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जयपुर शाही परिवार के 15,000 करोड़ के विवाद का हुआ फैसला, सालों पुराने झगड़े के खत्म होने के आसार

महाराज देवराज सिंह का कहना है कि वो अपने अलग हो चुके कज़िन्स के साथ ‘शांति से रहना’ चाहते हैं, लेकिन जयपुर के इस पारिवारिक झगड़े की जड़ें गहरी हैं और सिरे ढीले हैं. दिप्रिंट मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश करता है.

जयपुर में जय महल में शतरंज की बिसात की मूर्तियां | फोटो: प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

जयपुर: लिली पूल के मैदानों में टहलते हुए महाराज देवराज सिंह बहुत सुकून में नज़र आते हैं- वो महल जो एक समय उनकी स्वर्गीय दादी राजमाता गायत्री देवी का आवास था. एक टीशर्ट और मस्टर्ड पैंट्स के ऊपर एक लंबा काला कोट और एक रंगीन राजस्थनी मोजरी पहने देवराज ने, दिप्रिंट को बताया कि वो भविष्य को लेकर आशावान हैं.

जयपुर शाही परिवार की दो शाखाओं के बीच, लंबे समय तक चली संपत्ति की लड़ाई ख़त्म हो गई है और देवराज विरोधी बन चुके अपने संबंधियों की ओर शांति का हाथ बढ़ाने को तैयार हैं.

इसी महीने, सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता से लंबे समय से चले आ रहे पारिवारिक विवाद में, दो विशाल संपत्तियों पर पारस्परिक रूप से स्वीकार्य एक समझौता हो गया, जिनकी कुल अनुमानित क़ीमत 15,000 करोड़ रुपए है- रामबाग़ पैलेस और जय महल जो दोनों जयपुर में ताज समूह के पांच सितारा होटलों के रूप में काम कर रहे हैं. इनमें से किसी भी हैरिटेज संपत्ति में एक कमरे के लिए भारी किराया चुकाना होता है, जो एक रात के लिए दसियों हज़ार रुपए से शुरू होता है.

देवराज ने कहा कि इन संपत्तियों से होने वाली आय से, उन्हें ग्रामीण विकास और राजस्थान में विरासत संरक्षण के अपने सपने को साकार करने में सहायता मिलेगी. लेकिन उनकी प्राथमिकताओं में टूटे हुए पारिवारिक रिश्तों को जोड़ना भी शामिल है.

देवराज ने कहा, ‘मैं अपने कज़िन्स के पास जाउंगा, भले वो मेरे पास न आएं. हम शांति के साथ एक साथ रहना चाहते हैं. मैं उनके साथ मिलकर काम करना चाहता हूं, उनकी सहायता करना चाहता हूं’.

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लिली पूल के बगीचे में देवराज सिंह| फोटो: प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

उनके ये रिश्तेदार हैं पृथ्वीराज सिंह और जयसिंह के बच्चे, जो 1922 से 1947 तक जयपुर के शासक रहे- महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय और उनकी दूसरी पत्नी महारानी किशोर कंवर के बेटे थे.

देवराज सिंह और उनकी बहन लालित्य देवी जगत सिंह के बच्चे हैं, जो मान सिंह द्वितीय और उनकी तीसरी पत्नी गायत्री देवी के इकलौते बेटे थे.

समझौते के अनुसार, देवराज और लालित्य को जय महल पैलेस का मालिकाना हक़ मिलेगा, जबकि उनके सौतेले चाचाओं और चचेरे भाइयों के पास, रामबाग़ पैलेस का पूरा स्वामित्व बना रहेगा. ये समझौता कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थ जोज़फ कुरियन द्वारा कराया गया, जो सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज हैं.

हालांकि समझौते को ‘मैत्रीपूर्ण’ बताया जा रहा है, लेकिन परिवार की दो शाखाओं के बीच काफी वैमनस्य रहा है, और संपत्ति के स्वामित्व को लेकर अभी बहुत से सवाल हैं, जिन्हें सुलझाया जाना बाक़ी है.

मसलन, लिली पूल के बारे में अभी भी भ्रम बना हुआ है. ये बंगला रामबाग़ से बिल्कुल सटा हुआ है, और बहुत से लोग इसे महल का विस्तार मानते हैं. लेकिन देवराज इससे सहमत नहीं हैं, और कहते हैं कि ये उनका आवास है.

देवराज ने कहा, ‘मामला कोर्ट के विचाराधीन है, इसलिए मैं विस्तार में नहीं जा पाउंगा, लेकिन हर कोई जानता है कि लिली पूल राजमाता साहब का आवास था. ये रामबाग़ का हिस्सा नहीं है’.

लड़ाई की शुरुआत

देवराज सिंह और लालित्य देवी 2006 से उस संपत्ति के लिए एक क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसे वो अपने पिता जगत सिंह की विरासत बताते हैं, लेकिन इस लड़ाई की जड़ें कहीं ज़्यादा गहरी हैं.

इतिहासकार जॉन ज़ुब्रज़िकी की किताब हाउस ऑफ जयपुर के अनुसार, मान सिंह द्वितीय ने 1956 में जय महल पैलेस (जिसे पहले नटनी का बाग़ कहा जाता था) को अपने सबसे छोटे बेटे जगत को दे दिया था. 1981 में जगत और उनके सौतेले भाई पृथ्वीराज ने, जय महल प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की, जिसके वो दोनों निदेशक बने.

1984 में उन्होंने इस संपत्ति को 75 साल के पट्टे पर ताज समूह के हवाले कर दिया. उस समय जगत सिंह कंपनी में 99 प्रतिशत के मालिक थे, और उनके पास 5,050 शेयर थे, जबकि पृथ्वीराज और उनके बेटे विजित के पास 50 शेयर्स के साथ कंपनी का 1 प्रतिशत हिस्सा था.

जयपुर शाही परिवार का वंश | ग्राफिक: दिप्रिंट टीम

लेकिन, हैरो से पढ़े हुए जगत सिंह का निजी जीवन बहुत अशांत रहा, और वो शराब की लत से जूझते रहे, जिसकी वजह से वो व्यवसायिक मामलों पर ध्यान नहीं लगा पाए. 1978 में थाई राजकुमारी प्रियनंदना रांगसित के साथ उनकी शादी से दो बच्चे पैदा हुए- देवराज और लालित्य- लेकिन 1980 के मध्य में ये जोड़ी अलग हो गई.

1997 में शराब के सेवन से हुई बीमारियों के चलते, 47 वर्ष की आयु में जगत सिंह की मौत हो गई. देवराज ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेरे पिता ऐसे समय चल बसे, जब मेरे पेरेंट्स के बीच रिश्ते सुधरने शुरू हो गए थे’.

एक वित्तीय झटका कुछ साल बाद उस समय लगा, जब 2000 के दशक की शुरुआत में, प्रियनंदना रांगसित को एक बहुत ही परेशान करने वाली बात पता चली.

ज़ुब्रज़िकी की किताब में कहा गया है, कि प्रियनंदना ने कंपनी रजिस्ट्रार के यहां तलाश की, और उन्हें पता चला कि जगत की शेयरधारिता घटकर 7 प्रतिशत रह गई थी, और पृथ्वीराज और उनके बेटे अब कंपनी के 93 प्रतिशत मालिक थे. रामबाग़ पैलेस होटल में भी जगत के शेयर्स 27 प्रतिशत से घटाकर क़रीब 4 प्रतिशत कर दिए गए थे.

देवराज की क़ानूनी टीम ने हिस्सेदारी में कथित कमी के मुद्दे पर टिप्पणी करने से मना कर दिया, लेकिन शाही परिवार के एक नज़दीकी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, कि ऐसा लगता है कि ये काम काफी समय में किया गया.

सूत्र ने आरोप लगाया, ‘जगत के साथ शराब की समस्या थी, और ज़्यादातर समय वो ठीक से सोच नहीं पाते थे. राजमाता गायत्री देवी और जगत अकसर कोरे कागज़ों पर दस्तख़त करके, उन्हें पृथ्वी के पास छोड़कर विदेशी दौरों पर चले जाते थे. उनके शेयर्स में कमी इसी तरीक़े से लाई गई’.

लेकिन, बाद में कोर्ट कार्यवाहियों में पृथ्वीराज ने कहा, कि शेयर्स में कमी कर्ज़ लेने और कंपनी की गतिविधियों को विस्तार देने के लिए की गई थी. उन्होंने ये भी कहा कि ताज समूह के क़ब्ज़े के बाद, जगत बोर्ड की 62 बैठकों में से केवल 12 में शरीक हुए थे. ज़ुब्रज़िकी की किताब के अनुसार पृथ्वीराज के वकीलों की दलील थी, कि इससे स्थापित हो गया कि कंपनी को चलाने, या उसका प्रबंध करने में जगत की रूचि नहीं थी.


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वसीयत पर विवाद

30 मार्च 2006 को देवराज और लालित्य ने कंपनी लॉ बोर्ड में एक याचिका दायर करके, पृथ्वीराज और विजित पर ‘ग़ैर-क़ानूनी और धोखेबाज़ी के काम’ अंजाम देने का आरोप लगाया.

27 अप्रैल 2006 को पृथ्वीराज और विजित ने अपने जवाब में कहा, कि देवराज और लालित्य का संपत्तियों पर कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि वो भारतीय नागरिक नहीं थे (देवराज और लालित्य क्रमश: थाईलैण्ड और ब्रिटेन के नागरिक हैं, और दोनों के पास ओवरसीज सिटिज़न ऑफ इंडिया या ओसीआई कार्ड्स हैं). पृथ्वीराज की क़ानूनी टीम ने कोर्ट में एक पत्र भी पेश किया, जिसे उन्हें जगत का लिखा हुआ बताया था. 23 जून 1996 के इस पत्र में कहा गया है, कि देवराज और लालित्य को जगत की संपत्ति से पूरी तरह बेदख़ल कर दिया गया है, और उनकी सारी विरासत उनकी माता गायत्री देवी को चली जाएगी.

जहां प्रियनंदना ने दावा किया कि वसीयत फर्ज़ी थी, लेकिन गायत्री देवी उसपर क़ायम रहीं. 2006 में इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में, उनका ये कहते हुए हवाला दिया गया, ‘मेरे बेटे ने एक वसीयत की और मैं उस पर क़ायम हूं’.

लेकिन, उम्र के आख़िरी वर्षों में गायत्री देवी के अपने पोते-पोती से रिश्ते सुधर गए, और उन्होंने अंत में अपना रुख़ बदल लिया. अप्रैल 2009 में, अपनी मौत से कुछ महीने पहले ही, उन्होंने जय महल प्रा. लि. के निदेशक मंडल को पत्र लिखकर अपनी पूरी शेयरधारिता, अपने पोते-पोती के नाम स्थानांतरित कर दी.

ज़ाहिर है कि कहानी यहीं ख़त्म नहीं हुई, परिवार की पृथ्वीराज शाखा ने गायत्री देवी की वसीयत को चुनौती दे दी, और ये कटु क़ानूनी लड़ाई 2010 के पूरे दशक में चलती रही.

क्या बदल गया?

2020 में कोविड से जुड़ी समस्याओं के चलते पृथ्वीराज की मौत हो गई. शाही परिवार के क़रीबी सूत्रों के अनुसार, अगर पृथ्वीराज ज़िंदा रहते, तो ये संझौता कभी संभव नहीं हो पाता.

लेकिन, लेखक जॉन ज़ुब्रज़िकी ने ईमेल के ज़रिए दिप्रिंट को भेजे गए जवाब में कहा, कि ऐसा नहीं लगता कि समझौते के पीछे एकमात्र कारण पृथ्वीराज की मौत रहा होगा.

ज़ुब्रज़िकी ने कहा, ‘पृथ्वीराज ने गायत्री देवी के वित्तीय सलाहकार की भूमिका इख़्तियार कर ली थी, और उन्होंने विस्तृत परिवार के वित्तीय मामलों का ज़िम्मा संभाल लिया था. संपत्ति, विरासत, वसीयत आदि से जुड़े क़ानूनी विवादों में वही सबसे बेहतर स्थिति में थे. क़ानूनी समझौते तक पहुंचने में उनकी मौत के कारक का भी योगदान हो सकता है, लेकिन कहीं न कहीं एक अहसास ये भी था, कि ख़त्म न होने वाली अदालती लड़ाईयों से, कुछ हासिल होने वाला नहीं है’.

जयपुर में रामबाग पैलेस। फोटो : प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

‘और अधिक समझौतों की संभावना’

सवाई मान सिंह के अपनी तीनों पत्नियों से बच्चे थे, और इसलिए जयपुर शाही परिवार तीन अलग अलग शाखाओं में बंटा हुआ है. ये परिवार और राजस्थान राज्य, फिलहाल दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित एक केस में, एक लंबी क़ानूनी लड़ाई में उलझे हुए हैं. निपटान के लिए एक मामला (जगत सिंह बनाम ले. कर्नल भवानी सिंह) दिल्ली हाईकोर्ट में 1986 से चल रहा है.

शेड्यूल एक के अंतर्गत 20 नवंबर 1998 की चल संपत्तियों की एक सत्यापित सूची के अनुसार, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, जयपुर और उसके आसपास फिलहाल ऐसी 17 संपत्तियां हैं, जिनपर जयपुरशाही परिवार की तीन शाखाओं और राजस्थान प्रदेश के बीच विवाद है.

जयपुर के बाहर की संपत्तियां हैं- नई दिल्ली में जयपुर हाउस, माउंट आबू में जयपुर हाउस, और राजस्थान के सवाई माधोपुर में विमान भवन.

जयपुर के अंदर प्रमुख विवादित संपत्तियों में सिटी पैलेस (हिंदू अविभाजित परिवार का हिस्सा), राजमहल पैलेस, तख़्त-ए-शाही (मोती डूंगरी के नाम से जाना जाने वाला), रामबाग़ स्टाफ क्वार्टर्स, अमरूदों का बाग़, और अशोक क्लब.

इन संपत्तियों में, जो ज़मीन राज्य ने अधिग्रहीत कर ली है, उसमें रामबाग़ के स्टाफ क्वार्टर्स, घरेलू गराज और बंगला नंबर 37 (राम शरण हाउस), और बंगला नंबर 36 (होटल लक्ष्मी विलास) शामिल हैं.

इन अचल संपत्तियों के अलावा बेशक़ीमती गहने, कलाकृतियां, और दूसरी मूल्यवान वस्तुएं भी फिलहाल विवादों में घिरी हैं.

इस घटना की सीधी जानकारी होने का दावा करने वाले, शाही परिवार के एक सूत्र ने कहा, ‘किसी को अंदाज़ा नहीं है कि शाही लोगों के पास कितने गहने और कलाकृतियां हैं. बल्कि, एक क़िस्सा ये है कि 2008 में जब राजमाता बीमार थीं, तो मीडिया को बताया गया कि उन्हें उनके आवास लिली पूल ले जाया गया था, लेकिन वास्तव में उन्हें गुप्त रूप से संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल ले जाया गया था’.

‘जब ये सब हंगामा चल रहा था, तो देवराज और लालित्य को लिली पूल से बाहर कर दिया गया, और परिवार का सदस्य जिसका मैं नाम नहीं लूंगा, बेशक़ीमती गहने और कलाकृतियां निकालकर पैलेस से बाहर ले गया’.

दिप्रिंट ने जब व्हाट्सएप पर विजित सिंह से संपर्क किया, तो उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया. देवराज की क़ानूनी टीम ने फोन पर कहा, कि वो नई दिल्ली में चल रहे मुक़दमे के बारे में बात नहीं कर पाएंगे. दिप्रिंट ने फोन और व्हाट्सएप के ज़रिए, सिटी पैलेस से भी संपर्क साधने की कोशिश की, जो नाम के महाराजा पद्मनाभ सिंह का आवास है, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला.

लेकिन, देवराज का कहना है कि 2022 में कुछ और समझौते हो सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘और अधिक संपत्तियों के लिए लड़ने की मेरी कोई योजना नहीं है, लेकिन हम उम्मीद कर रहे हैं कि 2022 में परिवार के अंदर, कुछ और समझौते देखने को मिलेंगे’.

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