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ब्रिटेन में ऋषि सुनक के PM बनने पर विपक्ष बोला- क्या यहां ये मुमकिन है, BJP ने मनमोहन की याद दिलाई

थरूर ने ट्वीट किया कि अंग्रेजों का ‘किसी अल्पसंख्यक को अपने सबसे शक्तिशाली कार्यालय’ पहुंचाना एक ‘दुर्लभ’ कदम है. वहीं, शीर्ष भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर साधा निशाना. इस दौरान सोनिया गांधी के इतालवी मूल का मुद्दा भी उछला.

ऋषि सुनक का जन्म 1980 में साउथेम्प्टन में भारतीय माता-पिता के यहां हुआ था जो पूर्वी अफ्रीका से यूके चले गए थे | ट्विटर | @RishiSunak

नई दिल्ली: ऋषि सुनक के मंगलवार को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले पहले भारतवंशी बनने के साथ ही भारत में राजनीतिक बयानबाजी का एक नया दौर शुरू हो गया. विपक्ष ने जहां ‘बहुसंख्यकवादी’ राजनीति को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधा, वहीं सत्तारूढ़ पार्टी ने पलटवार करते हुए पूछा कि ‘इतालवी मूल’ की सोनिया गांधी द्वारा एक सिख मनमोहन सिंह के लिए प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ करना क्या था.

सुनक का संबंध उन भारतीय प्रवासियों के एक परिवार से है जो 1960 के दशक में केन्या और तंजानिया से यूके पहुंचे थे. उनके दादा-दादी का जन्म ब्रिटिशकालीन भारत में हुआ था और उनका जन्मस्थान गुजरांवाला अब पाकिस्तान में है.

ऋषि सुनक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी गए थे. वहीं पर उनकी मुलाकात अक्षता मूर्ति (उनकी पत्नी) से हुई, जिनके पिता एन.आर. नारायण मूर्ति दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस के संस्थापक हैं.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने सुनक के साथ-साथ अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का उदाहरण देते हुए कहा कि ‘भारत और बहुसंख्यकवाद की राजनीति करने वाली पार्टियों को इससे सबक लेना चाहिए.’

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए कहा कि अंग्रेजों ने अपने सबसे शक्तिशाली कार्यालय में ‘एक अल्पसंख्यक’ को लाकर ऐसा काम किया है जो ‘दुनिया में दुर्लभ’ है.

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इस पर पलटवार करते हुए भाजपा ने सवाल उठाया कि थरूर का ‘अल्पसंख्यक’ से क्या मतलब है. वहीं, मनमोहन सिंह का हवाला देते हुए यह भी पूछा कि क्या सिखों को ‘अल्पसंख्यक’ माना जा सकता है या नहीं.

इस बहस के दौरान निवर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके इतालवी मूल का मुद्दा भी उठा. भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट किया, ‘…इतालवी मूल की और रोमन कैथोलिक धर्म की एक महिला नेता सोनिया गांधी के नेतृत्व में चुनाव जीता गया, फिर उन्होंने एक सिख मनमोहन सिंह के लिए रास्ता साफ किया, जिन्हें एक मुस्लिम राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई. यह उस देश में हुआ जहां 81% आबादी हिंदू है. एसटी (शशि थरूर) की राजनीति अक्सर ही उनकी शानदार बातों से एकदम जुदा होती है.’


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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को सुनक को उनकी नई भूमिका के लिए बधाई दी थी. उन्होंने ट्वीट करके कहा, ‘हार्दिक बधाई @ऋषि सुनक! आप जब ब्रिटेन के पीएम बनने जा रहे हैं, मैं वैश्विक मुद्दों पर साथ मिलकर काम करने और 2030 का रोडमैप लागू करने के लिए तत्पर हूं. ब्रिटिश भारतीयों के ‘लिविंग ब्रिज’ को हमारे ऐतिहासिक संबंध एक आधुनिक साझेदारी में बदलने की उम्मीदों के साथ दीपावली की विशेष शुभकामनाएं.’

सिर्फ कांग्रेस ही भाजपा पर हमलावर नहीं दिखी, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी इसमें पीछे नहीं रहीं. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख ने एक ट्वीट में कहा, ‘यह गर्व की बात है कि अब यूके में पहली बार भारतीय मूल का कोई पीएम होगा. पूरा भारत इस बात की खुशी मना रहा है. इसके साथ ही हमें यह भी याद रखना होगा कि ब्रिटेन ने एक जातीय अल्पसंख्यक को अपने पीएम के तौर पर स्वीकारा है. वहीं, हम अभी भी एनआरसी और सीएए जैसे विभाजनकारी और भेदभावपूर्ण कानूनों में उलझे हैं.’

भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुफ्ती के बयान को लेकर उन पर निशाना साधा और पूछा कि क्या अल्पसंख्यक समुदाय के किसी नेता के जम्मू-कश्मीर सरकार का नेतृत्व करना उन्हें पसंद आएगा.

प्रसाद ने लिखा, ‘ब्रिटेन में ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर महबूबा मुफ्ती का ट्वीट देखा. महबूबा मुफ्ती जी! क्या आप जम्मू-कश्मीर में किसी अल्पसंख्यक को मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार करेंगी? कृपया बिना हिचकिचाहट के जवाब दीजिएगा.’

गौरतलब है कि 2015 में पीडीपी और भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार बनाई थी, जिसमें पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बतौर मुख्यमंत्री कार्यभार संभाला था. 2016 में उनके निधन के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने सीएम की कुर्सी संभाल ली थी. दो साल बाद, भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था.

भाजपा नेता ने कहा, ‘ब्रिटेन के बतौर पीएम ऋषि सुनक के चुनाव के बाद कुछ नेता बहुसंख्यकवाद को लेकर अति सक्रिय हो गए हैं. उन्हें याद दिलाना चाहूंगा कि असाधारण व्यक्तित्व वाले एपीजे अब्दुल कलाम यहां राष्ट्रपति रहे हैं, और मनमोहन सिंह 10 सालों तक प्रधानमंत्री के पद पर आसीन रहे थे. एक प्रतिष्ठित आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू अब हमारी राष्ट्रपति हैं. भारतीय मूल के काबिल नेता ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन रहे हैं. इस असाधारण सफलता पर हम सभी को उन्हें बधाई देनी चाहिए. लेकिन बड़े दुख की बात है कि कुछ भारतीय राजनेता इस मौके पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे.’

कांग्रेस में अलग-अलग राय?

हालांकि, कांग्रेस की तरफ से कम्युनिकेशन प्रभारी जयराम रमेश ने चिदंबरम और थरूर के बयानों से किनारा करने की कोशिश की.

एआईसीसी मुख्यालय में रमेश ने कहा कि यह तो अजीब ही बात होगी कि अब भारत को विविधता के मामले में अंग्रेजों से सबक लेना पड़े.’

उन्होंने कहा, ‘भारत विविधता के मामले में सालों से एक उदाहरण रहा है. लेकिन पिछले आठ सालों में हमने कुछ और तस्वीर देखी है. मुझे नहीं लगता है कि हमें किसी दूसरे देश से सबक लेने की जरूरत है. हमारा समाज अपने आप में अनेकता में एकता की मिसाल है.’

रमेश ने कहा कि अतीत में जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद, अब्दुल कलाम भारत के राष्ट्राध्यक्ष रह चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘अगर आगे कहूं तो मैं बरकतुल्लाह खान का उदाहरण दे सकता हूं जो राजस्थान के सीएम रहे थे. ए.आर. अंतुले भी सीएम रह चुके हैं. इसलिए, इस बारे में उन्हीं लोगों से पूछें जिन्होंने टिप्पणी की है. मैं किसी अन्य नेता की टिप्पणी पर कोई बयान नहीं दूंगा.’

उन्होंने कहा, ‘अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बने तब अटल बिहार वाजपेयी पीएम थे. वाजपेयी के विचारों और नरेंद्र मोदी की सोच में जमीन-आसमान का अंतर है क्योंकि वाजपेयी नेहरू युग की पीढ़ी वाले थे. मेरा अब भी यही मानना है कि वाजपेयी काफी हद तक नेहरू के दृष्टिकोण से प्रेरित थे. लेकिन नरेंद्र मोदी केवल इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि नेहरू की विरासत को कैसे मिटाया जाए.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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