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जागरूकता शिविर, मशीन, निरीक्षण- कैसे हरियाणा के अंबाला ने एक साल में खेत की आग को 80% कम किया

अंबाला में पिछले साल 15 सितंबर से 30 अक्टूबर के बीच 702 खेतों में आग लगी थी. इस साल, यह आंकड़ा गिरकर 146 हो गया है. संख्या हरियाणा के समग्र आंकड़ों के साथ काफी अनुकूल तुलना करती है.

सपेरा गांव के सुखमिंदर सिंह अंबाला में अपने खेत में। | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

अंबाला: इस साल अब तक पराली जलाने के मामलों में लगभग 80 प्रतिशत की प्रभावशाली गिरावट ने अंबाला को रबी बुवाई के सीजन से पहले खेत-खलिहानों की आग से निपटने के मामले में हरियाणा का एक आदर्श जिला बना दिया है.

इन-सीटू और एक्स-सीटू मैनेजमेंट, जागरूकता शिविर, मशीन की मदद, सब्सिडी और गांव-गांव निरीक्षण ने जिला प्रशासन को पराली जलाने की घटनाओं में काबू पाने में काफी मदद की है—पिछले साल 15 सितंबर से 30 अक्टूबर के बीच 702 मामलों की तुलना में इस वर्ष इसी अवधि में 146 मामले सामने आए हैं.

इस बार चूक करने वाले किसी भी किसान के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है, क्योंकि राज्य ने पहले से ही रणनीति बनाई और जागरूकता अभियान आरंभ करने के लिए कटाई का समय शुरू होने का इंतजार नहीं किया.

किसान धान की फसल की कटाई के बाद पराली को खेतों में ही जला देते हैं, जिससे अगले सीजन की फसल की बुआई के लिए उनकी जमीन साफ हो जाती है. रबी की बुवाई का सीजन आमतौर पर नवंबर में शुरू होता है, और पराली की आग इस समय पड़ोसी राज्यों में वायु प्रदूषण बढ़ाने की एक बड़ी वजह बन जाती है. हर साल यह समय राज्य सरकारों के लिए एक सिरदर्द बन जाता है.

राज्य के समग्र आंकड़ों और अन्य जिलों की तुलना में अंबाला की स्थिति अपेक्षाकृत बहुत बेहतर रही है. राज्य के कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, हरियाणा में इस साल अब तक खेतों में पराली जलाने की कुल घटनाओं में 52 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है—यह आंकड़ा 2020 में 5,328 के मुकाबले इस साल 2,561 ही रहा है.

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हालांकि, कैथल, करनाल, फतेहाबाद और कुरुक्षेत्र जैसे हॉटस्पॉट में बड़ी संख्या में मामले सामने आ रहे हैं. कैथल में 2020 में 968 की तुलना में इस वर्ष खेतों में पराली जलाने के 682 मामले (30 प्रतिशत गिरावट) सामने आए; करनाल में 904 के मुकाबले 690 मामले (24 प्रतिशत कमी);  फतेहाबाद में 557 की तुलना में 254 मामले (55 फीसदी कमी); और कुरुक्षेत्र में 791 की तुलना में 418 मामले (48 प्रतिशत कमी) सामने आए.

हरियाणा में अतिरिक्त मुख्य सचिव, कृषि और किसान कल्याण और हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण की अध्यक्ष सुमिता मिश्रा ने कहा, ‘अंबाला ने विभाग की तरफ से बताई गई रूपरेखा पर अमल करके अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाबी हासिल की है. विभाग ने अहम माने जाने वाले गांवों में सब्सिडी और गहन निरीक्षण के साथ-साथ इन-सीटू और एक्स-सीटू मैनेजमेंट को भी अच्छी तरह संभाला.’


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अंबाला ने यह सब कैसे सुधारा

इसी साल जून में जिले का कार्यभार संभालने वाले अंबाला के उपायुक्त विक्रम सिंह ने खेतों की आग की घटनाएं रोकने के प्रयासों को एकदम आक्रामक तरीके से अंजाम दिया.

विक्रम सिंह ने कहा, ‘हमने इस साल जागरूकता शिविर और प्रशिक्षण कार्यक्रम समय से पहले ही शुरू कर दिए. आमतौर पर जिला अधिकारी इन कार्यक्रमों को सितंबर में शुरू करते हैं जब कटाई का मौसम शुरू होता है, लेकिन हमने इस साल अपनी योजना पर पहले ही अमल शुरू करने का फैसला किया है और इससे हमें चूक करने वाले किसानों के खिलाफ एक भी प्राथमिकी दर्ज किए बिना ही मामले घटाने में काफी मदद मिली.’

हरियाणा ने गांवों को रेड जोन (एक साल में पराली जलाने के छह केस) और येलो जोन (पराली जलाने के पांच मामलों तक) में बांटा है. अंबाला जिले ने आठ रेड जोन गांवों और 89 यलो जोन गांवों की पहचान की है.

विक्रम सिंह ने कहा, ‘हमने इन चिन्हित गांवों की जिम्मेदारी 11 कृषि अधिकारियों को सौंपी. रेड जोन में पराली जलाने की मामलों की संख्या शून्य पर लाने के लिए चार एसडीएम को उनके सबडिवीजन का लिए नोडल अधिकारी बनाया गया था. हालांकि, किसानों को सीएचसी (कस्टम हायरिंग सेंटर) पर किराये पर मशीनरी उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दी गई.’

मशीनरी से उनका आशय हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, हाइड्रोलिक रिवर्सिबल हल, रोटरी स्लेशर और रैक के अलावा स्ट्रॉ बेलर जैसी मशीनें उपलब्ध कराने से था, जिनका इस्तेमाल पराली को उर्वरक में बदलने के लिए किया जाता है.

हरियाणा के कृषि उपनिदेशक गिरीश नागपाल ने कहा, ‘कटाई के बाद किसानों को अगली फसल (गेहूं या आलू) की बुआई की जल्दी होती है और उन्हें मनाने के लिए ज्यादा समय नहीं मिलता है. लेकिन इस बार हमने फसल की कटाई का सीजन खत्म होने का इंतजार नहीं किया और पहले ही अपनी योजना पर अमल शुरू कर दिया.’


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ग्राम शिविर

किसानों तक संपर्क साधने और उन्हें पराली जलाने के खिलाफ जागरूक करने के लिए प्रशासन ने 499 गांवों में शिविर लगाए. पराली जलाने से बचने के लिए किसानों को नई पद्धतियों के बारे में जानकारी भी दी गई.

नागपाल ने कहा, ‘शिविरों में किसानों को 1,000 रुपये प्रति एकड़ की सरकारी सब्सिडी के बारे में भी बताया गया, यदि वे बेलर फॉर्मेशन का लाभ उठाते हैं और खुद को (सरकारी) पोर्टल पर पंजीकृत कराते हैं.’

जिला प्रशासन द्वारा आयोजित किसान मेला | विशेष व्यवस्था द्वारा फोटो

उन्होंने कहा, ‘किसान आंदोलन (जो लंबे समय से चल रहा है) के बावजूद प्रशासन ने 6 अक्टूबर को सफलतापूर्वक किसान मेला आयोजित किया, जिसमें 500 से अधिक किसानों ने हिस्सा लिया. हमने स्कूलों और कॉलेजों में भी रैलियां कीं, जहां बच्चों की भी इसमें भागीदारी रही.’

नागपाल ने आगे कहा कि पेट्रोल पंपों और गांवों में वॉल पेंटिंग, होर्डिंग और प्रचार वाहन भी लगाए गए.

जागरूकता काम आ रही

करीब 3,200 लोगों की आबादी और 700 एकड़ कृषि भूमि वाले गांव सपेरा में रहने वाले 41 वर्षीय सुखमिंदर सिंह आसपास के गांवों के लिए एक आदर्श बन गए हैं.

सपेरा गांव के किसान अपने समाज के नाम के बैनर तले बैठे हैं | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

सुखमिंदर के पास 24 एकड़ से अधिक जमीन है. इस साल उन्होंने 12 एकड़ में धान की फसल उगाई थी.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं कृषक समाज का हिस्सा हूं. हम नौ सदस्य हैं और हममें से हर कोई पराली जलाने को हतोत्साहित करता है. हमने 2018 में पराली के इस्तेमाल के नए तरीकों की ओर रुख किया.’

उनका मानना है कि चालान और एफआईआर एक हद तक ही कारगर साबित हो सकते हैं.

उन्होंने कहा, ‘चालान के डर से कौन फसल नहीं बोएगा? चालान एक हद तक ही काम करते हैं. हमारे पास 50 किसानों का व्हाट्सएप ग्रुप है. इन समूहों में हम पराली को उर्वरक में बदलने संबंधी वीडियो पोस्ट करते हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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