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‘डबल-मर्डर, ताराबाड़ी की हत्यारी पंचायत’: बिहार के इस गांव ने कैसे खड़ा किया संवैधानिक संकट

पिछले साल जून में हुए डबल-मर्डर के बाद से ही ताराबाड़ी पंचायत का पूरा विकास कार्य ठप पड़ा है. ताराबाड़ी जहां था, आज भी उसी दोराहे पर खड़ा है.

चित्रण: मनीषा यादव/दिप्रिंट
चित्रण: मनीषा यादव/दिप्रिंट

पूर्णिया: बिहार के पूर्णिया जिले का ताराबाड़ी पंचायत महानंदा और कनकई नदी के बीच घिरा है और दशकों से ये इलाका विकास की सारी संभावनाओं से कोसों दूर है. लेकिन बीते साल डबल मर्डर ने इस ग्राम पंचायत को न केवल ठप कर दिया बल्कि राज्य के सामने एक अभूतपूर्व संवैधानिक संकट भी पैदा कर दिया.

ताराबाड़ी पंचायत के सारे जनप्रतिनिधि मुखिया, उप-मुखिया, सरपंच, उप-सरपंच से लेकर वार्ड सदस्यों तक या तो जेल में बंद हैं या फरार हैं. उन पर पंचायत समिति और उसके एक करीबी की हत्या का आरोप है. बीते दस महीने से पंचायत में होने वाले सभी विकास कार्य ठप पड़े हैं.

खेती-किसानी के कामों से जुड़े रहने वाले ताराबाड़ी के अबसार आलम इस घटना के महीनों बाद की स्थिति पर कहते हैं, “जब से पंचायत के लोग मर्डर मामले में फंसे हैं तब से ये पंचायत सूना पड़ गया है. जैसे बिना मां-बाप के लोग होते हैं, वैसी हमारी हालत हो गई है. दूसरे लोग अब हमें नीचा दिखाते हैं. गांव की इज्ज़त ही खत्म हो गई है.”

ये पंचायत न सिर्फ साल के तीन-चार महीने बाढ़ से प्रभावित रहता है बल्कि सामान्य दिनों में भी यहां पहुंचना एक दुरुह काम है. जिला मुख्यालय से ताराबाड़ी का सीधा संपर्क आज तक नहीं हो सका है.

जिस गांव तक पहुंचना एकदम मुश्किल है— जो हर साल चार महीने बाढ़ से प्रभावित रहता है— अब इस गांव के साथ एक नई नकारात्मक पहचान जा जुड़ी है, जिसने इसके पूरे इतिहास पर प्रश्न-चिन्ह खड़ा कर दिया है. इस गांव को हत्यारों का गांव कहा जाने लगा है. जिला अधिकारियों के सामने जब पंचायत न चलने की बात पहुंची तो उनके सामने संकट खड़ा हो गया कि आकस्मिक ढंग से उभरी इस शून्यता को आखिर कैसे दूर किया जाए.

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महानंदा और कनकई नदी के बीच घिरा ताराबाड़ी पंचायत दशकों से विकास परियोजनाओं की बाट जोह रहा है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

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रक्त रंजित नज़ारा

ताराबाड़ी पंचायत के हर व्यक्ति के ज़हन में 28 जून 2022 की तारीख याद है, लेकिन उसे याद करने की वजह बेहद ही चौंकाने और दिल दहला देने वाली है.

हर किसी के ज़ुबान से एक ही बात सुनाई पड़ती है— उस दिन सैलाब आया हुआ था. चारों तरफ पानी ही पानी था, बिजली कड़क रही थी, घरों में पानी घुसा हुआ था. अबसार बताते हैं, “कोई भी चुना हुआ प्रतिनिधि न होने के कारण गांव में डर का माहौल बना रहता है.”

घटनास्थल पर मौजूद होने का दावा करने वाले एक ग्रामीण ने कहा, “तभी अचानक शाम के वक्त पता चला कि पंचायत समिति सदस्य शहबाज आलम और उसके एक साथी मुनाज़िर की हत्या कर दी गई.” उन्होंने बताया कि आलम और मुनाज़िर को माली टोला बुलाया गया, जहां पंचायत प्रतिनिधियों से उसकी तीखी कहासुनी हुई और उसके बाद सबने मिलकर लाठी, चाकू और मछली पकड़ने वाली गोपती से उस पर हमला कर दिया.

शहबाज आलम (सफेद कपड़ों में चश्मा पहने हुए) अपने समर्थकों के साथ | फोटोः फेसबुक/शहबाज़ आलम

उस  दिन की घटना को याद करते हुए उसने बताया, “थोड़ी देर की बहस के बाद, सभी ने आलम और मुनाज़िर को चाकू, लोहे के रोड, मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाली लोहे की नुकीली गोपती से मारा. वे छिपने के लिए पास के घर में भागे लेकिन उनका पीछा किया गया और दिनदहाड़े बेरहमी से उसे मौत के घाट उतार दिया गया. उस दिन पूरी सड़क खून से लथपथ हो गई थी.”

लगभग छह फुट लंबा शहबाज आलम इलाके का ‘दबंग’ व्यक्ति था जो अक्सर अपनी बुलेट पर घूमता था. उसके पास हर दम उसकी बंदूक भी रहती. ग्रामीणों के मुताबिक, वो लोगों में खौफ पैदा कर अपनी धाक जमा रहा था. उसका साथी मुनाज़िर साए की तरह हमेशा उसके साथ रहता था.

शहबाज के भाई शाहनवाज़ आलम ने बताया, “भईया गरीबों के मसीहा थे. लोगों ने मिलकर उनको बुरी तरह मार दिया. मेरे भाई के पास उस दिन बंदूक नहीं थी, वरना उनमें से कोई भी जिंदा नहीं बचता.”

बाढ़ के समय यह इलाका पूरी तरह से जिला मुख्यालय से कट जाता है. लोग केले के नाव बनाकर अपनी दिनचर्या के सामान लाते हैं. बुरी तरह घायल होने के बाद आलम को नाव के जरिए नदी पार कर पूर्णिया सदर अस्पताल ले जाया जा रहा था लेकिन बीच रास्ते में ही उसकी मौत हो गई.

स्थानीय बायसी बाज़ार के दुकानदारों ने आरोप लगाया कि आलम अक्सर ट्रक वालों से पैसे वसूलता था और पैसे नहीं देने पर मारपीट भी करता था. मोबाइल की दुकान चलाने वाले मनीष ने दावा किया कि हत्या से कुछ दिन पहले आलम जबरन वसूली की ऐसी ही एक घटना में शामिल था.

पुलिस एफआईआर में भी आलम की पत्नी ने पंचायत प्रतिनिधियों पर आलम और मुनाज़िर की हत्या का आरोप लगाया है. यह पूरा समला चुनावी प्रतिद्वंद्विता और स्थानीय तौर पर राजनीतिक प्रभुत्व जमाने की एक रक्तरंजित कहानी है.

शाहनवाज़ ने दावा किया कि पंचायत सदस्य प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत मिलने वाले पैसों का गबन करते थे, जिसका उनके भाई ने विरोध किया. इस योजना को स्थानीय स्तर पर गांव वाले ‘कॉलोनी’ नाम से बुलाते हैं.

आलम के भाई ने कहा, “इसलिए भईया को सबने मिलकर रास्ते से हटा दिया.”

दूसरी ओर, आरोपियों के परिजनों ने दावा किया है कि आलम अक्सर फंड से पैसे मांगता था और जब पंचायत सदस्य मना करते तो उन्हें धमकाया और मारा-पीटा जाता.

2021 के पंचायत चुनाव में उसने कंघी के चुनाव चिन्ह पर पंचायत समिति सदस्य का चुनाव जीता. यह राजनीति में उसकी पहली कोशिश नहीं थी. इससे पहले वे मुखिया पद के लिए खड़ा हुआ था, लेकिन उसे हार झेलनी पड़ी थी.

ताराबाड़ी के ही रहने वाले अफज़ल आलम ने आरोप लगाया, “गुंडागर्दी कर उसने पहले तो आसपास के इलाके में पकड़ मजबूत की और फिर अपने ही गांव वालों को भी परेशान करने लगा. कई बार तो लड़कियों को भी वह छेड़ा करता था.”

ताराबाड़ी से होकर गुजरती कनकई नदी | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

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आखिर क्या था पूरा मसला

आलम की हत्या के बाद सभी आरोपी रातोंरात गांव से फरार हो गए. हालांकि, अभी तक सभी लोग पकड़े नहीं गए हैं.

सभी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या), 120 (बी) (आपराधिक साजिश), 379 (चोरी) और 34 (सभी के सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने के लिए कई व्यक्तियों द्वारा किया गया आपराधिक कृत्य) के तहत आरोप दर्ज हैं.

बायसी थाना के थानाध्यक्ष रमेश कांत चौधरी को वारदात के इतने समय बाद भी एफआईआर नंबर याद है. उन्होंने कहा, “आलम के मर्डर में 21 लोग नामज़द है जिनमें से 15 लोग पुलिस हिरासत में हैं और 6 लोग अभी भी फरार है.”

ताराबाड़ी गांव की वह जगह जहां पिछले साल शहबाज आलम और मुनाज़िर की पंचायत प्रतिनिधियों ने मिलकर हत्या कर दी | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

बायसी पुलिस स्टेशन से ताराबाड़ी की दूरी महज 14 किलोमीटर है लेकिन इस दूरी को पाटना कोई आसान काम नहीं है. पिछले साल जिस वक्त ये मामला हुआ तो शाम के छह बज रहे थे और चारों तरफ बस बाढ़ का पानी ही दिख रहा था, जिस कारण पुलिस का पहुंचना बहुत मुश्किल था. गांव वालों ने बताया कि पुलिस की टीम अगले दिन करीब 10 बजे गांव पहुंची, तब तक सभी आरोपी नदी के रास्ते फरार हो चुके थे. हालांकि, पुलिस ने भी स्वीकारा कि ताराबाड़ी पहुंचना कोई आसान काम नहीं है.

आरोपी के परिजनों को आलम की हत्या में कुछ भी गलत नहीं दिखता है. नाम न छापने की शर्त पर एक आरोपी के परिवार के सदस्य ने कहा, “उसने बहुत पाप कर लिए थे. उसका पाप का घड़ा भर चुका था. अगर उसे नहीं मारते तो वो हम सब को को मार देता.”

पूर्णिया बिहार के सबसे पिछड़े जिलों में से है. 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की साक्षरता दर 52.49 फीसदी है. ताराबाड़ी पंचायत में तकरीबन 5000 लोग रहते हैं लेकिन अभी तक यहां कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. अगर कोई बीमार पड़ता है तो नांव के जरिए खाट पर लेटाकर उन्हें या तो बायसी या पूर्णिया ले जाना पड़ता है, जहां पहुंचने तक कई बार मरीज की मृत्यु भी हो जाती है.

पश्चिम बंगाल की सीमा भी ताराबाड़ी से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर ही है. गांव वाले बताते हैं कि पूर्णिया की बजाए बंगाल का दालकोला उनके लिए सामान खरीदने के लिए ज्यादा पास पड़ता है.


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आखिर इतने दिनों में क्या बदला

ताराबाड़ी के लोगों को इल्म भी नहीं है कि उनके गांव ने बिहार सरकार के सामने एक संवैधानिक संकट खड़ा कर दिया है. हालांकि, दशकों से सीमित संसाधनों में जी रहे इन लोगों की किसी ने सुध नहीं ली, लेकिन अब यह गांव बीते साल घटी घटना के बाद आसपास के इलाके में बदनाम तो हो ही चुका है लेकिन अब इसे ‘हत्यारे’ पंचायत की बदनामी भी झेलनी पड़ रही है.

बीते साल जून में हुई घटना के बाद पंचायत का सारा काम ठप पड़ा है क्योंकि सारे जनप्रतिनिधि मर्डर मामले में अभियुक्त हैं. इस स्थिति को देखते हुए पूर्णिया के जिलाधिकारी ने इस साल जनवरी में राज्य के पंचायती राज विभाग को पत्र लिखकर ग्राम पंचायत में विकास कार्यों के क्रियान्वयन और ग्राम कचहरी के संचालन पर मार्गदर्शन मांगा था.

पंचायती राज विभाग के अपर मुख्य सचिव मिहिर कुमार सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “राज्य में लगभग 8057 पंचायतें हैं, लेकिन इस तरह का यह पहला मामला सामने आया है. ऐसी स्थिति से निपटने के लिए हमने आदेश दे दिए हैं.”

गांव के कठिन भूगोल और हत्याओं की दोहरी मार ने विकास की संभावनाओं को और भी कम कर दिया है.

बिहार के पूर्णिया जिले का दुर्गम ताराबाड़ी गांव. लोग केवल नाव से या इस चचरी (बांस) पुल से ही यहां पहुंच सकते हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

बायसी विधानसभा से विधायक सैयद रुकनुद्दीन ने कहा कि पिछले साल ताराबाड़ी में जघन्य हत्या हुई थी जिसके बाद से ही पंचायत का सारा काम रुका हुआ था और विकास कार्य भी नहीं हो पा रहा था. उन्होंने कहा, “पंचायत के जनप्रतिनिधि ही इस मामले में आरोपी है. यह गांव एक टापू की तरह है जिसके दोनों और नदी बहती है. 2017 की बाढ़ में इस गांव को काफी नुकसान झेलना पड़ा. नाव ही यहां आने-जाने का एकमात्र साधन है.”

बायसी विधायक सैयद रुकनुद्दीन ने कहा कि जब तक कटाव निरोधी कार्य नहीं हो जाता तब तक गांव को जिला मुख्यालय से नहीं जोड़ा जा सकता. उन्होंने कहा, “इसके लिए हमने सरकार को काफी बार लिखा है और उसी के मद्देनजर अब कटाव निरोधक काम शुरू हुआ है. हम इसे जिला मुख्यालय से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं.”

हालांकि ग्रामीणों ने विधायक के दावे को खारिज कर दिया. जैसे-जैसे मानसून करीब आ रहा है, हर साल की तरह लोगों में बाढ़ की आशंका भी बढ़ती जा रही है. 2017 की बाढ़ के बाद, नदियों (महानंदा और कनकई) ने अपना रास्ता बदल लिया और गांव के बीच से होकर बहने लगी, जिसने न केवल लोगों की जमीन छीन ली बल्कि जीवन को भी मुश्किल बना दिया.

नूर आलम ताराबाड़ी के ही रहने वाले हैं और घटना स्थल से उनका घर पास में ही है. उन्होंने कहा, “गांव में कोई अच्छी सड़क नहीं है. नए मुखिया और सरपंच को इसलिए चुना गया था ताकि सड़क बने और अन्य काम भी हो सकें, लेकिन यह सब अब अधर में है.”

उन्होंने कहा, “पहले से ये इलाका इतना पिछड़ा है और बीते 8-10 महीने से तो सब कुछ ठप पड़ा ही हुआ है.”

नूर आलम ने कहा, “पोल्ट्री व्यवसाय के लिए सरकार सीमेंटेड मकान (मुर्गी का घर) रियायती दरों पर देती है, लेकिन पंचायत के काम नहीं करने के कारण ग्रामीणों को वह भी नहीं मिल रहा है.”

उन्होंने कहा, “बीते 10 महीने से किसी को भी कॉलोनी के पैसे नहीं मिले हैं.”

हालांकि, इस बीच एक उम्मीद की किरण जरूर जही है. ग्रामीणों के बीच झगड़ों के मामलों में जरूर कमी आई है. लोग जानते हैं कि अगर कोई समस्या आएगी भी तो स्थानीय स्तर पर उसका समाधान करने वाला अब कोई नहीं है.

पूर्व मुखिया नजमुल होदा के बेटे पिंकू होदा कहते हैं कि पिछले महीनों में जो भी मामले सामने आए हैं, गांव के बुजुर्गों ने ही उसे मिल बैठकर सुलझाया है.

ताराबाड़ी गांव का एक दृश्य | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

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कैसे खड़ा हुआ संवैधानिक संकट

राज्य में खड़े हुए अनूठे संवैधानिक संकट का समाधान निकालने की जिम्मेदारी पंचायती राज विभाग के सलाहकार को दी गई, जिन्होंने पंचायती राज अधिनियम की अनगिनत धाराओं को खंगाला ताकि कोई समाधान निकल सके.

पंचायती राज विभाग के अपर मुख्य सचिव मिहिर कुमार सिंह ने 3 अप्रैल 2023 को पंचायत में वर्तमान में मौजूद वार्ड सदस्यों में से एक को अस्थायी रूप से उप-मुखिया और एक को उप-सरपंच चुनने का आदेश जारी किया. बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा-172 का इस्तेमाल कर इस मामले का निपटारा किया गया. इस धारा का विरले ही बिहार में कभी इस्तेमाल किया गया हो.

यह धारा सरकार को अनुमति देती है कि किसी भी कठिनाई के वक्त समाधान के लिए जो भी जरूरी कदम हो, उसे उठाकर समस्या का हल निकाला जाए.

और आखिरकार 15 अप्रैल को उप-मुखिया और उप-सरपंच पद पर स्थायी तौर पर निर्वाचन कर लिया गया. लेकिन दशकों से मझधार में फंसे ताराबाड़ी के लिए राह आसान नहीं होने वाली थी. राज्य सरकार के द्वारा किया गया समाधान नई पेचीदगियां, असमंजस और संकट लिए हुए है क्योंकि पद पर निर्वाचित लोग वही हैं जिनके पति डबल-मर्डर के अभियुक्तों में शामिल है.

ताराबाड़ी गांव के प्राथमिक विद्यालय के बाहर खेलते बच्चे | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

ताराबाड़ी जहां था, आज भी उसी दोराहे पर खड़ा है. उसकी नियति में गरीबी, विकास की संभावनाओं से कोसों दूर तो लिखा ही हुआ है बल्कि आने वाले कुछ महीनों में फिर से बाढ़ उनके दरवाजे पर दस्तक दे सकती है, जैसा कि बीते कई सालों से होता आ रहा है.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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