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योगी महाराज के गोरखपुर दरबार में दूल्हों से लेकर गुंडों तक – हर चीज का समाधान है एक स्थान पर

योगी की अनुपस्थिति में दरबार में उनका काम मंदिर प्रबंधक द्वारका तिवारी व सेवानिवृत्त एसडीएम विनोद कुमार ठाकुर करते हैं.

योगी महाराज का गोरखपुर दरबार | फोटोः सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

गोरखपुर में महाराज जी के दरबार में हर समस्या का समाधान किया जाता है. 28 साल की लक्ष्मी 2018 में अपनी मां के साथ वर की तलाश में यहां आई थी. और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सहायकों ने उनके लिए एक सुयोग्य वर ढूंढ निकाला था. अब, पांच साल बाद, वह शिकायत करने के लिए लौटी हैं कि उसका पति उसे पीटता है.

घरेलू शोषण हो या फिर अस्पताल में आने वाले खर्च के लिए पैसे नहीं है या फिर अड़ोसी-पड़ोसी परेशान करता हो, आप गोरखनाथ मठ के पास पहुंचिए उनके पास आपकी हर समस्या का समाधान है. लखनऊ में यूपी के लोग भले ही अपनी शिकायतों की लंबी लिस्ट लेकर सीएम योगी तक आसानी से न पहुंच पाएं, लेकिन प्राचीन मठ एक कमरे से सत्ता की सीट की तरह सामने आ रहा है. वे समाधान करते हैं और सलाह देते हैं, और जो उनसे नहीं हो पाता है उसका अनुरोध लखनऊ तक बढ़ा देते हैं. स्थानीय समस्याओं की जांच के लिए सिटी सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट को लाते हैं और कभी-कभी एक दूल्हा भी ढूंढते हैं.

लक्ष्मी की मां, देवी ने योगी के सहायकों से विनती करते हुए कहा, “मेरी बेटी का पति उसे पीटता है. वह उससे तलाक लेना चाहती है. लेकिन उसका जीवन उसके पति के बिना क्या होगा? कृपया उसकी काउंसलिंग करके मदद करें.”

मंदिर के द्वारका तिवारी ने उन्हें तनाव न लेने की बात कही. “हम तलाक को रोकेंगे,” उसने उसे आश्वासन दिया.

याचिकाकर्ता सुबह 7.30 बजे से ही आना शुरू कर देते हैं और दरबार का दरवाजा खुलने का इंतजार करते हैं. और फिर शुरू हो जाती है धक्का मुक्की. एक बार अंदर जाने के बाद, वे योगी के आदमकद चित्रों से भरे एक हॉल में धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं, जिसके बगल में एक शेर का चेहरा है. मठ के विभिन्न गुरुओं के चित्र लगे हैं. हॉल में सभी को शांत रहना है. यदि वे जोर से बोलते हैं, तो उन्हें चुप करा दिया जाता है और उन्हें डांटा दिया जाता है.

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योगी महाराज का गोरखपुर दरबार | फोटोः सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

दशकों से चली आ रही रोजाना सुनवाई सुबह 9 बजे से 11 बजे तक होती है. दरबार की सुनवाई में वास्तविक अकड़ और शक्ति आ गई है क्योंकि मठ प्रमुख अब मुख्यमंत्री हैं, और वह अभी भी महीने में दो बार आते हैं.


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शो चलाने वाले पुरुष

योगी की अनुपस्थिति में दरबार में उनका काम करने के लिए दो लोगों की जरूरत होती है. तिवारी और सेवानिवृत्त एसडीएम विनोद कुमार ठाकुर, जो कोने में एक डेस्क पर बैठे हैं और उनका सचिव नोट ले रहा है. वह योगी के ‘विशेष कार्य अधिकारी’ हैं और उन लोगों की मदद करते हैं जो प्रशासन के भीतर किसी समस्या उत्पन्न कर रहे हैं – जैसे कि एक भ्रष्ट पुलिस वाला, या एक आलसी प्रशासनिक अधिकारी.

दशकों से चलने के बावजूद गोरखपुर की जनसभा लगातार सवालों के घेरे में रही है. सबसे बड़ी आलोचना यह होती है कि यह अधिकारियों की अक्षमता को उजागर करती है, इस तथ्य से रेखांकित होता है कि गोरखपुर मठ के मुख्य पुजारी ही मुख्यमंत्री हैं.

ठाकुर कहते हैं, “मैं मानता हूं कि हमें अपने सिस्टम को मजबूत बनाने की जरूरत है, लेकिन केंद्र में योगी जी के साथ, ये जनता दरबार हमें जमीन पर क्या हो रहा है, इसके बारे में एक पारदर्शी दृष्टिकोण देते हैं. लोगों के काम में देरी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ हम तत्काल कार्रवाई कर रहे हैं.’

प्रबंधक और पूर्व-एसडीएम एक साथ निर्बाध रूप से काम करते हैं, अक्सर अपनी भूमिकाएं बदलते रहते हैं.

दरबार के अंदर, याचिकाकर्ता उन्हें तिवारी और ठाकुर से अलग करने वाली रेलिंग में जाते हैं. कई भोजपुरी बोलते हैं, और कुछ गाजियाबाद जिले से अपनी याचिकाएं जमा करने के लिए आए हैं. वे एक-दूसरे से बहस करते हैं और धक्का-मुक्की करते हैं जबकि एक कांस्टेबल दरबार में किसी भी तरह की अशांति पैदा न हो इसलिए पैनी नजर रखता है.

इसके बाद आरएन सिंह की बारी है. वह तिवारी के सामने घुटने टेकते हैं और गाजियाबाद में पानी की समस्या के बारे में विस्तार से बात करते हैं. सिंह का कहना है कि वह अधिकारियों से मिल चुके हैं और दर्जनों आवेदन दे चुके हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं आया है. महाराज जी का दरबार ही उनकी आखिरी उम्मीद है. तिवारी सब्र से सुनते हैं, अपना फोन उठाते हैं और जोर-जोर से आदेश देने लगते हैं.

तिवारी अपने फोन पर एक अधिकारी से चिल्लाते हैं, “उसका नाम आरएन सिंह है. उसका काम करवाओ. महाराज चाहते हैं. वह कल आपके पास आएंगे. ”

सिंह तिवारी की ओर देखते हैं, जो अपना हाथ उठाते हैं और कहते हैं, “काम हो जाएगा.”

दस्तावेज़ों की एक फ़ाइल को अपनी बाहों के नीचे दबाते हुए, सिंह बाहर निकलने की ओर झुकते हैं, और तेज आवाज में जयकारा लगाते हैं, “जय योगी महाराज की”. उनके पास जो फाइल है, उसमें अधिकारियों को दिए गए उनके सभी आवेदन रखे हैं.

उनके जाने से सभी की निगाहें उन्नाव की 48 वर्षीया कविता पर टिक गई हैं. वह ठाकुर के सामने दर्द में फर्श पर लोट रही है, जो दस्तावेजों के ढेर को छान रहा है. वह अपनी कुर्सी से उठता है, उसे पकड़ता है और उसे रुकने के लिए कहता है. जैसे ही कविता रोती है और अपनी कहानी कहती है, उसका पति विनोद लखनऊ में कैंसर से जूझ रहा है और उसके इलाज के लिए पैसे खत्म हो गए हैं.

कविता फूट-फूट कर रोते हुए गुहार लगाती है, “कृपया मेरी मदद करें. मेरे पति मर जाएंगे,”

ठाकुर का सचिव, जिसकी उम्र 30 के आसपास है, ए4 आकार की शीट पर सभी प्रासंगिक तथ्यों को बड़े करीने से नोट करता है. दूसरे छोर पर, कांस्टेबल बीरेंद्र सिंह भीड़ को शांत करने के लिए रेलिंग पर अपनी लाठी (छड़ी) मारते हैं.

ठाकुर कुछ सवाल पूछता है और अस्पताल को फोन करता है. वह प्रबंधन को विनोद के अस्पताल में भर्ती करने का निर्देश देता है. “महाराज का आदेश”, वे कहते हैं. ठाकुर तब कविता को सांत्वना देता है और उसे आश्वासन देता है कि उसकी समस्या “महाराज” तक पहुंच जाएगी, और कुछ पैसों की व्यवस्था की जाएगी.

कविता उनके पैर छूती है और चली जाती है, व्यवस्था में उसका विश्वास बढ़ जाता है.

लक्ष्मी का भी योगी महाराज पर इतना ही अटूट विश्वास है. उसकी उम्मीदें अपनी शादी को बचाने और दुर्व्यवहार को खत्म करने के लिए तिवारी के परामर्श पर टिकी हैं.

वह उम्मीदों के साथ कहती है, “मैंने तिवारी जी से बात की है और उन्हें अपने पति का कॉन्टैक्ट नंबर भी दिया है. उनका कहना है कि वह हम दोनों को दरबार में बुलाएंगे और वहीं मसला सुलझा लेंगे. मैं इसका बेसब्री से इंतजार कर रही हूं.’

लेकिन उसकी मां कोई कसर नहीं छोड़ रही है, साथ ही अपनी बेटी जिंदगी में खुशियों के लिए वह भगवान को मनाने में भी पीछे नहीं रहती है. देवी को विश्वास है कि किसी ने लक्ष्मी पर बुरी नज़र डाली है और जल्द ही उसे दूर भगाने के लिए एक हवन (प्रार्थना सभा) आयोजित करेगी. तिवारी जी सादर आमंत्रित हैं.

न्याय का रास्ता

एक किशोर माही और उसकी 23 वर्षीय बड़ी बहन निशा के लिए दरबार सरकार का ही दूसरा रूप है. और आज वे अपने पिता के लिए न्याय की मांग करने आई हैं.

माही बताती हैं कि उनके पिता राम सिंह को पिछले महीने गोरखपुर में उनके गांव नौसर में गुंडों ने पीटा था. उन्होंने पुलिस में शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ. उसके पिता अभी भी अस्पताल में अपनी चोटों से उबर रहे हैं.

वह तिवारी को एफआईआर की एक कॉपी भी देती है और उसे अपने खून से लथपथ और पीटे गए पिता की तस्वीरें अपने फोन पर दिखाती है.

तिवारी को जब वह एफआईआर पढ़ने के लिए अपना चश्मा ठीक करते हैं वह कहती है, “हम कई बार पुलिस के पास गए, लेकिन वे हमारे अनुरोधों को नज़रअंदाज़ करते रहे. जब तक इन गुंडों को गिरफ्तार नहीं किया जाता है, तब तक हम हमेशा अपने जीवन के लिए डरते रहेंगे. ”

तिवारी अपने सहायक शुक्ला जी को कुछ निर्देश देते हुए बुदबुदाते हैं, जो कागज के एक टुकड़े पर कुछ लिखते हैं और माही को सौंप देते हैं. वह अपने ब्लैक एंड व्हाइट फीचर फोन से एक नंबर डायल करता है और कॉल का जवाब देने वाले पुलिस अधिकारी पर भड़क जाता है.

माही ध्यान से चिट खोलती है. इसमें लिखा है, ‘न्याय मिलेगा . वह और उसकी बहन प्रणाम करते हैं और हॉल से खुशी-खुशी निकल जाते हैं.

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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