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आर्थिक समस्या से उबरने के लिए क्या रिजर्व बैंक मोदी सरकार के लिए खोलेगा अपना खजाना

मोदी सरकार की नज़र बैंक के 9.6 खरब रुपए के सरप्लस पर, बैंक की अतिरिक्त पूंजी सरकार को हस्तांतरित करने के सुझावों के बाद पिछले साल सरकार-बैंक में ठनी थी.

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मुंबई में केंद्रीय बैंक भवन के अंदर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) का लोगो |

नई दिल्ली: कड़ी आर्थिक चुनौतियों और 2019-20 में राजकोषीय घाटे को 3.4 प्रतिशत के लक्ष्य के भीतर रखने के दबावों के बीच नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक की अधिशेष (सरप्लस) पूंजी पर उम्मीद लगा रखी है.

तीन अलग-अलग सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि मौजूदा वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में रिजर्व बैंक की आरक्षित निधि को ‘अधिक उपयोगी उद्देश्यों’ में इस्तेमाल के वास्ते सरकारी खजाने में हस्तांतरित किया जाएगा.

उल्लेखनीय है कि भारत के केंद्रीय बैंक के आर्थिक पूंजीगत स्वरूप पर पुनर्विचार के लिए दिसंबर में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान के नेतृत्व में एक छह-सदस्यीय समिति नियुक्त की गई थी.


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समिति अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, हालांकि उसे अप्रैल में ही अपनी रिपोर्ट दे देनी थी. सूत्रों के अनुसार इस महीने के अंत तक रिपोर्ट तैयार हो जाने की संभावना है.

सूत्रों के अनुसार सरकारी खजाने संबंधी मुश्किलों के बावजूद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, जो 5 जुलाई को अपना पहला बजट पेश करने वाली हैं, अर्थव्यवस्था में उपभोग को बढ़ावा देने के लिए ‘कुछ घोषणाएं’ करेंगी.

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सूत्रों ने बताया कि ये घोषणाएं और इनसे संबंधित व्यय इस ‘अनुमान’ पर आधारित हो सकती हैं कि रिजर्व बैंक के अधिशेष धन का एक हिस्सा शीघ्र ही केंद्र सरकार के खजाने में हस्तांतरित किया जाएगा.

भारत की आर्थिक विकास दर 2018-19 की जनवरी-मार्च की तिमाही में गिर कर 5.8 प्रतिशत रह गई थी. हालांकि विश्लेषकों के अनुसार आर्थिक स्थिति और भी बुरी हो सकती है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘वित्तीय तंगी का सामना कर रही केंद्र सरकार रिजर्व बैंक की सुरक्षित निधि के अधिशेष धन का एक हिस्सा मिलने की उम्मीद कर रही है. ऐसा होने पर स्थितियां बदल जाएंगी पर रिजर्व बैंक की स्वायत्तता अनुल्लंघनीय है और उसका सम्मान किया जाएगा.’


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‘सर्वाधिक पूंजी वाले केंद्रीय बैंकों में शामिल’

रिजर्व बैंक की कुल आरक्षित निधि अनुमानित 9.59 लाख करोड़ रुपये के बराबर है.

सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन, जो 2011-12 और 2016-17 के बीच के भारतीय जीडीपी के आंकड़े के वास्तविक से अधिक होने की आशंका जताने के कारण विवादों के केंद्र में हैं, ने रिजर्व बैंक की अधिशेष पूंजी को सरकार को हस्तांतरित करने की सिफारिश की थी.

वित्तीय वर्ष 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया था, ‘अतिरिक्त धन रिजर्व बैंक के पास ही क्यों रहे, इसका कोई खास आधार नहीं है. मौजूदा स्तरों पर भी देखें तो रिजर्व बैंक असाधारण रूप से अत्यधिक पूंजीकृत है.’

आर्थिक सर्वेक्षण में ये भी कहा गया था कि रिजर्व बैंक की अधिशेष पूंजी का इस्तेमाल नकदी के संकट का सामना कर रहे सरकारी बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने में किया जा सकता है.

सुब्रमण्यन ने रिजर्व बैंक के दुनिया के सर्वाधिक पूंजी वाले केंद्रीय बैंकों में से एक होने का भी उल्लेख किया था.


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केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के बीच पिछले साल तब तनाव की स्थिति बन गई थी जब सरकार ने केंद्रीय बैंक से उसकी अधिशेष पूंजी का एक हिस्सा उसे हस्तांतरित किए जाने की मांग की थी. तब रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने सरकार के आग्रह कर ये कहते हुए कड़ा विरोध किया था कि इससे केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है.

मोदी सरकार का कहना है कि रिजर्व बैंक अपनी कुल जमा-पूंजी का 28 फीसदी आरक्षित निधि या बफर के रूप में रखे हुए है जो कि वैश्विक मानक 14 प्रतिशत से कहीं अधिक है.

इस मुद्दे पर विचार कर रही समिति के उपाध्यक्ष रिजर्व बैंक के ही पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन हैं. जलान और मोहन के अतिरिक्त समिति में शामिल विशेषज्ञ हैं: आर्थिक मामलों के सचिव सुभाषचंद्र गर्ग, रिजर्व बैंक के वर्तमान डिप्टी गवर्नर एन. एस. विश्वनाथन और इसके केंद्रीय बोर्ड के सदस्य भरत दोशी और सुधीर मांकड़.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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