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ओमीक्रॉन के बाद सुधरती अर्थव्यवस्था को यूक्रेन संकट के कारण फिर लग सकता है झटका

हाल के कुछ सप्ताहों में कंज्यूमर सेंटीमेंट्स और बैंक क्रेडिट जैसे सुस्त संकेतकों में हलचल बढ़ी हैं, लेकिन यूक्रेन संकट और बढ़ती कच्चे तेल की कीमतें खतरे का संकेतक हैं.

चित्रणः दिप्रिंट टीम

ताजा आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर कमजोर पड़ने के साथ भारत में आर्थिक ‘रिकवरी’ गति पकड़ रही है. कोविड टीकाकरण में विस्तार और पाबंदियों में ढील दिए जाने के कारण लोगों की आवाजाही बढ़ने के साथ आर्थिक गतिविधियां तेजी पकड़ने लगी हैं. इसके साथ ही लोग अब खर्च करने लगे हैं.

मांग बढ़ने के साथ व्यवसाय भी बढ़ रहा है और नौकरी पर रखने की गति भी बढ़ रही है. जीएसटी की उगाही, निर्यात, ई-वे बिलों सरीखे कुछ बड़े संकेतकों में पिछले कुछ महीनों से मजबूत वृद्धि हुई है और हाल के कुछ सप्ताहों में उपभोक्ता रुझान और बैंक क्रेडिट जैसे सुस्त संकेतकों में हलचल बढ़ी है.

लेकिन भू-राजनीतिक तनावों के कारण कच्चे तेल और जींसों की कीमतों में बढ़ोतरी इस आर्थिक दिशा के लिए खतरा पेश कर रही है.

मैनुफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र के साथ मांग में उछाल 

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए पर्चेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआइ) फरवरी में 57.5 और जनवरी में 57.7 अंक के साथ मजबूत स्तर पर था. यह मजबूत मांग के कारण था जिसके चलते उत्पादकों ने अपने भंडार से माल उठाना शुरू किया.

सेवा सेक्टर के पीएमआइ ने एक साल के भीतर मांग में सुधार और बाजार की अनुकूल स्थितियों के कारण सबसे तेज गति दर्ज की.

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उपभोक्ता रुझान में उछाल

कोविड के मामलों में गिरावट के साथ उपभोक्ताओं के रुझान में फरवरी माह में उल्लेखनीय सुधार आया है. दूसरे हाई फ्रिक्वेंसी संकेतकों में जो उछाल आया वैसा उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास में नहीं दिखा. लेकिन उपभोक्ताओं को जब आय और रोजगार की संभावनाओं में लगातार मजबूती दिखती है तभी इस विश्वास को भी मजबूती मिलती है.

‘सीएमआइई’ के आंकड़ों के मुताबिक, फरवरी के प्रत्येक तीन सप्ताह में इंडेक्स ऑफ कन्ज़्यूमर सेंटीमेंट्स (आईसीएस) का आंकड़ा 62-63 के बीच रहा, जो मार्च 2020 में महामारी शुरू होने और लॉकडाउन के बाद किसी भी सप्ताह के इसके आंकड़े से ऊंचा है.

फरवरी के तीन सप्ताहों में ‘आइसीएस’ के दो तत्वों में प्रभावशाली सुधार दिखा है. ये तत्व हैं—चालू आर्थिक स्थितियों का आकलन (जो इसके संकेतक से पता चलता है) और भावी स्थितियों की उम्मीदें (जो उपभोक्ता अपेक्षा संकेतक में प्रकट होती हैं).

रिजर्व बैंक ने जनवरी 2022 में जो कंज्यूमर कॉन्फिडेंसी सर्वे किया उसके नतीजे भी सुधार दर्ज करते हैं. इन नतीजों से पता चलता है कि आम आर्थिक स्थिति को लेकर उपभोक्ता अब ज्यादा आशावादी हैं. वे अपनी आय और खर्चों को लेकर भी अब ज्यादा आश्वस्त हैं. उपभोक्ताओं की भावनाओं में सुधार उत्साहवर्द्धक है और नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस द्वारा 2021-22 के लिए राष्ट्रीय आय के जो अग्रिम अनुमान जारी किए गए हैं उनके विपरीत हैं. इन अनुमानों में कहा गया है कि परिवारों के खर्चे और उपभोग के स्तर महामारी से पहले वाले स्तर पर नहीं पहुंचे हैं.

उपभोक्ताओं की भावनाओं में सुधार से संकेत मिलता है कि आगामी महीनों में और पाबंदियां नहीं लगीं तो मांग में और मजबूती आएगी.

बैंक क्रेडिट में वृद्धि 

सुधार का एक और संकेतक यह है कि बैंकों द्वारा लंबे समय तक क्रेडिट में ठहराव के बाद अब सुधार के चिह्न उभर रहे हैं. बैंक क्रेडिट में वृद्धि नवंबर में 7.1 प्रतिशत से बढ़कर दिसंबर 2021 में 9.2 प्रतिशत हो गई. प्रमुख आंकड़े में मजबूत वृद्धि दिखी, तो उद्योगों का क्रेडिट दिसंबर में काफी सुधरकर 7.6 प्रतिशत पर पहुंच गया. माइक्रो, लघु और मझोले उद्योगों को क्रेडिट देने में मजबूती दिखी, तो बड़े उद्योगों को क्रेडिट में दिसंबर माह में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई.

अनुमान बताते हैं कि बैंकिंग सेक्टर की क्रेडिट वृद्धि आठ साल में पहली बार दहाई के आंकड़े को छू सकती है. यह पूंजीगत खर्च के लिए कंपनियों द्वारा कर्ज की मजबूत मांग के कारण होगा.


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कच्चा तेल और भू-राजनीतिक तनाव 

यूक्रेन पर हमले के कारण कच्चे तेल की कीमतें चढ़ गई हैं. रूसी कार्रवाई और अमेरिकी तथा यूरोपीय प्रतिबंधों की संभावना के कारण दुनियाभर में तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है. लेकिन कोविड के उतरने और ग्लोबल अर्थव्यवस्था के खुलने के कारण मांग तो बढ़ रही है.

हमले के बाद, 24 फरवरी को ब्रेंट कच्चे तेल की कीमत 103 डॉलर प्रति बैरेल हो गई, जो कि 2014 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर है. कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि से उपभोक्ताओं के लिए फ्युल भी महंगा हो जाएगा.

रिजर्व बैंक का अनुमान है कि अगर कच्चे तेल की कीमत में आधार मूल्य 75 डॉलर प्रति बैरेल से 10 फीसदी की वृद्धि हुई तो मुद्रास्फीति 0.3 फीसदी के स्तर को छू लेगी. फ्युल की महंगाई का असर परिवहन की लागत पर पड़ेगा और समान तथा सेवाओं की कीमतें आगामी महीनों में बढ़ जाएंगी.

कंपनियों के मार्जिन पर असर

थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआइ), जो कि उत्पादकों द्वारा निर्धारित कीमतों को दर्शाता है, जनवरी में लगातार दसवें महीने दहाई अंक में बना रहा. फ्युल, धातु, रसायन आदि के रूप में लागतों में वृद्धि के कारण दिसंबर की तिमाही में पिछली तिमाही के मुक़ाबले कंपनियों के खर्चे बढ़े और मुनाफे का मार्जिन कम हुआ. मजबूत ब्रांड वाली कंपनियों ने लागत के दबाव से बचने के लिए दाम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं.

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ने भी रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित 2-6 प्रतिशत की सीमा को तोड़ दिया है. रिजर्व बैंक का अनुमान है कि आगामी वर्ष में खुदरा महंगाई 4.5 फीसदी के आसपास रहेगी, और कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि तथा जींसों की कीमतों में वृद्धि से मुद्रास्फीति में वृद्धि की बड़ी आशंका है.

लंबे समय से बढ़ती मुद्रास्फीति के बीच ब्याज दरों में वृद्धि पर रोक लगाने से परिवारों को महंगाई और बढ़ने का दर मजबूत होगा और तब उपभोग में और कमी आएगी.

(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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