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सोलर लाइट, सड़कें, आंगनबाड़ी- HPCL से लेकर रिलायंस तक, मोदी के आदर्श गांवों को CSR के तहत मिला खूब पैसा

जहां सांसद सांसद आदर्श ग्राम योजना परियोजनाओं के लिए कम संसाधनों की शिकायत करते हैं, वहीं मोदी के गोद लिए गए 7 गांवों को सीएसआर फंड निकालने में कोई परेशानी नहीं हुई है, चाहे वह सरकारी कंपनियों से हो या निजी कंपनियों से.

चित्रणः सोहम सेन । दिप्रिंट
वाराणसी: दो साल पहले तक, वाराणसी के पूरे बरियार गांव की धूल भरी गलियों में शायद ही कोई बाहरी व्यक्ति दिखता था. फिर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे सरकार की महत्वाकांक्षी आदर्श ग्राम योजना के तहत अपनाया, जो सांसदों के लिए उनके निर्वाचन क्षेत्रों के चुनिंदा गांवों को विकास के मॉडल में बदलने के लिए बनाई गई थी. आज, पूरे बरियार ग्रामीण प्रगति के लिए एक बेहतरीन उदाहरण की तरह है, यहां तक कि पिछले साल एक बहुराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल की मेजबानी भी की ताकि इससे सीख ली जा सके. लेकिन यह परिवर्तन केवल सरकारी प्रयासों का परिणाम नहीं है.

पूरे बरियार और छह अन्य मोदी-ब्रांडेड गांवों में किए गए अधिकांश विकास के लिए पैसे रिलायंस फाउंडेशन, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) और यहां तक ​​कि पतंजलि योग संस्थान जैसे बड़े नामों द्वारा दिए गए हैं, खास कर उनके कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate social Responsibility) कोटा के माध्यम से. उदाहरण के लिए, दिप्रिंट द्वारा देखे गए जिला प्रशासन के दस्तावेजों के अनुसार 2021-22 में गोद लिए गए पूरे बरियार गांव  में इंटरलॉकिंग सड़कों, एक बारात घर, एक पंचायत भवन की चारदीवारी, एक स्वास्थ्य केंद्र और सौर स्ट्रीट लाइट के लिए एचपीसीएल से 4.05 करोड़ रुपये मिले.

पूरे बरियार सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) के अंतर्गत आता है, जिसे 2014 में बड़े धूमधाम से शुरू किया गया था और भारत को एक समय में एक सांसद और एक गांव में बदलने का वादा किया गया था. विचार यह था कि प्रत्येक सांसद एक गांव को गोद लेगा और 2016 तक इसे एक मॉडल गांव में बदल देगा, और 2024 तक पांच और गांवों को जोड़ना जारी रखेगा. हालांकि, इस योजना को शुरू से ही चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. भागीदारी अपेक्षाओं से कम रही है और कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में, गोद लिए गए गांवों में परियोजनाओं की पूर्णता दर 75 प्रतिशत या उससे कम है.
पूरे बरियार गांव मं पंचायत भवन | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

इन मुद्दों के लिए जो कारण बताया जाता है वह है इनके लिए अलग से धन की व्यवस्था का न होना. एसएजीवाई दिशानिर्देशों के मुताबिक विभिन्न सरकारी योजनाओं के जरिए और “अतिरिक्त संसाधन जुटा करके” आदर्श गांव बनाना होता है.

जैसा कि ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा पिछले साल जारी एक आधिकारिक बयान में बताया गया था, मॉडल गांवों के निर्माण की परिकल्पना मौजूदा सरकारी कार्यक्रमों को मिलाकर और “सामुदायिक और निजी संसाधनों” को जुटाने के माध्यम से की गई है. यह भी स्पष्ट किया गया कि इस योजना के लिए विशेष रूप से कोई धनराशि आवंटित नहीं की गई है और जुटाई गई धनराशि का रखरखाव केंद्रीय स्तर पर नहीं किया जाता है.

हालांकि, भले ही अन्य सांसदों ने धन की कमी के बारे में शिकायत की है, लेकिन, चाहे वह सरकारी कंपनियों से हो या प्राइवेट प्लेयर्स से, जब “संसाधन जुटाने” की बात आती है तो मोदी के गोद लिए गए सात गांव सबसे आगे नज़र आते हैं.

मोदी द्वारा गोद लिए गए सभी सात गांवों – जयापुर, नागेपुर, ककरहिया, परमपुर, पूरे बरियार, पूरे गांव और कुरुहुआ – को बड़ी मात्रा में कॉर्पोरेट फंड मिले हैं, या उन्हें प्राप्त करने की प्रक्रिया में हैं, भले ही योजना कार्यान्वयन, रखरखाव में कभी-कभार रुकावटें आती रही हों. जब दिप्रिंट ने इस महीने की शुरुआत में जयापुर, ककरहिया, पूरे बरियार और पूरे गांव का दौरा किया, तो सीएसआर के प्रयासों से जो कई सुविधाएं मुहैया कराई गईं, वह कभी-कभी पट्टिकाओं और साइनबोर्डों पर मोदी के नाम के आगे कॉर्पोरेट लोगो दिखाई देते थे.

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और ऐसा प्रतीत होता है कि और भी बहुत कुछ होने वाला है. सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) सात गांवों के लिए 25 करोड़ रुपये का योगदान देगा और पहली किस्त का भुगतान पहले ही किया जा चुका है.


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अच्छी संगति रखना

ककरहिया में सुव्यवस्थित प्राथमिक विद्यालय परिसर के अंदर चमकीले नीले और पीले रंग का ‘नंद घर’ है, जो कि एक आधुनिक आंगनवाड़ी है. यहां, बच्चे खिलौनों से खेलते हैं, झूले झूलते हैं, शायद कुछ पोस्टरों पर लिखे हुए अंग्रेजी वर्णमाला, बनी आकृतियों और मानव शरीर की रचना के बारे में समझने की कोशिश करते हैं. लेकिन दीवारों पर बने पेड़ों, जिराफों और बंदरों के चित्रों से जो बात उभरकर सामने आती है, वह है खनन क्षेत्र की दिग्गज कंपनी वेदांता का नाम और लोगो, जो कि आंगनवाड़ी के निर्माण को वित्त पोषित करने वाली कंपनी है.

दिप्रिंट ने मोदी के जिन चार गांवों का दौरा किया, उनमें ग्रामीण दृश्यों के साथ कॉर्पोरेट प्रतीकों का यह मेल असामान्य नहीं है, कम से कम पहली नजर में, ये सभी गांव आदर्श टैग पर खरे उतरते हैं.

उदाहरण के लिए, मोदी द्वारा गोद लिए गए पहले गांव में जीवंत रूप से चित्रित पंचायत भवन, एक कंप्यूटर के साथ एक सार्वजनिक पुस्तकालय, एक ओपन जिम, एक साफ-सुथरा सार्वजनिक शौचालय, कई सौर स्ट्रीट लाइट, सौर पैनल सिस्टम के साथ-साथ NADEP गड्ढा और बैडमिंटन नेट से सुसज्जित विशाल खेल का मैदान है.

जयापुर गांव में ओपन जिम में खेलता हुआ एक बच्चा | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

इस गांव में कई सुविधाएं सीएसआर फंड के सौजन्य से हैं, जिनकी देखरेख मुख्य रूप से गुजरात भाजपा के अध्यक्ष और नवसारी सांसद सीआर पाटिल करते हैं. पाटिल की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि मोदी ने उन्हें अपने गोद लिए गांव की जिम्मेदारी सौंपी.दरअसल, पाटिल ने खुद जयापुर को 400 व्यक्तिगत शौचालयों सहित विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए कम से कम 1.84 करोड़ रुपये दिए हैं. उन्होंने हरिद्वार स्थित पतंजलि योग संस्थान के सहयोग से यहां पानी की पाइपलाइन के लिए 26 लाख रुपये जुटाने में भी मदद की.

इसके अतिरिक्त, गांव में वेलस्पन एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 3 करोड़ रुपये में दो सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए गए हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि बिजली कटौती के दौरान भी, निवासी अपने घरों में कम से कम एक बल्ब जला सकते हैं. (2016 में, टाटा पावर ने वेलस्पन एनर्जी के नवीकरणीय ऊर्जा पोर्टफोलियो का अधिग्रहण किया).

इसी तरह, 2020-21 में गोद लिए गए परमपुर को विभिन्न परियोजनाओं के लिए राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) से 7.02 करोड़ रुपये मिले हैं, जिसमें कई चीजों के साथ-साथ एक खेल का मैदान और इसकी चारदीवारी, बुनकरों के लिए प्रशिक्षण, पावरलूम, सौर स्ट्रीट लाइट और एक ओपन जिम शामिल है.

2022-23 में गोद लिए गए पूरे गांव को रिलायंस फाउंडेशन से फंडिंग मिली है, और 2023-24 में सूची में शामिल हुए कुरुहुआ को वेदांता से फंडिंग मिली है. दोनों ही मामलों में पैसे आंगनवाड़ी केंद्रों के निर्माण के लिए दिए गए हैं. वेदांता और रिलायंस फाउंडेशन ने भी देश में ऐसे ही आंगनवाड़ी केंद्र स्थापित किए हैं. आंगनबाड़ियों के लिए पूरे गांव को 37 लाख रुपये और कुरुहुआ को 22.50 लाख रुपये मिले हैं.

पैसा बरसता है लेकिन चुनौतियां बनी रहती हैं

दिप्रिंट ने जिन गांवों का दौरा किया, उनमें मोदी के पास अपने पड़ोसियों की तुलना में बेहतर भौतिक बुनियादी ढांचा था, जिसमें अधिक व्यापक सड़क कवरेज, सरकार द्वारा निर्मित व्यक्तिगत शौचालयों का व्यापक वितरण और बेहतर स्वच्छता शामिल थी.

गांव के वास्तविक प्रधान अरविंद सिंह पटेल के अनुसार, पूरे बरियार में पीएम मोदी द्वारा गोद लेने के बाद से एक बड़ा बदलाव देखा गया है.

उन्होंने कहा, “पीएम मोदी द्वारा गांवों को गोद लेने से पहले, हमें बहुत कम बजट मिलता था. इसलिए सारे विकास कार्य नहीं हो सके. लेकिन जब से उन्होंने इस गांव को गोद लिया है, ग्राम सभा को इतनी सीएसआर फंडिंग मिली है कि हमारे पास शायद ही कोई विकास कार्य बचा है. प्रधानमंत्री ने जो भी कुछ विकास परियोजनाएं बची हैं, उनके लिए 1-1.5 करोड़ रुपये का सीएसआर बजट मंजूर किया है. चुनाव के बाद इस गांव में कोई विकास कार्य नहीं बचेगा.’

पूरे बरियार में वास्तविक प्रधान अरविंद सिंह पटेल | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

सरकारी अधिकारियों ने कहा, अब सभी सात गांवों को ओएनजीसी की बदौलत अधिक धनराशि मिलने की उम्मीद है, जिसमें कुल 25 करोड़ रुपये होंगे.

इसमें से ओएनजीसी ककरहिया में अंदरूनी सड़कों, सीसीटीवी कैमरे, सोलर लाइट और एक ओपन जिम सहित अन्य चीजों के निर्माण के लिए 1.39 करोड़ रुपये लगाएगी.

सबसे कम उम्र में गोद लिए गए गांव कुरुहुआ को जल निकासी प्रणाली, पार्क, अमृत सरोवर (जल निकाय), सोलर लाइट और खेल के मैदान के नवीनीकरण सहित विभिन्न कार्यों के लिए 4.31 करोड़ रुपये मिलेंगे.

पूरे बरियार को एक आंगनवाड़ी केंद्र, एक डिजिटल लाइब्रेरी, सोलर लाइट, अपशिष्ट जल प्रबंधन के लिए एक सोक पिट और एक आंतरिक सड़क समेत अन्य चीजों के लिए 1.63 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है.

पूरे गांव और परमपुर को समान रूप से बेहतर बनाने के लिए क्रमशः 9.16 करोड़ रुपये और 1.96 करोड़ रुपये मिलेंगे, जबकि मोदी के दो सबसे पुराने गोद लिए गए गांवों – जयापुर और नागेपुर को क्रमशः 2.96 करोड़ रुपये और 3.95 करोड़ रुपये मिलेंगे.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण काम अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया है. हालांकि, ओएनजीसी से धनराशि की पहली किस्त पहले ही मिल चुकी है.

ग्राफिकः सोहम सेन, दिप्रिंट

वाराणसी में सरकारी अधिकारियों ने बताया कि सीएसआर पहल के माध्यम से, इन सात गांवों में कुल 192 अतिरिक्त घर स्वीकृत किए गए हैं.

फिर भी, जबकि मोदी के गांवों में आने वाले धन की कोई कमी नहीं है, कंपनियों और अधिकारियों के बीच समन्वय, साथ ही बुनियादी ढांचे के रखरखाव में चुनौतियां हैं. कागजों पर जो है और ज़मीनी हकीकत में बहुत अंतर है.

ककरहिया में एक निवासी को मिले नये आवास के बगल में उसका पुराना मकान | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

उदाहरण के लिए, ककरहिया गांव के लिए 2023-24 की प्रगति रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जल निगम और सीएसआर फंड का उपयोग करने वाली दो पेयजल परियोजनाएं चालू हैं, जो “सभी ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल” प्रदान करती हैं. हालांकि, दिप्रिंट के दौरे के वक्त, निवासियों ने 2019 में SAGY के तहत निर्मित 1.45 करोड़ रुपये की पानी की टंकी, जो कि काम नहीं कर रही है, को लेकर गुस्सा जाहिर किया. लोगों ने शिकायत की कि उन्हें पानी के लिए बोरवेल पर निर्भर रहना पड़ता है या उन लोगों से पानी मांगना पड़ता है जिनके पास निजी मशीनें हैं.

इन गांवों के लिए इतना पैसा आने के बावजूद, प्रशासनिक उदासीनता और फॉलो-अप की कमी के कारण अक्सर सुविधाओं में कमी आ जाती है, जैसा कि ककरहिया के सार्वजनिक शौचालय में टूटे नल या पूरे गांव में स्ट्रीट लाइट की अनुपस्थिति से पता चलता है.

2016 की शुरुआत में, इंडियन एक्सप्रेस ने जयापुर में ग्रामीण अधिकारियों, सरकारी एजेंसियों और सीएसआर के तहत पैसा देने वाली कंपनियों के बीच प्रभावी तालमेल की कमी को लेकर रिपोर्ट की थी. इसके कारण नवनिर्मित टाइल वाली सड़क के टूटने जैसे मुद्दे सामने आए क्योंकि इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि भारी ट्रैक्टर इसका उपयोग कर रहे थे, और इसलिए कंक्रीट इसके लिए अधिक उपयुक्त सामग्री होती.

अपनी वर्तमान स्थिति के बावजूद, सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत अधिकांश परियोजनाएं गर्व से इसका श्रेय योजना और पीएम मोदी दोनों को देती हुई दिखती हैं. यहां तक कि ककरहिया गांव में हर एक सोलर स्ट्रीटलाइट पर उनके नाम और इसे लगाए जाने के वर्ष का बोर्ड लगा हुआ है. ककरहिया निवासी विकास ने कहा, “लाइट ने बहुत पहले ही काम करना बंद कर दिया था क्योंकि इसकी बैटरी चोरी हो गई थी.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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