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ममता और केंद्र में तनाव के बीच मदन मोहन मालवीय के प्रपौत्र बने बंगाल के कार्यवाहक डीजीपी

मदन मोहन मालवीय के प्रपौत्र मनोज मालवीय को मंगलवार को बंगाल का कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया गया है.

मनोज मालवीय (दाहिने) को पश्चिम बंगाल के कार्यवाहक डीजीपी के रूप में नियुक्त किया गया । फोटोः स्पेशल अरेंजमेंट

कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार ने मंगलवार को 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी मनोज मालवीय को राज्य का कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) नियुक्त किया है.

नए डीजीपी के चयन को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मोदी सरकार के बीच चल रही तकरार के बीच यह कदम उठाया गया है.

मनोज मालवीय, अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संस्थापक, विद्वान और राजनेता मदन मोहन मालवीय के प्रपौत्र हैं. मनोज के पिता गिरिधर मालवीय इलाहाबाद हाइकोर्ट के रिटायर्ड जज हैं. 2014 के आम चुनाव के दौरान जब नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से नामांकन पत्र दाखिल किया था तब उनके पिता चार प्रस्तावकों में से एक थे.

मनोज, जो राज्य सरकार द्वारा केंद्र को सुझाए गए नामों की सूची में वरिष्ठतम अधिकारी हैं, पहले डीजीपी, संगठन थे.

राज्य सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, हालांकि, बंगाल सरकार के प्रस्ताव में तमाम विसंगतियों को उजागर करने की बात करते हुए यूपीएससी द्वारा लिखे गए पत्र के बाद डीजीपी के पद के लिए चयन प्रक्रिया को लेकर जुलाई में गतिरोध जैसी स्थिति हो गई थी.

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पहला पत्र 2 जुलाई को यूपीएससी सचिव ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को लिखा था.

यूपीएससी ने पश्चिम बंगाल के डीजीपी के पद पर नियुक्ति के लिए चयन के लिए पैनल तैयार करने के प्रस्ताव के संबंध में बंगाल सरकार के 29 जून के पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि प्रस्ताव पत्र में कई विसंगतियां पाई गईं.

इनमें संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत न करना, पात्र अधिकारियों का बायोडाटा, अधिकारियों के खिलाफ लंबित अनुशासनात्मक व आपराधिक कार्यवाही का ब्यौरा, दंड का विवरण, मुख्य सचिव द्वारा हस्ताक्षरित सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र व वर्तमान में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चल रहे बंगाल काडर के अधिकारियों को अलग किया जाना शामिल था.

पता चला है कि बंगाल सरकार ने पिछले दो महीने में कम से कम तीन सूचियां यूपीएससी को भेजी हैं. अंतिम सूची 23 अगस्त को भेजी गई थी, जिसमें 17 पात्र अधिकारियों के नाम दिए गए थे.

इस सूची का जवाब देते हुए यूपीएससी ने 26 अगस्त को मुख्य सचिव को नया पत्र लिखकर फिर से विभिन्न विसंगतियों की ओर इशारा किया.

पत्र के अनुसार, केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चार पात्र अधिकारियों के नाम- कुलदीप सिंह, शशि भूषण सिंह तोमर, संजय चंदर और जुल्फिकार हसन को शामिल नहीं किया गया था. यूपीएससी ने बताया कि किसी पात्र अधिकारी को भेजी गई चार्जशीट की कॉपी नहीं दी गई और कुछ अधिकारियों के लिए पेनल्टी स्टेटमेंट भी अटैच नहीं किए गए हैं. दिप्रिंट के पास दोनों पत्रों की प्रतियां हैं.

गौरतलब है कि दूसरे पत्र में एक अधिकारी के रूप में मनोज मालवीय का नाम भी है, जिनके दस्तावेज अधूरे हैं.

दिप्रिंट ने यूपीएससी के लेटर के संबंध में टेक्स्ट और व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से राज्य के मुख्य सचिव एचके द्विवेदी और राज्य के गृह सचिव बीपी गोपालिका को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशन के समय तक कोई जवाब नहीं मिला.

बंगाल सरकार ने क्या प्रस्ताव रखा

सरकार के सूत्रों ने कहा कि जुलाई के पहले सप्ताह में बंगाल सरकार ने राज्य के तहत कुछ आयोगों में डीजीपी पद के दावेदारों के टॉप पांच लोगों में से तीन अधिकारियों को वरिष्ठ पद या अध्यक्ष पद की पेशकश की गई थी, लेकिन इसके लिए उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की शर्त रखी गई थी.

एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा कि यह प्रस्ताव ‘बेहद असामान्य’ था और ‘ऐसा लग रहा था कि सरकार तीन अधिकारियों को दौड़ से बाहर करना चाहती है.’

इन तीनों अधिकारियों- पी नीरजनयन, सुमनबाला साहू और अधीर शर्मा को नौकरशाही के घेरे में ईमानदार अफसरों के रूप में देखा जाता है. अधिकारी ने कहा कि उन्होंने इस तरह के प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया क्योंकि उनके पास अभी भी छह महीने से दो साल की सेवा बची है.

नीरजनयन को 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने बंगाल पुलिस का डीजीपी नियुक्त किया था. राज्य में डीजीपी रैंक की एकमात्र महिला अधिकारी सुमनबाला साहू को कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा एसआईटी का प्रमुख नियुक्त किया गया था- जिन्हें राजनीतिक हिंसा से संबंधित अपराधों की जांच करनी थी. साहू ने साल 2010 से 2015 के बीच पांच साल तक अपने होम काडर में लौटने से पूर्व सीबीआई में अपनी सेवाएं दीं. इस बीच शर्मा रेलवे पुलिस के डीजी हैं.


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