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‘प्रवासी मजदूरों’ के लिए मोदी सरकार की नई परिभाषा में स्व-रोजगार वाले भी शामिल

ऐसे मजदूर जिनकी मासिक आय 18 हजार से कम है और वो किसी दूसरे राज्य जाकर सीधे तौर पर या स्व-रोजगार करते हैं तो उसे सरकार की नई परिभाषा के तहत माना जाएगा.

लॉकडाउन के दौरान छत्तीसगढ़ से प्रयागराज आते प्रवासी मजदू | प्रतीकात्मक तस्वीर | एएनआई

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने अंतर-राज्यीय प्रवासी मजदूरों की परिभाषा को विस्तार देने का फैसला किया है जिससे भविष्य में सामाजिक सुरक्षा के लाभ से कोई भी वंचित न रह पाए. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

ऐसे मजदूर जिनकी मासिक आय 18 हजार से कम है और वो किसी दूसरे राज्य जाकर सीधे तौर पर या स्व-रोजगार करते हैं तो उसे सरकार की नई परिभाषा के तहत माना जाएगा.

पहली बार प्रवासी मजदूरों को परिभाषित करने के लिए आय का इस्तेमाल किया जा रहा है.

श्रम पर बनी संसद की स्टैंडिंग कमिटी ने प्रवासी मजूदरों के लिए आय में बदलाव और स्व-रोजगार वाले प्रवासियों को शामिल करने की सिफारिश की थी. कमिटी ने व्यावसायिक सुरक्षा, स्वस्थ्य और वर्किंग कंडिशन (ओएसएचडब्ल्यूसी) कोड 2019 की समीक्षा कर फरवरी 2020 को संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की थी.

श्रम पर बनी संसदीय समिति के अध्यक्ष भर्तृहरि महताब ने दिप्रिंट को बताया, ‘परिभाषा को विस्तृत कर ये सुनिश्चित किया जाएगा कि जो कोई भी प्रवासी मजदूर अपने गृह क्षेत्र को छोड़कर काम करने किसी शहर या कस्बे में जाता है तो उसे सरकारी सामाजिक सुरक्षा के लाभों से वंचित न होना पड़े.’

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क्या बदला है?

ओएसएचडब्ल्यूसी कोड के तहत 13 श्रम कानूनों के जरूरी नियम दर्ज हैं जिसमें अंतर-राज्यीय प्रवासी मजूदर (रेग्युलेशन एंड एंप्लायमेंट एंड कंडीशन ऑफ सर्विस) एक्ट, 1979, जिस कानून के तहत मौजूदा समय में प्रवासी मजदूरों के मुद्दों को सुलझाया जाता है.

1979 का ये कानून प्रवासी मजदूर को इस तरह परिभाषित करता है- व्यक्ति जो एक राज्य में लाइसेंस वाले ठेकेदार के द्वारा रोजगार के लिए दूसरे राज्य में जाने के लिए भर्ती हुआ हो.

इस अधिनियम के प्रावधान अब प्रस्तावित ओएसएचडब्ल्यूसी कोड में रखे जा रहे हैं. श्रम संबंधी स्थायी समिति ने फरवरी में प्रस्ताव दिया था कि 15,000 रुपये की मासिक पारिवारिक आय को प्रवासी श्रमिकों की परिभाषा में शामिल किया जाना चाहिए.

इसने एक अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिक को भी परिभाषित किया है, जो किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में नियुक्त किया जाता है जो किसी नियोक्ता या ठेकेदार द्वारा दूसरे राज्य में स्थित प्रतिष्ठान में रोजगार के लिए भर्ती किया जाता है.

फिर 20 जुलाई को पैनल ने परिभाषा में स्व-नियोजित प्रवासी श्रमिकों को शामिल करने की भी सिफारिश की.

श्रम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हमने प्रवासी मजदूरों की परिभाषा को विस्तार देने और प्रस्तावित ओएसएचडब्ल्यूसी कोड में बदलावों को शामिल करने की समिति की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है, जो वर्तमान में संसद के समक्ष लंबित है.’


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प्रवासी संकट लॉकडाउन का परिणाम

श्रम मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि परिभाषा को विस्तार देने का फैसला 25 मार्च को लगे देशव्यापी लॉकडाउन के बाद उत्पन्न हुए प्रवासी संकट के मद्देनज़र जरूरी था.

फैक्ट्रियों और उद्दोगों के बंद हो जाने के कारण उनमें काम करने वाले लाखों प्रवासी मजदूरों ने अपनी जीविका खो दी और पैसे, रहने के ठिकाने के अभाव में वे अपने गावों की तरफ रुख करने लगे, ज्यादातर खाली पैर ही.

सरकार ने बीच में हस्तक्षेप कर राहत पहुंचाते हुए अनाज का वितरण किया लेकिन ये बहुतों तक नहीं पहुंच पाया क्योंकि वो आधिकारिक तौर पर पंजीकृत नहीं थे.

उक्त अधिकारी ने कहा, ‘इस संकट ने सरकारी मशीनरी की खामियों को उजागर कर दिया. एक खामी तो ये है कि देश में प्रवासी मजदूरों की कोई भी केंद्रीकृत डेटाबेस नहीं है. हम ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि ये अब दोबारा नहीं होगा.’

असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों के लिए अब श्रम मंत्रालय डेटाबेस तैयार कर रहा है जिसमें उनकी पूरी जानकारी होगी. इसमें उनके नाम, पता, संपर्क इत्यादि होंगे. एक बार तैयार हो जाने के बाद प्रवासी मजदूर मोबाइल फोन या नागरिक सेवा केंद्रों के जरिए पोर्टल पर खुद का पंजीकरण करा सकेंगे. मजदूर इसके जरिए कहीं भी काम करते हुए उन्हें मिलने वाले सरकारी लाभ के बारे में जान सकेंगे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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