होम फीचर IKEA, प्राइड मेट्रो, पिंक टॉयलेट- कैसे नोएडा की छवि बदलने में जुटी...

IKEA, प्राइड मेट्रो, पिंक टॉयलेट- कैसे नोएडा की छवि बदलने में जुटी हैं रितु माहेश्वरी

आप रितु माहेश्वरी को भ्रष्टाचार से निपटने या शिकायत निवारण प्रणाली में सुधार करते हुए भी सिस्टम के साथ लड़ते हुए नहीं पाएंगे.

नोएडा प्रशासन की सीईओ रित माहेश्वरी | फोटो: पूजा खेर/दिप्रिंट

सभी नायक लबादा पहनकर नहीं घूमते. कुछ सलवार-कमीज और साड़ी भी पहनते हैं और उत्तर प्रदेश में काम करते हैं. ऐसी ही एक हीरो हैं रितु माहेश्वरी, जो चुपचाप नोएडा को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का सबसे अच्छा शहर बनाने की दिशा में काम कर रही हैं. वह जिस कार्यबल का नेतृत्व कर रहीं हैं, उसमें ज्यादातर संख्या पुरुषों की है. उनका विजन समावेशिता, सशक्तिकरण, पारदर्शिता और प्रतिक्रिया पर खड़ा है.

नोएडा अथॉरिटी की इस सीईओ के पास बैटमैन या सुपरमैन जैसा जादू तो नहीं है लेकिन उन्होंने अपने काम से साथियों का आदर और नागरिकों की प्रशंसा जरूर अर्जित की है. ज्यादा से ज्यादा संख्या में महिला शौचालय और सेक्टर 50 में एक प्राइड मेट्रो स्टेशन जैसी पहल ने नोएडा की छवि को बदलने में एक लंबा सफर तय किया है. प्राइड मेट्रो उत्तर भारत का पहला ऐसा स्टेशन है, जहां काम करने वाले सभी कर्मचारी एलजीबीटीक्यू समुदाय के हैं.

नोएडा की शासन व्यवस्था को फीडबैक पर आधारित बनाने का यह ‘मैडम-सर’ का कदम है. उनके इस काम ने माहेश्वरी को सबसे अधिक प्रशंसा दिलाई है. अब लोगों के लिए अपनी शिकायतें दर्ज करना आसान हो गया है. खासतौर पर पंजीकरण सहित अधिकांश सेवाओं को ऑनलाइन कर दिया गया है. इससे लोगों को अच्छी-खासी सहुलियत हो गई है.

सेक्टर 51 के रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) की अध्यक्ष अनीता जोशी ने बताया, ‘सीईओ ने पूरी प्रक्रिया को पहुंच के अंदर बना दिया है. जब भी हम किसी मदद या शिकायत के लिए उनसे संपर्क करते हैं तो प्राधिकरण भी तेजी से काम करता है. इससे हमें जमीनी स्तर पर बेहतर काम करने में भी मदद मिलती है.’

एक अन्य नागरिक राजीव शर्मा पिछले बीस सालों से नोएडा में रह रहे हैं और इसे अपना घर बताते है. उन्होंने इसे बदलते देखा है. वह कहते हैं, ‘जमीन का रजिस्ट्रेशन कराना अब एक आसान प्रक्रिया है. सब कुछ ऑनलाइन हो गया है. हमें लंबी कतारों में इंतजार नहीं करना पड़ता है और न ही यहां से वहां भागने की जरूरत है.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

ये पहल लोगों को बचाने के लिए एक जलती हुई इमारत में घुसने वाले सुपरहीरो जितनी आकर्षक या फिर 500 फीट की मूर्तियों के अनावरण करने वालों की तरह दमदार तो नहीं हो सकती, लेकिन उन्होंने नोएडा को वहां रहने वाले लोगों, खुदरा विक्रेताओं और बिजनेस के लिए एक ऐसी जगह बना दिया है, जहां लोग आना चाहते है. वह नोएडा की छवि बदलने के लिए काफी प्रयास कर रहीं है.

हाल के कुछ सालों में नोएडा में संपत्ति किराए पर लेना या खरीदना सस्ता हुआ है. लोग इस तरफ तेजी से आ रहे हैं. पार्कों और पेड़ों की हरियाली के साथ यह शहर ‘उत्तर प्रदेश का मैनचेस्टर’ बनने की ओर बढ़ रहा है. 1976 में जब इस शहर को बसाया गया था तो संजय गांधी ने इसके लिए कुछ ऐसी ही कल्पना की थी. अपने लगभग 50 प्रतिशत हिस्से को हरियाली से ढके हुए नोएडा, मॉडर्न आवासीय सोसायटियों का निर्माण कर और लोगों के जीवन को आसान बनाते हुए अपने पॉश कजिन ‘गुरुग्राम’ को हर मामले में टक्कर दे रहा है.

रितु माहेश्वरी (बाएं) | फोटो: पूजा खेर/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड की घाटी में बस गिरने से 25 लोगों की मौत, राष्ट्रपति और पीएम ने जताया दुख


महिलाओं की पावर

नोएडा की छवि बदलने की कल्पना करने के लिए रितु माहेश्वरी को उन नियम कायदों ने प्रेरित किया, जिस पर उन्होंने सिविल सेवाओं में शामिल होने के बाद से भरोसा किया है. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के 2003 बैच की ऑफिसर, माहेश्वरी 2019 में नोएडा प्राधिकरण के सीईओ के रूप में शामिल हुईं. वह नोएडा मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (एनएमआरसी) की प्रबंध निदेशक भी हैं. अतीत में, उन्होंने यूपी के अमरोहा, गाजीपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर और गाजियाबाद में जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) के रूप में काम किया है.

उन्होंने योगी सरकार के ‘शक्ति मिशन’ को काफी तेजी और शिद्दत के साथ आगे बढ़ाया है. इसका उद्देश्य यूपी में महिलाओं की सुरक्षा को बेहतर बनाना है. माहेश्वरी कहती हैं, ‘प्रशासन के अलग-अलग स्तरों पर महिलाओं का होना और उनके साथ काम करना वास्तव में महत्वपूर्ण है. शहर को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाना भी जरूरी है.’

अधिकारियों का कहना है कि इस साल जनवरी में उन्होंने शहर में महिलाओं द्वारा संचालित किए जाने वाले 50 से ज्यादा ‘गुलाबी’ वेंडिंग कियोस्क का उद्घाटन किया. अभी यह शुरू ही हुआ है इसलिए इसकी सफलता को लेकर फिलहाल ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है. अधिकारियों ने बताया कि वे व्यापार मॉडल को बढ़ावा देने और इसे और अधिक फायदेमंद बनाने के तरीकों पर चर्चा कर रहे हैं.

हालांकि कार्यबल में महिलाओं के समान प्रतिनिधित्व के लिए नोएडा प्राधिकरण को अभी एक लंबा रास्ता तय करना है. महामारी से पहले भी यूपी में महिला बेरोजगारी दर 9.4 प्रतिशत थी. लेकिन जब नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं की बात आती है, तो नोएडा पुलिस निश्चित रूप से बेहतर काम कर रही है. सीनियर ऑफिशियल कैटेगरी के तहत सूचीबद्ध 14 अधिकारियों में से तीन महिलाएं हैं- एसीपी (क्राइम) श्रीपर्णा गांगुली, डीसीपी (क्राइम) मीनाक्षी कात्यायन और डीसीपी (महिला सुरक्षा) डीसीपी (क्राइम).

नोएडा कमिश्नरेट (आयुक्तालय) सिर्फ दो साल पुराना है लेकिन यह सही दिशा में जा रहा है. यहां तक कि नोएडा के कट्टर प्रतिद्वंद्वी गुरुग्राम को भी इस साल फरवरी में पहली महिला आयुक्त मिली. दोनों उपनगरों में यातायात निगरानी सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में से एक रही है.


यह भी पढ़ें: विज्ञापन की दुनिया को नई परिभाषा देने वाले जादूगर डैन विडेन


कानपुर की कहानी

नोएडा एक्सपेरिमेंट उनका पहला प्रयास नहीं है. जहां-जहां उनकी पोस्टिंग हुई, वह वहां नजर आने वाले सामाजिक और प्रशासनिक परिवर्तन लाती रही हैं. इसकी शुरुआत 2011 में आईएएस अधिकारी के रूप में उनकी पहली नियुक्ति के साथ हुई. माहेश्वरी की उम्र 33 साल थी, जब वह कानपुर इलेक्ट्रिक सप्लाई कंपनी (केस्को) की प्रबंध निदेशक बनीं. कहा जाता है कि सिस्टम में सुधार लाना आसान नहीं है, इसे धीरे-धीरे लाना होता है. माहेश्वरी के इस मुश्किल सफर को एक वृत्तचित्र के जरिए भी सामने लाया गया था.

डाक्यूमेंट्री ‘कटियाबाज़’ 2013 में आई थी. कानपुर की बोली में कटियाबाज ‘बिजली चुराने में माहिर’ व्यक्ति को बोला जाता है. डेविड व गोलियत के नैरेटिव के साथ फिल्म निर्माता फहद मुस्तफा और दीप्ति कक्कड़ शहर में बिजली के लिए संघर्ष कर रहे लोगों की कहानी को दिखाते हैं. कौन चोर है और कौन बिजली पाने के लिए संघर्ष कर रहा है इसका पता लगाना बड़ा मुश्किल है. एक तरफ एक युवा प्रशासनिक अधिकारी है जो केस्को को घाटे में चल रही कंपनी से बाहर निकालने के लिए प्रतिबद्ध है और दूसरी तरफ लोहा सिंह है, जोकि एक शातिर बिजली चोर है.

यह एक रोमांचकारी और सोचने के लिए मजबूर कर देनी वाली डॉक्यूमेंट्री है. इसके पात्र काल्पनिक नहीं हैं बल्कि वास्तविक जीवन से लिए गए है.

डॉक्यूमेंट्री में लोहा सिंह कहते हैं, ‘मैं इलाके का सबसे क्रूर कटियाबाज हूं.’ लेकिन क्या वह वाकई माहेश्वरी का दुश्मन हैं? कुछ भी हो, वह बिजली के इस ड्रामा में सबसे वंचित व्यक्ति हैं. दरअसल यह वृतचित्र पावर और वर्ग के बीच फैले मतभेदों का एक नेटवर्क है, जिसमें माहेश्वरी को लेकर लिंगवाद के पानी का एक छींटा भी डाला गया है.

ऐसा नहीं है कि वह आम लोगों के सामने आ रहे बिजली संकट से अनजान थीं. वह कहती हैं, ‘चोरी मजबूरी की भावना और जुगाड़ दोनों के कारण हुई थी.’ साथ ही एक योग्य इलेक्ट्रिकल इंजीनियर होने के नाते माहेश्वरी को उस संकट की कुछ समझ तो थी ही, जिसके लिए वह मैदान में उतरी थी.

मुस्तफा कहते हैं, ‘यह देखना लगभग निराशाजनक था कि एक महिला होने के नाते माहेश्वरी के खिलाफ जिस तरह से चीजें सामने आई, उन्होंने कभी इसके बारे में बात नहीं की.’

फिल्म निर्माता एक महिला आईएएस अधिकारी को चित्रित करते हैं जो निष्पक्ष होना चाहती है. लेकिन कोई भी उसे अपने लिंग को भूलने नहीं देता- न राजनेता, न सहकर्मी और न ही असंतुष्ट निवासी. वह जानती है कि इस दुनिया में असमानता है और एक ऑल-गन-ब्लेजिंग विजन शायद उनके ट्रांसफर का कारण भी बन सकता है. डॉक्यूमेंट्री में माहेश्वरी कहती हैं, ‘कभी-कभी ऐसा लगता है कि उन लोगों के लिए जीवन बेहतर है जो सिर्फ फाइलों पर हस्ताक्षर करते हैं और घर वापस चले जाते हैं.’

वह जान जाती हैं कि उन्हें एक बीच का रास्ता खोजना होगा, ताकि कानपुर की बिजली व्यवस्था को चलाने के तरीके को बदलने के प्रयास में उनका ट्रांसफर न कर दिया जाए.

मैकेनिकल मीटर के युग में सुबह की छापेमारी और कानूनों पर अमल करना एक कड़ा कदम था. उन्होंने इन मीटर्स को मैकेनिकल से इलेक्ट्रिक में बदलने का काम किया, जिससे घाटे में चल रही मशीनरी- जो पहले 28-29 फीसदी थी- घटकर महज 14 से 15 फीसदी रह गई.

वह मुस्कराते हुए कहती हैं, ‘मुझे यकीन है कि अभी भी बिजली की चोरी हो रही है.’

कानपुर की तुलना में देखा जाए तो नोएडा काफी अलग है. लेकिन वह यहां भी ठीक उसी तरह से काम करती हैं. आप रितु माहेश्वरी को भ्रष्टाचार से निपटने या शिकायत निवारण प्रणाली में सुधार करते हुए भी सिस्टम के साथ लड़ते हुए नहीं पाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘नोएडा एक बड़ा मॉडल है और इसमें उतनी ही बड़ी चुनौतियां हैं. अगर कानपुर में बिजली संकट था, तो नोएडा के मसले अलग-अलग तरह के हैं. हमें प्रशासनिक से एक नगरपालिका मॉडल में तब्दील करना पड़ा. वह मेरी सबसे बड़ी चुनौती थी.’


यह भी पढ़ें: इस साल कोलकाता के दुर्गा पंडालों की थीम रही-ED की कार, वेटिकन सिटी और ‘स्टाररी नाइट’


नोएडा को सबके लायक बनाना

माहेश्वरी धीरे-धीरे उन बक्सों पर टिक करती जा रही हैं जो एक शहर को रहने के लिए एक आदर्श स्थान बनाते हैं. अभी के लिए वह नोएडा को और अधिक निवेश-अनुकूल बनाने पर ध्यान दे रही है. यह एक्वालाइन मेट्रो के जरिए कई इलाकों के साथ काफी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. स्वीडिश फर्नीचर दिग्गज आईकेईए और दक्षिण कोरिया के चांगवोन के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर पहले ही हस्ताक्षर किए जा चुके हैं. ये कंपनियां नोएडा के मॉल और होटल के बुनियादी ढांचे में 5,500 करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना बना रही हैं.

कई डंपिंग ग्राउंड को वन क्षेत्रों में बदलने से लेकर बिना किसी रुकावट के कचरा इकट्ठा करने और निपटान / रीसाइक्लिंग सिस्टम को सुनिश्चित करने तक, नोएडा एनसीआर के सबसे साफ शहर के रूप में उभरा है. नोएडा अथॉरिटी के डिप्टी जनरल मैनेजर और सीनियर प्रोजेक्ट इंजीनियर (पब्लिक हेल्थ) एस.सी. मिश्रा कहते हैं, ‘हम जो भी अच्छा काम कर रहे हैं, वह हमारे सीईओ के सहयोग और पहल के कारण ही संभव हुआ है.’

माहेश्वरी की ओर से चलाया गया मॉडल स्वच्छता ‘नागरिकों के लिए और नागरिकों की मदद से’ काम करता है. यह काफी सफल रहा है. आरडब्ल्यूए, अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन (एओए) से लेकर यहां रहने वाले लोगों और यहां तक कि बच्चों तक को इसमें शामिल किया गया है. माहेश्वरी ने यह सुनिश्चित किया कि इस बेदाग स्वच्छता मॉडल को बनाए रखने में सभी की मदद ली जाए.

माहेश्वरी को नोएडा को बदलने के लिए स्पेशल पावर की जरूरत नहीं है. लेकिन शायद उनके जैसी और महिलाओं की एक छोटी सी सेना आगे बढ़ने में मदद कर सकती है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: इस साल कोलकाता के दुर्गा पंडालों की थीम रही-ED की कार, वेटिकन सिटी और ‘स्टाररी नाइट’


 

Exit mobile version