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बिहार के इस गांव में कोविड टेस्टिंग कैंप लगने पर क्यों नहीं आए लोग, क्या है उनके डर का कारण

जिरोगा मधुबनी जिले के 21 विकास खंडों में से एक लौकाही का हिस्सा है. यहां टेस्टिंग कैंप उसके पड़ोसी गांव भरफोरी में 13 कोविड केस सामने आने के तीन दिन बाद लगाया गया था.

जिरोगा में स्कूल के बाहर खड़ी टेस्टिंग टीम की वैन | ज्योति यादव | दिप्रिंट

मधुबनी: जिरोगा पंचायत के माध्यमिक स्कूल परिसर में 37 वर्षीय चिकित्सा अधिकारी इफ्तिखार अहमद स्थानीय निवासियों के लिए एक टेस्टिंग कैंप शुरू करने को पूरी तरह तैयार बैठे थे. रैपिड एंटीजन टेस्टिंग (आरएटी) किट से लैस अहमद और दो लैब टेक्नीशियन– जो शुक्रवार दोपहर चार घंटे की यात्रा करके जिला मुख्यालय से यहां पहुंचे थे- को लोगों के आने का इंतजार था.

उन्होंने टेस्ट के लिए लोगों का इंतजार किया. और इंतजार ही करते रहे.

दोपहर 3.30 बजे तक जब कैंप बंद करने का समय आया, करीब 2,800 निवासियों वाले गांव में मात्र नौ लोगों का टेस्ट किया गया था. इनमें से सात जिला और ग्राम प्रशासन से जुड़े सदस्य और कर्मचारी थे, जिन्होंने ग्रामीणों को सिर्फ यह बताने के लिए अपना टेस्ट कराया था कि यह पूरी तरह सुरक्षित है.

जिरोगा में स्कूल के बाहर खड़ी टेस्टिंग टीम की वैन | ज्योति यादव | दिप्रिंट

कैंप के दौरान कुछ ग्रामीण स्कूल के किनारे खड़े सब कुछ देखते रहे. स्वास्थ्यकर्मियों ने उन्हें टेस्ट कराने को कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया.

एक प्रवासी मजदूर की चिंता यह थी कि टीम के सदस्य कोविड कैरियर हो सकते हैं. गांव के अन्य लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें डर है कि पॉजिटिव पाया जाना उनके लिए मौत की सजा जैसा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि पॉजिटिव निकलने वालों को यहां से दूर किसी इमारत में ले जाया जाएगा और मरने के लिए वहीं छोड़ दिया जाएगा.

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उन्होंने आगे कहा कि पिछले साल के अनुभव ने उन्हें और ज्यादा डरा रखा है, जब गांव लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को ‘पुरानी इमारतों’ में छोड़ दिया गया था, जहां उन्हें ‘सांप और बिच्छुओं द्वारा काटे जाने’ का खतरा था.

अधिकांश ने इस बात को स्वीकारा कि ‘कोविड को हराने के तमाम उपाय और दवाओं’ के बारे में उनकी जानकारी यूट्यूब या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मिली सूचनाओं पर आधारित है.

दिप्रिंट से बातचीत में मधुबनी के जिला मजिस्ट्रेट अमित कुमार ने भ्रामक जानकारियों के ट्रेंड पर चिंता जताई और कहा कि इससे आक्रामक तरीके से निपटने की जरूरत है. उन्होंने इससे निपटने के लिए एक प्रभावी माध्यम सोशल मीडिया का ही इस्तेमाल किए जाने की बात भी कही.


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टेस्टिंग कैंप का हाल

बिहार का मधुबनी जिला ऐतिहासिक मिथिला क्षेत्र के मध्य में स्थित है, जो नेपाल के साथ लगी भारत की सीमा के करीब है और अपनी विशिष्ट कला के लिए प्रसिद्ध है.

जिरोगा मधुबनी जिले के 21 विकास खंडों में से एक लौकाही का हिस्सा है. लगभग 2.8 लाख आबादी वाला यह ब्लॉक 64 गांवों को समेटता है. 21 मई तक ब्लॉक में 115 सक्रिय कोविड केस और 15 कंटेनमेंट जोन थे.

जिरोगा में टेस्टिंग कैंप उसके पड़ोसी गांव भरफोरी में 13 कोविड केस सामने आने के तीन दिन बाद लगाया गया था.

कैंप लगाने के लिए जिरोगा आई टीम- जिसमें अहमद और लैब टेक्नीशियन 29 वर्षीय संतोष कुमार और 22 वर्षीय संजय झा थे- ने इस संवाददाता के साथ सुबह 9 बजे जिला मुख्यालय से अपनी यात्रा शुरू की थी. उबड़-खाबड़ रास्तों वाले 80 किलोमीटर के इस सफर को तय कराने की जिम्मेदारी ड्यूटी पर तैनात एक ड्राइवर की थी.

यह टीम दोपहर करीब 1 बजे जब गांव पहुंची, तो कैंप की जगह- एक माध्यमिक स्कूल का परिसर- कुछ ही देर पहले हुई बारिश के पानी से भरा था.

खंड विकास अधिकारी प्रीतम चौहान ने एक दिन पहले ही ग्राम प्रधान श्रवण कुमार और स्थानीय मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं यानी आशा वर्कर को टेस्टिंग शिविर के बारे में जानकारी दे दी थी.

शुक्रवार सुबह से ही आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर ग्रामीणों को सूचना दे रही थीं. जब तक वैन पहुंची तब तक आशा कार्यकर्ता दो बार घर-घर जाकर जानकारी दे चुकी थीं. ग्राम प्रधान ने भी लोगों से जांच के लिए आगे आने को कहा था.

टेस्ट करने वाली टीम के पास 400 आरएटी किट थीं. तैयारियों के क्रम में एक लैब टेक्नीशियन ने पीपीई किट पहनी, जबकि दूसरे ने कुर्सियों आदि को व्यवस्थित किया और किट डेस्क पर संभालकर रख दीं. इस बीच डॉक्टर रजिस्ट्रर लेकर बैठ गए और आधा दर्जन आशा कार्यकर्ताओं और सेविकाओं ने गलियारे में अपनी जगह ले ली.

डॉक्टर और दो लैब टेक्नीशीयन जांच करने की तैयारी करते हुए | ज्योति यादव | दिप्रिंट

आधा घंटा बीत गया लेकिन कोई ग्रामीण टेस्ट कराने नहीं पहुंचा. ग्राम प्रधान के आते ही तीन आशा कार्यकर्ताओं- अपने पतियों के साथ- ने एक बार फिर गांव का चक्कर लगाने का फैसला किया.

कामिनी देवी (40 वर्ष), सावित्री देवी (42 वर्ष) और एकवरी देवी (38 वर्ष) और उनके पतियों को अलग-अलग घरों में अलग-अलग तरह के जवाब सुनने को मिले लेकिन कुल मिलाकर हर परिवार ने टेस्ट कराने से इनकार कर दिया. कुछ ने बहाना बनाया, तो कुछ आशा कार्यकर्ताओं से भिड़ भी गए और कुछ लोगों ने तो यहां तक आरोप लगा दिए कि उन्हें कोरोनावायरस फैलाने के लिए पैसे मिले हैं.

लोगों को बुलाने के लिए 30 मिनट तक घर-घर अभियान चला.

जब टीम लौट आई तो अहमद ने देखा कि कुछ लोग स्कूल की बाउंड्री से अंदर झांक रहे हैं. उन्होंने खुद जाकर ग्रामीणों में भरोसा जगाने का फैसला किया.

इसी उद्देश्य से तीनों आशा कार्यकर्ताओं के पतियों का टेस्ट भी कराया गया.

एक-डेढ़ घंटा और बीतने के बाद केवल चार टेस्ट किए गए थे. सभी निगेटिव आए.

डॉक्टर फिर उठे और स्कूल के बाहर जुटे ग्रामीणों की ओर चल पड़े.

उन्होंने उन लोगों से कहा, ‘देखिए, चार लोगों का टेस्ट किया गया है और नतीजा निगेटिव है. कृपया आप भी टेस्ट कराने के लिए आगे आएं. मैं आपको आश्वस्त कर रहा हूं कि यदि आपका टेस्ट पॉजिटिव आया तो भी आपके साथ कुछ नहीं किया जाएगा.’

स्कूल के बाहर खड़े ग्रामीण | ज्योति यादव | दिप्रिंट

पिछले साल लॉकडाउन के दौरान गांव लौटे एक 28 वर्षीय प्रवासी श्रमिक सुनील यादव ने कहा, ‘खुद तो ये कवच पहनकर आए हो, 100 लोगों का टेस्टिंग करके हमको कोरोना फैलाओगे. हम क्यों कराएं टेस्टिंग? तुम लोग बाहर से आए हो, तुमको कोरोना हुआ तो.’

डॉक्टर ने उन्हें कुछ देर तो समझाने की कोशिश की. लेकिन अपने प्रयास निर्रथक रहने पर थोड़ी ही देर में वह अपनी मेज पर लौट आए.

इसके बाद ग्राम प्रधान ने अपने सहयोगियों से टेस्ट कराने का अनुरोध किया. वे भी इसके अनिच्छुक थे लेकिन ना-नुकुर के बाद तैयार हो गए. एक आशा कार्यकर्ता भी जांच के लिए आगे आई.

अगले दो घंटों में इन्हीं कुछ लोगों के टेस्ट किए जा सके.

इसके बाद दो युवकों ने इस रिपोर्टर से संपर्क किया, पूछा कि उन्हें बुखार है और क्या उन्हें टेस्ट करवाना चाहिए. अंततः उनका टेस्ट किया गया और अन्य लोगों की तरह ही उनका नतीजा भी निगेटिव आया.

ये दोनों ही ऐसे ग्रामीण थे जिनका टेस्ट शिविर खत्म होने तक किया गया था. इसके बाद टीम जिला मुख्यालय लौटने की तैयारी करने में जुट गई.


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भ्रामक सूचनाओं की समस्या

वापस लौटने से पहले दिप्रिंट ने दर्जनों ग्रामीणों से बात कर जानना चाहा कि आखिर वह टेस्टिंग के लिए तैयार क्यों नहीं हैं.

इस पर 44 वर्षीय सुरेश कुमार यादव ने कहा, ‘पिछले साल इन्होंने स्कूल में सांप बिच्छुओं के बीच छोड़ दिया था. क्यों टेस्ट कराएं? टेस्ट पॉजिटिव आने का मतलब है कि ये या तो हॉस्पिटल ले जाकर मार देंगे या फिर सरकारी स्कूल में.’

उनमें से अधिकांश ने माना कि उन्हें महामारी के बारे में ज्यादातर जानकारी सोशल मीडिया से मिली है और उससे बचने के लिए वहां मिली तमाम सलाहों- ‘गर्म पानी पीना, मसालेदार खाना खाना’- आदि पर अमल कर रहे हैं. कई लोगों ने कहा कि उन्हें इलाज के लिए गांव के झोलाछाप डॉक्टरों पर भरोसा है जो बुखार, सर्दी और खांसी से पीड़ित लोगों को 150 रुपये में दवा दे देते हैं.

खंड विकास अधिकारी प्रीतम चौहान ने कहा कि उन्होंने इस अभियान के बारे में ग्राम प्रधान को पहले ही बता दिया था लेकिन लोगों में आशंकाएं बनी हुई हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमारे ब्लॉक में वैक्सीन को लेकर कोई हिचकिचाहट नहीं है लेकिन वे टेस्टिंग से कतरा रहे हैं. कई बार हम कुछ गांवों में 150 लोगों का टेस्ट करते हैं लेकिन ज्यादातर जगह हाल जिरोगा जैसा ही रहता है.

हालांकि, बीडीओ ने बताया कि ग्राम प्रधान ने उनसे पहले ही कह दिया था कि कोई आएगा नहीं.

जिला मजिस्ट्रेट अमित कुमार ने कहा कि प्रशासन ने भ्रामक सूचनाओं से निपटने के लिए कुछ तरीके अपनाने का फैसला किया है.

उन्होंने कहा, ‘मैंने मिथिला के प्रभावशाली लोगों को शामिल करके भ्रामक सूचनाओं से निपटने का फैसला किया है. हम उनसे टेस्टिंग और कोविड को लेकर कलंक जैसी भावनाएं दूर करने के लिए दो मिनट का वीडियो बनाने को कहेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, हम दूरस्थ ब्लॉकों में प्रचार अभियान भी शुरू करेंगे, जहां लोगों को बताया जाएगा कि यदि किसी की टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो भी उसे कहीं नहीं ले जाया जाएगा.’

कुमार ने बताया कि तीसरी रणनीति के तहत, ‘पीडीएस डीलर्स से कहा जाएगा कि इसे लेकर डर और भ्रामक सूचनाओं से मुकाबले में मदद करें क्योंकि वे अधिकांश ग्रामीणों के संपर्क में रहते हैं.’


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