होम 2019 लोकसभा चुनाव ‘मैं अयोध्या हूं, मंदिर से हटकर भी मुझे समझें’

‘मैं अयोध्या हूं, मंदिर से हटकर भी मुझे समझें’

अयोध्या का जिक्र होते ही हमारे जेहन में अक्सर राम मंदिर मुद्दा आ जाता है. मंदिर से हटकर यहां कई असल मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा नहीं होती.

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अयोध्या का विहंगम नजारा, फाइल फोटो | प्रशांत श्रीवास्तव

अयोध्या: अयोध्या का जिक्र होते ही हमारे जेहन में अक्सर राम मंदिर मुद्दा आ जाता है. कारण ये भी है पिछले ढाई दशकों से अयोध्या को हम एक ही नजर से देखते आ रहे हैं. चाहे किसी नेता का भाषण हो या टीवी डिबेट्स अयोध्या का जिक्र करते ही नेता, एंकर मंदिर मुद्दे पर ही पहुंच जाते हैं. बीते शुक्रवार कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी हनुमान गढ़ी मंदिर दर्शन करने पहुंचीं. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यहां से निशाना साधा. मामला फिर पाॅलिटिकल हो गया. इस दौरान जब हम अयोध्या पहुंचे तो लोगों से मोदी-प्रियंका से हटकर उनके आम जीवन से जुड़े मुद्दों पर बातचीत की जिसमें निकलकर आया कि अयोध्या के अपने असल मुद्दे दूसरे हैं जिन पर इस चुनाव में नेताओं का ध्यान देना चाहिए.

आम पब्लिक की नजर में रोजगार है बड़ा मुद्दा

हनुमान गढ़ी मंदिर से लगभग 500 मीटर दूर तुलसी चौरा में रहने वाले 55 वर्षीय राम कुमार ने बताया कि अयोध्या में पर्यटन के अलावा ज्यादा कुछ नहीं. बच्चे नौकरी की तलाश मेें बाहर रहते हैं. वह अपनी पत्नी के साथ रहते हैं और एक दुकान पर नौकरी करते हैं जिससे उनका खर्चा चलता है. एक निजी सेंटर पर बच्चों को कंप्यूटर पढ़ाने वाले रमेश उपाध्याय ने बताया कि ज्यादातर छात्र अच्छी शिक्षा के लिए लखनऊ ही जाते हैं. खासतौर से टेक्निकल कोर्सेज के लिए यहां ज्यादा संस्थान भी नहीं हैं.

हनुमान गढ़ी के पास प्रसाद की दुकान लगाने वाले राम रूप ने कहा कि मंदिर मुद्दा जल्द ही निपट जाए तो ठीक ताकि दूसरे मुद्दों पर सरकारों का ध्यान जाए. शास्त्रीनगर की रहने विमला देवी ने बताया कि अच्छे काॅन्वेंट स्कूलों की काफी कमी है. इसी कारण बच्चे का एडमिशन लखनऊ के एक निजी स्कूल में करवाया है.

शिक्षा- स्वास्थ्य का हाल बेहाल

नया घाट पर आरती करने वाले पंडित रीतेश मणि का कहना है कि अयोध्या का माहौल टीवी डिबेट्स के माहौल से अलग है. यहां हिंदू-मुस्लिम मिल-जुलकर रहते हैंं. हालांकि यहां रोजगार बहुत बड़ा मुद्दा है. यहां न कोई फैक्ट्री है और न ही कोई ऐसी व्यवस्था जिसके जरिए युवा रोजगार पा सकें. वहीं किसी को अगर कोई बड़ी बीमारी हो जाती है तो इलाज के लिए लखनऊ का रुख करना पड़ता है.

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एक दुकान पर बैठे चाय पी रहे संतोष कुमार गुप्ता बताते हैं कि बच्चों को पढ़ाने के लिए अच्छे स्कूल भी आसपास नहीं है. फैजाबाद (अयोध्या) शहर ही उन्हें भेजना पड़ता है. हालांकि सड़क व बिजली की व्यवस्था में यहां सुधार हुआ है लेकिन पर्यटन हब बनाए जाने की बात चल रही थी, ऐसा फिलहाल होता नहीं दिख रहा.

आयोध्या में एक मूर्ति की दुकान का हाल | प्राशांत श्रीवास्तव

न कोई बड़ी फैक्ट्री, न बड़ा अस्पताल

श्रंगारहाट के रहने वाले समीर सिंह ने बताया विकास के पैमाने पर उस अयोध्या की तस्वीर कितनी बदरंग है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोज़गार के नाम पर अयोध्या में किसी भी बड़े उद्योग या कारखाने की शुरुआत नहीं हुई जिस से इस शहर का युवा रोज़गार पा सके और अपना भविष्य सुधार सके, जिसके चलते अयोध्या में पढ़ने वाला युवा नौकरी और रोजगार के लिए दूसरे शहरो में जाने के लिए मजबूर हैं.

व्यापारियों के हैं अपने मुद्दे

यहां मंदिरों में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के कारण बाजार में रौनक जरूर दिखती है लेकिन व्यापारियों के अपने भी मुद्दे हैं. नोटबंदी व जीएसटी से ज्यादा उन्हें तकलीफ इस बात की है कि बनारस, हरिद्वार की तरह अयोध्या को अभी तक टूरिज्म हब के तौर पर डेवलप किया गया. यहां भगवान की प्रतिमाएं बेचने वाले अनिल कुमार बताते हैं कि बाहर के श्रद्धालु उनकी दुकान पर आते हैं लेकिन अगर अयोध्या का बड़े स्तर पर विकास किया जाए तो श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा होगा और प्रतिमाओं की भी खूब बिक्री होगी.

लोगों से बातचीत में निकलकर आया कि उनके सड़क, बिजली, पानी, चिकित्सा जैसे तमाम मुद्दे हैं जो चर्चा से गायब हैं. जनता अब माहौल से ज्यादा अपने मुद्दों पर बात करना चाह रही है.

अयोध्या के सरयू नदी के तट पर अस्त होते सूरज का नजारा | प्रशांत श्रीवास्तव

क्या है इस बार का चुनावी माहौल

अयोध्या फैजाबाद लोकसभा सीट में आता है. बीजेपी से यहां लल्लू सिंह सांसद हैं जो फिर से ताल ठोकेंगे. वहीं कांग्रेस ने पूर्व सांसद निर्मल खत्री को टिकट दिया तो सपा-बसपा गठबंधन की ओर से आनंद सेन चुनाव लड़ रहे हैं. यहां मुकाबला त्रिकोणीय है जिसका लाभ भाजपा को मिल सकता है. यहां के पत्रकारों का कहना है कि एयर स्ट्राइक के बाद राष्ट्रवाद बड़ा मुद्दा हो गया है. मंदिर मुद्दा अभी उतनी चर्चा में नहीं लेकिन फैजाबाद सीट पर ये अहम मुद्दा हमेशा से ही माना जाता रहा है. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि इस बार अयोध्यावासी अपने असली मुद्दों को ध्यान में रखते हुए वोट करेंगे. ऐसे में इस त्रिकोणीय मुकाबले में अभी किसी को मजबूत या कमजोर बताना जल्दबाजी होगा.

फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की पांच सीटें आती हैं, जिनके नाम हैं दरियाबाद, बीकापुर, रुदौली, अयोध्या और मिल्कीपुर, जिसमें मिल्कीपुर की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. 84 प्रतिशत आबादी हिंदू और 14 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम है. बता दें कि फैजाबाद लोकसभा सीट 1957 में वजूद में आई, इसके बाद से अब तक 15 बार चुनाव हुए हैं. इस सीट पर कांग्रेस 7 बार जीत चुकी है. जबकि बीजेपी चार बार और सपा-बसपा-सीपीआईएम- भारतीय लोकदल एक-एक बार जीत दर्ज कर चुकी हैं.

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