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कैसी ज़िंदगी जी रहे भारत के बुजुर्ग; भजन, पूजा-पाठ के अलावा करने को है और भी बहुत कुछ

भारत में वृद्ध लोगों से पारंपरिक रूप से अपेक्षा की जाती है कि वे खुद को दुनियावी मामलों से अलग कर लें. लेकिन अब इसमें बदलाव आ रहा है.

गांगल दंपती वीके गांगल और संतोष गांगल एक साथ वक्त बिताना पसंद करते हैं । फोटोः अलमिना खातून

हर सुबह, 86 वर्षीय सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी सुभाष चंद्र राय, अपने परिवार और दोस्तों से व्हाट्सएप पर प्राप्त 10 सुप्रभात संदेशों का उत्तर देने के लिए अपने पुराने डिब्बे जैसे कंप्यूटर को चालू करते हैं. राय ने अपनी 79 वर्षीय पत्नी गीता रानी के साथ पिछले दो दशकों से यही दिनचर्या बनाए रखी है, हालांकि उनकी एक्टिविटीज़ काफी अलग हैं.

उन्हे अपनी दिनचर्या निर्धारित रखने से आराम मिलता है.

इंजीनियरिंग काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक रहे सुभाष चंद्र वसंत कुंज स्थित अपने घर के बरामदे में डेरा डाले हुए हैं. दक्षिण दिल्ली के उनके शांत पड़ोस में, जब भी उनका कोई परिचित उनके घर के पास से गुजरता है तो उनका चेहरा चमक उठता है.

“नमस्ते! आप कहां जा रहे हैं?” वह चिल्ला कर पूछते हैं. और अगर उनके हाथ में पार्सल या बैग है तो वह पूछते हैं कि “आप क्या ले जा रहे हैं?” ज्यादातर दिनों में, वह पड़ोसियों के ड्राइवरों को अपने साथ बैठने के लिए कहते हैं और उनसे उनके काम और राजनीति पर बात करते हैं.

सुभाष चंद्र राय और गीता रानी | फोटो: अलमिना खातून, दिप्रिंट

“हमारे वीकडेज़ और वीकेंड सभी एक जैसे ही हैं. हमें यह भी याद नहीं है कि हमने अपने अधिकांश दिन कैसे बिताए. राय कहते हैं, ”हमारी दिनचर्या एक जैसी है जहां हम खाना खाते हैं, एक-दूसरे से बात करते हैं और पूरा दिन घर पर बिताते हैं.”

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जब उनके बरामदे में बात करने के लिए उन्हें कोई नहीं मिलता, तो वह अपने फोन को स्क्रॉल करते हैं, न्यूज़ पढ़ते हैं और अपने सोशल मीडिया को चेक करते हैं.

गीता का दिन व्यस्त रहता है – सुबह की पूजा के बाद घर के काम, डॉक्टर द्वारा दिए गए डायट प्लान के हिसाब से नाश्ता, और शाम को किराने का सामान, फल और सब्जियां खरीदने के लिए बाजार जाना. कई दिन, उनके पति उन्हें धूल झाड़ने (डस्टिंग) और खाने की मेज (डाइनिंग टेबल) को व्यवस्थित करने में मदद करते हैं. सुभाष और गीता एक-दूसरे के एकमात्र दुख-सुख के साथी हैं क्योंकि उनकी इकलौती लड़की अपने पति के साथ फ्रांस में रहती है.

आज, भारत की बुजुर्ग आबादी देश की कुल 140 करोड़ आबादी के 10 प्रतिशत से कुछ अधिक है. यह संख्या 2036 तक बढ़कर 15 प्रतिशत (लगभग 22.7 करोड़) और 2050 तक दोगुनी होकर 20.8 प्रतिशत (लगभग 34.7 करोड़) होने का अनुमान है. बढ़ती जीवन प्रत्याशा और घटती प्रजनन दर दुनिया भर में जनसांख्यिकीय समीकरणों को बदल रही है, और भारत ऐसे समय में बढ़ती उम्र की आबादी की समस्या का सामना करने वाला है जब संयुक्त परिवार की परंपराएं टूट गई हैं और संस्थागत देखभाल का कोई बुनियादी ढांचा भी नहीं है.

भारत में वृद्ध लोगों से पारंपरिक रूप से अपेक्षा की जाती है कि वे खुद को सांसारिक मामलों से अलग कर लें और वानप्रस्थ आश्रम का पालन करें. वे आरडब्ल्यूए की बैठकों और भजनों में भाग लेते हैं, पोते-पोतियों की देखभाल करते हैं और यहां तक कि आध्यात्मिक समागमों के लिए भी जाते हैं. आस-पड़ोस के पार्कों में सांकेतिक रूप से हंसी-मज़ाक के क्लब बने रहते हैं. लेकिन व्हाट्सएप, फेसबुक और असीमित स्ट्रीमिंग कॉन्टेंट के साथ, ‘ग्रे जॉय’ का स्रोत बदल रहा है.

उनका पूरा दिन स्क्रीन के सामने ही बात जाता है. महत्त्वपूर्ण बात है उनकी निर्धारित दिनचर्या. गुड मॉर्निंग के मैसेज भेजना, राजनीति से जुड़े वीडियो को फॉरवर्ड करना, दिन के दौरान ओटीटी देखना और रात को विवेकानंद और रमण महर्षि के प्रेरणादायक वचनों को सुनना मध्यम वर्ग के बीच अधिक आम बात है.

76 वर्षीय धर्मवती गौतम अपनी बहू के साथ बिस्तर पर आराम कर रही हैं और अपनी सफेद-भूरी बिल्ली, भूरा को सहला रही हैं. शाम हो गई है, चाय का समय होने वाला है. बगल के कमरे में उनके पति 81 वर्षीय छिद्दा सिंह गौतम दीवार पर लगे फ्लैट स्क्रीन टीवी पर समाचार देख रहे हैं. “आदित्य, सबके लिए चाय बनाओ,” वह ज़ोर से कहते हैं. उनके घर में काफी चहल-पहल है. गौतम शहादरा में अपने दो अलग-अलग कमरों और एक कॉमन किचन वाले घर में अपनी बहू और पोते-पोतियों के साथ रहते हैं. दीवार पर लगी एक युवक की तस्वीर की ओर इशारा करते हुए छिद्दा कहते हैं, “कोविड के दौरान मेरे बेटे की मृत्यु हो गई.” इसके दोनों तरफ दो तस्वीरें हैं- एक बीआर अंबेडकर की और दूसरी बुद्ध की.

धर्मवती गौतम अपनी बिल्ली भूरा के साथ | फोटो: अलमिना खातून, दिप्रिंट

“चाय मीठी नहीं है,” वह बड़बड़ाते हैं. लेकिन उनकी बहू चीनी की उनकी मांग को नजरअंदाज कर देती है. “उन्हें डायबिटीज़ है. हम सारी मिठाइयां बेडरूम की अलमारी में बंद कर देते हैं.” दवाइयां टेलीविजन के नीचे शेल्फ पर हैं, ताकि उन्हें खाना न भूले.

एशिया में वृद्ध लोगों की वैश्विक आबादी का लगभग 58 प्रतिशत हिस्सा रहता है.

बेटे-बेटियों द्वारा माता-पिता और बुजुर्गों का ध्यान रखे जाना और उनकी सेवा करना पारंपरिक रूप से एशियाई संस्कृतियों का एक अभिन्न अंग होने के बावजूद, चीन, जापान और सिंगापुर जैसे देशों ने बड़े पैमाने पर इसमें निवेश किया है और वृद्ध वयस्कों के लिए स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल के मॉडल का बीड़ा उठाया है. लेकिन भारत में, बुजुर्ग लोग सार्वजनिक नीतियों, बहसों और चुनावी मौसम में राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणापत्रों से अजीब तरह से गायब हैं. जिस तरह से युवाओं और महिलाओं के सशक्तीकरण को लेकर बात की जाती है उस तरह से वृद्धावस्था देखभाल की आवश्यकता मुख्यधारा की राजनीति से बिल्कुल गायब है.

वृद्धावस्था कल्याण के लिए काम करने वाली दिल्ली स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन द गिल्ड ऑफ सर्विस की अध्यक्ष मीरा खन्ना कहती हैं, “सरकार यह मान सकती है कि बुजुर्गों की समस्या परिवारों की समस्या है और इसके विपरीत भी. लेकिन यह काफी जिम्मेदारी वाला काम है,” वह चाहती हैं कि भारत सरकार वृद्ध लोगों के लिए “समग्र, 360 डिग्री” का दृष्टिकोण अपनाए.

“इधर-उधर थोड़ा बहुत सुधार करके काम नहीं चलेगा. यदि हमने लोगों को लंबी उम्र की सौगात दी है, तो उनके जीवन की गुणवत्ता को बेहतर करना भी उतना ही आवश्यक है. नहीं तो इस तरह की लंबी जिंदगी का क्या फायदा जो इतना डरावना हो?”


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बदलते पारिवारिक पैटर्न से जूझना

सरकारी स्कूल के सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक हसमुख सागर शर्मा अपने बेटे की किराने की दुकान पर ग्राहकों का मुस्कुराते हुए स्वागत करते हैं. पश्चिमी दिल्ली के नजफगढ़ उपनगर में चमकदार रोशनी वाला मास्टरजी स्टोर हर चीज के लिए वन-स्टॉप शॉप है – दूध, केचप, बिस्कुट, दाल, डिटर्जेंट, अनाज, मसाले, नोटपैड और स्टेशनरी. उनके सभी ग्राहक स्थानीय निवासी हैं. “कैसे हैं मास्टरजी?” वे उनसे किराने के सामान वाला बैग छीनते हुए और उन्हें पैसे देते हुए पूछते हैं.

हसमुख सागर शर्मा और दयावती शर्मा | मोनामी गोगोई, दिप्रिंट

हसमुख की सक्रियता, उनका अच्छी तरह से शेव किया हुआ और लगभग झुर्रियों से रहित चेहरा उनकी उम्र का पता नहीं लगने देता. वह 79 वर्ष के हैं और उनकी दिनचर्या ऐसी है कि एक 20 साल का व्यक्ति को भी उनके सामने शर्म आ जाए.

उनके दिन की शुरुआत सुबह के साढ़े पांच बजे घर में लिविंग रूम से स्टोर को कनेक्ट करने वाले दरवाजे के बीच टहलने से होती है. उन्हें दूध सप्लाई करने वालों से दूध लेना होता है और उन छात्रों को सामान भी देना होता है जो स्कूल जाते समय पेन, पेंसिल और चिप्स खरीदते हैं. वह स्टोर, जिसे वह अपने बेटे के साथ संभालते हैं, बाहरी दुनिया से जुड़ने के लिए एक खिड़की की तरह है. लोग आते-जाते रहते हैं और राजनीति, परीक्षा और जीवन-यापन की बढ़ती लागत पर चर्चा करते हैं.

इस काम ने उन्हें पिछले 12 सालों से व्यस्त रखा है. उन्हें 40,000 रुपये की पेंशन भी मिलती है फिर भी उन्होंने स्टोरकीपर के रूप में अपनी दूसरी पारी को जारी रखा है. जब दोपहर 1-2 बजे के बीच उनके झपकी लेने का समय होता है, तो उनकी पत्नी दयावती उनका कार्यभार संभालती हैं. मास्टरजी की दुकान का शटर रात 10 बजे ही बंद होता है, जब आस-पड़ोस के सभी लोग घर वापस आ जाते हैं और उनकी अलमारियां भर जाती हैं. 11 बजे तक, शर्मा का दिन भी खत्म हो जाता है.

77 साल की दयावती घर का सारा काम करती हैं और पांच लोगों के परिवार के लिए खाना बनाती हैं – वे अपने बेटे और दो पोते-पोतियों के साथ रहते हैं. घर का कामकाज करने में काफी समय लगता है, लेकिन हर सोमवार शाम को वह पड़ोस के शिव मंदिर जाती हैं, साथी भक्तों से मिलती हैं और भजन गाती हैं.

यह दुकान शर्मा परिवार की धुरी है. जब 2012 में मानेसर में मारुति सुजुकी के प्लांट में हिंसा के बाद उनके बेटे राजेश की नौकरी चली गई, तो उन्होंने अपने घर से लगा हुआ यह स्टोर खोला. दुकान और शर्मा परिवार के ड्राइंग रूम के बीच एक कनेक्टिंग दरवाजा है, जिसकी वजह से बुजुर्ग दंपती को घर और दुकान के बीच आने-जाने में दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता.

हसमुख कहते हैं, “हम पिता-पुत्र हैं लेकिन हम दोस्तों की तरह रहते हैं. यह सब मेरी पत्नी के कारण संभव हुआ है. वह हमसे कहती है कि हंसते रहो. मेरे जीवन का आदर्श वाक्य भी है – खुश रहो,”

वह अपने बेटे की तुलना पितृभक्ति के प्रतीक श्रवण कुमार – पौराणिक रामायण पात्र, जिन्होंने अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने कंधों पर तीर्थ कराई थी – से करते हैं. पत्नी के चले जाने के बाद राजेश ने अपने माता-पिता के साथ रहने का फैसला किया.

वह दो बार शाम की सैर पर जाते हैं – एक बार अपने पिता के साथ और दूसरी बार अपनी मां के साथ, जिन्हें वह अपनी रोज़ की कमाई सौंपते हैं.

वे कहते हैं, “पुरानी पीढ़ी का स्वास्थ्य बीमारी से कम और अकेलेपन के कारण ज्यादा खराब होता है. मैं यह सुनिश्चित करता हूं कि मेरे माता-पिता स्टोर चलाने में मेरी मदद करें. इस तरह, वे मेरे साथ समय बिताते हैं और मेरी आय में मेरी मदद करते हैं,”

स्टडीज़ से पता चला है कि भारत के वरिष्ठ नागरिक जो अपने जीवनसाथी और बच्चों के साथ रहते हैं, उनमें जीवन संतुष्टि का स्तर उच्च है. कई लोग अपने शहरों में जाने के लिए भी तैयार हैं ताकि वे अपने कामकाजी बच्चों के करीब रह सकें.

पारुल* और करण* 25 साल तक नोएडा में रहने के बाद 2018 में गुरुग्राम आकर बहुत खुश थे. वे अपनी बेटी और दो पोतियों के करीब रहना चाहते थे. उनके बेटे के विदेश में रहते हैं, इसलिए वहां जाना उनके लिए इसके बाद का विकल्प था.

70 वर्षीय पारुल कहती हैं, “अब, हमारी बेटी हमसे कुछ मिनट की दूरी पर रहती है. अपने पोते-पोतियों से मिलने से हमें ऊर्जा मिलती है,” वह अपने दो इनडोर बगीचों की देखभाल करती है, अपने पुराने पड़ोस के दोस्तों के साथ संपर्क में रहती है और पढ़ती है. इस बीच, करण परिवार की डिजिटल फोटो इन्वेंटरी बनाने में व्यस्त हैं.

वे उस पल का इंतज़ार करते हैं जब उनकी दो पोतियां उनके पास आएंगी, जो 18 और 20 वर्ष की हैं. साथ में, वे बोर्ड गेम खेलते हैं या थिएटर या ओटीटी पर फिल्म देखते हैं.

एक अमेरिक होम प्रोडक्ट कंपनी में डिस्ट्रीब्यूशन बिजनेस करने वाली पारुल कहती हैं, “कभी-कभी हम दोपहर के भोजन के लिए बाहर जाते हैं. वे हमें अपनी दिन भर की गतिविधियों के बारे में बताती हैं. मैं उन्हें कुछ प्रेरक बातें सुनाती हूं या उनकी मां से जुड़ी पिछली घटनाओं के बारे में बताती हूं,”

संपन्न गुरुग्राम हाउसिंग कॉलोनी में, जहां देश वापस आने वाले एनआरआई की बड़ी आबादी है, डॉक्टर या एम्बुलेंस सेवाएं सिर्फ एक कॉल की दूरी पर उपलब्ध है. लॉबी मैनेजर इसकी व्यवस्था करता है. पारुल ने देखा है कि कई परिवार रेजीडेंशियल कंपाउंड के भीतर दो यूनिट्स खरीद रहे हैं – एक अपने लिए और दूसरी अपने माता-पिता के लिए.

गांगल के लिए, जिनके दो बेटे संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हैं, उनके वसंत कंज डुप्लेक्स के हर कमरे में सीसीटीवी कैमरे इस बात का प्रमाण हैं कि उनकी उम्र काफी है. लेकिन वे इसे सेलिब्रेट करते हैं. 5 मार्च को, गांगल दंपती ने परिवार के कुछ सदस्यों और दोस्तों के साथ वसंत कुंज में आर्य समाज में हवन के साथ अपनी 60वीं शादी की सालगिरह मनाई. यह उनकी 50वीं सालगिरह जितनी भव्य नहीं थी, जिसे उनके दोनों बेटों द्वारा आयोजित किया गया था और उन्होंने एक-दूसरे को हीरे की अंगूठियां पहनाई थीं.

संतोष गांगल और वीके गांगल ने वसंत कुंज के आर्य समाज में अपनी 60वीं वर्षगांठ मनाई | फोटो: अलमिना खातून, दिप्रिंट

“इस बार हमने एक-दूसरे को कुछ भी उपहार नहीं दिया. मुझे लगता है कि मैं उसके लिए सबसे बड़ा उपहार हूं क्योंकि मैं अपनी बीमारी से बच गया हूं,” वीके मजाक करते हैं, जो 87 साल की उम्र में किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं. पिछले साल इसके डायग्नोसिस के साथ ही, वसंत कुंज में फोर्टिस अस्पताल उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा बन गया है.

पत्नी संतोष कहती हैं, “पिछले साल, हमारे लिए काफी कठिन समय था जब उन्होंने लगभग सांस लेना बंद कर दिया था और सात-आठ दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती थे.” वह उनसे कहती है, “अपना शॉल ठीक से ओढ़ो.” वीके गांगल सोफे से उठते हैं और अपनी सालगिरह के जश्न का एल्बम निकालने के लिए अपने बेडरूम में जाते हैं.

सप्ताह में तीन दिन उनका ड्राइवर उन्हें फोर्टिस अस्पताल ले जाता है. यह पांच मिनट से भी कम की दूरी पर है, लेकिन वीके अकेले जाना पसंद करते हैं. वे कहते हैं, “मैं अपनी पत्नी को परेशान नहीं करना चाहता, और अस्पताल के डॉक्टर, तकनीशियन और कर्मचारी बहुत देखभाल करने वाले और अच्छे हैं,” उनके पास मेडिकल फाइलों से भरी एक दराज है जो एक के बाद एक रखी हुई है.

संतोष अब पेंटिंग और बुनाई नहीं कर सकतीं क्योंकि इससे उसकी आंखों पर दबाव पड़ता है; उनकी उंगलियों की पकड़ ढीली हो रही है. लेकिन वह उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को सहजता से स्वीकार करती है.

भारतीय, चाहे वे किसी भी वर्ग के हों, अपने वृद्ध माता-पिता के लिए बिना किसी ब्लूप्रिंट के एक कोर्स तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत, बड़ों का और उनके अनुभवों का सम्मान करने की अपनी संस्कृति के साथ बदल रहा है.

खन्ना कहते हैं, “परिवार की पारंपरिक व्यवस्था के टूटने, अन्य संस्कृतियों के प्रभाव, विशेष रूप से न्यूक्लियर फैमिली पर फोकस ने, बुजुर्गों के प्रति समाज के दृष्टिकोण को बदल दिया है. उनके जीवंत अनुभव का सम्मान करने के बजाय, हमने उन्हें महत्त्व देना बंद कर दिया है.”

यह बदलाव शहरी भारत तक ही सीमित नहीं है. इस महीने की शुरुआत में, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) में बुजुर्ग महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर एक बातचीत के दौरान, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी केएन श्रीवास्तव ने एक घटना को याद किया, जहां उत्तर प्रदेश के किसी व्यक्ति ने अपने गांव में वृद्धाश्रम बनाने में मदद के लिए उनसे संपर्क किया था. उन्होंने कहा, “बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा न केवल शहरी भारत में हो रही है बल्कि गांवों में भी बढ़ रही है, जो काफी अधिक दुखद है.”

इसके अलावा, सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव के साथ-साथ नीतियों के स्तर पर भी शून्यता नज़र आती है. खन्ना ने सिंगापुर का उदाहरण देकर भारत के मामले की तुलना की जहां उन युवा जोड़ों को टैक्स में छूट दी जाती है जो लोग अपने माता-पिता के घर के करीब घर लेते हैं.

वह कहती हैं, “करदाताओं को ऐसे लाभ दिए जाने चाहिए जिससे माता-पिता की देखभाल करना आसान हो जाए. एक ‘सैंडविच जेनरेशन’ है, जो अपने बच्चों की देखभाल के साथ-साथ अपने बुजुर्ग माता-पिता की भी देखभाल करती है. इस दोहरी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए उन्हें सपोर्ट की ज़रूरत है.”

जीवनसाथी का साथ और इंटरनेट

इंस्टाग्राम रील्स ने भीड़-भाड़ वाली जगह से दूर, समुद्र तट के किनारे या पहाड़ों में सुखद जीवन जीने को लोकप्रिय बना दिया है. लेकिन बुजुर्ग अपनी उम्र से लड़ते हुए और बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए चीजों में उलझे रहना चाहते हैं.

75 वर्षीय हरविंदर सिंह को शाहदरा में अपनी पत्नी हर जिंदर कौर के साथ चलने वाली स्कूल कैंटीन में बस यही करने को मिलता है. शर्मा परिवार की तरह, सिंह भी अपने दिन की शुरुआत सुबह 6.30 बजे करते हैं. तैयार करने के लिए सैंडविच, तलने के लिए समोसे और भूखे छात्रों के लिए विशाल कैंटीन काउंटर पर रखी जाने वाली पेस्ट्री हैं.

हरविंदर कहते हैं, “हम यह 21 सालों से कर रहे हैं,” उनकी 68 वर्षीय पत्नी स्नैक्स तैयार करने के दो असिस्टेंट के सुपरविज़न का काम करती हैं. सिंह दंपती के लिए कैंटीन वही है जो शर्मा दपती के लिए किराने की दुकान है – आनंद, संतुष्टि का स्रोत और लोगों के साथ बातचीत करने का एक आउटलेट.

शादी के 45 साल बाद, पति-पत्नी एक-दूसरे को पढ़ने में माहिर हैं – चढ़ी हुई त्योरियों से लेकर हल्की मुस्कुराहट तक.

हरविंदर कहते हैं, “जब भी हम बहस करते हैं, हम उस समय एक-दूसरे से कभी बात नहीं करते हैं. हम दो-तीन घंटे बाद बात करते हैं, जिससे हमेशा समस्या हल हो जाती है और यही हमारे सुखी वैवाहिक लंबे जीवन की सबसे अच्छी कुंजी है,”

अनुशासन धर्म है और व्यस्त रहना पूजा है – जो उन्हें ‘ऐसा हुआ तो…’ और ‘उसके बाद क्या…’ के रास्ते पर भटकाने के बजाय वर्तमान परिस्थितियों में व्यस्त रखता है. और अपने स्मार्टफोन और टैबलेट से जुड़ी सैंडविच पीढ़ी के विपरीत, जो घंटों तक रील और क्लिप देखती रहती है, सिंह के लिए, फोन उनके बच्चों, एक्स्टेंडेड फैमिली और दोस्तों के साथ संपर्क में रहने का एक उपकरण मात्र है. उनकी एक ऐसी पीढ़ी है जो वास्तविक जीवन की बातचीत को महत्व देती है.

दारूवाला दंपती की उम्र में भले ही 18 साल का अंतर हो, लेकिन बात करने के लिए उनके पास हमेशा कुछ न कुछ होता है. सैम मानेकशॉ की बेटी, माजा दारूवाला, एक वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता, 78 वर्ष की हैं जबकि उनके पति, धुन, 96 वर्ष के हैं. उनके बीच एक लय है, जो सालों में विकसित हुआ है.

वर्तमान में इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की मुख्य संपादक माजा ने कहा कि उनके हितों और ऊर्जा में “संतुलन विकसित करने की आवश्यकता” है. लेकिन उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की वजह से पूर्व में दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि माजा का स्वभाव जीवन के प्रवाह के साथ जीने का रहा है जबकि धुन काफी अनुशासित हैं.

माजा दारूवाला का वर्क स्टेशन | मोनामी गोगोई, दिप्रिंट

माजा कहती हैं, “जब हमारी उम्र कम थी, तो मेरे पति के साथ वाद-विवाद हुआ करते थे. वह ज्यादा अनुशासित थे. यहां-वहां छोटी-बड़ी नोकझोंक होती रहती थी. लेकिन हमने एक-दूसरे के स्वभाव को समझकर उसके साथ जीना सीख लिया है,”

वह पीढ़ी जो पोस्टमैन का इंतजार करती थी और विदेशों में रिश्तेदारों को ‘ट्रंक’ कॉल करती थी, उसने प्रौद्योगिकी और इंटरनेट को अपना लिया है.

सुभाष चंद्र अपने दिन की शुरुआत गुड मॉर्निंग मैसेज का जवाब देकर करते हैं. संतोष गांगल अपने आर्य समाज, महिला समाज और वैदिक प्रचार व्हाट्सएप समूहों में आध्यात्मिक और हेल्थ टिप्स और गुड मॉर्निंग कोट्स की डेली डोज़ के लिए इंटरनेट का सहारा लेते हैं.

और माजा व्हाट्सएप के माध्यम से “कम्युनिटी तक व्यापक पहुंच और तेजी से कम्युनिकेट” करने के बारे में बात करती हैं. इस उम्र में, उन्हें इन्फॉर्मेशन, मनोरंजन और बातचीत में मज़ा आता है जिसे इंटरनेट के जरिए कोई भी ऐक्सेस कर सकता है.

वह कहती हैं,“पहले, हमें तत्काल और ट्रंक कॉल के लिए इंतजार करना पड़ता था, जिसमें बहुत समय लगता था, लेकिन अब, मैं बिना इंतजार किए लोगों से बात कर सकती हूं. मैं अपने बेटों और पोते-पोतियों से, जो दिल्ली से दूर हैं, हर समय बात करती हूं. मैं अपनी बहन से हर दिन फोन पर बात करती हूं,”


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पुरानी यादें और एक ‘अज्ञात’ डर

दारूवाला का हौज़ खास का घर वृद्ध लोगों के अनुकूल है. उनकी दो मंजिला इमारत, जिसमें वे टॉप फ्लोर पर रहते हैं, उसमें एक लिफ्ट है. घरेलू कामकाज संभालने के लिए उनके पास दो लंबे समय तक रहने वाले सहायक भी हैं. वसंत के दिनों में, माजा काफी बुद्धिमत्ता के साथ अपनी स्टडी और दूसरे कमरे में मौजूद अपने पति, जिनका स्वास्थ्य थोड़ा खराब है, उनकी देखभाल करते हुए जीवन में संतुलन बनाती हैं.

“क्या आप टोस्ट या कुछ और खाना चाहेंगे?” वह अपने पति से पूछती है. धीमी आवाज़ में, धुन एक टोस्ट लेते हैं, और माजा हेल्पर को आवश्यक निर्देश देती हैं.

उनके स्टडी रूम में, स्टडी टेबल के ऊपर किताबों से भरी एक शेल्फ रखी हुई है, जिसमें एक बड़ा डेस्कटॉप और प्रिंटर भी है. उनके माता-पिता सैम और सिलू मानेकशॉ, बहन, बच्चों और पति की पारिवारिक तस्वीरें शेल्फ के लकड़ी और कांच के पैनलों के बीच रखी गई हैं.

माजा और उनके पति को लगभग 30 साल हो गए हैं जब उनके दो बेटे कॉलेज चले गए थे. कुछ दिन वे एक साथ ताश खेलकर या टीवी देखकर अपना मनोरंजन करते हैं. कभी-कभी, वे अपने दोस्तों से मिलने जाते हैं या आईआईसी में लेक्चर में भाग लेते हैं.

आठ साल पहले, माजा ने राष्ट्रमंडल मानवाधिकार इनीशिएटिव को छोड़ दिया, जिसका वह दो दशकों तक नेतृत्व कर रही थीं. वह कहती हैं, “लेकिन मन से, मैं कभी भी सेवानिवृत्त नहीं हुई. मेरी आशा है कि मैं अंत तक समाज और अपने करीबी लोगों के लिए उपयोगी रह सकूंगी,”

फिर भी, उनके मन में अक्सर एक चिंता व्याप्त रहती है – उनके पति का रिटायर्ड जीवन. धुन के चार दशकों से अधिक लंबे करियर को दिखाते हुए, जिसके दौरान वह एयर इंडिया में एक अवैतनिक अप्रेंटिस से एक अनुभवी ट्रेनिंग फ्लाइट इंजीनियर तक पहुंचे, माजा स्वीकार करती हैं कि ऐसे “सक्रिय और जिम्मेदार” व्यक्ति के लिए “सेवानिवृत्ति एक वास्तविक परीक्षण है.”

जबकि जीवन की क्षणभंगुरता वृद्ध लोगों के बीच काफी आम विषय होता है जिस पर वह बात करते हैं, लेकिन माजा उस डर की तरफ ध्यान खींचती हैं जिस पर बुजुर्ग शायद ही कभी ध्यान देते हैं – वह है बीमार पड़ने की आशंका. असीमित समय और फुर्सत होने के आकर्षण के साथ साथ कहीं एक कमजोर शरीर का डर भी छाया रहता है.

“एक पहलू जिस पर बुजुर्ग लोग शायद ही कभी चर्चा करते हैं वह है बीमारी का डर. उन्हें अपनी गरिमा खोने, अपने शरीर और घर पर नियंत्रण खोने और दूसरों पर निर्भरता की संभावना का डर रहता है. कोई भी अपने परिवार पर बोझ नहीं डालना चाहता.”

वह इस बात पर जोर देती हैं कि उनकी और उनके पति दोनों की कार्यशैली इस बात को लेकर साफ है कि सभी गतिविधियां सार्वजनिक उद्देश्य से संचालित होनीं चाहिए. लेकिन जब लोग बूढ़े हो जाते हैं और उनकी क्षमताएं कम हो जाती हैं तो वह “उपयोगिता की भावना ख़त्म हो सकती है”.

फिर पुरानी यादों का बोझ और प्रियजनों को अपने सामने गुज़रते हुए देखने का दर्द भी है.

वह कहती हैं,“लंबा जीवन किसी को भी तोड़ सकता है. आप बहुत से ऐसे लोगों को मरते हुए देखते हैं जिन्हें आप प्यार करते हैं. जब लोग 30 या 40 की उम्र में होते हैं, तो सब कुछ सकारात्मक और बढ़िया होता है, लेकिन जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, सब कुछ थोड़ा-थोड़ा दुखद होता जाता है. आपको बार-बार श्मशान और अस्पताल जाना पड़ता है और आपको अपनी मृत्यु के नज़दीक होने का बार-बार अहसास होता है,”

वसंत कुंज में वापस, गीता रानी और चंद्र राय शाम 6 बजे के कामकाज के लिए तैयार हो रहे हैं. गीता जल्दी से चाय का बर्तन ले आती है, जबकि उनके पति सोफे पर बैठ गए हैं. उन्होंने राहगीरों और ड्राइवर्स से बातचीत करनी शुरू कर दी है.

वह कहती हैं, ”उनका लोगों को इस तरह बुला के बात करना कभी-कभी बेवजह लोगों को परेशान करता है.” कभी-कभी, पड़ोसी और दुकानदार सवाल करते हैं कि उनके पति के अंदर तुरंत चिड़चिड़ापन क्यों आ जाता है. वह बात को स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि वह गुस्सा नहीं होते बल्कि उनकी आवाज़ तेज़ है और “लोगों से बात करना उन्हें पसंद है.” उनकी बात सुनकर चंद्र राय के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है.

जैसे ही घड़ी में 6 बजते हैं, वह अपने पति के साथ उनके पुराने, बॉक्स के आकार के टेलीविजन के सामने बैठ जाती हैं.

चंद्रा मुस्कुराते हुए कहते हैं, “शाम को, हम एक साथ बंगाली धारावाहिक देखते हैं, चाय-नाश्ता करते हैं और शो के बारे में बात करते हैं. हालांकि, हम पूरा दिन एक साथ बिताते हैं, लेकिन यह समय हमें सबसे अच्छा लगता है,”

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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