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श्रम मामलों की संसदीय समिति की सिफारिश- ग्रेच्युटी की समयसीमा 5 साल से घटाकर एक साल की जाए

सामाजिक सुरक्षा संहिता 2019 पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाली समिति चाहती है कि इस संहिता में ‘अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों’ का उल्लेख एक अलग श्रेणी के तौर पर किया जाए और विशेष रूप से सिर्फ उन्हीं के लिए इस्तेमाल होने वाली एक कल्याण निधि के गठन की सिफारिश की है.

प्रतीकात्मक तस्वीर | पिक्साबे

नई दिल्ली: श्रम मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने सामाजिक सुरक्षा संहिता 2019 पर अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि किसी कर्मचारी को उसके रोजगार की समाप्ति के बाद मिलने वाली ग्रेच्युटी के भुगतान की समय सीमा मौजूदा पांच वर्ष की नियमित सेवा से घटाकर केवल एक वर्ष की नियमित सेवा कर दी जानी चाहिए.

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को शुक्रवार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में समिति ने कहा है, ‘इस तरह के प्रावधान संविदा कर्मियों, मौसमी मजदूरों, तय दर वाले श्रमिकों और दैनिक/मासिक वेतनभोगी कर्मचारियों सहित हर तरह के कर्मचारियों के लिए लागू किए जा सकते हैं.’ सामाजिक सुरक्षा से जुड़े नौ मौजूदा कानूनों की जगह लेनी वाली यह संहिता संसद के समक्ष लंबित है. वरिष्ठ बीजद सांसद भर्तृहरि महताब की अध्यक्षता वाली समिति ने इस संहिता पर मंथन किया, जो पिछले दिसंबर में लोकसभा की तरफ से इसे भेजी गई थी.

ग्रेच्युटी की समयसीमा घटाकर एक वर्ष करने पर जोर देते हुए समिति ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है, ‘… ज्यादातर कर्मचारियों को कम अवधि के लिए ही नियुक्त किया जाता है, जो उन्हें मौजूदा मानदंडों के अनुसार ग्रेच्युटी पाने के अयोग्य बनाते हैं. इसलिए समिति चाहती है कि ग्रेच्युटी भुगतान संहिता के तहत निर्धारित पांच साल की समयसीमा को घटाकर एक साल की निरंतर सेवा कर दिया जाए.’

समिति ने विशेष रूप से अंतरराज्यीय प्रवासियों श्रमिकों के लिए इस्तेमाल होने वाली कल्याण निधि की सिफारिश भी की है.


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अप्रैल में कोविड-19 महामारी पर नियंत्रण के लिए देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण सामने आए प्रवासी संकट को ध्यान में रखते हुए, संसदीय पैनल ने सिफारिश की है कि सामाजिक सुरक्षा संहिता 2019 में ‘अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों’ को एक अलग श्रेणी के रूप में शामिल किया जाए और विशेष रूप से उनके लिए ही उपयोग होने वाली एक कल्याण निधि बनाई जानी चाहिए.

इस निधि का वित्तपोषण उन्हें भेजने वाले राज्य, रोजगार देने वाले राज्य, ठेकेदार, प्रमुख नियोक्ताओं और पंजीकृत प्रवासी श्रमिक के आनुपातिक अंशदान से होना चाहिए. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि प्रवासी श्रमिकों का अंशदान कम से कम होगा.

समिति ने कहा, ‘इस तरह बनाई गई निधि का उपयोग विशेष रूप से उन श्रमिकों/कर्मचारियों के लिए किया जाना चाहिए जो अन्य किसी कल्याणकारी कोष के तहत नहीं आते हैं.’

जैसा कि दिप्रिंट ने 30 जून को प्रकाशित किया था, संसदीय समिति ने घरेलू सहायकों, प्रवासी श्रमिकों, स्वतंत्र रूप से ठेला, क्रेन आदि चलाने वालों, प्लेटफॉर्म वर्कर्स (ओला-उबर ड्राइवरों की तरह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर अन्य संगठनों के लिए काम करके पैसे कमाने वाले) और खेतिहर मजदूरों को इसमें शामिल करने के लिए सामाजिक सुरक्षा दायरे के सार्वभौमिकरण की सिफारिश की है.

कल्याणकारी मदद देते समय, ‘खासकर कोविड-19 महामारी जैसे संकट और अनिवार्य परिस्थितियों में’ इंटर-स्टेट पोर्टेबिलिटी के कारण पहचान और मदद देने में आने वाली मुश्किलों को दूर करने के लिए समिति ने एक केंद्रीय ऑनलाइन पोर्टल और डाटाबेस तैयार करने का सुझाव दिया है जिसमें भवन व अन्य निर्माण मजदूरों समेत सभी पंजीकृत प्रवासी श्रमिकों और संगठनों का ब्यौरा हो.

संसदीय समिति ने कहा है कि कृषि, गैर-कृषि, अनुबंध के साथ-साथ स्व-नियोजित श्रमिकों आदि समेत सभी प्रतिष्ठानों के लिए विभिन्न संगठनों के बजाये एक ही संस्था में पंजीकरण अनिवार्य किया जाना चाहिए और साथ ही ‘इसी एकमात्र निकाय को देश में सभी प्रकार के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए.’

समिति का कहना है कि बिल्डिंग एंड कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर फंड का न केवल इस्तेमाल हुआ बल्कि राज्यों द्वारा इसका दुरुपयोग भी किया गया.

भवन और निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए बने इस कोष का ढंग से इस्तेमाल न करने के लिए संसदीय समिति ने राज्यों की आलोचना की है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति ताजा ऑडिट निष्कर्ष से यह जानकार क्षुब्ध है कि 24 राज्यों ने बीओसीडब्ल्यू कोष का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं किया और एक राज्य में इस धन का दुरुपयोग किया गया. यह गंभीर चिंता का विषय है कि राज्य निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए एकत्र हजारों करोड़ रुपये दबाए बैठे हैं, यहां तक कि कोविड-19 महामारी के बीच लंबे समय तक जारी रहे लॉकडाउन की स्थिति में भी श्रमिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया.’


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समिति ने सिफारिश की है कि राज्यों के बीच बीओसीडब्ल्यू कोष की पोर्टेबिलिटी के लिए एक सक्षम तंत्र को भी संहिता का हिस्सा बनाया जाना चाहिए ताकि लाभार्थियों को दी जाने वाली राशि का भुगतान सिर्फ उप कर एकत्र करने वाले राज्य के बजाये किसी भी राज्य में किया जा सके.

भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण कोष राज्य सरकारों की तरफ से निर्माण लागत पर 1% उपकर लगाकर एकत्र किया जाता है और भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक (बीओसीडब्ल्यू) अधिनियम, 1996 का हिस्सा है, जो निर्माण श्रमिकों के रोजगार और काम करने की स्थितियों का नियमन करता है और उनकी सुरक्षा और कल्याण उपायों के लिए बना है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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