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भारत में मौतों के अनुमान के कारण WHO ने विश्वसनीयता खोई- हिंदुत्व समर्थक प्रेस ने इस हफ्ते क्या लिखा

दिप्रिंट के राउंड-अप में जानें कि हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने पिछले हफ्ते विभिन्न समाचारों और सामयिक मुद्दों को कैसे कवर किया और उन पर क्या टिप्पणी की.

चित्रण | दिप्रिंट टीम

नई दिल्ली: ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है.’ यह टिप्पणी आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने भारत में कोविड से मौतों पर इस वैश्विक निकाय के अनुमानों के संदर्भ में अपने एक लेख में की है.

डब्ल्यूएचओ ने दावा किया है कि भारत में कोविड के कारण करीब 47 लाख मौतें हुईं, जो आधिकारिक आंकड़े की तुलना में करीब 10 गुना अधिक हैं.

महाजन ने अपने ब्लॉग में लिखा, ‘डब्ल्यूएचओ को यह कहते उद्धृत किया जा रहा है कि यह आंकड़ा केवल कोविड से होने वाली मौतों का नहीं है, बल्कि इसमें उन लोगों की मौतें भी शामिल हैं जो अन्य बीमारियों से पीड़ित थे और जिन्हें कोविड के कारण लॉकडाउन की अवधि में उचित चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाई. हालांकि, आंकड़ों में यह बड़ा अंतर सीधे तौर पर केवल कोविड से हुई मौतों से आता है.’ साथ ही आगे दावा किया कि स्वास्थ्य संगठन ‘महामारी के दौरान अपनी गतिविधियों में खामी के कारण विवादों में घिरा है.’

उन्होंने यह भी दावा किया कि डब्ल्यूएचओ ने इस जानकारी को ‘छिपाने’ की कोशिश की कि ‘संक्रमण चीन की वुहान लैब से फैला था.’

महाजन लिखते हैं, ‘…दुनियाभर में एक मजबूत राय के बावजूद डब्ल्यूएचओ यह तर्क देता रहा कि यह (संक्रमण) चीन के पशु बाजार से फैला है. दुनियाभर के अधिकांश विशेषज्ञों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस दावे को खारिज कर दिया है.’

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उनके ब्लॉग ने आगे कहा गया है कि ‘स्पष्ट तौर पर’ ऐसा लगता है कि डॉ. टेड्रोस अदनोम ग्रेबेएसिस ‘केवल चीन के समर्थन से’ डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक बने थे, और ‘ऐसी स्थिति में, विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख चीन को नाराज नहीं कर सकते थे.’

इस बीच, आरएसएस के अंग्रेजी प्रकाशन ऑर्गनाइजर ने इस हफ्ते टेस्ला के सीईओ एलन मस्क को समर्पित एक कवर स्टोरी चलाई, जो ट्विटर को खरीदने के लिए सफल बोली के बाद से सुर्खियों में बने हुए हैं.

इस हफ्ते आरएसएस, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और सहयोगी संगठनों से संबद्ध प्रकाशनों के अलावा कुछ दक्षिणपंथी लेखकों के लेखों में जो अन्य मुद्दे सुर्खियों में रहे, उनमें बिजली संकट के लिए आम आदमी पार्टी (आप) को जिम्मेदार ठहराना, जोधपुर में सांप्रदायिक हिंसा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूरोप यात्रा और तमिलनाडु में चरक शपथ पर द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के नेतृत्व वाली सरकार और केंद्र के बीच गतिरोध आदि शामिल हैं.


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‘लगता है कि वाम-उदारवादियों को मस्क के तौर पर अपना मैच मिल गया’

ऑर्गनाइजर में वरिष्ठ पत्रकार और सुरक्षा विश्लेषक एन.सी बिपिंद्र की ‘वोक्स वर्सेज मस्क: व्हाई लेफ्ट मेल्टडाउन इज नॉट सरप्राइजिंग’ शीर्षक वाली कवर स्टोरी में कहा गया है कि ट्विटर अधिग्रहण की खबर ने ‘वाम-उदारवादी केबल को कैसे अपसेट कर दिया है जो सूचना पारिस्थितिकी तंत्र को नियंत्रित करना चाहता है और नैरेटिव मैनिपुलेट करना चाहता है.’

बिपिंद्र ने आगे लिखा, ‘लगता है कि वाम-उदारवादियों को सुपर कॉन्फिडेंट मस्क के तौर पर अपना मैच मिल गया है, यहां तक कि ट्विटर बोर्ड ने भी साफ तौर पर दर्शाया है कि पैसा उनके राजनीतिक झुकाव से कहीं अधिक मायने रखता है.’

बिपिंद्र ने लिखा, ‘हालांकि, हो सकता है भारत में ट्विटर इंक में शीर्ष स्तर पर होने वाले बदलाव इस पर अपना असर दिखाएं कि माइक्रोब्लॉगिंग साइट खुद को कैसे संचालित करती है, जिसका हालिया वर्षों में एक से ज्यादा मौकों पर भारत सरकार के साथ टकराव हो चुका है, और अदालत की तरफ से उसे भारत में काम करते हुए यहां के कानूनों का पालन करने का निर्देश दिया जा चुका है.

जोधपुर हिंसा

ऑर्गनाइजर के एक अन्य लेख में इस महीने की शुरुआत में राजस्थान के जोधपुर में हिंसा के बाद सांप्रदायिक तनाव की घटना के बारे में चर्चा की गई है.

जोधपुर हिंसा हिंदू और मुस्लिम पुरुषों के गुटों के बीच विवाद से शुरू हुई, जो ईद और परशुराम जयंती के मौके पर शहर के जालोरी गेट चौराहे पर धार्मिक झंडे और बैनर लगा रहे थे. मामूली विवाद अंततः सांप्रदायिक हिंसा में बदल गया, जिसमें कम से कम 33 लोग घायल हो गए.

ऑर्गनाइजर के लेख में दावा किया गया कि जब ‘मुस्लिम भीड़ ने निर्दोष हिंदुओं के खिलाफ हिंसा शुरू की’, तो कांग्रेस-नीत राजस्थान सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई.

इसमें कहा गया है, ‘यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि यह इस तरह की दूसरी घटना थी, इससे पहले अप्रैल में हिंदू नववर्ष के अवसर पर करौली में निकाले जा रहे जुलूस पर पथराव किया गया था. इस दौरान भी दो समुदायों के आमने-सामने आ जाने के कारण झड़प हुई थी. इस घटना में कई वाहनों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया और दर्जनों लोग घायल हो गए.’

इस लेख में आगे कहा गया है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा को पत्र लिखा था, और इसमें उन्होंने ‘कांग्रेस सरकार की तुष्टिकरण की राजनीति के कारण राज्य में बढ़ती अराजकता और वैमनस्य’ की ओर उनका ध्यान आकृष्ट किया था.


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‘डीएमके के लिए हमारे अतीत से जुड़ी कोई भी चीज अभिशाप’

ऑर्गनाइज़र के ताजा अंक में डॉक्टरों के लिए हिप्पोक्रेटिक शपथ के प्राचीन भारतीय तरीके चरक शपथ को लेकर तमिलनाडु की डीएमके-नीत सरकार और केंद्र के बीच हालिया गतिरोध के बारे में भी चर्चा की गई है.

30 अप्रैल को सरकार संचालित मदुरै मेडिकल कॉलेज के प्रथम वर्ष के छात्रों ने अपने आरंभिक समारोह के दौरान हिप्पोक्रेटिक शपथ के स्थान पर महर्षि चरक के नाम पर शपथ ली, जिस पर तमिलनाडु के वित्त मंत्री पलानीवेल त्यागराजन ने कथित तौर पर आपत्ति जताई थी.

तमिलनाडु भाजपा के उपाध्यक्ष के. कनागसाबपति ने लिखा, ‘डीएमके के लिए हमारे अतीत से जुड़ी कोई भी चीज अभिशाप की तरह है, भले ही वह तमिलनाडु से ही संबंधित क्यों न हो. इसलिए वे चोलों, चेरों, पांडवों या पल्लवों के बारे में ज्यादा बात करने से कतराते हैं. वे इस पर गौरव नहीं करते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वे पवित्र, धार्मिक, स्थापित मंदिर थे और तमिल संस्कृति को पोषित करते थे.’

‘मुफ्त बिजली का लालच देश की वितरण कंपनियों को कंगाल बना रहा’

आरएसएस के हिंदी प्रकाशन पांचजन्य की कवर स्टोरी जलवायु न्याय पर केंद्रित थी. इसने दिल्ली और पंजाब में सत्तासीन आप की ‘मुफ्त की राजनीति’ को बिजली संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया.

दीपक उपाध्याय ने लिखा, ‘बिजली संकट का दूसरा सबसे बड़ा कारण मुफ्त बिजली और उसकी चोरी है. दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में मुफ्त बिजली का लालच देश की बिजली वितरण कंपनियों को कंगाल बना रहा है. इस समय देश की बिजली वितरण कंपनियों को करीब 5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा. इस वजह से ये कंपनियां महंगी बिजली नहीं खरीद पा रही हैं और बिजली कटौती कर रही हैं. अगर कोई राज्य मुफ्त बिजली देने की घोषणा करता है, तो उसकी लागत कहीं और से वहन करनी पड़ती है.’

उपाध्याय ने आगे लिखा कि बिजली की कोई कमी नहीं है, और संकट केवल ‘खराब प्रबंधन’ के कारण उभरा है.


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‘देश को श्रम प्रधान योजना, तकनीक की जरूरत’

देश में बढ़ती बेरोजगारी पर चिंता जताते हुए श्रम अधिकारों पर काम करने वाले आरएसएस से संबद्ध संगठन भारतीय मजदूर संघ ने अपनी मासिक पत्रिका विश्वकर्मा संकेत में कहा कि देश को ‘श्रम प्रधान योजना, श्रम प्रधान प्रौद्योगिकी और श्रम प्रधान अर्थव्यवस्था की जरूरत है.’

पत्रिका में एक संपादकीय में लिखा गया है, ‘संयुक्त राष्ट्र विश्व जनसंख्या पूर्वानुमान के मुताबिक, भारत में कामकाजी आबादी (15 से 59 वर्ष की आयु) 88 करोड़ है. 2045 में यह बढ़कर 102 करोड़ हो जाएगी. ऐसे में रोजगार परिदृश्य और इसे प्रभावित करने वाले कारकों का सही तरीके से आकलन करने से ही रोजगार समस्या का समाधान संभव होगा.’

लेख में आगे कहा गया कि बीएमएस ने अक्सर राष्ट्रीय रोजगार नीति की मांग उठाता रहा है. इसमें कहा गया है, ‘रोजगार एक ऐसा मुद्दा है जो कई फैक्टर से प्रभावित होता है. कोई व्यक्ति कार्यशील जनसंख्या, सामाजिक मूल्यों, कार्य की प्रकृति, शैक्षिक नामांकन के आधार पर कार्यबल में शामिल होता है. देश को श्रम प्रधान योजना, श्रम प्रधान प्रौद्योगिकी और श्रम प्रधान अर्थव्यवस्था की जरूरत है.

बीएमएस अध्यक्ष हिरणमय पंड्या ने भी एक अलग लेख में ‘कार्यकर्ताओं’ के लिए सलाह के कुछ बिंदु सुझाए हैं.

उन्होंने लिखा, ‘समाज में अपेक्षित परिवर्तन की गति इससे निर्धारित होती है कि हमने इस विचार को कितनी गहराई से समझा है और इस पर कितनी गहराई से मंथन किया है. क्या हम अब भी उतने ही सक्रिय हैं जितने प्रतिकूल परिस्थितियों के दौरान थे? क्या अनुकूल परिस्थितियों ने हमें आलसी बना दिया है?’

पंड्या ने कहा, ‘समय के साथ समाज से सीधा संपर्क कटने के कारण कई संगठन खत्म हो गए हैं. यह हम सबके साथ होने की संभावना नहीं है क्योंकि हम नियमित रूप से बैठकें करते रहते हैं. लेकिन किसी भी संभावना से पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता है.’

जेएनयू प्रोफेसर ने सरकार से धर्मस्थल अधिनियम हटाने को कहा

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रवेश कुमार ने विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की पाक्षिक पत्रिका हिंदू विश्व में लिखे एक लेख में सरकार से धर्मस्थल अधिनियम, 1991 हटाने का आग्रह किया. इसके पीछे उनका तर्क है कि इस्लामी आक्रमणकारियों ने कई हिंदू स्थलों को ध्वस्त कर दिया था.

उन्होंने लिखा, ‘यह साबित करने में हिंदू समुदाय को दशकों लग गए कि अयोध्या में भगवान राम का मंदिर है, जबकि ज्ञानवापी मस्जिद का मामला अभी चल रहा है. इसके लिए कांग्रेस सरकार भी जिम्मेदार है, जिसने धर्म स्थल अधिनियम, 1991 पारित किया. यहां तक कि मुस्लिम इतिहासकार भी मानते हैं कि कई स्मारक पहले हिंदू धर्मस्थल थे….आखिर इन स्थलों को वापस लेने और एक बार फिर हिंदू गौरव स्थापित करने में क्या हर्ज है?’

मोदी का यूरोप दौरा

इस बीच, पूर्व राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ने ट्विटर पर नवीनतम यूरोप यात्रा के संदर्भ में मोदी के दौर में कूटनीति में नजर आ रहे अंतर के बारे में लिखा.

पुंज ने लिखा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने दुनिया को शांति और सद्भाव का संदेश दिया है. ऐसा पंडित नेहरू के समय भी हुआ करता था. पंचशील सिद्धांत उसी का एक उदाहरण है. लेकिन दोनों में एक बड़ा अंतर है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘261 ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध जीतने के बाद शांति का आह्वान किया था, जिसे दुनिया अभी भी प्रभावशाली मानती है. यदि अशोक कलिंग में विजयी नहीं होता, तो क्या उसकी शांति और सद्भाव की बातों का कोई मूल्य होता? सच तो यही है कि किसी पराजित, कमजोर के चेहरे से शांति और भाईचारे की अपील कायरता मानी जाती है. पं. नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल तक स्वतंत्र भारत की यात्रा को इसी संदर्भ में समझा जा सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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