिप्रिंट

पुलों के अलावा पार्टी का फोकस मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों, शिक्षा संस्थानों और अन्य बड़ी परियोजनाओं पर रहा है.

इसी प्रकार, जहां अमीनगांव में असम न्यायिक अकादमी और नेशनल लॉ स्कूल स्थापित किया गया है, वहीं निराला और करीमगंज सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में नए इंजीनियरिंग कॉलेज भी बने हैं.

वहीं, नार्थ लखीमपुर, नागांव, नलबाड़ी, तिनसुकिया और कोकराझार में मेडिकल कॉलेज और अस्पताल निर्माणाधीन हैं.


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मतदाता क्या चाहते हैं

मतदाताओं को यह सब कुछ खूब लुभा रहा है. घोगरापार में नलबाड़ी मेडिकल कॉलेज के निर्माण स्थल से लगभग 3 किमी दूर अबानी बर्मन की छोटी सी दुकान है. उससे पूछें कि चुनाव के बारे में क्या सोचते हैं, किसे सत्ता में आना चाहिए और क्यों और तुरंत ही जवाब हाजिर होता है.

बर्मन कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि भाजपा को फिर आना चाहिए. उसके नेतृत्व में बहुत सारे काम हुए हैं, खासकर सड़कों का निर्माण. इस सबकी असम को बहुत ज्यादा जरूरत है. उदाहरण के लिए, हमारे निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज को देखें, यह कितना बड़ा और अहम है.’

बारपेटा जिले के टापा गांव में एक टी स्टाल पर कुछ लोगों का जमघट चाय की चुस्कियों के साथ राजनीति पर गरमा-गरम बहस में व्यस्त है. वहां मौजूद कुकुल दास कहते हैं, ‘भाजपा के शासनकाल में हमें सड़कें मिली हैं, पुल मिले हैं. पहले यह सब कुछ नहीं था, हमें अंतर एकदम साफ नज़र आ रहा है.’

बरपेटा जिले के मतदाता | फोटो: रूही तिवारी/ दिप्रिंट

उनके मित्र बासुदेव दास तुरंत उनके सुर में सुर मिलाते हुए कहते हैं, ‘हमें देखना चाहिए कि मोदी, हिमंत बिस्वा सरमा और सर्बानंद सोनोवाल ने हमें कितनी बुनियादी ढांचा और कल्याण योजनाएं दी है. ग्रामीण घर, सड़कें, पुल आदि बहुत कुछ मिला है. अगर वह सत्ता में रहते हैं तो असम देश के शीर्ष पांच राज्यों में से एक बन सकता है. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि हर स्तर पर भ्रष्टाचार और बिचौलियों की समस्या भी खत्म हो गई है.’

हालांकि, हर कोई पूरी तरह इस बात से सहमत नहीं है.

ऊपरी असम स्थित डिब्रूगढ़ के एक उद्योगपति, जो किसी राजनीतिक दल का पक्ष लेते या किसी की आलोचना करते नज़र आने से बचने के लिए अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते थे, ने कहा कि काफी कुछ हासिल किया गया है लेकिन पहले आधार कम होने के कारण यह कुछ ज्यादा ही बड़ा नज़र आ रहा है.

उन्होंने कहा, ‘बेशक, काफी कुशलता के साथ सड़कों और पुलों का निर्माण किया गया है. कनेक्टिविटी सुविधा और कारोबार को बढ़ाने में यह मददगार भी साबित हो रहा है. लेकिन यह इतना ज्यादा इसलिए भी लग रहा है क्योंकि पहले असम में शायद इसकी बहुत कमी थी. हमने जितना भी हासिल किया है उससे कहीं ज्यादा और ज्यादा तेजी से किए जाने की जरूरत है. मेरा मतलब है कि भाजपा सरकार को काफी कुछ करने की जरूरत है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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