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अयोध्या में एहतियात के नाम पर धारा 144 से जनाक्रोश बढ़ रहा है, प्रशासन की पोल भी खुल रही है

सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले को लेकर शहर में अतिरिक्त सुरक्षा दहशत फैला रही तो वहीं स्थानीय प्रशासन कानून व्यवस्था के मोर्चे पर विफल हो रहा.

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सुप्रीम कोर्ट, अयोध्या मंदिर क्षेत्र.

अयोध्या के रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में सुलह होगी (सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा विवादित भूमि पर दावा छोड़ देने की चर्चाओं के बीच जिसके आसार एक बार फिर बनते दिखाई दे रहे हैं) या फैसला आएगा, यह सवाल सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ द्वारा विवाद की सुनवाई पूरी कर लेने के बावजूद अपनी जगह है. लेकिन लगता है कि भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस सम्बन्ध में अपने कर्तव्यों का फैसला अभी से कर लिया है. उसके इस फैसले में उसकी राजनीतिक सुविधाओं को उसके प्रशासनिक दायित्वों के आगे-आगे चलते देखना जहां खासा दिलचस्प है, वहीं त्रासद भी.

इसे यों समझ सकते हैं कि गत 5 अक्टूबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने गृह नगर गोरखपुर में मोरारी बापू की रामकथा में इशारों-इशारों में कहा कि राम मन्दिर पर जल्द ही बड़ी खुशखबरी मिलने वाली है. इसे लेकर उनकी आलोचना होने लगी और पूछा जाने लगा कि क्या उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का फैसला पहले से मालूम है तो उनकी ओर से उक्त खुशखबरी को अयोध्या में उनकी सरकार द्वारा मनाये जाने वाले ‘भव्य दीपोत्सव’ से जोड़ दिया गया.


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अब उनकी सरकार एक ओर दीपावली पर समूची अयोध्या को जगमगाने की व्यापक तैयारियां कर रही है और दूसरी ओर हाई अलर्ट के नाम पर निषेधाज्ञा लागू करने के साथ पुलिस अधिकारियों की छुट्टियां रद्द कर और बड़ी संख्या में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की मांग करने जैसे कदमों से दहशत फैलाने में लगी हुई है. इसके चलते आम लोगों में इस कदर दहशत व्यापी हुई है कि स्थानीय अखबारों में रोज बरोज खबरें छप रही हैं कि शरारती तत्व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुरक्षित फैसला अचानक सुना देने, उसे लेकर बवाल होने और कर्फ्यू लगा दिये जाने की अफवाहें फैला रहे हैं.

इस बीच गत 14 अक्टूबर को तब खूब सनसनी फैली, जब विश्व हिन्दू परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल विवादित परिसर में दीपोत्सव मनाने की अनुमति मांगने अयोध्या मंडल के आयुक्त मनोज मिश्र के पास जा पहुंचा. मिश्र विवादित स्थल के पदेन रिसीवर हैं. दूसरे पक्ष ने कहा कि रिसीवर ने विहिप को इसकी अनुमति दी तो वह भी वहां नमाज़ पढ़ने की इजाज़त मांगेगा. गनीमत हुई कि रिसीवर ने यह कहकर विहिप के प्रतिनिधिमंडल को बैरंग लौटा दिया कि उसे ऐसी कोई अनुमति चाहिए तो सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाये, जिसने विवादित परिसर में यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दे रखा है.

तिस पर अलर्ट और निषेधाज्ञा के अनुपालन में स्थानीय प्रशासन किस कदर अपनी सुविधा के अनुसार दोहरे मापदंड अपनाये हुए है और भेदभाव बरतने पर आमादा है, उसे यों समझा जा सकता है कि अयोध्या मंडल कारागार के वरिष्ठ अधीक्षक ने कारागार परिसर में स्थित अशफाक उल्लाह खां के शहादत स्थल पर 22 अक्टूबर को उनकी जयंती पर होने जा रहे अशफाक उल्लाह खां मेमोरियल शहीद शोध संस्थान के पारम्परिक समारोह को भी यह कहकर अनुमति नहीं दी कि शहर में निषेधाज्ञा लागू है.

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ज्ञातव्य है कि स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान ऐतिहासिक काकोरी कांड में फांसी की सज़ा सुनाये जाने के बाद अशफाक उल्ला खां को 19 दिसम्बर, 1927 को इसी कारागार में शहादत हासिल हुई थी और उनके शहादत व जन्मदिवसों पर जेल के फांसी घर में उन्हें समारोहपूर्वक श्रद्धांजलियां अर्पित की जाती रही हैं. इस बार इसकी अनुमति न देने से उद्वेलित अशफाक उल्ला खां मेमोरियल शहीद शोध संस्थान के नेता सूर्यकांत पांडे का कहना है कि वे 22 अक्टूबर को इसके खिलाफ निषेधाज्ञा तोड़कर जेल तक मार्च करेंगे.

एक ओर निषेधाज्ञा को लेकर एहतियातन बताई जाने वाली इतनी कड़ाई जनाक्रोश भड़का रही है तो दूसरी ओर प्रशासनिक काहिली उसका मजाक उड़वाने से भी नहीं चूक रही. गत 15 अक्टूबर को सेना में भर्ती की शारीरिक दक्षता परीक्षा देने आए युवकों ने अयोध्या ज़िला मुख्यालय के रेलवे व बस स्टेशनों पर ही नहीं, डाक विभाग की आवासीय कॉलोनी में भी जमकर उत्पात मचाया, तो प्रशासन की ओर से कोई उनसे निषेधाज्ञा का पालन कराने नहीं आया.

फलस्वरूप उन्होंने जमकर अराजकता फैलाई. साथ ही तोड-फोड़ व महिलाओं से अभद्रता बरतकर सारे अलर्ट की हवा निकाल दी.

सोमवार रात से विभिन्न जगहों पर शुरू हुए उनके उपद्रव मंगलवार सुबह तक जारी रहे. कहते हैं कि सेना व ज़िला प्रशासन के अधिकारियों ने उक्त परीक्षा की तैयारी के लिए संयुक्त बैठक की थी, फिर भी उपद्रव के वक्त किसी के लिए तत्काल कुछ करना संभव नहीं हुआ.

युवकों की अराजक भीड़ ने चैराहों पर कब्जा जमाकर दुकानदारों के ठेले, मेज कुर्सियां व एटीएम के बोर्ड आदि तोड़ दिये और फल व समोसा आदि खाद्य पदार्थ लूट लिये. एक डेयरी का दूध भी लुटने से नहीं बचा.


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अयोध्या में सिविल लाइंस से रिकाबगंज हनुमानगढ़ी तक तो हालत यह थी कि एक सिपाही ने इन युवकों को रोकना चाहा तो उन्होंने उलटे उसे ही पिटाई के लिए धमकाया. पिटाई के भय से सिपाही ने भाग जाने में ही भलाई समझी. कई महिलाओं के गिड़गिड़ाने के बावजूद बेलगाम युवाओं को उन पर तरस नहीं आया. उन्होंने निर्भय होकर उनसे दुर्व्यवहार किया.

ये युवक मॉडल रेलवे स्टेशन अयोध्या के स्टालों पर टूटे तो रेलवे की सुरक्षा एजेंसियां भी असहाय नज़र आईं. इस दौरान आरपीएफ और जीआरपी के जवान गश्त करते दिखे, लेकिन किसी ने दखल नहीं दी.

इस सारे घटनाक्रम से डरे हुए अयोध्या के लोग कह रहे हैं कि अगर सरकारी अलर्ट और निषेधाज्ञा का यही हाल रहा तो ‘आगे हमारा भगवान ही मालिक है.’

(लेखक जनमोर्चा अख़बार के स्थानीय संपादक हैं, यह लेख उनका निजी विचार है)

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