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मोदी के पूर्व आलोचक से गुजरात BJP के उपाध्यक्ष तक- कौन हैं गौरव यात्रा में अहम भूमिका निभाने वाले गोवर्धन झड़फिया

कभी गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के करीबी और पीएम नरेंद्र मोदी के अन्य आलोचकों में शुमार रहे गोवर्धन झड़फिया के भाजपा के साथ रिश्ते काफी उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं.

गोरधन ज़दाफिया | ट्विटर

नई दिल्ली: पुराने सियासी खिलाड़ी, पूर्व विश्व हिंदू परिषद (विहिप) कार्यकर्ता और गुजरात के पूर्व गृह मंत्री—गुजरात में इस साल निकली भारतीय जनता पार्टी की गौरव यात्रा के प्रभारी 68 वर्षीय गोवर्धन झड़फिया को तमाम जिम्मेदारियां संभालने का अनुभव हासिल है.

कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी रहे गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय केशुभाई पटेल के करीबी माने जाने वाले झड़फिया फिलहाल गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष हैं.

गुजरात में भाजपा की गौरव यात्रा के 10 दिनों के भीतर 4,500 किलोमीटर की यात्रा करके खेड़ा जिले के फगवेल में अपना अंतिम चरण पूरा करने के मौके पर झड़फिया ने दिप्रिंट से कहा कि ‘लोगों का भरोसा इस यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण बात रही.’

झड़फिया ने कहा, ‘बात चाहे 1995 की हो जब भाजपा ने राज्य में सत्ता संभाली था या फिर 2002 की, भाजपा के प्रति लोगों का भरोसा बरकरार रहा है.’

भाजपा के साथ झड़फिया के रिश्ते काफी उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. 2002 में गुजरात दंगों के बाद उन्हें राज्य मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था.

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2008 में उन्होंने अपनी अलग पार्टी महागुजरात जनता पार्टी बनाई, और अंततः उसका केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी में विलय कर दिया गया.

झड़फिया ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं पार्टी (भाजपा) से अलग होने पर भी पछताया भी. पार्टी मेरी मां है. मैं इसी पार्टी से उभरा हूं, इसलिए राज्य में भाजपा को फिर से सत्ता में लाना मेरा कर्तव्य है.’

मोदी के साथ दूरी से लेकर 2017 में यात्रा की अगुवाई तक

झड़फिया को जानने वाले भाजपा पदाधिकारी उनके संगठनात्मक कौशल और हर पदाधिकारी की ताकत और कमजोरी समझने की उनकी क्षमता के कायल हैं.

झड़फिया के इस हुनर को देखकर ही 2018 में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें लोकसभा में सबसे अधिक सांसद भेजने वाले राज्य उत्तर प्रदेश का प्रभारी (नरोत्तम मिश्रा और दुष्यंत गौतम के साथ) बनाया था.

उनका यह दांव रंग भी लाया और पार्टी ने राज्य की 80 में से 62 सीटों पर जीत हासिल की. अब 2022 में जब भाजपा को आम आदमी पार्टी (आप) की तरफ से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, शाह और गुजरात भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष सी.आर. पाटिल ने पांच विभिन्न रूट वाली गौरव यात्रा के लिए झड़फिया पर ही भरोसा जताया.

झड़फिया कभी विहिप के पूर्व अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया और भाजपा के पूर्व महासचिव संजय जोशी जैसे नेताओं के करीबी माने जाते थे जो दोनों नरेंद्र मोदी के कट्टर आलोचक रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में झड़पिया और भाजपा के बीच संबंधों में काफी बदलाव आया है.


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1995 में भाजपा में शामिल होने से पहले झड़फिया करीब 15 साल तक विहिप से जुड़े रहे थे.

2000 के दशक की शुरुआत के साथ काफी कुछ बदल गया, जब वह राज्य के गृह मंत्री थे. राज्य में उसके बाद से चार मुख्यमंत्री रहे हैं, 2014 तक मोदी सत्ता में रहे, फिर उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद यह कुर्सी आनंदीबेन और फिर विजय रूपाणी को मिली और अंतत: बदले घटनाक्रम के बीच कमान भूपेंद्र पटेल के हाथों में आ गई.

भाजपा की यात्रा की बात करें तो इसकी शुरुआत 2002 में गुजरात दंगों के ठीक बाद हुई थी, जिसमें आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक 1,000 से अधिक लोगों—जिनमें अधिकांश मुस्लिम थे—ने अपनी जान गंवाई थी.

उस समय जब भाजपा की शीर्ष जोड़ी अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को भी केशुभाई पटेल की बढ़ती लोकप्रियता के आगे राज्य में भाजपा के सत्ता में आने का भरोसा नहीं था, मोदी ने फगवेल से यात्रा शुरू की थी.

2002 के बाद से यह यात्रा केवल दो बार हुई है—2017 के विधानसभा चुनावों से पहले जब आरक्षण को लेकर पाटीदारों के आंदोलन ने भाजपा की संभावनाओं को जोखिम में डाल दिया था, और अब 2022 में इसका आयोजन किया गया है.

‘पहली यात्रा के दौरान आक्रोशभरा माहौल था’ 2002 में गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों के दौरान झड़फिया राज्य के गृह मंत्री थे. उस समय मोदी सरकार को हालात पर काबू पाने की पर्याप्त कोशिशें न करने को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ रहा था.

झड़फिया ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि ‘पहली यात्रा कठिन थी’.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘माहौल एकदम आक्रोशभरा था. मुख्यमंत्री की सुरक्षा भी एक चुनौती थी जिसे हमें ध्यान रखना था. यात्रा के दौरान सीएम को पूरे राज्य को कवर करना था, इसलिए भी व्यापक स्तर पर तैयारियों की जरूरत पड़ी थी.’

झड़फिया ने बताया कि यह पूरा एक महीने तक चलने वाला आयोजन था.

उन्होंने बताया, ‘यात्रा के बीच में मुख्यमंत्री को गांधी नगर में बैठकों में भी हिस्सा लेना था. इसलिए हमने जगह-जगह हेलीपैड बनाए, ताकि वे दोनों काम कर सके. हमने छोटी-छोटी जगहों पर भी 50,000 से एक लाख तक लोगों के लिए बैठकें आयोजित कीं. पूरा कैडर भाजपा की सत्ता में वापसी सुनिश्चित करने में जुटा था.’

पार्टी के एक प्रवक्ता, पूर्व राज्यसभा सदस्य, और अपनी ईमानदारी के लिए ख्यात नेता जयंतभाई बरोट को उस यात्रा का प्रभारी बनाया गया था.

2013 में भाजपा में लौटे झड़फिया को पाटीदारों को अपना आंदोलन खत्म करने पर राजी करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. और 2017 में उन्हें आई.के. जडेजा के साथ गौरव यात्रा का प्रभारी बनाया गया. इसके पीछे भाजपा का उद्देश्य ये सुनिश्चित करना था कि पाटीदार आंदोलन का चुनाव में पार्टी की संभावनाओं पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े.

उस चुनाव में भाजपा सत्ता में वापसी करने में तो सफल रही लेकिन सीटें घटकर सिर्फ 99 रह गईं.

गुजरात भाजपा के एक सेक्रेटरी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि ‘2017 की यात्रा पाटीदारों की नाराजगी के कारण पहली यात्रा की तरह असरदार नहीं रही.’

उक्त नेता ने कहा, ‘पिछली यात्रा एक बड़ी सफलता थी. यात्राएं तभी सफल होती हैं जब वे किसी आंदोलन का नतीजा होती हैं जैसे राम मंदिर आंदोलन, जिसका नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी ने किया था. या फिर उन्हें नेतृत्व के लिए नरेंद्र मोदी जैसे नेता की जरूरत होती है. 2017 में यात्रा का नेतृत्व करने वाला कोई लोकप्रिय नेता नहीं था.’

यात्राओं की अहमियत

भाजपा की गौरव यात्रा का उद्देश्य मुख्यत: आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी कैडर और मतदाताओं को उत्साहित करना रहा है.

भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि पहली गौरव यात्रा के समय भाजपा की गुजरात इकाई में माहौल काफी तनावपूर्ण था.

नेता ने कहा, ‘वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर न तो उन्हें (मोदी) चाहते थे, और न ही सुरेश मेहता, काशीराम राणा और राजेंद्र राणा (राजेंद्रसिंह घनश्यामसिंह राणा) जैसे नेताओं को.’

उक्त नेता ने बताया कि केशुभाई पटेल को यात्रा में शामिल होने के लिए मनाया गया, जबकि गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री मेहता फगवेल में रैली शुरू होने से पहले ही चले गए. यही नहीं, तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजेंद्र राणा ने अपने भाषण में मोदी का जिक्र तक नहीं किया.

उन्होंने आगे कहा, लेकिन मोदी अडिग रहे. लोगों की प्रतिक्रिया देखते हुए उन्होंने इतालवी मूल को लेकर नेता सोनिया गांधी पर निशाना साधा और दंगों के ‘दोषियों’ पर राज्य में ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया.

भाजपा ने उस साल विधानसभा की 182 सीटों में से 127 पर जीत हासिल की थी.

2012 में ‘विवेकानंद युवा विकास यात्रा’ नामक एक अन्य यात्रा के प्रभारी रहे गुजरात के एक पूर्व मंत्री इंद्रविजयसिंह के जड़ेजा कहते हैं, ‘मोदी में लोगों के साथ जुड़ने की अनूठी क्षमता’ रही है और ‘मोदी एक ऐसे यात्री हैं जिन्होंने अपने शुरुआती जीवनकाल में ही यात्राओं की अहमियत को समझ लिया था.’

उन्होंने कहा, ‘उनका जीवन यात्राओं से भरा रहा है, चाहे बतौर प्रचारक हो या फिर जब वे गुजरात में आडवाणी की सोमनाथ यात्रा के प्रभारी थे.’

गुजरात भाजपा सचिव महेश कसवाला के मुताबिक, मोदी इस मामले में आडवाणी से ‘प्रेरित’ थे.

उन्होंने कहा, ‘आडवाणी कहा करते थे कि वह एक यात्री हैं और पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने जीवन में कई यात्राएं कीं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)



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