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कांग्रेस के बड़े नेताओं और प्रणब मुखर्जी के रिश्तेदार क्यों पार्टी छोड़ ममता की TMC में जा रहे हैं

पश्चिम बंगाल कांग्रेस ने ऐसे नेताओं को पार्टी पर ‘बोझ’ करार दिया है, वहीं दल बदलने वाले नेताओं का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकमात्र ‘अजेय और सशक्त विपक्ष’ है.

सोमेन मित्रा की पत्नी शिखा मित्रा (दाएं से दूसरी) और प्रणब मुखर्जी की साली शुभ्रा घोषा (बिल्कुल दाएं) ने रविवार को टीएमसी का दामन थामा | एएनआई

कोलकाता: पश्चिम बंगाल की कांग्रेस इकाई अपने कई नेताओं के पार्टी छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लेने से खासी प्रभावित हुई है और दलबदल करने वालों में पार्टी के दिग्गज नेताओं के रिश्तेदार शामिल है.

पिछले दो माह में ऐसे तीन कांग्रेस नेता ममता बनर्जी की तृणमूल में शामिल हुए हैं. उनमें से दो पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के परिवार से आते हैं और एक पश्चिम बंगाल इकाई के प्रमुख रहे दिवंगत सोमेन मित्रा की पत्नी हैं.

पश्चिम बंगाल कांग्रेस ने ऐसे नेताओं को जहां पार्टी पर ‘बोझ’ करार दिया है, वहीं दल बदलने वाले नेताओं का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकमात्र ‘अजेय और सशक्त विपक्ष’ है.

दल बदलने वाले तीन नेताओं में सोमेन मित्रा की पत्नी और तृणमूल कांग्रेस की पूर्व विधायक शिखा मित्रा और प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) की पूर्व महासचिव और प्रणब मुखर्जी की साली शुभ्रा घोष रविवार को सांसद माला रॉय और विधायक नयना बंद्योपाध्याय की मौजूदगी में तृणमूल में शामिल हुईं.

जुलाई के पहले सप्ताह में प्रणब मुखर्जी के बेटे और कांग्रेस के पूर्व सांसद अभिजीत मुखर्जी भी अपनी निष्ठा बदलकर तृणमूल के साथ चले गए थे.

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अभिजीत ने दिप्रिंट को बताया कि जो लोग कांग्रेस की विचारधारा में विश्वास करते हैं, वे ममता बनर्जी के साथ जा रहे हैं क्योंकि वही मोदी के खिलाफ एकमात्र ‘अजेय विपक्ष’ हैं.

उन्होंने कहा, ‘ममता दीदी एकमात्र ऐसी राजनेता हैं जो मोदी के फासीवाद से लड़ सकती हैं. हम सबने देखा है कि कैसे उन्होंने अपने बलबूते पर बंगाल में मोदी को आगे बढ़ने से रोका. ऐसा हर राजनेता जो मोदी युग खत्म होता देखना चाहता है, उसे ममता बनर्जी से हाथ मिलाना चाहिए और वो ऐसा करेगा भी. मुझे महाराष्ट्र, केरल और तमिलनाडु के नेताओं के भी फोन आ रहे हैं जो चाहते हैं कि मैं उनके और दीदी के बीच एक बैठक की व्यवस्था करूं. यह उनकी व्यापक स्वीकार्यता को दर्शाता है.’

शुभ्रा घोष ने तृणमूल में शामिल होने के बाद बंगाल में कांग्रेस को ‘मुर्शिदाबाद केंद्रित पार्टी’ कहा. मुर्शिदाबाद पश्चिम बंगाल कांग्रेस प्रमुख अधीर रंजन चौधरी का गृह क्षेत्र है.

मित्रा ने दिप्रिंट को बताया कि जबसे उनके पति ने तृणमूल छोड़ी और 2014 में कांग्रेस में शामिल हुए, तब से उन्होंने राजनीति से किनारा कर लिया था. उन्होंने कहा, ‘मैं दीदी की गर्मजोशी से अभिभूत हूं. मैं सात साल बाद तृणमूल में लौटी हूं, क्योंकि दीदी ने मुझे वापस बुलाया.’


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‘घटती ताकत’

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने दिप्रिंट से कहा कि जो लोग चले गए वे पार्टी पर बोझ थे. उन्होंने कहा, ‘मुझे व्यक्तिगत तौर पर यह लगता है कि ये लोग पार्टी के लिए बोझ थे. वे अवसरवादिता के शिकार हुए हैं. राजनीति में सभी दल उतार-चढ़ाव से गुजरते हैं. तमाम ऐसे लोग हैं जो केवल आपकी अच्छी स्थिति का लाभ उठाना चाहते हैं.’

उन्होंने यह भी कहा कि उनकी अपनी कोई उपलब्धि नहीं है. उन्होंने कहा, ‘क्या कोई मुझे बता सकता है कि इन लोगों की उपलब्धियां क्या हैं? प्रणब बाबू राष्ट्र के लिए अनमोल संपत्ति थे. सोमेन दा ने अपने तरीके से लड़ाई लड़ी. लेकिन उनके रिश्तेदारों ने क्या किया? यह हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता कि ये लोग पार्टी में रहें या छोड़ दें.’

उन्होंने इन नेताओं पर देशद्रोही होने का आरोप भी लगाया. उन्होंने कहा, ‘हर राजनीतिक दल उतार-चढ़ाव से गुजरता है. ये वो लोग हैं जिन्हें कांग्रेस ने बहुत कुछ दिया है. उनमें से एक को पार्टी ने बंगाल में सांसद बनाया था. और देखिए उन्होंने क्या किया? मुश्किल समय में उन्होंने अपनी पार्टी छोड़ दी.’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सांसद प्रदीप भट्टाचार्य भी उनके विचार से सहमति जताते हैं. भट्टाचार्य ने कहा, ‘कुछ ऐसे लोग होते हैं जो किसी भी अवसर का लाभ उठाने से चूकना नहीं चाहते. मेरे पास उनकी व्यक्तिगत और राजनीतिक पसंद पर टिप्पणी करने के लिए कुछ भी नहीं है. मेरा विश्वास युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं में है जो निश्चित तौर पर पार्टी का कायाकल्प करेंगे.’

हालांकि, बंगाल के अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि दलबदल राज्य में पार्टी के ढांचे में गिरावट को दर्शाता है.

पश्चिम बंगाल पीसीसी के पूर्व महासचिव और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अमिताभ चक्रवर्ती ने कहा, ‘जब भी कोई राजनीतिक दल कमजोर दिखता है तो उसके कुछ सदस्य आमतौर पर दलबदल लेते हैं. विधानसभा चुनाव से पहले जब कुछ को लगा कि ममता बनर्जी हार सकती हैं, तो वे भाजपा में शामिल हो गए. बंगाल में कांग्रेस के मामले में स्थिति लगातार खराब होती रही है. यह पार्टी लगभग पूरी तरह खत्म हो चुकी है. हम सभी इसका इंतजार कर रहे हैं कि एआईसीसी जल्द इस मुद्दे का समाधान करे.’

हालांकि, वरिष्ठ नेताओं ने इस बात से इनकार किया कि दलबदल जानबूझकर कराया जा रहा है.

चौधरी ने कहा, ‘ममता बनर्जी ने पहले तो कांग्रेस नेताओं का जानबूझकर दलबदल कराया था. 2012 के बाद कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को उनकी तरफ से डराया-धमकाया गया. उन्हें जबरन तृणमूल में शामिल होने के लिए बाध्य किया गया. लेकिन इस बार स्थिति अलग है. यह तो कुछ कांग्रेसी नेता हैं जिनकी अवसरवादिता की कोई सीमा नहीं है. वे पद और सत्ता पाने के लिए लालायित हैं.’

इस बीच, तृणमूल का कहना है कि ममता ‘एकमात्र ताकत हैं जिसके बारे में कुछ सोचा जा सकता’ है. दलबदल के बारे में पूछे जाने पर तृणमूल के राज्य महासचिव कुणाल घोष ने कहा, ‘मोदी-शाह के खिलाफ खड़े होने और उन्हें हराने की मंशा रखने वाले वरिष्ठ नेता ममता बनर्जी के साथ कदमताल करना चाहेंगे.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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